Monday, 25 September 2017

ब्रह्मचर्य - वीर्य रक्षण - योग-साधना"

गौ माता,भारत एवं भाई राजीव दिक्षित ! ये ब्लॉग/चिट्ठा मैने भारत देश के बारे में जानने और समझने के लिये बनाया हैँ ! सत्य की जय हो ! विद्या मित्रं प्रवासेषु ,भार्या मित्रं गृहेषु च | व्याधितस्यौषधं मित्रं ,धर्मो मित्रं मृतस्य च||  ▼ Wednesday, December 7, 2016 ब्रह्मचर्य। ब्रह्मचर्य - वीर्य रक्षण - योग-साधना"। 1. वीर्य के बारें में जानकारी - आयुर्वेद के अनुसार मनुष्य के शरीर में सात धातु होते हैं- जिनमें अन्तिम धातु वीर्य (शुक्र) है। वीर्य ही मानव शरीर का सारतत्व है। 40 बूंद रक्त से 1 बूंद वीर्य होता है। एक बार के वीर्य स्खलन से लगभग 15 ग्राम वीर्य का नाश होता है । जिस प्रकार पूरे गन्ने में शर्करा व्याप्त रहता है उसी प्रकार वीर्य पूरे शरीर में सूक्ष्म रूप से व्याप्त रहता है। सर्व अवस्थाओं में मन, वचन और कर्म तीनों से मैथुन का सदैव त्याग हो, उसे ब्रह्मचर्य कहते है ।। -------------------------- 2. वीर्य को पानी की तरह रोज बहा देने से नुकसान - शरीर के अन्दर विद्यमान ‘वीर्य’ ही जीवन शक्ति का भण्डार है। शारीरिक एवं मानसिक दुराचर तथा प्राकृतिक एवं अप्राकृतिक मैथुन से इसका क्षरण होता है। कामुक चिंतन से भी इसका नुकसान होता है। मैथून के द्वारा पूरे शरीर में मंथन चलता है और शरीर का सार तत्व कुछ ही समय में बाहर आ जाता है। रस निकाल लेने पर जैसे गन्ना छूंट हो जाता है कुछ वैसे ही स्थित वीर्यहीन मनुष्य की हो जाती है। ऐसे मनुष्य की तुलना मणिहीन नाग से भी की जा सकती है। खोखला होता जाता है इन्सान । स्वामी शिवानंद जी ने मैथुन के प्रकार बताए हैं जिनसे बचना ही ब्रह्मचर्य है - 1. स्त्रियों को कामुक भाव से देखना। २. सविलास की क्रीड़ा करना। 3. स्त्री के रुप यौवन की प्रशंसा करना। 4. तुष्टिकरण की कामना से स्त्री के निकट जाना। 5. क्रिया निवृत्ति अर्थात् वास्तविक रति क्रिया। इसके अतिरिक्त विकृत यौनाचार से भी वीर्य की भारी क्षति हो जाती है। हस्तक्रिया आदि इसमें शामिल है। शरीर में व्याप्त वीर्य कामुक विचारों के चलते अपना स्थान छोडऩे लगते हैं और अन्तत: स्वप्रदोष आदि के द्वारा बाहर आ जाता है। ब्रह्मचर्य का तात्पर्य वीर्य रक्षा से है। यह ध्यान रखने की बात है कि ब्रह्मचर्य शारीरिक व मानसिक दोनों प्रकार से होना जरूरी है। अविवाहित रहना मात्र ब्रह्मचर्य नहीं कहलाता। धर्म कर्तव्य के रूप में सन्तानोत्पत्ति और बात है और कामुकता के फेर में पडक़र अंधाधुंध वीर्य नाश करना बिलकुल भिन्न है। मैथुन क्रिया से होने वाले नुकसान निम्रानुसार है- * शरीर की जीवनी शक्ति घट जाती है, जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। * आँखो की रोशनी कम हो जाती है। * शारीरिक एवं मानसिक बल कमजोर हो जाता है। * जिस तरह जीने के लिये ऑक्सीजन चाहिए वैसे ही ‘निरोग’ रहने के लिये ‘वीर्य’। * ऑक्सीजन प्राणवायु है तो वीर्य जीवनी शक्ति है। * अधिक मैथुन से स्मरण शक्ति कमजोर हो जाता है। * चिंतन विकृत हो जाता है। वीर्यक्षय से विशेषकर तरूणावस्था में अनेक रोग उत्पन्न होते हैं - चेहरे पर मुँहासे , नेत्रों के चतुर्दिक नीली रेखाएँ, दाढ़ी का अभाव, धँसे हुए नेत्र, रक्तक्षीणता से पीला चेहरा, स्मृतिनाश, दृष्टि की क्षीणता, मूत्र के साथ वीर्यस्खलन, दुर्बलता, आलस्य, उदासी, हृदय-कम्प, शिरोवेदना, संधि-पीड़ा, दुर्बल वृक्क, निद्रा में मूत्र निकल जाना, मानसिक अस्थिरता, विचारशक्ति का अभाव, दुःस्वप्न, स्वप्नदोष व मानसिक अशांति। अगर ग्रुप में किसी भाई को ये समस्याएँ हैं तो उपाय भी लिख रहा हूँ - लेटकर श्वास बाहर निकालें और अश्विनी मुद्रा अर्थात् 30-35 बार गुदाद्वार का आकुंचन-प्रसरण श्वास रोककर करें। ऐसे एक बार में 30-35 बार संकोचन विस्तरण करें। तीन चार बार श्वास रोकने में 100 से 120 बार हो जायेगा। यह ब्रह्मचर्य की रक्षा में खूब मदद करेगी। इससे व्यक्तित्व का विकास होगा ही, व ये रोग भी दूर होंगे समय के साथ ।। --------------------------- 3. वीर्य रक्षण से लाभ - शरीर में वीर्य संरक्षित होने पर आँखों में तेज, वाणी में प्रभाव, कार्य में उत्साह एवं प्राण ऊर्जा में अभिवृद्धि होती है। ऐसे व्यक्ति को जल्दी से कोई रोग नहीं होता है उसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता आ जाती है । पहले के जमाने में हमारे गुरुकुल शिक्षा पद्धति में ब्रह्मचर्य अनिवार्य हुआ करता था। और उस वक्त में यहाँ वीर योद्धा, ज्ञानी, तपस्वी व ऋषि स्तर के लोग हुए । भगवान बुद्ध ने कहा है - ‘‘भोग और रोग साथी है और ब्रह्मचर्य आरोग्य का मूल है।’’ स्वामी रामतीर्थ ने कहा है - ‘‘जैसे दीपक का तेल-बत्ती के द्वारा ऊपर चढक़र प्रकाश के रूप में परिणित होता है, वैसे ही ब्रह्मचारी के अन्दर का वीर्य सुषुम्रा नाड़ी द्वारा प्राण बनकर ऊपर चढ़ता हुआ ज्ञान-दीप्ति में परिणित हो जाता है। पति के वियोग में कामिनी तड़पती है और वीर्यपतन होने पर योगी पश्चाताप करता है। भगवान शंकर ने कहा है- 'इस ब्रह्मचर्य के प्रताप से ही मेरी ऐसी महान महिमा हुई है।' कुछ उपाय - ब्रह्मचर्य जीवन जीने के लिये सबसे पहले ‘मन’ का साधने की आवश्यकता है। भोजन पवित्र एवं सादा होना चाहिए। Subir Kayal at 11:29:00 PM No comments: Share  Friday, November 4, 2016 हस्‍तमैथुन की आदत बेहद हानिकारक हो सकती है। लड़के अक्सर कम उम्र में विपरित लिंग के प्रति आकर्षिण के चलते हस्‍तमैथुन की आदत डाल लेते हैं। लेकिन ये आदत यदि लत बन जाए तो बेहद हानिकारक हो सकती है।  