Monday, 18 September 2017

संसारी से प्रीतड़ी, सरै न एको काम | दुविधा में दोनों गये, माया मिली न राम ||

 निष्काम की महिमा / कबीर कबीर » Script संसारी से प्रीतड़ी, सरै न एको काम | दुविधा में दोनों गये, माया मिली न राम || संसारियों से प्रेम जोड़ने से, कल्याण का एक काम भी नहीं होता| दुविधा में तुम्हारे दोनों चले जयेंगे, न माया हाथ लगेगी न स्वस्वरूप स्तिथि होगी, अतः जगत से निराश होकर अखंड वैराग्ये करो| स्वारथ का सब कोई सगा, सारा ही जग जान | बिन स्वारथ आदर करे, सो नर चतुर सुजान || स्वार्थ के ही सब मित्र हैं, सरे संसार की येही दशा समझलो| बिना स्वार्थ के जो आदर करता है, वही मनुष्य विचारवान - बुद्धिमान है | श्रेणी: दोहा इस पन्ने को शेयर करें हमसे जुड़ें Facebook: कविता कोश । ललित कुमार Google+ : कविता कोश । ललित कुमार कविता कोश कविता कोश भारतीय काव्य को एक जगह संकलित करने के उद्देश्य से आरम्भ की गई एक अव्यावसायिक, सामाजिक व स्वयंसेवी परियोजना है। सर्वर होस्टिंग OpenLX Technologies Pvt. Ltd. इस पृष्ठ का पिछला बदलाव 20 अप्रैल 2014 को 12:51 बजे हुआ था। यह पृष्ठ 2,650 बार देखा गया है। 

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