Thursday, 4 January 2018

हरिदास

Phonetic Go  देवनागरी खोज सखीभाव संप्रदाय   सखीभाव संप्रदाय विवरण 'सखीभाव सम्प्रदाय' 'निम्बार्क मत' की ही एक शाखा है। इस संप्रदाय में भगवान श्रीकृष्ण की उपासना सखीभाव से की जाती है। अन्य नाम 'हरिदासी संप्रदाय', 'सखी संप्रदाय' संस्थापक स्वामी हरिदास उपास्य देव भगवान श्रीकृष्ण संबंधित लेख स्वामी हरिदास, कृष्ण, राधा, ललिता सखी अन्य जानकारी नाभादास जी ने अपने 'भक्तमाल' में कहा है कि- "सखी सम्प्रदाय में राधा-कृष्ण की उपासना और आराधना की लीलाओं का अवलोकन साधक सखीभाव से कहता है। सखी सम्प्रदाय में प्रेम की गम्भीरता और निर्मलता दर्शनीय है। निम्बार्क मत की एक शाखा जिसके प्रवर्तक हरिदास थे। इस संप्रदाय में श्रीकृष्ण की उपासना सखी भाव से की जाती है। इनके मत से ज्ञान में भवसागर उतारने की क्षमता नहीं है। प्रेमपूर्वक श्रीकृष्ण की भक्ति से ही मुक्ति मिल सकती है। इस संप्रदाय के कवियों की रचनाएं ज्ञान की व्यर्थता और प्रेम की महत्ता का प्रतिपादन करती है। सखी-सम्प्रदाय निम्बार्क-मतकी एक अवान्तर शाखा है। इस सम्प्रदाय के संस्थापक स्वामी हरिदास थे। हरिदास जी पहले निम्बार्क-मत के अनुयायी थे, परन्तु कालान्तर में भगवद्धक्ति के गोपीभाव को उन्नत और उपयुक्त साधन मानकर उन्होंने इस स्वतन्त्र सम्प्रदाय की स्थापना की। हरिदास का जन्म समय भाद्रपद अष्टमी, सं0 1441 है। ये स्वभावत: विरक्त और भावुक थें। सखी-सम्प्रदाय के अन्तर्गत वेदान्त के किसी विशेष वाद या विचार धारा का प्रतिपादन नहीं हुआ, वरन् सगुण कृष्ण की सखी-भावना से उपासना करना ही उनकी साधना का एक मात्र ध्येय और लक्ष्य है। इसे भक्ति-सम्प्रदाय का एक साधन मार्ग कहना अधिक उपयुक्त होगा। नाभादास जी ने अपने 'भक्तमाल' में कहा है कि सखी-सम्प्रदाय में राधा-कृष्ण की उपसना और आराधना की लीलाओं का अवलोकन साधक सखी-भाव से कहता है। सखी-सम्प्रदाय में प्रेम की गम्भीरता और निर्मलता दर्शनीय है। हरिदास के पदों में भी प्रेम को ही प्रधानता दी गयी है। हरिदास तथा सखी-सम्प्रदाय के अन्य कवियों की रचनाओं में प्रेम की उत्कृष्टता और महत्ता को सिद्ध करने के लिए भाँति-भाँति से ज्ञान की व्यर्थता और अनुपादेयता प्रकाशित की गयी है। इनके मत से प्रेमसागर पार करने के लिए ज्ञान की सार्थकता नहीं है। ज्ञान में भवसागर से पार उतारने की क्षमता नहीं है। श्रीकृष्ण की प्रेमानुगा भक्ति में दिव्य शक्ति है उन्हीं के चरणों में अपने को न्योछावर कर देना अपेक्षित है। सखी-सम्प्रदाय में उपसना माधुर्य, प्रेम की गम्भीरता और मधुर रस की विशेषता है। हरिदास के प्रधान शिष्य विट्ठल विपुल, विहारनिदेव, सरसदेव, नहहरिदेव, रसिकदेव, ललितकिशोरी जी, ललितमोहिनी जी, चतुरदास, ठाकुरदास, राधिकादास, सखीशरण, राधाप्रसाद, भगवानदास है। इनमें से प्राय: सभी अच्दे कवि हुए है। इनकी रचनाओं में ब्रजभाषा का सुन्दर और परिमार्जित रूप व्यक्त हुआ है। हरिदास की वाहरविषग्रक पदावली 'केलिमाला' के नाम से प्रसिद्ध है। इनकी रस-पेशल वाणी में माधुर्य और हृदय के उदान्त भाव, प्रेम का भव्य रूप दर्शनीय है। भगवत् रसिक की पाँच रचनाएँ प्रसिद्ध हैं- 'अनन्यनिश्चयात्मक', 'श्रीनित्यविहारी युगल ध्यान', 'अनन्यरसिकाभरण', 'निश्चयात्मक ग्रन्थ उत्तरार्ध' तथा 'निबोंध मनरंजन'। भगवत् रसिक की वानी के नाम से इनका काव्यसंग्रह प्रकाशित हुआ है। सहचरिशरण और सखि शरण की फुटकर रचनाओं के अतिरिक्त दो और पुस्तकें हैं- 'ललितप्रकाश' तथा 'सरस मंजावली'। ये ग्रन्थ सम्प्रदाय के इतिहास और साधनापक्ष पर अच्छा प्रकाश डालते हैं। [सहायक ग्रन्थ- 'ब्रज माधुरी सार' : वियोगी हरि।] पन्ने की प्रगति अवस्था आधार प्रारम्भिक माध्यमिक पूर्णता शोध संबंधित लेख [छिपाएँ] देखें • वार्ता • बदलें धर्म, मज़हब और संप्रदाय हिन्दू धर्म · इस्लाम धर्म · जैन धर्म · बौद्ध धर्म · पारसी धर्म · ईसाई धर्म · सिक्ख धर्म · यहूदी धर्म · वैदिक धर्म · निम्बार्क संप्रदाय · वैष्णव सम्प्रदाय · वल्लभ संप्रदाय · ब्रह्मसमाज · सखीभाव संप्रदाय · माध्व सम्प्रदाय · पाशुपत · कबीरपंथ · चैतन्य सम्प्रदाय · पंचसखा सम्प्रदाय · वारकरी सम्प्रदाय · कश्मीरी शैव सम्प्रदाय · दादूपन्थ · राधा स्वामी सत्संग · राधावल्लभ सम्प्रदाय · वैष्णव आन्दोलन · मलंग · शाक्त · लकुलीश सम्प्रदाय · वीरशैव सम्प्रदाय · नाथ सम्प्रदाय · रामकृष्ण मिशन · अंकधारी · पुष्टिमार्ग · कनफटा योगी · तेन्कलै सम्प्रदाय · शैव सम्प्रदाय · फ़िरदौसी सिलसिला · क़लंदरिया · सूफ़ी मत · अघोरपन्थ · कापालिक सम्प्रदाय · ब्रह्मविद्यासमाज · दशनामी संन्यासी · उदासी सम्प्रदाय · रामावत सम्प्रदाय · वाममार्ग · कामड़िया पंथ · चिश्ती सम्प्रदाय · दत्तात्रेय सम्प्रदाय · भारतधर्ममहामण्डल · पाँचरात्र मत · प्रणामी (परिणामी) सम्प्रदाय · शुद्धाद्वैतवाद सम्प्रदाय · एकदण्डी · 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