Thursday 4 January 2018

गोस्वामी तुलसीदास

वाराणसी वैभव काशी की विभूतियाँ महर्षि अगस्त्य श्री धन्वंतरि महात्मा गौतम बुद्ध संत कबीर अघोराचार्य बाबा कानीराम वीरांगना लक्ष्मीबाई श्री पाणिनी श्री पार्श्वनाथ श्री पतञ्जलि संत रैदास स्वामी श्रीरामानन्दाचार्य श्री शंकराचार्य गोस्वामी तुलसीदास महर्षि वेदव्यास श्री वल्लभाचार्य       गोस्वामी तुलसीदास श्री रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास का जन्म सन् १५६८ में राजापुर में श्रावण शुक्ल ७ को हुआ था।  पिता का नाम आत्माराम और माता का नाम हुलसी देवी था।  तुलसी की पूजा के फलस्वरुप उत्पन्न पुत्र का नाम तुलसीदास रखा गया।  पत्नी रत्नावली के प्रति अति अनुराग की परिणति वैराग्य में हुई।  अयोध्या और काशी में वास करते हुए तुलसीदास ने अनेक ग्रन्थ लिखे।  चित्रकूट में हनुमान् जी की कृपा से इन्हे राम जी का दर्शन हुआ।  काशी और अयोध्या में (संवत् १६३१) 'रामचरितमानस' और 'विनय पत्रिका' की रचना की।  तुलसी की 'हनुमान् चालीसा' का पाठ करोड़ो हिन्दू नित्य करते हैं।  तुलसी घाट पर ही निवास करते हुए श्रावण शुक्ल तीज को राम में लीन हो गये। गोस्वामी तुलसीदास जी को महर्षि वाल्मीकि का अवतार माना जाता है।  उनका जन्म बांदा जिले के राजापुर गाँव में एक सरयू पारीण ब्राह्मण परिवार में हुआ था।  उनका विवाह सं. १५८३ की ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी को बुद्धिमती (या रत्नावली) से हुआ।  वे अपनी पत्नी के प्रति पूर्ण रुप से आसक्त थे।  एक बार जब उनकी पत्नी मैके गयी हुई थी उस समय वे छिप कर उसके पास पहुँचे।  पत्नी को अत्यंत संकोच हुआ उसने कहा -        हाड़ माँस को देह मम, तापर जितनी प्रीति।        तिसु आधो जो राम प्रति, अवसि मिटिहि भवभीति।। तुलसी के जीवन को इस दोहे ने एक नयी दिशी दी।  वे उसी क्षण वहाँ से चल दिये और सीधे प्रयाग पहुँचे। फिर जगन्नाथ, रामेश्वर, द्वारका तथा बदरीनारायण की पैदल यात्रा की।  चौदह वर्ष तक के निरंतर तीर्थाटन करते रहे।  इस काल में उनके मन में वैराग्य और तितिक्षा निरंतर बढ़ती चली गयी।  इस बीच आपने श्री नरहर्यानन्दजी को गुरु बनाया। गोस्वामी जी के संबंध में कई कथाएँ प्रचलित हैं।  कहते हैं जब वे प्रात:काल शौच के लिये गंगापार जाते थे तो लोटे में बचा हुआ पानी एक पेड़ेे की जड़ में डाल देते थे।  उस पेड़ पर एक प्रेत रहता था।  नित्य पानी मिलने से वह प्रेत संतुष्ट हो गया और गोस्वामी जी सामने प्रकट हो कर उनसे वर माँगने की प्रार्थना करने लगा।  गोस्वामी जी ने रामचन्द्र जी के दर्शन की लालसा प्रकट की।  प्रेत ने बताया कि अमुक मंदिर में सायंकाल रामायण की कथा होती है, यहाँ हनुमान् जी नित्य ही कोढ़ी के भेष में कथा सुनने आते हैं।  वे सब से पहले आते हैं और सब के बाद में जाते हैं।  गोस्वामी जी ने वैसा ही किया और हनुमान् जी के चरण पकड़ कर रोने लगे।  अन्त में हनुमान् जी ने चित्रकूट जाने की आज्ञा दी। आप चित्रकूट के जंगल में विचरण कर रहे थे तभी दो राजकुमार - एक साँवला और एक गौरवर्ण धनुष-बाण हाथ में लिये, घोड़ेे पर सवार एक हिरण के पीछे दौड़ते दिखायी पड़े।  हनुमान् जी ने आ कर पूछा, "कुछ देखा?  गोस्वामी जी ने जो देखा था, बता दिया।  हनुमान् जी ने कहा,'वे ही राम लक्ष्मण थे।'  वि.सं. १६०७ का वह दिन।  