Sunday, 21 January 2018

गायत्री’ (जिसे गाय ने तीन बार शुद्ध किया हो) नाम दिया गया

गुनहगार ...man who lives by sword die by sword. 31 मार्च, 2014 ब्रह्मा: तीर्थ-गुरु पुष्कर में खोज         सावित्री के कोप का भागी सबसे पहले उनके पति ब्रह्मा ही बने क्योंकि अपनी पत्नी का थोड़ा सा भी इंतजार किए बगैर उन्होनें अपनी पत्नी का त्याग कर किसी दूसरी कन्या से गन्धर्व-विवाह रचाया था.           मुर्गी पहले आई या फिर अंडा, इस बात का सही-सही जवाब आजतक नहीं मिल पाया है. यहां तक की बड़े-बड़े वैज्ञानिक भी इस बात से कहीं ना कहीं अनभिज्ञ हैं कि मानव जाति की उत्पत्ति कैसे हुई. किसी ने कहा की आज के मानव का स्वरूप बंदर-प्रजाति से हुआ है. बंदर-प्रजाति के तर्क का जवाब कुछ हद तक हिंदु धर्म के सबसे पूजनीय और लोकप्रिय ग्रन्थ, ‘रामायण’ में भी मिलता है. पुरुषोत्तम शरण भगवान श्रीराम को सीता को ढूंढने और उनका अपहरण करने वाले लंका नरेश रावण को मारने के लिए वानर-सेना की ही मदद लेनी पड़ी थी. रामायण शायद उसी दौर की कहानी रही होगी जब आज का इंसान बंदर से इंसान बनने के फेज में था.                  लेकिन हिंदु धर्म के मुताबिक, मानव-जाति की उत्पत्ति भगवान ब्रह्मा ने की थी. धर्म-शास्त्रों और पुराणों के मुताबिक, परम-पिता परमेश्वर ब्रह्मा का जन्म भगवान विष्णु की नाभि के मैल से निकले कमल के फूल से हुआ था. जन्म के बाद ब्रह्मा ने भगवान विष्णु से पूछा की उनका इस ब्रह्मांड में आने का क्या उद्देश्य है. इस पर भगवान विष्णु ने ब्रह्मा से कहा कि वे पृथ्वी लोक में जाकर मानव-जाति की संरचना करें.                  कहते हैं कि भगवान ब्रह्मा ने देव-लोक से ही अपने हाथ से उस कमल के फूल को पृथ्वी-लोक की तरफ फेंक दिया जिससे उनकी उत्पत्ति हुई थी. कमल का फूल पृथ्वी लोक पर जिस जगह गिरा वो स्थान है आज के राजस्थान का ‘पुष्कर’ (वो फूल जो ब्रह्माजी के कर यानि हाथ से गिरा हो). राजस्थान के दिल में बसे अजमेर जिले के अंर्तगत आता है पुष्कर शहर. अरावली पहाड़ियों से घिरा हुआ है पुष्कर शहर. माना जाता है कि इन्ही अरावली पहाड़ियों ने राजस्थान के मरु-स्थल को बढ़ने से रोक दिया, नहीं तो पुष्कर भी रेगिस्तान में तब्दील हो गया होता.                  पुराणों के मुताबिक, कमल के फूल के धरती पर गिरने से जमीन में एक गहरा गढ्ढा हो गया और वहां एक प्राकृतिक झील का निर्माण हो गया. पुष्कर शहर के बीचों-बीच ये झील बनी है और हिंदु-धर्म में विश्वास रखने वाले करोड़ो लोगों की आस्था का प्रतीक है. रोजाना बड़ी तादाद में लोग इस दैवीय सरोवर में स्नान करते हैं और पुण्य के भागी बनते हैं. माना तो ये भी जाता है कि जब बह्माजी ने फूल को पृथ्वी पर फेंका तो उसके तीन टुकड़े हो गए और जहां-जहां तीन टुकड़े हुए वहां-वहां तीन सरोवर बन गए. इसीलिए आज भी पुष्कर शहर के बीची-बीच बनी बड़ी झील के अलावा शहर के कुछ दूरी पर दो और झीलें हैं.                  