1 हस्‍तमैथुन की लत बुरी कम उम्र में अक्सर लड़के विपरित लिंग के प्रति आकर्षित हो जाते हैं। इस समय अगर उन्हें उचित सलाह या यौन शिक्षा नहीं मिले तो इसके परिणाम बेहद डरावने हो सकते हैं। ऐसा ही एक कारण हस्तमैथुन भी है। इस आदत को अच्छा या बुरा नहीं कहा जा सकता। अगर आपको वाकई इसकी जरूरत महसूस होती है तो इसे किया जा सकता है। अन्यथा किसी और के दबाव में इसे करने की कोई जरूरत नहीं है। ये भी ध्यान रखें कि ये आदत लत बन जाए तो बेहद हानिकारक हो सकती है। तो चलिए बताते हैं कि हस्‍तमैथुन की लत से छुटकारा कैसे पाया जा सकता है। 2 हस्‍तमैथुन की लत के नुकसान बहुत ज्यादा हस्तमैथुन करने से लिंग के ऊतक में चोट पहुंचती है और ये ऊतक क्षतिग्रस्त हो जाते है, जिससे लिंग के बड़े प्रकोष्ट (कार्पस केवेरनोसम) में रक्त जमा नहीं हो पता और लिंग में उत्तेजना बंद हो जाती है। कभी-कभी तो इसके कारण गंभीर स्थिति पैदा हो सकती है, जिसमें व्यक्ति को उत्तेजना आना हमेशा के लिए समाप्त हो जाती है और व्यक्ति नपुंसक हो जाता है। कुछ लोगों में यही लत विवाह के बाद भी बनी रहती है और वे शर्मिंदा होते हैं। अति-उत्तेजना से लिंग को चोट भी लग सकती है और नसों पर अधिक दवाब पड़ सकता है। 3 दृढ़ संकल्प और इच्छा शक्ति दृढ़ संकल्प से आप हस्‍तमैथुन की लत छोड़ सकते हैं। इसके साथ ही जब भी हस्तमैथुन की इच्छा हो तब अपना ध्यान किसी अन्य काम में लगा लें या कोई अच्छा साहित्य पढ़ें या फिर अपनी पसंद का कोई और काम करने लग जाएं। कुल मिलाकर अपना दिमाग कुछ सकारात्मक कामों में लगाएं। 4 ये ना हो पुरस्कार जिस लत को आप छोड़ रहे हैं, उसी के जरिये खुद को पुरस्कृत न करें। मतलब यदि आप हस्‍तमैथुन की लत से उबर रहे हैं और 2 से 3 हफ्तों तक आपने हस्‍तमैथुन पर काबू रख लिया है तो ये न सोचें की अब इतने समय आपने इस लत पर काबू कर लिया है, जिसका पुरस्कार आप हस्तमैथुन कर, खुद को देंगे।यदि आप लत को छोड़ रहे हैं तो फिर इससे पूरी तरह बाहर आएं, खुद के लिए चोर दरवाजा बनाकर आप, खुद को धोखा ही दे रहे हैं। 5 आकर्षण वाला समय अक्सर लालच तभी आता है जब हम कमजोर होते हैं, जब हम पर दबाव होता है या हम नाराज, या उदास होते हैं। तो आप ऐसे मौकों के लिए पहले ही एक रणनिती बना कर दिमाग में डाल लें, और इस आकर्षण वाले समय में खुद के लिए तैयार रक्षा विकल्पों में लग जाएं। जब आप इस स्थिति में खुद को व्यस्त कर लेते हैं तो इस लत से जल्द ही छुटकारा मिल जाता है। 6 देर रात को देर रात का समय सेक्स प्रलोभनों से भरा होने के लिए कुख्यात होता है। तो जब आप देर रात के समय खुद को इस और आकर्षित महसूस करें, तो अपने अंडरवेयर के ऊपर एक और कपड़ा पहन लें। अगर फिर भी काम न बने तो इसके ऊपर एक और कपड़ा पहन सकते हैं। हो सकता है ऐसा करने से आपकी नींद में ख़लल पड़े, लेकिन ये तरीका हस्‍तमैथुन की लत को छोड़ेने में आपकी मदद जरूर करेगा। देखिये इसके पीछे तर्क ये है कि जब आप इतने कपड़े पहन लेते हैं तो हस्‍तमैथुन की स्थिति आने से पहले वो कपड़े आपके विचारों को थामने का काम कर सकते हैं। Subir Kayal at 4:45:00 PM No comments: Share  Monday, October 17, 2016 वैदिक विधि से गणित के हिसाब लगाये और आत्मविश्वास बडाये.. भारत में कम ही लोग जानते हैं, पर विदेशों में लोग मानने लगे हैं कि वैदिक विधि से गणित के हिसाब लगाने में न केवल मज़ा आता है, उससे आत्मविश्वास मिलता है और स्मरणशक्ति भी बढ़ती है. जर्मनी में सबसे कम समय का एक नियमित टेलीविज़न कार्यक्रम है विसन फ़ोर अख्त. हिंदी में अर्थ हुआ “आठ के पहले ज्ञान की बातें”. देश के सबसे बड़े रेडियो और टेलीविज़न नेटवर्क एआरडी के इस कार्यक्रम में, हर शाम आठ बजे होने वाले मुख्य समाचारों से ठीक पहले, भारतीय मूल के विज्ञान पत्रकार रंगा योगेश्वर केवल दो मिनटों में ज्ञान-विज्ञान से संबंधित किसी दिलचस्प प्रश्न का सहज-सरल उत्तर देते हैं. कुछ दिन पहले रंगा योगेश्वर बता रहे थे कि भारत की क्या अपनी कोई अलग गणित है? वहां के लोग क्या किसी दूसरे ढंग से हिसाब लगाते हैं? भारत में भी कम ही लोग जानते हैं कि भारत की अपनी अलग अंकगणित है, वैदिक अंकगणित. भारत के स्कूलों में वह शायद ही पढ़ायी जाती है. भारत के शिक्षाशास्त्रियों का भी यही विश्वास है कि असली ज्ञान-विज्ञान वही है जो इंग्लैंड-अमेरिका से आता है. घर का जोगी जोगड़ा घर का जोगी जोगड़ा, आन गांव का सिद्ध. लेकिन आन गांव वाले अब भारत की वैदिक अंकगणित पर चकित हो रहे हैं और उसे सीख रहे हैं. बिना कागज़-पेंसिल या कैल्क्युलेटर के मन ही मन हिसाब लगाने का उससे सरल और तेज़ तरीका शायद ही कोई है. रंगा योगेश्वर ने जर्मन