Thursday, 4 January 2018

स्वामी जय गुरुबन्दे के वाक्य

बोध सनातन धर्म का

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्य्ते॥

धर्म

धर्म हमें परमात्मा से अर्थात् अपनी आत्मा से जोड़ने का साधन हैं न कि तोड़ने और परस्पर झगड़ने का।

साधना

ध्यान साधना के माध्यम से नवीन चित्तवृत्तियों का विकास होता है और विकार रूपी चित्तवृत्तियों का नाश होता है

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सतसंगMarch 20, 2017

स्वामी जय गुरुबंदे

नाम प्रभु का जय गुरुबन्दे, आत्मा राम शक्ति || मालिक का दर्शन करावें, यहीं गुरु का भक्ति

 

परम धर्मं

असफलता यह साबित करती है कि आपके प्रयास मे कहीं कमी है, उसको खोजें –स्वामी जय गुरुबन्दे
दिक्षा एक ऐसी कुन्जी है जिससे सारे ताले खोले जा सकते हो – स्वामी जय गुरुबन्दे
जय गुरुबन्दे ५१ दोहे

सतगुरु बड़ गोविन्द नहीं, नभ से परे कहाय |
पीछे-पीछे जय गुरुबन्दे , हरी मिलने को बताय ||

नाम प्रभु का जय गुरुबन्दे, आत्मा राम शक्ति |
मालिक का दर्शन करावे, यही गुरु की भक्ति ||

जपो श्वांस से जय गुरुबन्दे, खुश हो आत्मा राम |
सुमिरय से डोले बोले-पावै मालिक धाम ||

जीव का तारन शिव नही, सत्य नाम का काम |
सत्यलोक से सद्गुरु आते, जय गुरुबन्दे देते नाम ||

जय गुरुबन्दे वेद लिखा, सब कहै दिन रात |
कूकर सम भूकत फिरै, सुनी सुनाई बात ||

ज्ञान – ज्ञान में भेद है, ज्ञान भी मिलता वेद |
जय गुरुबन्दे एक ज्ञान बिनु, बिषय बड़ा ही खेद ||

मन साधा साधू भया,मन मारौ तौ संत |
जय गुरुबन्दे जीव तारे, सदगुर कृपा अनंत ||

मानव घर का काज कर, भजन करो और दान |
जय गुरुबन्दे फिर न मिले, यह तू पक्का मान ||

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सुमीर-सुमीर तो जग मुआ, सुमिरन सच्चा कोय|
जय गुरुबन्दे बिनु मिले, कैसे सुमिरन होय||

सतगुर नाम जहाज है, जीव चढ़ी-चढ़ी जाय |
जय गुरुबन्दे हरी स्वरुप, केवल कृपा लखाय||

धर्मं ज्ञाता सब मिलै, कर्म ज्ञाता कोय|
जय गुरुबन्दे कर्मदाता, पुण्य तुमसौ होय ||

कर्म की ताकत साधक देखी, दृष्टि खुली जब|
जय गुरुबन्दे अनहद बाजा, सुना घंटा शंख तब ||

सत्यवस्तु है आत्मा, जिसको काल न खाय |
जय गुरुबन्दे नाम भजा सो, कृपा पात्र हो जाय ||

आत्म पथ पर जो चला, सत्संग ज्ञाता होय|
जय गुरुबन्दे जो भटका, परमानंद को खोय ||

काम ने लुटा सब नर को, बचा नहीं है कोई |
जय गुरुबन्दे सो बचा, संत चरण जो होई||

काम रूप जस जले तवा, छुवत जले शरीर|
जय गुरुबन्दे कोई न बचा, बड़े-बड़े रणवीर ||

एक ही संत की जात है, कायर कहै अनेक |
जय गुरुबन्दे लोक लाज से, संत प्रभु दी फेक ||

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बिनु सदगुरु कौन जाने, भँवर गुफा सुरंग |
जय गुरुबन्दे जीव पर, चढ़े नाम का रंग ||

जय गुरुबन्दे नाम प्रभाव, हर युग का निरुवार |
सतगुर शब्द जो गहै, सो जन उतरे पार ||

जय गुरुबन्दे ध्यान कर, भजन में विशवास |
जिसको ढूढ़त दूर नही, मन मंदिर के पास ||

अमृत की बरसात सदा, देश सदगुर होती |
जय गुरुबन्दे नाम से पाए, परम प्रकाश की ज्योति ||