कहते हैं कि वेदों में वर्णिंत आर्य-धर्म (आज का हिंदु धर्म) की सबसे पवित्र नदी सरस्वती भी पुष्कर के करीब से ही बहती थी. इसके चलते भी पुष्कर-तीर्थ का महत्व काफी बढ़ जाता है. वेदों में सरस्वती नदी को वही महत्व दिया गया है जो हिंदु-धर्म में आज की गंगा नदी को दिया जाता है. वेदों में सरस्वती को ही सबसे पवित्र नदी माना गया है. लेकिन सैकड़ो साल पहले वायुमंडल में परिवर्तन और भूगौलिक कारणों से राजस्थान की धरती मरु-स्थल (रेगिस्तान) में तब्दील हो गई. जिसकी वजह से ही शायद सरस्वती नदी भी सूख गई. वैज्ञानिक रिसर्च और धरती के नीचे की सेटेलाईट इमेज (तस्वीरों) से ये बात प्रमाणिक रुप से कही जा सकती है कि सरस्वती नदी कभी राजस्थान से ही होकर गुजरती थी.              पुराणों के मुताबिक, पुष्कर में ही भगवान ब्रह्मा ने मानव-जाति की सरंचना की थी. हिंदु-धर्म में भगवान ब्रह्मा का इकलौता मंदिर पुष्कर में ही है. ये मंदिर इस बात का प्रतीक है कि ये पवित्र स्थल कभी भगवान ब्रह्मा से जुड़ी रहा होगा. भगवान ब्रह्मा को सभी ऋषि-मुनियों का गुरु माना जाता है. यही वजह है कि पुष्कर को ‘तीर्थ-गुरु’ के नाम से ही जाना जाता है, ठीक वैसे ही जैसे काशी को तीर्थ-राज के नाम से जाना जाता है.          तीर्थ-गुरु पुष्कर को हिंदु-धर्म में ठीक वैसा ही स्थान प्राप्त है जैसा कि कैलाश-मानसरोवर को भगवान शिव के साथ जोड़कर देखा जाता है या फिर भगवान विष्णु को समुद्र के साथ जोड़कर देखा जाता है. लेकिन ये सिर्फ कोरी (अंध) विश्वास से ही जुड़े हुए तीर्थ-स्थल नहीं है. इनके पीछे भी कोई ना कोई वैज्ञानिक कारण जुड़ा हुआ होगा. पृथ्वी को मुख्यत: तीन भागों में विभाजित है किया गया है—पृथ्वी, पहाड़ और समुद्र. हिंदु-धर्म में जैसे हर चीज को भगवान या फिर किसी ना किसी रीति-रिवाज और धार्मिक महत्व से जोड़ दिया गया है, ठीक वैसे ही पृथ्वी के तीनों भागों को आर्य-धर्म के तीन सबसे बड़े और प्रमुख भगवानों से जोड़ दिया गया है. इन तीनों भगवान को लोग ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) यानि ‘त्रिमूर्ति’ के नाम से जानते हैं. ब्रह्मा को सृजन-कर्ता यानि उत्पत्ति से, विष्णु को पालन-कर्ता और शिवजी को प्रलय (अंत) से जोड़ा कर पूजा जाता है. शायद इसीलिए भगवान बह्मा को धरती (पुष्कर) पर, विष्णु को समुद्र में और शिवजी को पर्वत (कैलाश-मानसरोवर) का अधिपति माना गया है.            सवाल ये उठता है कि अगर हिंदु-धर्म में भगवान ब्रह्मा को मनुष्य जाति का सृजन-कर्ता माना जाता है तो उनका इतना महत्व क्यों नहीं है जितना भगवान विष्णु या फिर भगवान शिव का है. पूरे भारत-वर्ष और दूसरे देश जहां पर हिंदुओं का निवास-स्थान हैं वहां मुख्यत: भगवान शिव या फिर विष्णु या फिर उनके अवतारों (राम, कृष्ण, हनुमान इत्यादि) की ही मंदिर अधिकाधिक क्यों होते हैं. क्यों शिव और विष्णु का ही हिंदु-धर्म में सर्वाधिकार है. उन्ही ही क्यों ज्यादा पूजा जाता है. भगवान ब्रह्मा को ऐसा स्थान क्यों नहीं दिया गया है.         