Thursday, 4 January 2018
नेति नेति
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नेति नेति
नेति नेति (= न इति न इति) एक संस्कृत वाक्य है जिसका अर्थ है 'यह नहीं, यह नहीं' या 'यही नहीं, वही नहीं' या 'अन्त नहीं है, अन्त नहीं है'। ब्रह्म या ईश्वर के संबंध में यह वाक्य उपनिषदों में अनंतता सूचित करने के लिए आया है। उपनिषद् के इस महावाक्य के अनुसार ब्रह्म शब्दों के परे है।
यह वाक्य उपनिषदों एवं अवधूत गीता में इस तरह आया है-
तत्त्वमस्यादिवाक्येन स्वात्मा हि प्रतिपादितः ।
नेति नेति श्रुतिर्ब्रूयाद अनृतं पाञ्चभौतिकम् ॥ १.२५॥
अर्थ : 'तत्वमसि' वाक्य के द्वारा अपनी आत्मा का ही प्रतिपादन किया गया है। असत्य, जो पांच अवयवों से बना है, उसके बारे में श्रुति कहती है- नेति नेति (यह नहीं, यह नहीं)।
ब्रह्मज्ञान के इच्छुक व्यक्ति को यह वाक्य पहले यह समझाता है कि 'ब्रह्म क्या-क्या नहीं है'। पाश्चात्य संस्कृति में इसके संगत 'वाया निगेटिवा' (via negativa) है।
' नेति नेति ' विचार-पद्धति को वेदान्त का ज्ञानमार्ग कहा जाता है। यहाँ पर ईश्वर का अस्तित्व अन्धविश्वास के ऊपर प्रतिष्टित नहीं है। इसमें न्याय-विचार करके सभी मतों का खण्डन कर दिया जाता है। इस अद्वैत-वाद में युक्ति-तर्क की सहायता से एक परम-सत्य तक पहुँचना होता है। यह मार्ग चरम विवेक-विचार के उपर प्रतिष्ठित है।
इस पथ में युक्ति-तर्क के आधार पर यह सिद्ध किया जाता है कि - ' ब्रह्म सत्य, जगत मिथ्या '। ' नेति नेति ' करते हुए आत्मा की उपलब्धि करने का नाम ज्ञान है। पहले ' नेति नेति ' विचार करना पड़ता है। ईश्वर पंचभूत नहीं है, इन्द्रिय नहीं हैं, मन, बुद्धि, अहंकार नहीं हैं, वे सभी तत्वों के अतीत हैं।
इन्हें भी देखें संपादित करें
नेति - हठयोग से सम्बन्धित क्रिया
महावाक्य
अनत्त
नकारात्मक ईश्वरमीमांसा (via negativa / वाया निगेटिवा' )
बाहरी कड़ियाँ संपादित करें
नेति-नेति : सच को जानने का सही विकल्प (डॉ॰ के. के. अग्रवाल, हर्ट केअर फाउण्डेशन ऑफ इण्डिया के अध्यक्ष)
संवाद
Last edited 4 months ago by अनुनाद सिंह
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