जय गुरुबन्दे ज्ञान लीजिये, मन को दीजै दान |
माया वश सब बह गए, जीव राखी अभिमान||

यह तन कच्चा घड़ा का, कब जाएगा टूट |
जय गुरुबन्दे आव शरण-आतम ज्ञान को लुट ||

धन यौवन ऐसे जावे, जैसे उड़त कपूर |
जाय गुरुबन्दे विरले समुझ, प्रभु देख भरपूर ||

सत्संग बिनु विवेक नहीं, ईश्वर रहता दूर |
जय गुरुबन्दे चाहत हो तो, सतगुर मिला जरुर ||

गुरु खान संसार मे, सतगुर तो दो एक |
जय गुरुबन्दे बिनु विवेक, जय चौरासी फेक ||

जय गुरुबन्दे ५१ दोहे

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अनंत वेद संत ह्रदय, नहीं वेद का अन्त |
जय गुरुबन्दे पढ़े न मिले, जब तक मिलै न संत |

नाम बड़ा है राम से, जय गुरुबन्दे मान |
सदगुर बड़ा है ईश से, विचार आपन ठान ||

नाम लिए तुलसी कबीर, तर गए पल्टू दास |
जय गुरुबन्दे घट की नाम, पाया प्रभु का खास ||

राधा -राधा कहत फिरै, कृष्ण है तेरे पास |
जय गुरुबन्दे मनमुख हुआ, कहाँ लगेगी आस ||

संत समागम सबसे अच्छा, मत भटको मन लाय |
भजते – भजते हरी मिले, जय गुरुबन्दे दियो बताय ||

प्रेम की ऐसी कोठरी, जिसमे सिरजन हार |
जय गुरुबन्दे खोजे सो पावै, पाप पुण्य के धार ||

आपन – आपन सब कहै, आपन हुआ न कोय |
जय गुरुबन्दे जग से पाया, दिया यहीं पर खोय ||

मानव करता मदिरा पान, कृष्ण किये गो सेवा |
जय गुरुबन्दे शक्ति क्षीण, क्या करे तब मेवा ||

तन धन समय ना दिया, ना किया तुम धरम |
जय गुरुबन्दे अबकी चुके, चौरासी जीव भरम ||

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ब्रम्ह की सत्ता ऐसी है, विरलय साधक जानी |
जय गुरुबन्दे संत कृपा की, आदि नाम कमानी ||

धन गया और धरम गया, रीती जगत रिवाज |
जय गुरुबन्दे प्रभु ने भेजा, करने को निज काज ||

ईश्वर सम दयालु नहीं, जय गुरुबन्दे ज्ञान |
सद्गुरु सम दाता नहीं, याचक शिष्य समान ||

शब्द से ही आत्मा आई, शब्दही से भगवान |
जय गुरुबन्दे शब्द से होगा, मानव का कल्याण ||

ब्रम्हा बिष्णु महेश की, आद्या शक्ति माता |
जय गुरुबन्दे जगत हेतु, इनको रचा विधाता ||

जीव बना माया का चेरा, तब से फँसा चौरासी |
जय गुरुबन्दे कहते फिरते, ऋषि मुनि सन्यासी ||

भंबर गुफा अति चौड़ा है, देखा चक्राकार |
जय गुरुबन्दे पद से पहुँचा, काल के बल से पार ||

सत्त देश महाश्वेत सहज , अति स्थिरता नूर |
जय गुरुबन्दे सदगति देते, रहते पूरमपूर ||

सुमिरन सदा जरी रखो, करते रहो ध्यान |
संवाद होगा जय गुरुबन्दे, भीतर रहता ज्ञान ||

सत्तदेश वासिनी हूँ मैं, आप सदा सरकार |
जय गुरुबन्दे बिनु सतसंग, बढे मोह संसार ||

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दशम द्वार ऊपर चल, सुरत मिले सच खंड |
भेद भरा सब जय गुरुबन्दे, मिल जाय जब अखंड ||

सहस्र कमल मे जोत निरंजन, जीव प्रथम स्थान |
दूजे त्रिकुटी जय गुरुबन्दे, ब्रह्म जोत मैदान ||

बंक नाल तीज कँवल चौथे, सोहे पारब्रम्ह भगवान |
जाने घट की जय गुरुबन्दे, सतगुरु का दरवान ||

महासुन्न सुमति से पहुँचा, चौका दिया चढ़ाय |
जय गुरुबन्दे प्रेम पद से, आगे दिया बढ़ाय ||

भंवर गुफा बिचे बदली, सूरत गया समाय |
जय गुरुबन्दे चौथ पद मैं, कैवल्य बिरलय पाय||

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