दरअसल, इसके पीछे भी एक बड़ी दिलचस्प कहानी है. पुराणों के मुताबिक, एक बार बह्माजी ने पुष्कर में एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया. इस यज्ञ में लोक-परलोक से देवाताओं से लेकर बड़े-बड़े श्रृषि-मुनि पहुंचे. भगवान शिव और विष्णु भी पहुंचे. यज्ञ की पूरी तैयारी हो चुकी थी, लेकिन बह्माजी की पत्नी सावित्री अभी तक स्वर्गलोक से पुष्कर नहीं पहुंची थी. सभी लोग उनका इंतजार कर रहे थे. क्योंकि हिंदु-धर्म के मुताबिक, बिना पत्नी के किया गया यज्ञ कभी पूरा नहीं माना जाता है. इसलिए बह्माजी की पत्नी सावित्रा का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा था. यज्ञ आरंभ करने का शुभ मुहूर्त निकला जा रहा था. काफी समय बीत जाने के बाद बह्माजी ने अपने पुत्र नारद(मुनि) को अपनी माता को स्वर्गलोक से लाने के लिए कहा. लेकिन नारद-मुनि अपनी फितरत से बाज नहीं आते थे. फितरत घर-घर में लड़ाई कराने की. सो उन्होनें अपने घर और अपने माता-पिता को भी नहीं छोड़ा. जैसे ही नारद अपनी माता सावित्री के पास पहुंचे तो उन्होनें देखा कि उनकी मां श्रृंगार कर रही हैं. सावित्री ने नारद से कहा कि वो अपने पिता को जाकर संदेश दे दें कि वो जल्द ही यज्ञ में शामिल होने के लिए पहुंचने वाली हैं.             लेकिन नारद ने अपने पिता ब्रह्मा को कुछ और ही आकर बताया. नारद ने अपने पिता और यज्ञ-सभा में मौजूद श्रृषि-मुनियों को बताया कि उनकी मां सावित्री को आने में काफी देर लगेगी. फिर क्या था, वहां मौजूद सभी लोगों के धैर्य का बांध टूट गया. सभी नें मंत्रणा की और तय किया गया कि पुष्कर के करीब जो भी कन्या सबसे पहले मिले, उसे वहां लाकर सावित्री का स्थान दे दिया जाये.              फिर क्या था, श्रृषि-मुनि वहां से निकले और जैसे ही उन्हे एक कन्या दिखाई दी, वे उसे यज्ञ-सभा में ले आये. लेकिन क्योंकि उस कन्या का शुद्धिकरण होना जरुरी था, इसलिए उस कन्या को गाय के मुख से निकालकर पूंछ के रास्ते तीन बार निकाला. इसीलिए उस कन्या को ‘गायत्री’ (जिसे गाय ने तीन बार शुद्ध किया हो) नाम दिया गया. गायत्री के साथ मिलकर बह्माजी ने यज्ञ का आयोजन शुरु ही किया था कि सावित्री अपने सहेलियों के साथ वहां पहुंच गईं. अपने स्थान पर किसी और कन्या (गायत्री) को बैठा देख सावित्री आग-बूबला हो गईँ. उन्हें ये बात कतई बर्दाश्त नहीं हुई कि उनके पति ने उनकी अनुपस्थिति में किसी और को अपनी पत्नी बना लिया है. वे इस बात से भी नाखुश थी कि भगवान शिव, विष्णु, नारद, इन्द्रदेव और बाकी श्रृषि-मुनियों ने ये कैसे होने दिया.            सावित्री ने तुरंत वहां मौजूद सभी लोगों को श्राप देना शुरु कर दिया. सावित्री के कोप का भागी सबसे पहले उनके पति ब्रह्मा ही बने क्योंकि उन्होनें अपनी पत्नी का त्याग कर किसी दूसरी कन्या से गन्धर्व-विवाह रचाया था और अपनी पत्नी का थोड़ा सा भी इंतजार नहीं किया था. सावित्री ने अपने पति का श्राप दिया कि आज के बाद उनकी कोई पूजा नहीं करेगा.            क्योंकि उनके पुत्र नारद ने उनका संदेश ठीक प्रकार से यज्ञ-सभा को नहीं बताया था, इसलिए सावित्री ने नारद को श्राप दिया कि जैसे उन्होनें अपने माता-पिता का घर-परिवार तहस-नहस किया था, उनका कभी घर-परिवार बस ही नहीं पायेगा. यही वजह है कि नारद-मुनि हमेशा एक जगह से दूसरी जगह विचरते रहते हैं.            