टेलीविज़न दर्शकों को एक उदाहरण से इसे समझायाः “मान लें कि हमें 889 में 998 का गुणा करना है. प्रचलित तरीके से यह इतना आसान नहीं है. भारतीय वैदिक तरीके से उसे ऐसे करेंगेः दोनो का सब से नज़दीकी पूर्णांक एक हज़ार है. उन्हें एक हज़ार में से घटाने पर मिले 2 और 111. इन दोनो का गुणा करने पर मिलेगा 222. अपने मन में इसे दाहिनी ओर लिखें. अब 889 में से उस दो को घटायें, जो 998 को एक हज़ार बनाने के लिए जोड़ना पड़ा. मिला 887. इसे मन में 222 के पहले बायीं ओर लिखें. यही, यानी 887 222, सही गुणनफल है.” यूनान और मिस्र से भी पुराना भारत का गणित-ज्ञान यूनान और मिस्र से भी पुराना बताया जाता है. शून्य और दशमलव तो भारत की देन हैं ही, कहते हैं कि यूनानी गणितज्ञ पिथागोरस का प्रमेय भी भारत में पहले से ज्ञात था. वैदिक विधि से बड़ी संख्याओं का जोड़-घटाना और गुणा-भाग ही नहीं, वर्ग और वर्गमूल, घन और घनमूल निकालना भी संभव है. इस बीच इंग्लैंड, अमेरिका या ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में बच्चों को वैदिक गणित सिखाने वाले स्कूल भी खुल गये हैं. नासा की भी दिलचस्पी ऑस्ट्रेलिया के कॉलिन निकोलस साद वैदिक गणित के रसिया हैं. उन्होंने अपना उपनाम ‘जैन’ रख लिया है और ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स प्रांत में बच्चों को वैदिक गणित सिखाते हैं. उनका दावा हैः “अमेरिकी अंतरिक्ष अधिकरण नासा 16वीं सदी के जर्मन गणितज्ञ आदम रीज़े गोपनीय तरीके से वैदिक गणित का कृत्रिम बुद्धिमत्ता वाले रॉबट बनाने में अपयोग कर रहा है. नासा वाले समझना चाहते हैं कि रॉबाट में दिमाग़ की नकल कैसे की जा सकती है ताकि रॉबट ही दिमाग़ की तरह हिसाब भी लगा सके– उदाहरण के लिए कि 96 गुणे 95 कितना हुआ….9120″. कॉलिन निकोलस साद ने वैदिक गणित पर किताबें भी लिखी हैं. बताते हैं कि वैदिक गणित कम से कम ढाई से तीन हज़ार साल पुरानी है. उस में मन ही मन हिसाब लगाने के 16 सूत्र बताये गये हैं, जो साथ ही सीखने वाले की स्मरणशक्ति भी बढ़ाते हैं. चमकदार प्राचीन विद्या साद अपने बारे में कहते हैं: “मेरा काम अंकों की इस चमकदार प्राचीन विद्या के प्रति बच्चों में प्रेम जगाना है. मेरा मानना है कि बच्चों को सचमुच वैदिक गणित सीखना चाहिये. भारतीय योगियों ने उसे हज़रों साल पहले विकसित किय़ा था. आप उन से गणित का कोई भी प्रश्न पूछ सकते थे और वे मन की कल्पनाशक्ति से देख कर फट से जवाब दे सकते थे. उन्होंने तीन हज़ार साल पहले शून्य की अवधारणा प्रस्तुत की और दशमलव वाला बिंदु सुझाया. उन के बिना आज हमारे पास कंप्यूटर नहीं होता.” See Pdf... See Pdf... http://rajivdixitji.com/14938/vedic-mathematics-miracles/ Subir Kayal at 5:31:00 PM No comments: Share  Thursday, October 13, 2016 महिलायों को गर्भधारण कराने का उचित समय... गर्भधारण के लिए सही समय पर सहवास करना है जरुरी। ओवयूलेशन के पहले यौन क्रिया करने से बढ़ती हैं गर्भधारण की संभावनाएं। गर्भधारण करने के लिए सहवास की स्थिति भी है महत्वपूर्ण। सहवास के वक्त ओर्गास्म प्राप्त करने से भी मिलती है मदद। कई बार कोई महिला गर्भवती नहीं होना चाहती है, फिर भी वो गर्भवती हो जाती है। ठीक इसके विपरीत कई मामलों में कोई महिला गर्भवती होकर मातृत्व सुख प्राप्त करना चाहती है लेकिन लाख चाहने के बावजूद वो गर्भवती नहीं हो पाती। लेकिन कई बीर कुछ सही जानकारियां आपकी मदद कर सकती हैं। इसी के मद्देनजर हम आपको बता रहे हैं गर्भधारण करने के कुछ कारगर उपाय। अगर आप कई सालों तक परिवार नियोजन अपनाने के बाद अब गर्भधारण करना चाहती हैं तो निम्नलिखित उपायों को अपनाकर आप सफलतापूर्वक गर्भधारण कर सकती हैं।  गर्भधारण करने के आसान से टिप्‍स: सही समय पर यौन क्रिया :- गर्भवती होने के लिए सिर्फ सहवास करना ही सब कुछ नहीं होता बल्कि सही समय पर सहवास करना जरुरी होता है। एक बात ध्यान देने योग्य है कि पुरुष के शुक्राणु हमेशा लगभग एक जैसे ही होते हैं जो महिला को गर्भवती कर सकते है, लेकिन महिला का शरीर ऐसा नहीं होता जो कभी भी गर्भधारण कर सके। उसके गर्भधारण का एक निश्चित समय होता है। आप उस अवधी को पहचाने और उस समय सहवास करें। ओवयूलेशन के पहले यौन क्रिया :- यूं तो आप महीने भर हर दिन अपने पति के साथ सहवास कर सकती हैं लेकिन गर्भवती होने के लिए ओवयूलेशन के पहले यौन क्रिया करना जरुरी होता है। आप ओवयूलेशन के पहले यौन क्रिया शुरू करें और आने वाले कुछ दिनों तक नियमित रूप से या एकाध दिन बाद सहवास जारी रखें। सहवास के बाद कुछ देर आप उसी अवस्था में लेटे रहे यानि खड़े न हो एवं अपनी योनी को साफ न करें, ताकि आपके पति के शुक्राणु सही जगह पहुंच सकें। यौन क्रिया के वक्त तनाव में न रहे:- यौन क्रिया के वक्त जरा भी तनाव में न रहे। गर्भवती होने के लिए यौन क्रिया के वक्त आपको उसका आनंद उठाना चाहिए ताकि आपकी योनी से उचित मात्रा में तरल पदार्थों का स्राव होता रहे जो शुक्राणु को गर्भधारण करने में सहयोग दे सके। यौन क्रिया में पुरुष की भूमिका:- ऐसा देखा गया है कि जो पुरुष अपनी पत्नी की