Thursday, 4 January 2018
आजीविक
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आजीविक
(बायें) महाकाश्यप एक आजिविक से मिल रहे हैं और परिनिर्वाण के बारे में ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं।
आजीविक एक प्राचीन भारतीय सम्प्रदाय था। 'आजिविक' शब्द के अर्थ के विषय में विद्वानों में विवाद रहा हैं किंतु "आजीविक" के विषय में विचार रखनेवाले श्रमणों के वर्ग को यह अर्थ विशेष मान्य रहा है। वैदिक मान्यताओं के विरोध में जिन अनेक श्रमणसंप्रदायों का उत्थान बुद्धपूर्वकाल में हुआ उनमें आजीविक संप्रदाय भी था। इस संप्रदाय का साहित्य उपलब्ध नहीं है, किंतु बौद्ध और जैन साहित्य तथा शिलालेखों के आधार पर ही इस संप्रदाय का इतिहास जाना जा सकता है।
बुद्ध और महावीर के प्रबल विरोधियों के रूप में आजीविकों के तीर्थकर मक्खली गोसाल (मस्करी गोशल) का उल्लेख जैन-बौद्ध-शास्त्रों में मिलता है। यह भी उन शास्त्रों से ही ज्ञान होता है कि उस समय आजीविकों का संप्रदाय प्रतिष्ठित और समादृत था। गोसाल अपने को चौबीसवां तीर्थंकर कहते थे। इस जन उल्लेख को प्रमाण न भी माना जाए तब भी इतना तो कहा ही जा सकता है कि गोसाल से पहले भी यह संप्रदाय प्रचलित रहा। गोसाल से पहले के कई आजीविकों का उल्लेख मिलता है। शिलालेखों और अन्य आधारों से यह सिद्ध है कि यह संप्रदाय समग्र भारत में प्रचलित रहा और अंत में मध्यकाल में इस संप्रदाय ने अपना पार्थक्य खो दिया। आजीविक श्रमण नग्न रहते और परिव्राजकों की तरह घूमते थे। भिक्षाचर्या द्वारा जीविका चलाते थे। ईश्वर या कर्म में उनका विश्वास नहीं था। किंतु वे नियतिवादी थे। पुरूषार्थ, पराक्रम वीर्य से नहीं, किंतु नियति से ही जीव की शुद्धि या अशुद्धि होती है। संसारचक्र नियत है, वह अपने क्रम में ही पूरा होता है और मुक्तिलाभ करता है। आश्चर्य तो यह है कि आजीविकों का दार्शनिक सिद्धांत ऐसा होते हुए भी आजीविक श्रमण तपस्या आदि करते थे औ जीवन में कष्ट उठाते थे।
सन्दर्भ संपादित करें
वॉशम, ए.एल. : हिस्ट्री ऐंड डाक्ट्रिन्स ऑव दि आजीविकाज़!
इन्हें भी देखें संपादित करें
लोकायत
बाहरी कड़ियाँ संपादित करें
Doctrines and History of the Ajivikas
History and Doctrines of the Ājïvikas, I-IV
History and Doctrines of the Ājïvikas, V-XV
संवाद
Last edited 3 years ago by Sanjeev bot
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