भगवान शिव का श्राप दिया कि उनका शरीर हमेशा राख और भस्म से लिपटा रहेगा और विष्णु की पत्नी को कोई राक्षस हरकर (अपहरण) ले जायेगा. इन्द्र को श्राप दिया कि वो हमेशा काम-वासना का शिकार रहेगा और उसका राज-पाट पर कोई ना कोई विप्पति आती रहेगी. जिस गाय से गायत्री का शुद्धिकरण कराया गया था, उसे श्राप दिया कि उसका मुख हमेशा अपवित्र रहेगा. वहां मौजूद ब्राह्मणों और श्रृषि-मुनियों को श्राप दिया कि वे हमेशा दरिद्र बने रहेंगे और दाने-दाने के लिये मोहताज रहेंगे.           पुराणों के मुताबिक, सभी को श्राप देते वक्त सावत्री का चेहरा इतना काला पड़ गया कि उन्हें काली-देवी के नाम से जाना-जाने लगा. बह्माजी ने सावित्री को लाख मनाने की कोशिशें की, ये तक कहा कि गायत्री ताउम्र उनकी छोटी बहन और दासी बनकर रहेगी, लेकिन सावित्री टस से मस नहीं हुईं. कहते है कि सभी को श्राप देने के बाद वे वहां से कलक्ता (कोलकता) चली गईं. यही वजह है कि पुष्कर में बड़ी तादाद में बंगाली श्रृद्धालु आते हैं.          श्राप मिलने के बाद सभी परेशान हो गए. लेकिन मान्यता है कि तब सभी को गायत्री ने ढांढस बंधाई. गायत्री सभी के श्राप तो खत्म नहीं कर पाई लेकिन उन्होनें श्राप को कम जरुर कर दिया. उसका निवारण जरुर बता दिया.          भगवान शिव को कहा कि उनकी शिवलिंग पर भस्म से पूजा की जायेगी, तथा विष्णु के अवतार राम की पत्नी को रावण हरकर ले जायेगा. लेकिन वानर-सेना की मदद से आप रावण का वध करेंगे और अपनी पत्नी को वापस ले आयेंगे. देवराज इन्द्र को कहा कि जब कभी आपके देव लोक पर कोई विपत्ति या आक्रमण होगा तो भगवान शिव और विष्णु हमेशा तुम्हारी सहायता करेंगे. साथ ही बाह्मणों और श्रृषियों को कहा कि अगर वे गायत्री मंत्र का जाप करेंगे तो उनकी दरिद्रता खत्म हो जायेगी. गाय को आर्शीवाद दिया कि उसका गोबर की सभी पूजा करेंगे और तुम्हें पूजनीय (गौ-माता) माना जायेगा.             गायत्री ने कहा कि बह्माजी को पुष्कर में ही पूजा जायेगा. और कोई भी भक्त भले ही चारों धाम की यात्रा कर आए, लेकिन अगर उसने पुष्कर-सरोवर में स्नान नहीं किया और यहां स्थापित बह्माजी के मंदिर के दर्शन नहीं किए तो उसकी यात्रा कभी सफल (पूरी) नहीं मानी जायेगी.           शायद यही कारण है कि एक पत्नी (सावित्री) के श्राप से और दूसरी पत्नी (गायत्री) के निवारण से बह्माजी का पूरी दुनिया में एक मात्र मंदिर पुष्कर में है और यहीं पर उनकी पूजा की जाती है.           पुष्कर का जिक्र वेद-पुराणों के साथ-साथ रामायण में भी किया गया है. गायत्री मंत्र के रचियता माने जाने वाले बड़े ऋषि-मुनि, विश्वामित्र की तपस्या भी इन्द्रलोक की अप्सरा, मेनका ने पुष्कर में ही भंग की थी और फिर साथ-साथ यही पर रहें.          पुष्कर में जगत पिता ब्रह्मा का मंदिर किसने बनवाया, ये तो ठीक-ठीक नहीं पता है, लेकिन इसका जीर्णोद्वार आदिगुरु शंकराचार्य ने विक्रम संवत 713 (यानि 770 ईसवी) में कराया था. इसके बारे में मंदिर में जगह-जगह लिखा गया है और शंकराचार्य की गद्दी भी विराजमान है.           