कामोत्तेजना का ख्याल नहीं करते उनकी पत्नियों को गर्भधारण करने में मुश्किलें आती हैं। अगर स्त्री सहवास के वक्त ओर्गास्म प्राप्त कर लेती है तो गर्भधारण के चांसेस काफी हद तक बढ़ जाते हैं क्योंकि तब पुरुष के शुक्राणु को तैरने का यानि सही जगह जाने का समय और वैसा माहौल मिलता है तथा शुक्राणु ज्यादा समय तक जीवित रहते हैं। सहवास की स्थिति:- गर्भधारण करने के लिए यौन क्रिया सेक्स की स्थिति भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यहाँ तक की कुछ लोगों का मानना है कि आपकी यौन क्रिया की स्थिति भी काफी हद तक यह निश्चित करती है कि आपको लड़का होगा या लड़की। कुछ यौन क्रिया स्थिति ऐसी होती हैं जिनमें यौन क्रिया करने से लड़का होने की संभावना ज्यादा रहती है जबकि अगर आपको बेटी चाहिए तो दूसरी स्थिति में सेक्स करना होगा। संतुलित आहार लें:- गर्भवती होने के लिए संतुलित आहार का लेना जरूरी है। फोलिक एसिड गर्भधारण में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए ऐसी चीजे खाए जिसमें फोलिक एसिड की अधिक मात्रा पाई जाती हों। फोलिक एसिड दालों में पाया जाता है। दाल प्रोटीन का भी बहुत अच्छा स्रोत होता है। हरी पत्तेदार शाक सब्जियों में भी फोलिक एसिड प्रचूर मात्रा में होता है। सूर्यमुखी के बीज, सेम के बीज, संतरे, टमाटर का जूस में भी फोलिक एसिड भरपूर मात्रा में पाया जाता है। साथ हीं इसमें लाइकोपिन एवं विटामिन सी भी होता हैं जो आपको तंदरुस्त बनाते हैं और गर्भधारण में मदद करते हैं। इनके अलावा आप साबुत अनाज एवं फाइबर युक्त खाद्य पदार्थ जरूर खाएं। गर्भवती होने के लिए पर्याप्त मात्रा में कैल्सियम का सेवन भी जरुरी होता है। इनका सेवन ना करें: सिगरेट:- अगर आप सिगरेट पीने की शौक़ीन हैं तो इसे पीना छोड़ दें। सिगरेट किसी भी व्यक्ति के लिए नुकसानदेह होता है, लेकिन अगर आप गर्भधारण करना चाहती हैं तो सिगरेट आपके लिए ज्‍यादा नुकसानदेह हो सकता है। इसलिए आप सिगरेट ना पिये। अगर आप गर्भवती हो भी जाती हैं तो सिगरेट आपके पेट में पल रहे बच्चे के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर डालेगा और इससे आपका गर्भपात भी हो सकता है। अतः इसका पूरी तरह से त्याग कर दें। शराब एवं कुछेक दवाइयों को कहे ना इसी तरह से शराब एवं कुछेक दवाइयां बिल्‍कुल ना ले, जो आपके गर्भधारण में बाधक बन सकती हैं। कैफीन से बचे कैफीन युक्त खाद्य पदार्थों या पेय का सेवन भी एकदम कम कर दे या बिल्कुल न करें, क्योंकि इससे आपके शरीर की आयरन एवं कैल्सियम ग्रहण करने की क्षमता काफी हद तक घट जाती है। जिससे आपके गर्भवती होने के चांसेस 27 प्रतिशत कम हो जाते हैं। मीठी चीजों को कहे ना:- मीठी चीजों से परहेज करें। कोशिश करें कि मीठी चीजें बिल्‍कुल ना खाएं या कम से कम खाएं। इस दौरान मीठी चीजें ज्यादा खाने ना सिर्फ आपको बल्कि आपके होने वाले बच्‍चे को भी नुकसान को सकता है Source :- http://www.sehatnama.com Subir Kayal at 7:17:00 AM No comments: Share  Tuesday, October 11, 2016 अगर किसी को लकवा/पक्षाघात (Paralysis) हो गया है, तो यह पोस्ट उसके लिए वरदान साबित होगी.. लकवा (Paralysis) को हिन्दी में पक्षाघात होना अथवा लकवा मारना भी कहा जाता है। लकवा मारना मस्तिष्क में होने वाली एक प्रकार की बहुत ही गंभीर तथा चिंताजनक बीमारी है। शरीर के अन्य अंगों की तरह हमारे मस्तिष्क को भी लगातार रक्त आपूर्ति की आवश्यकता होती है। रक्त में ऑक्सिजन तथा विभिन्न प्रकार के पोषकतत्व पाये जाते है जो हमारे मस्तिष्क को सही रूप से कार्य करने में काफी मदद करते है। जब हमारे मस्तिष्क में रक्त प्रवाह रूक जाता है, तो एक या अधिक मांसपेशी या समूह की मांसपेशियाँ पूरी तरह से कार्य करने में असमर्थ हो जाती है। तब ऐसी स्थिती को पक्षाघात अथवा लकवा मारना कहते हैं। यह बीमारी प्रायः वृद्धावस्था में अधिक पाई जाती है। इस बीमारी में शरीर का कोई हिस्सा या आधा शरीर निष्क्रिय व चेतनाहीन होने लगता है। यह बीमारी होने की वजह से व्यक्ति की संवेदना शक्ति समाप्त हो जाती है, तथा वह चलने फिरने तथा शरीर में कुछ भी महसूस करने की क्षमता भी खोने लगता है। शरीर के जिस हिस्से पर लकवा मारता है, वह हिस्सा काम नहीं करता। पक्षाघात कभी भी कहीं भी तथा किसी भी शारीरिक हिस्से में हो सकता है।  पक्षाघात होने के विभिन्न कारण होते हैं। आइये हम देखें वे कौन से कारण है, जिसकी वजह से लोगों को पक्षाघात होता है : 1) किसी भी दुर्घटना के होने से, संक्रमण, अवरूप्ध रक्तवाहिकाओं तथा टयूमर की वजह से पक्षाघात होने की संभावना बनी रहती है। 2) जब हमारे मस्तिष्क में रक्त की आपूर्ति नहीं होती तब भी लकवा मारने जैसी समस्या हो सकती है। हमारे रक्त में ऑक्सीजन तथा विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व पाये जाते है जो हमारे मस्तिष्क के सही रूप से कार्य करने में सहायक होते हैं। जब हमारे मस्तिष्क में पर्याप्त मात्रा में रक्त की आपूर्ति नहीं होती या रक्त के थक्के जमा हो जाते हैं तब इसकी वजह से पक्षाघात होने का खतरा बढ़ जाता है। 