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सबकी गठरी लाल है। बस, खोलना नहीं जानते हैं

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शून्य का अनुभव करो
नवभारत टाइम्स | Updated Dec 4, 2009, 12:11 AM IST
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महाराजी
कई लोग कहते हैं कि हमको कुछ भी अनुभव नहीं होता है। मैं कहता हूं लोगों से कि तुम्हारे दो हाथ हैं, तुम्हारा सिर भी है, तुम्हारे पैर भी हैं। जब तुम्हारे हाथों में कोई दर्द नहीं होता, कोई खुजली नहीं होती, कुछ नहीं होता तो उस समय तुम्हारे हाथ क्या अनुभव करते हैं? तुम क्या अनुभव करते हो? कुछ नहीं। जैसे है ही नहीं। पर है -अंग्रेजी में उसे कहते है नल पॉइं', जीरो! क्या है जीरो? शून्य! क्या है शून्य?

ये शून्य जो है, यह हिंदुस्तानी आविष्कार है। विदेश में शून्य नहीं था। जब वैज्ञानिक लोग शून्य की परिभाषा को विदेश में ले गए तो वहां के जो धार्मिक लोग थे, वे बड़े गुस्सा हुए कि 'नहीं, नहीं, ऐसा हो ही नहीं सकता। शून्य कोई चीज है ही नहीं ।' पर अगर शून्य नहीं होता तो आज कंप्यूटर नहीं होते । ये कंप्यूटर्स जो हैं- 1 और 0, ऑन ऑफ । शून्य! उसमें 'सब कुछ' है और 'कुछ भी नहीं' है। कहां है वो 'शून्य' ?
सिर, सिर है, कोई दर्द नहीं हो रहा है, कुछ भी नहीं हो रहा है, सब कुछ ठीक है । क्या अनुभव है उस सिर का ? कुछ नहीं, जैसे है ही नहीं। पर खाज नहीं है, दर्द नहीं हो रहा है, कुछ नहीं हो रहा है, कुछ भी नहीं हो रहा है। तुम्हारे अंदर स्थित जो 'अनुभव' है, अगर तुम उसको समझना चाहते हो, तो अंदर की आंखें खोलनी पडेंगी, तब तुमको दिखाई देगा । तब तुमको समझ में आएगा कि 'परमानंद' क्या चीज है। तब तुमको समझ में आएगा कि हृदय क्या चीज है। मन नहीं !
तुम्हारा मन सारे दिन तुमको परेशान करता है, पर खुद कभी परेशान नहीं होता। समझो ! तुम्हारा मन सारे दिन तुमको बहुत परेशान करता है, 'ये करना चाहिए, वो करना चाहिए, उसको खरीद लो, वो ले लो, उसको फोन करना है, उसको भूल गए, ये भूल गए, वो भूल गए।' इस प्रकार तुमको परेशान करता है, परंतु खुद परेशान नहीं होता है। इस संसार के अंदर कोई चीज नहीं है जो मन को परेशान कर सके, पर मन तुमको जरूर परेशान करता है।
चाहे मेरे आस-पास कितना भी दुख हो, उस दुख के होने के बावजूद मेरे अंदर परमानंद है । मैं कितना धनी हूं। कहा है कि इस संसार के अंदर निर्धन कोई नहीं है। सब धनी हैं! सबकी गठरी लाल है। बस, खोलना नहीं जानते हैं- 'इस विधि भयो कंगाल।' कुछ नहीं हाथ लगा। इस संसार के अंदर आए, खोजा, तो मिला भी! ज्ञान मिला। और फिर क्या हो जाता है मनुष्य के साथ? फिर वह छोटी-छोटी बातों में खो जाता है। ज्ञान खोने के लिए किसी ने नहीं लिया। ज्ञान को पाना, अपने आपको पाना, अपने आपको समझना, अपने अंदर स्थित उस शांति का अनुभव करना, अपने अंदर स्थित उस परमात्मा का अनुभव करना। यह मूल चीज है!

कई लोग कहते हैं 'महाराजी'! हम अकेलापन महसूस करते हैं। मैं कहता हूं, तुमको अकेलापन महसूस करने की क्या जरूरत है? तुम जहां भी जाओ, तुम्हारा परमपिता परमेश्वर, परममित्र तुम्हारे साथ है। तुमको वह कभी छोड़ता ही नहीं है। जिस दिन वह साथ छोड़ देगा, बस, सब गया। वह तो आखिरी समय तक तुम्हारे साथ रहेगा। उससे यारी करो। वह जो अनुभव है, चाहे थोड़ी देर ही रहे, परंतु आनंददायक होता है। वह जो अनुभव है, वो है शांति का अनुभव।
क्योंकि किसी चीज ने अपने परमात्मा के साथ मिलकर कुछ क्षण बिताए हैं। इस शरीर में रहते हुए अविनाशी का अनुभव किया है। जब मनुष्य अविनाशी का अनुभव करता है, तो न कल है न परसों, न ऊपर है, न नीचे, न चिंता है, न फिक्र है, न आशा है, न निराशा है। सब सम हो जाता है। वह है असली शांति का अनुभव! वह है उस 'शून्य' का अनुभव जो सारी सृष्टि में व्याप्त है। उस सृष्टि में भी, जिसका मनुष्य को कुछ पता नहीं है। समय के आखिरी छोर तक में है और समय से पहले भी है। वह हर जगह है और हर जगह होने के नाते तुम्हारे हृदय में भी है!
प्रस्तुति : आर. डी. अग्रवाल 'प्रेमी'
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