Sunday, 17 September 2017

सबकी गठरी लाल है, कोई नहीँ कंगाल

सबकी गठरी लाल है, कोई नहीँ कंगाल

=<b>अर्थात्

प्रत्येक जीवात्मा, चाहे वह कैसी भी हो, किसी भी अवस्था मे हो, उसमेँ ये असीम दिव्य शक्तियां निहित हैँ, लेकिन कालरुपी मन की माया का घेरा इतना सशक्त है कि वह उसको इस ओर आने ही नही देता। आश्चर्य तो यह है कि अविद्या के वशीभूत हो जीवात्मा स्वयं के अस्तिस्व को शरीर तक ही सीमित मान लेती है और अपनी अनंत एवँ अद्भुत सुप्त शक्ति से सर्वथा अनभिज्ञ रहती है।

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