इतिहास में भी पुष्कर का वर्णन हैं. कहते हैं कि अजमेर के बड़े शासक पृथ्वीराज चौहान ने पुष्कर में एक बड़ा किला बनवाने का मन बनाया. लेकिन मजदूर-कारीगर जैसे ही किले की दीवार खड़ी करते, वो गिर जाती. कई दिनों तक यही सिलसिला चलता रहा. बताते हैं कि एक रात पृथ्वीराज चौहान को सपना आया कि अगर यहां किला बनवाया गया तो सैकड़ो की तादाद में रहने वाले  सैनिकों की गंदगी पुष्कर-सरोवर को गंदा कर देंगे, इसलिए यहां किला ना बनवाया जाये. उसके बाद हिंदु-सम्राट ने यहां से 13 किलोमीटर दूर अजमेर में तारागढ़ किला बनवाया, जो आज भी ज्यों का त्यों खड़ा हुआ है. ख्वाजा गरीब नवाज मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के ठीक ऊपर बनी पहाड़ी पर ये किला आज भी दिखाई पड़ता है.               क्रूर मुगल-शासक, औरंगज़ेब नें यहां के कई मंदिरों को तुड़वाया. लेकिन कहते है कि जब औरंगज़ेब शहर से वापस लौट रहा था, तो उसे थकान महसूस हुई. उसने शहर के बाहर बनी एक झील (तीन में से एक झील) में हाथ-मुंह धोया. कहते है कि झील के पानी से मुंह धोते ही उसकी लंबी दाढ़ी बिल्कुल सफेद हो गई. इसीलिए इस झील को ‘बूढ़ा झील’ के नाम से जाना जाता है. झील की चमत्कारिक शक्ति को देखकर औरंगजेब भी पुष्कर से प्रभावित हुए नहीं रह सका. उसने यहां के पराशर-ब्राहमणों को 52 हजार बीघा जमीन दान दे दी.         आज भी पुष्कर में रोजाना सैकड़ो की तादाद में श्रृद्धालु यहां बह्माजी के एकमात्र मंदिर और सरोवर में स्नान करने आते हैं. कहते हैं कि सैकड़ो साल से ब्रह्म-सरोवर कभी नहीं सूखा था. लेकिन कुछ साल पहले स्थानीय प्रशासन ने इस झील की सफाई के नाम पर इसका सारा जल सूखा दिया. बबाल मच गया. देश-विदेश में सरोवर सूखने की खबर हेडलाइन बन गई. आनन-फानन में सरोवर को एक बार फिर भरा गया.                  लेकिन अब इस शहर को एक नई (कुख्यात) पहचान मिल गई है. यहां बड़ी तादाद में विदेशी पर्यटक भी आने लगे हैं. ये पर्यटक शुरुआत में तो यहां आते थे सालाना लगने वाले पुष्कर-मेला (ऊंट महोत्सव) में, लेकिन धीरे-धीरे ये शहर ड्रग्स का एक बड़ा ठिकाना बनने लगा है. विदेशी पर्यटक यहां रेव-पार्टी के लिए आते हैं. विदेशी पर्यटकों के साथ बलात्कार की खबरें भी यदा-कदा आती रहती हैं.    Neeraj Rajput at 12:12:00 am 3 टिप्‍पणियां: pl save our image for cwgames31 मार्च 2014 को 2:37:00 pm IST abhi tak ki sabse satik jankari apke dwara likha gaya blog se mila ,bahut bahut dhanyawad उत्तर दें pl save our image for cwgames31 मार्च 2014 को 2:37:00 pm IST abhi tak ki sabse satik jankari apke dwara likha gaya blog se mila ,bahut bahut dhanyawad उत्तर दें RAKESH BHATT , PUSHKAR31 मार्च 2014 को 11:23:00 pm IST नीरज जी वाकई आपने पुष्कर की हूबहू कथा लिखी है जो काबिल ए तारीफ है। । इसमें आपने उन सभी बातो को लिखा है जिसकी जानकारी आपने यहाँ पर ली थी । मजा आ गया सर । … और हां योगेश जी के साथ मेरी फ़ोटो भी इस ब्लॉग में पोस्ट करने के लिए आपका शुक्रिया। … राकेश उत्तर दें › मुख्यपृष्ठ वेब वर्शन देखें NEERAJ RAJPUT मेरा पूरा प्रोफ़ाइल देखें Blogger द्वारा संचालित.

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