3) जब हमारे मस्तिष्क का कोई हिस्सा जो किसी विशेष मांसपेशियों को नियंत्रित करता है, और वह क्षतिग्रस्त हो जाता है, तब भी लकवा मारने की स्थिती उत्पन्न होने लगती है। 4) जिन लोगों में उच्चरक्तचाप, मधुमेह तथा कोलेस्ट्रॉल अधिक मात्रा में पाया जाता है तथा जिन लोगों का शारीरिक वजन अधिक है, उन लोगों में स्ट्रोक होने का खतरा बना रहता है। 5) रीढ की हड्डी पर चोट लगने से जब मेरूदंड पर इसका प्रभाव पडता है तब ऐसी स्थिती में पक्षाघात हो सकता है।  पक्षाघात के लिए किये जाने वाले उपाय : 1) 250 ग्राम रिफाइन्ड तेल में 50 से 60 ग्राम काली मिर्च मिलाकर कुछ देर तक पकायें। अब इस तेल से लकवे से प्रभावित अंग पर हल्के हल्के हाथों से लगायें। इस तेल को उसी समय बनाकर गुनगुना करके लगायें। इस इलाज को लगभग एक महीने तक प्रतिदिन नियमित रूप से करें। 2) पक्षाघात के लिए 4 से 5 लहसुन की कलियों को पीसकर उसे 2 चम्मच शहद में मिलाकर चाट लें। इसके अलावा लहसुन की 4 से 5 कलियों को दूध में उबालकर उसका सेवन करने से रक्तचाप भी ठीक रहता है तथा लकवा से ग्रसित अंगों में भी हलचल होने लगती है। 3) देसी गाय के शुद्ध घी की 3 बूदों को हर रोज सुबह शाम नाक में डालने से माइग्रेन की समस्या खत्म हो जाती है। बाल झडना बंद हो जाते हैं तथा लकवा मारने के इलाज में भी बहुत फायदा होता है। 4) आधा लीटर सरसों के तेल में 50 ग्राम लहसुन डालकर पका लें। अब इसे ठंडा करके इसे अच्छी तरह निचोड लें और एक डिब्बे में रख दें। रोजाना इस तेल से लकवा ग्रस्त प्रभावित क्षेत्र पर मालिश करने से काफी लाभ पहुँचता है। 5) कुछ दिनों तक लकवा से पीडित रोगी को खजूर को दूध में मिलाकर देने से लकवा ठीक होने लगता है। 6) सोंठ तथा उडद को पानी में मिलाकर हल्की आंच पर गर्म करके नियमित रूप से यह पानी रोगी को पिलाने से पक्षाघात में काफी लाभ पहुँचता है। 7) रोजाना, योगासन , प्राणायम तथा कपालभाती जैसी क्रिया नियमित करने से भी पक्षाघात में लाभ पहुँचता है। 8) लकवाग्रस्त पीडितों को केला, नारंगी, आम – ये ही फल खाने चाहिए। 9) उनके आहार में नियमित रूप से भिंडी, बीट, गाजर, जैसी पौष्टिक सब्जियों का समावेश होना चाहिए। 10) 5 ग्राम बारीक पीसी हुई अदरक, 10 ग्राम काली उडद की दाल को 50 ग्राम सरसों के तेल में मिलाकर 5 मिनट तक गर्म करें। अब इसमें लगभग 2 ग्राम पिसा हुआ कपूर का चूरा डालकर इस तेल को गुनगुना कर पर प्रभावित क्षेत्र में मालिश करने से पक्षाघात काफी फायदा होता है। लकवा जैसे रोग का यदि सही समय पर इलाज न किया जाए तो वह रोगी एक प्रकार से अपाहिज की जिंदगी जीने लगता है। इसलिए समय रहते ही इस बीमारी का इलाज करना बहुत ही आवश्यक है। इन आयुर्वेदिक उपायों को यदि नियमित रूप से अपनाया तो पक्षाघात में अवश्य ही लाभ पहुँचने लगता है। Source:- http://www.dolphinpost.com/ Subir Kayal at 4:37:00 PM No comments: Share  यूरिक एसिड से छुटकारा पाने के 16 सरल घरेलु उपाय. कुछ वर्ष पहले तक यूरिक एसिड की समस्या कम ही लोगों को हुआ करता था और सबसे बड़ी बात जो उस समय देखने में आती थी कि यह बीमारी पहले नंबर में तो केवल वृद्धावस्था वालों में ही दिखलाई पड़ती थी। और दूसरे नंबर में यह बीमारी केवल अमीर, गरिष्ट भोजन करने वालों, शारीरिक परिश्रम न करने वाले आलसी और अनुवांशिक दोषों वालों को ही होती थी।परंतु आज यह बीमारी अपनी पुरानी सीमाएं तोड़ते हुए समाज हर वर्ग, हर आयु और लगभग सभी को पीड़ित करने लगी है।इस बीमारी में प्रारंभिक अवस्था में शरीर में जकड़न देखी जाती है। बाद में छोटे जोड़ों में दर्द शुरू होता है। आलस्य करने पर जब जोड़ों के स्थान में हड्डियां प्रभावित होने लग जाती हैं तो इलाज मुश्किल होना शुरू हो जाता है।एलोपैथी में इस के लिए प्रयोग की जाने वाली औषधियां शरीर में गुर्दो आदि अवयवों के लिए काफी नुकसानदेह होती है।इस बीमारी में घुटनों, एड़ियों और पैरों की उंगलियों आदि में दर्द होने की सबसे बड़ी वजह यूरिक एसिड का बढ़ना है।इस बीमारी को गठिया या गाउट ( Gout ) भी कहते हैं।  इस बीमारी का उपचार आरम्भ में ही सही समय पर न किया जाये तो मरीज का न् केवल उठना बैठना और चलना फिरना भी दुश्वार होता ही है। बल्कि समय बीत जाने पर यह रोग जड़ जमा कर दुस्साध्य भी हो जाता है। वैसे अभी भी ये समस्या 40 साल से ज़्यादा उम्र के लोगों में ही अधिक होती दिखलाई पड़ती है और और यदि यह कहा जाये कि 40 से ऊपर उम्र के अधिकांश लोग इससे पीड़ित होते देखे जाते है परंतु यह बात भी एकदम सही है यदि खाने पीने के मामले में यदि प्राकृतिक स्वास्थ्य नियमों का ख़याल न रखा जाए और उनका पालन न किया जाये तो यह बीमारी 40 वर्ष की उम्र से पहले भी किसी भी उम्र में हो सकती है। इसके लिए आपको अपना रोजाना खाने में ऐसा भोजन करना चाहिए जिससे शरीर में पाचन के दौरान आवश्यकता से अधिक प्यूरिन न बने। क्योंकि प्यूरिन ‌‌_ Purine के टूटने जाने की वजह से शरीर में यूरिक एसिड बनता है, यह बात भी जग जाहिर है कि जो ख़ून गुर्दों पास पहुंचता है उस खून में से फालतू और बेकार तत्वों को छान कर हमारे गुर्दे उन्हें पेशाब के