Tuesday, 19 September 2017

ऋषियों ने कठिन तप कर इस ब्रह्मज्ञान को जाना है, ...

Home धर्म मंत्र आरती चालीसा शास्त्र इतिहास ज्योतिष स्वास्थ्य विचार कहानियाँ वीडियो समाचार अन्य English   हिन्दू धर्म में मूर्ति-पूजा का महत्व   अक्सर बालपन से ही हमें मंदिर जाना सिखाया जाता है| वहां जाना एवं पूजा-आरती करने की सीख हमेशा से हमें दी जाती है| और हमारा ऐसे लोगों से भी मिलाप होता है जो मंदिर और मूर्ति-पूजा को अंधविश्वास का नाम देते हैं| आज हम इस लेख में मंदिर और मूर्ति पूजा के बारे में जानेंगे| आज हम मूर्ति पूजा के पीछे के विज्ञान के बारे में बात करेंगे|  सबसे पहला प्रश्न आता है कि मंदिर क्या है? मंदिर का अर्थ है मन के अंदर और इसका शाब्दिक अर्थ ‘घर’ या स्थान होता है| मंदिर एक ऐसी जगह है जहां सकारात्मक ऊर्जा का संचालन होता है और परमात्मा के मिलन के लिए पहली सीढ़ी ही सकारात्मक ऊर्जा-शक्ति जो हमें मंदिर में मिलती है| जिस प्रकार छोटे होते हुए हमे किसी भी चीज़ का ज्ञान नहीं था परन्तु धीरे-धीरे हमारे अंदर जिज्ञासा होने लगती है और हम जानने की कोशिश करते हैं| कुछ ऐसा ही है यहां भी है- पहले हम मंदिर जाएंगे, फिर और जानने के लिए हम रामायण, गीता जैसे ग्रंथो को पढ़ते हैं| जिज्ञासा बढ़ने के बाद हम पुराण, उपनिषद, और फिर वेद-शास्त्र पढ़ते हैं, जिससे हमे ब्रह्मज्ञान की समझ आने लगती है|   जब हम इन सीढ़ियों को पार करते हैं तो हमें मूर्ति नहीं मूर्ति के रूप में ईश्वर के दर्शन होते हैं| हिन्दू धर्म में मान्यता है कि ईश्वर सर्वव्यापी है यानि हर जगह मौजूद है| यदि भगवान हर चीज़ में है तो मूर्ति में भी होगा, बस श्रद्धा-भाव से देखने की ज़रूरत है|  माना जाता है कि मंदिर एक शरीर के समान है और उस शरीर के हृदय में ईश्वर की मूर्ति राखी हुई है| मंदिर के गर्भग्रह को शरीर के चेहरे के समान माना गया है| गोपुरा शरीर के पैरों के समान है| शुकनासी को नाक माना गया है| अंतराला (निकलने की जगह) को गर्दन माना गया है| प्राकरा: (ऊँची दीवारें) इन्हें शरीर के हाथ माना गया है| इस पूरे विज्ञानं के पीछे एक आध्यात्मिक अर्थ है कि भगवान को खिन ओर खोजने की ज़रूरत नहीं है बल्कि वे हमारे हृदय में बस्ते हैं| मंदिर में जाने से हमें सही दिशा में चलने का उपदेश मिलता है जिससे हम अच्छे कर्म कर के मोक्ष प्राप्त करते हैं|   जहाँ तक अन्धविश्वास की बात है तो ऋषियों ने कठिन तप कर इस ब्रह्मज्ञान को जाना है, उसके पश्चात उन्होंने ग्रंथ बनाये जिससे हमारा मार्ग-दर्शन हो पाए| मंदिरों और मूर्ति-पूजा के पीछे का विज्ञान यही कहता है कि मंदिर में जाने से सकारात्मक ऊर्जा-शक्ति हमारे शरीर और मस्तिष्क को स्वच्छ कर हमें सही दिशा दिखने की शक्ति देती है| इसे अन्धविश्वास का नाम देना गलत होगा| आपके कमैंट्स TAGSBhagwanGodHinduKrishnaPuja- ArchnaRamaReligionShivaTempleTemplesVaishno DeviVishnu Previous article अगर सूर्य देव को प्रसन्न करना चाहते हो तो रविवार के दिन पढ़िए सूर्य के 21 नाम Next article गणेश जी का विवाह किस से और कैसे हुआ और उनके विवाह में क्या रुकावटें आई RELATED ARTICLES  गुप्त नवरात्रि – कथा, व्रत विधि  गर्दभ पर विराजमान, हाथ में कलश तथा झाड़ू पकड़े हुई शीतला...  गुरुभक्त एवं सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर : एकलव्य  वसंत पंचमी के पीछे की कथा  क्यों किया बर्बरीक ने अपने बाणों से पीपल के पत्तों में...  आखिर ऐसा क्या हुआ की बालब्रह्मचारी होते हुए भी हनुमान जी...  यहां हैं महादेव के त्रिशूल के अंश  अगर सूर्य देव को प्रसन्न करना चाहते हो तो रविवार के...  स्वाहा- जिसके बिना कोई भी हवन सफल नहीं  © 2016 - 2017 | Nav Hindu - All Rights Reserved 

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