Sunday, 24 September 2017
आत्मा या आत्मन्

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आत्मा
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आत्मा या आत्मन् पद भारतीय दर्शन के महत्त्वपूर्ण प्रत्ययों (विचार) में से एक है। यह उपनिषदों के मूलभूत विषय-वस्तु के रूप में आता है। जहाँ इससे अभिप्राय व्यक्ति में अन्तर्निहित उस मूलभूत सत् से किया गया है जो कि शाश्वत तत्त्व है तथा मृत्यु के पश्चात् भी जिसका विनाश नहीं होता।
आत्मा का निरूपण श्रीमद्भगवदगीता या गीता में किया गया है। आत्मा को शस्त्र से काटा नहीं जा सकता, अग्नि उसे जला नहीं सकती, जल उसे गीला नहीं कर सकता और वायु उसे सुखा नहीं सकती।[1] जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर नये वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार आत्मा पुराने शरीर को त्याग कर नवीन शरीर धारण करता है।[2]
जैन दर्शन संपादित करें
मुख्य लेख : जीव (जैन दर्शन)
जैन दर्शन में आत्मा के लिए जीव शब्द का प्रयोग किया जाता है। जीव (चेतना) को अजीव (शरीर) से पृथक बताया जाता है।
सन्दर्भ संपादित करें
↑ श्रीमद्भगवदगीता, अध्याय 2, श्लोक 23
↑ श्रीमद्भगवदगीता, अध्याय 2, श्लोक 22
बाहरी कड़ियाँ संपादित करें
आत्मा (भारत विद्या)
Last edited 8 months ago by Sanjeev bot
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