द्वारा शरीर से बाहर निकाल देते है। परंतु जब किन्ही गलत आचरणों के के कारण ये प्यूरिन टूट कर टुकड़ों के रूप में खून के साथ गुर्दों के पास पंहुचते है तब हमारे शरीर में स्थित गुर्दे इनको खून में से छान कर पेशाब के रूप में शरीर से बाहर नहीं निकल पाते है और ये टुकड़े शरीर के अंदर क्रिस्टल के रूप में जमा होने लगते है। बॉडी में इसका लेवल बढ़ने से यह परेशानी का सबब बन जाता है। और इसके बाद जोड़ों का दर्द शुरु हो जाता है। घुटनों, एड़ियों और पैरों की उंगलियों में दर्द होने लगता है हममें से अधिकांश लोगों को तो इस बीमारी के लक्षण ही मालूम नही होते हैं। मोटापे की वजह से शरीर में प्यूरिन जल्दी टूटता है, जिससे यूरिक एसिड ज़्यादा बनने लगता है। इसलिए अपना वज़न बढ़ने न दें। वज़न कम करने के लिए डायटिंग न करके सही और शुद्ध भोजन करें। प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन बंद करना जरूरी होता है। साग, पालक जैसे पदार्थ भी नहीं लेने चाहिए। विटामिन सी से भरपूर खाद्य पदार्थ खाएँ। इसके अलावा आप ये निम्न 16 ऐसे घरेलु उपाय हैं जिनको अपनाकर इस बीमारी से बहुत आसानी से छुटकारा पा सकते हैं. 1.) 1 चम्मच अश्वगंधा पाउडर में 1 चम्मच शहद मिलाकर 1 गिलास गुनगुने दूध के साथ पिएँ। 2.) रोज़ रात में सोने के पूर्व 3 अखरोट खाये। 3.) एलो वेरा जूस में आंवले का रस मिलाकर पीने से भी आराम आता है। 4.) नारियल पानी रोज पिए। 5. ) खाना खाने के आधे घंटे बाद 1 चम्मच अलसी के बीज चबाकर खाने से फ़ायदा मिलता है। 6.) बथुए का जूस खाली पेट पिएँ। दो घंटे तक कुछ न खाएँ पिएँ। 7.) अजवाइन भी शरीर में हाइ यूरिक एसिड को कम करने की अच्छी दवा है। इसलिए भोजन पकाने में अजवाइन का इस्तेमाल करें। 8.) हर रोज दो चम्मच सेब का सिरका 1 गिलास पानी में मिलाकर दिन में 3 बार पिएँ। लाभ दिखेगा। 9.) सेब, गाजर और चुकंदर का जूस हर रोज़ पीने से बॉडी का pH लेवल बढ़ता है और यूरिक एसिड कम होता है। 10.) एक मध्यम आकार का कच्चा पपीता लें, उसे काटकर छोटे छोटे टुकड़े कर लें। बीजों को हटा दें। कटे हुए पपीते को 2 लीटर पानी में 5 मिनट के लिए उबालें। इस उबले पानी को ठंडा करके छान लें और इसे दिन में चाय की तरह 2 से 3 बार पिएँ। 11.) नींबू पानी पिएँ। ये बॉडी को डिटॉक्सिफ़ाइ करता है और क्रिस्टल को घोलकर बाहर कर देता है। 12.) कुकिंग के लिए तिल, सरसों या ऑलिव ऑयल का प्रयोग करें। हाइ फ़ाइबर डाइट लें। 13.) अगर लौकी का मौसम हो तो सुबह खाली पेट लौकी (घीया, दूधी) का जूस निकाल कर एक गिलास इस में 5-5 पत्ते तुलसी और पुदीना के भी डाल ले, अब इसमें थोड़ा सेंधा नमक मिला ले। और इसको नियमित पिए कम से कम 30 से 90 दिन तक। 14.) रात को सोते समय डेढ़ गिलास साधारण पानी में अर्जुन की छाल का चूर्ण एक चम्मच और दाल चीनी पाउडर आधा चम्मच डाल कर चाय की तरह पकाये और थोड़ा पकने पर छान कर निचोड़ कर पी ले। ये भी 30 से 90 दिन तक करे। 15.) चोबचीनी का चूर्ण का आधा आधा चम्मच सवेरे खाली पेट और रात को सोने के समय पानी से लेने पर कुछ दिनों में यूरिक एसिड खत्म हो जाता है। 16.) दिन में कम से कम 3-5 लीटर पानी का सेवन करें। पानी की पर्याप्‍त मात्रा से शरीर का यूरिक एसिड पेशाब के रास्‍ते से बाहर निकल जाएगा। इसलिए थोड़ी – थोड़ी देर में पानी को जरूर पीते रहें। यूरिक एसिड में परहेज. दही, चावल, अचार, ड्राई फ्रूट्स, दाल, और पालक बंद कर दे। ओमेगा 3 फैटी एसिड का सेवन न करें। पैनकेक, केक, पेस्ट्री जैसी वस्तुएँ न खाएँ। डिब्बा बंद फ़ूड खाने से बचें। शराब और बीयर से परहेज़ करें। रात को सोते समय दूध या दाल का सेवन अत्यंत हानिकारक हैं। अगर दाल खातें हैं तो ये छिलके वाली खानी है, धुली हुयी दालें यूरिक एसिड की समस्या के लिए सब से बड़ी बात खाना खाते समय पानी नहीं पीना, पानी खाने से डेढ़ घंटे पहले या बाद में ही पीना हैं। फ़ास्ट फ़ूड, कोल्ड ड्रिंक्स, पैकेज्ड फ़ूड, अंडा, मांस, मछली, शराब, और धूम्रपान बिलकुल बंद कर दे। इन से आपकी यूरिक एसिड की समस्या, हार्ट की कोई भी समस्या, जोड़ो के दर्द, हाई ब्लड प्रेशर की समस्या में बहुत आराम आएगा। source :- http://onlyayurved.com/ Subir Kayal at 4:09:00 PM No comments: Share  गिलोय – आयुर्वेद की अमृत – अमृता ।  गिलोय या गुडुची, जिसका वैज्ञानिक नाम टीनोस्पोरा कोर्डीफोलिया है, गिलोय का आयुर्वेद में एक महत्वपूर्ण स्थान है। इसके पत्ते पान के पत्ते कि तरह होते हैं। आयुर्वेद मे इसको कई नामो से जाना जाता है जैसे अमृता, गुडुची, छिन्नरुहा,चक्रांगी, आदि। ये एक दिव्या औषिधि हैं, मधुपर्णी मराठी में गुलवेल। इसके सेवन से आपको नयी ज़िन्दगी मिल सकती हैं। ये पुरे देश में उपलब्ध होती हैं। इसके खास गुणों के कारण इसे अमृत के समान समझा जाता है और इसी कारण इसे अमृता भी कहा जाता है। हिन्दू शास्त्रो में ये कहा गया हैं के सागर मंथन के समय जो अमृत मिला तो वह अमृत की बूंदे जहाँ जहाँ गिरी वहां से ये अमृता (गिलोय) पैदा हुयी। प्राचीन काल से ही इन पत्तियों का उपयोग विभिन्न आयुर्वेदिक दवाइयों में एक खास तत्व के रुप में किया जाता