उस दिन मौनी अमावस्या थी।  चित्रकूट के घाट पर तुलसीदास जी चंदन घिस रहे थे।  तभी भगवान् रामचन्द्र जी उनके पास आये और उनसे चन्दन माँगने लगे।  गोस्वामी जी ने उन्हें देखा तो देखते ही रह गये।  ऐसी रुपराशि तो कभी देखी ही नहीं थी।  उनकी टकटकी बंध गयी।  उस दिन रामनवमी थी।  संवत १६३१ का वह पवित्र दिन।  हनुमान् जी की आज्ञा और प्रेरणा से गोस्वामी जी ने रामचरितमानस लिखना प्रारंभ किया और दो वर्ष, सात महीने तथा छब्बीस दिन में उसे पूरा किया।  हनुमान् जी पुन: प्रकट हुए, उन्होंने रामचरितमानस सुनी और आशीर्वाद दिया, 'यह रामचरितमानस तुम्हारी कीर्ति को अमर कर देकी।' सच्चरित्र होने के कारण आप के हाथ से कुछ न कुछ चमत्कार हो जाते थे।  एक बार उनके आशीर्वाद से एक विधवा का पति जीवित हो उठा।  यह खबर बादशाह तक पहुँची।  उसने उन्हें बुला भेजा और कहा, 'कुछ करामात दिखाओ।'  गोस्वामी जी ने कहा कि 'रामनाम' के अतिरिक्त मैं कुछ भी करामात नहीं जानता।  बादशाह ने उन्हें कैद कर लिया और कहा कि जब तक करामात नहीं दिखाओगे, तब तक छूट नहीं पाओगे।  तुलसीदास जी ने हनुमान् जी की स्तुति की।  हनुमान् जी ने बंदरों की सेना से कोट को नष्ट करना प्रारम्भ किया।  बादशाह इनके चरणों पर गिर पड़े और उनसे क्षमायाचना की। तुलसीदास जी के समय में हिंदु समाज में अनेक पंथ बन गये थे।  मुसलमानों के निरंतर आतंक के कारण पंथवाद को बल मिला था।  उन्होंने रामायम के माध्यम से वर्णाश्रम धर्म, अवतार धर्म, साकार उपासना, मूर्कित्तपूजा, सगुणवाद, गो-ब्राह्मण रक्षा, देवादि विविध योनियों का सम्मान एवं प्राचीन संस्कृति और वेदमार्ग का मण्डन तथा तत्कालीन मुस्लिम अत्याचारों और सामाजिक दोषों का तिरस्कार किया। वे अच्छी तरह जानते थे कि राजाओं की आपसी फूट और सम्प्रदाय वाद के झगड़ों के कारण भारत में मुसलमान विजयी हो रहे हैं। उन्होंने गुप्त रुप से यही बातें रामचरितमानस के माध्यम से बतलाने का प्रयास किया किंतु राजाश्रय न होने के कारण लोग उनकी बात समझ नहीं पाये और रामचरितमानस का राजनीतिक उद्देश्य सफल नहीं हो पाया।  यद्यपि रामचरितमानस को तुलसीदास जी ने राजनीतिक शक्ति का केन्द्र बनाने का प्रयत्न नहीं किया फिर भी आज वह ग्रंथ सभी मत-मतावलम्बियों को पूर्ण रुप से मान्य है।  सब को एक सूत्र में बाँधने का जो कार्य शंकराचार्य ने किया था, वही कार्य बाद के युग में गोस्वामी तुलसीदास जी ने किया। गोस्वामी तुलसीदास ने अधिकांश हिदू भारत को मुसलमान होने से बचाया। आप के लिखे बारह ग्रंथ अत्यंत प्रसिद्ध हैं - दोहावली, कवित्तरामायण, गीतावली, रामचरित मानस, रामलला नहछू, पार्वतीमंगल, जानकी मंगल, बरवै रामायण, रामाज्ञा, विन पत्रिका, वैराग्य संदीपनी, कृष्ण गीतावली।  इसके अतिरिक्त रामसतसई, संकट मोचन, हनुमान बाहुक, रामनाम मणि, कोष मञ्जूषा, रामशलाका, हनुमान चालीसा आदि आपके ग्रंथ भी प्रसिद्ध हैं। १२६ वर्ष की अवस्था में संवत् १६८० श्रावण शुक्ल सप्तमी, शनिवार को आपने अस्सी घाट पर अपना शहरी त्याग दिया।        संवत सोलह सै असी, असी गंग के तीर।        श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी तज्यो शरीर।।     वाराणसी वैभव Content given by BHU, Varanasi Copyright © Banaras Hindu University All rights reserved. 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