है। आयुर्वेद में यह बुखार की सर्वोत्तम औषधि के रूप में मानी गई है, कैसा भी और कितना भी पुराना बुखार हो, इसके रोज़ाना सेवन से सब सही होता हैं। गिलोय की लता पार्क में, घरो में, जंगलों, खेतों की मेड़ों, पहाड़ों की चट्टानों आदि स्थानों पर सामान्यतया कुण्डलाकार चढ़ती पाई जाती है। यह पत्‍तियां नीम और आम के पेड़ों के आस पास अधिक पाई जाती हैं। जिस वृक्ष को यह अपना आधार बनती है, उसके गुण भी इसमें समाहित रहते हैं । इस दृष्टि से नीम पर चढ़ी गिलोय श्रेष्ठ औषधि मानी जाती है। गिलोय की पत्तियों और तनों से सत्व निकालकर इस्तेमाल में लाया जाता है। गिलोय को आयुर्वेद में गर्म तासीर का माना जाता है। यह तैलीय होने के साथ साथ स्वाद में कडवा और हल्की झनझनाहट लाने वाला होता है। अगर आप सुबह उठ कर इसकी छोटी सी डंडी को चबा चबा कर खा लेंगे तो आपके लिए ये संजीवनी की तरह काम करेगी। और कैसा भी असाध्य रोग हो ये उस को चुटकी बजाते हुए खत्म कर देगी। गिलोय में अनेका अनेक गुण समाये हुए हैं। गिलोय शरीर के तीनो दोषों (वात, पित्, और कफ) को संतुलित करती है और शरीर का कायाकल्प करने की क्षमता रखती है। इसमें सूजन कम करने, शुगर को नियंत्रित करने, गठिया रोग से लड़ने के अलावा शरीर शोधन के भी गुण होते हैं। गिलोय के इस्तेमाल से सांस संबंधी रोग जैसे दमा और खांसी में फायदा होता है। गिलोय का उल्टी, बेहोशी, कफ, पीलिया, धातू विकार, सिफलिस, एलर्जी सहित अन्य त्वचा विकार, चर्म रोग, झाइयां, झुर्रियां, कमजोरी, गले के संक्रमण, खाँसी, छींक, विषम ज्वर नाशक, टाइफायड, मलेरिया, डेंगू, पेट कृमि, पेट के रोग, सीने में जकड़न, जोडों में दर्द, रक्त विकार, निम्न रक्तचाप, हृदय दौर्बल्य,(टीबी), लीवर, किडनी, मूत्र रोग, मधुमेह, रक्तशोधक, रोग पतिरोधक, गैस, बुढापा रोकने वाली, खांसी मिटाने वाली, भूख बढ़ाने वाली पाकृतिक औषधि के रूप में खूब प्रयोग होता है। इसे नीम और आंवला के साथ मिलाकर इस्तेमाल करने से त्वचा संबंधी रोग जैसे एग्जिमा और सोराइसिस दूर किए जा सकते हैं। इसे खून की कमी, पीलिया और कुष्ठ रोगों के इलाज में भी कारगर माना जाता है। गिलोय एक रसायन है, यह रक्तशोधक, ओजवर्धक, ह्रुदयरोग नाशक ,शोधनाशक और लीवर टोनिक भी है। यह पीलिया और जीर्ण ज्वर का नाश करती है अग्नि को तीव्र करती है, वातरक्त और आमवात के लिये तो यह महा विनाशक है। गिलोय का चूर्ण शहद के साथ खाने से कफ और सोंठ के साथ आमवात से सम्बंधित बीमारीयां (गठिया) रोग ठीक होता है। सूजन कम करने के गुण के कारण, यह गठिया और आर्थेराइटिस से बचाव में अत्यधिक लाभकारी है। गिलोय के पाउडर को सौंठ की समान मात्रा और गुगुल के साथ मिलाकर दिन में दो बार लेने से इन बीमारियों में काफी लाभ मिलता है। इसी प्रकार अगर ताजी पत्तियां या तना उपलब्ध हों तो इनका ज्यूस पीने से भी आराम होता है। गिलोय की जड़ें शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट है। यह कैंसर की रोकथाम और उपचार में प्रयोग की जाती है। गिलोय का रस और गेहूं के जवारे का रस लेकर थोड़ा सा पानी मिलाकर इस में तुलसी और नीम के 5 – 7 पत्ते पीस कर मिला लीजिये इस की एक कप की मात्रा खाली पेट सेवन करने से ये रक्त कैंसर के विनाश के लिए अमृत सामान औषिधि बन जाती हैं। अगर आपकी कोई अलोपथी चिकित्सा चल रही हैं तो आप उसके साथ में इसको कर सकते हैं। उसके साथ इसका कोई विपरीत प्रभाव नहीं हैं। ये प्रयोग अनीमिया के रोगियों (जिनको बार बार खून चढ़ाना पड़ता हैं) के लिए भी अमृत सामान हैं। गिलोय उच्च कोलेस्ट्रॉल (LDL) के स्तर को कम करने के लिए, शर्करा का स्तर बनाए रखने में मदद करता है। यह शरीर को दिल से संबंधित बीमारियों से बचाए रखता है। गिलोय के 6 इंच के तने को लेकर कुचल ले उसमे 4 -5 पत्तियां तुलसी की मिला ले इसको एक गिलास पानी में मिला कर उबालकर इसका काढा बनाकर पीजिये। और इस काढ़े में तीन चम्मच एलोवेरा का गूदा मिला कर नियमित रूप से सेवन करते रहने से जिन्दगी भर कोई भी बीमारी नहीं आती। और इसमें पपीता के 3-4 ताज़ा पत्तो का रस मिला कर दिन में तीन चार बार (हर तीन चार घंटे के बाद) लेने से रोगी को प्लेटलेट की मात्रा में तेजी से इजाफा होता है प्लेटलेट बढ़ाने का इस से बढ़िया कोई इलाज नहीं है यहचिकन गुनियां डेंगू स्वायन फ्लू और बर्ड फ्लू में रामबाण होता है। गैस, जोडों का दर्द ,शरीर का टूटना, असमय बुढापा वात असंतुलित होने का लक्षण हैं। गिलोय का एक चम्मच चूर्ण को घी के साथ लेने से वात संतुलित होता है । गिलोय और अश्वगंधा को दूध में पकाकर नियमित खिलाने से बाँझपन से मुक्ति मिलती हैं। क्षय (टी .बी .) रोग में गिलोय सत्व, इलायची तथा वंशलोचन को शहद के साथ लेने से लाभ होता है। गिलोय और पुनर्नवा का काढ़ा बना कर सेवन करने से कुछ दिनों में मिर्गी रोग में फायदा दिखाई देगा। दस्त पेचिश और आंव में इस की ताज़ा डंडी को थोड़ा कूट कर इसको थोड़े से पानी के साथ पिए। आपको बहुत आराम आएगा। एक चम्मच गिलोय का चूर्ण खाण्ड या गुड के साथ खाने से पित्त की बिमारियों में सुधार आता है और कब्ज दूर होती है। प्रतिदिन सुबह-शाम गिलोय का रस घी में मिलाकर या शहद गुड़ या मिश्री के साथ गिलोय का रस मिलकर सेवन करने से शरीर मेंखून की कमी दूर होती है। हिचकी आने पर गिलोय के काढ़े में मिश्री मिला कर देने से हिचकी सही होती हैं। फटी त्वचा के लिए गिलोय का तेल दूध में मिलाकर गर्म करके ठंडा करें। इस तेल को फटी त्वचा पर लगाए वातरक्त दोष दूर होकर त्वचा कोमल और साफ होती है। इसका नियमित प्रयोग सभी प्रकार के बुखार, फ्लू, पेट कृमि, खून की कमी, निम्न रक्तचाप, दिल की कमजोरी, टीबी, मूत्र रोग, एलर्जी, पेट के रोग, मधुमेह, चर्म रोग आदि अनेक बीमारियों से बचाता है। गिलोय भूख भी बढ़ाती है। एक बार में गिलोय की लगभग 20 ग्राम मात्रा ली जा सकती है। मुंहासे, फोड़े-फुंसियां और झाइयो पर गिलोय के फलों को पीसकर लगाये मुंहासे, फोड़े-फुंसियां और झाइयां दूर हो जाती है। मट्ठे के साथ गिलोय का 1 चम्मच चूर्ण सुबह शाम लेने से बवासीर में लाभ होता है। गिलोय का रास शहद के साथ मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने से पेट का दर्द ठीक होता है। गिलोय को पानी में घिसकर और गुनगुना करके दोनों कानो में दिन में 2 बार डालने से कान का मैल निकल जाता है। और गिलोय के पत्तों के रस को गुनगुना करके इस रस को कान में डालने से कान का दर्द ठीक होता है। गिलोय और पुनर्नवा मूल को कूट कर इसका रस निकाल लीजिये इस में शहद मिलाकर दिन में 3-4 बार पीने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है। यकृत(LIVER) में अगरSGOT या SGPTABNORMAL हैं या BILIRUBIN बढ़ा हैं तो भी इस से ये ठीक होता हैं। प्रमेह,प्रदर, कमज़ोरी व् धातु क्षीणता होने पर इसको कूट कर रात में पानी मिला कर रख दीजिये और सुबह इसको निचोड़ कर इस पानी को पी लीजिये, ये थोड़ा कड़वा होगा, कड़वापन दूर करने के लिए आप इसमें मिश्री या शहद मिला कर इसको पीजिये। इसको पीने से आपके चेहरे से झुर्रिया व् झाइयां खत्म होंगी और चेहरे पर कांति आएगी। मधुमेह के रोगी इसमें शहद या मिश्री ना मिलाये। ये बुढ़ापे को रोकने वाली, जवानी को बना कर रखने वाली दिव्या औषिधि हैं। अगर आपको किसी भी प्रकार का दाद, खाज, खुजली, एक्ज़िमा, सीरोसिस, चाहे लिवर के अंदर ट्यूमर, फाइब्रोसिस में भी ये लाभकारी हैं। मधुमेह के रोगी अगर सुबह इसकी ६ इंच की ताज़ा डंडी को चबा चबा कर चूसे तो कुछ दिनों में उनका मधुमेह का रोग सही हो जाता हैं। गिलोय में शरीर में शुगर और लिपिड के स्तर को कम करने का खास गुण होता है। इसके इस गुण के कारण यह डायबीटिज टाइप 2 के उपचार में बहुत कारगर है। गिलोय रसायन यानी ताजगी लाने वाले तत्व के रुप में कार्य करता है। इससे इम्यूनिटी सिस्टम में सुधार आता है और शरीर में अतिआवश्यक सफेद सेल्स की कार्य करने की क्षमता बढ़ती है। यह शरीर के भीतर सफाई करके लीवर और किडनी के कार्य को सुचारु बनाता है। यह शरीर को बैक्टिरिया जनित रोगों से सुरक्षित रखता है। इसका उपयोग सेक्स संबंधी रोगों के इलाज में भी किया जाता है। वैज्ञानिक विश्लेषण के अनुसार इसमें एल्केलाइड गिलोइन नामक कड़वा ग्लूकोसाइड, वसा, अल्कोहल, ग्लिस्टरोल, अम्ल व उडऩशील तेल होते हैं। इसकी पत्तियों में कैल्शियम, प्रोटीन, फॉस्फोरस और तने में स्टार्च पाया जाता है। वायरसों की दुश्मन गिलोय रोग संक्रमण रोकने में सक्षम होती है। यह एक श्रेष्ठ एंटीबयोटिक है। टाइफायड, मलेरिया, डेंगू, एलीफेंटिएसिस, विषम ज्वर, उल्टी, बेहोशी, कफ, पीलिया, तिल्ली बढऩा, सिफलिस, एलर्जी सहित अन्य त्वचा विकार, झाइयां, झुर्रियां, कुष्ठ आदि में गिलोय का सेवन आश्चर्यजनक परिणाम देता है। यह शरीर में इंसुलिन उत्पादन क्षमता बढ़ाती है। गिलोय बीमारियों से लडऩे, उन्हें मिटाने और रोगी में शक्ति के संचरण में यह अपनी विशिष्ट भूमिका निभाती है। शरीर में पाचनतंत्र को सुधारने में गिलोय काफी मददगार होता है। गिलोय के चूर्ण को आंवला चूर्ण या मुरब्बे के साथ खाने से गैस में फायदा होता है। गिलोय के ज्यूस को छाछ के साथ मिलाकर पीने से अपाचन की समस्या दूर होती है साथ ही साथ बवासीर से भी छुटकारा मिलता है। गिलोय एडाप्टोजेनिक हर्ब है अत:मानसिक दवाब और चिंता को दूर करने के लिए उपयोग अत्यधिक लाभकारी है। गिलोय चूर्ण को अश्वगंधा और शतावरी के साथ मिलाकर इस्तेमाल किया जाता है। इसमें याददाश्त बढ़ाने का गुण होता है। यह शरीर और दिमाग पर उम्र बढ़ने के प्रभाव की गति को कम करता है। अगर ये आपके घर में नहीं है तो आप इसको अपने घर में ज़रूर लगाये। ये भारत के असली मनी प्लांट हैं, नकली मनी प्लांट को घर से निकाल कर बाहर करे। अगर आप इसकी डंडी काट कर अपने घर में किसी गमले में या मिटटी में लगा देंगे तो ये वहां अपने आप ही उग आएगी। गर्भवती महिलाओं को बिना चिकित्सकीय सलाह के इसके इस्तेमाल से बचना चाहिए। इसमें अनंत गुण हैं, हमारा सामर्थ्य इतना नहीं हैं के हम इनके सम्पूर्ण गुणों को आपको बता सके। source :- http://onlyayurved.com/ Subir Kayal at 4:09:00 PM No comments: Share  ‹ › Home View web version Powered by Blogger. 

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