Thursday, 4 January 2018
हरिदास
मुख्य मेनू खोलें
खोजें
3
संपादित करेंध्यानसूची से हटाएँ।
किसी अन्य भाषा में पढ़ें
स्वामी हरिदास
स्वामी हरिदास (१४९०-१५७५ अनुमानित) भक्त कवि, शास्त्रीय संगीतकार तथा कृष्णोपासक सखी संप्रदाय के प्रवर्तक थे, जिसे 'हरिदासी संप्रदाय' भी कहते हैं। इन्हें ललिता सखी का अवतार माना जाता है। इनकी छाप रसिक है। इनके जन्म स्थान और गुरु के विषय में कई मत प्रचलित हैं। इनका जन्म समय कुछ ज्ञात नहीं है। हरिदास स्वामी वैष्णव भक्त थे तथा उच्च कोटि के संगीतज्ञ भी थे। प्रसिद्ध गायक तानसेन इनके शिष्य थे। अकबर इनके दर्शन करने वृन्दावन गए थे। 'केलिमाल' में इनके सौ से अधिक पद संग्रहित हैं। इनकी वाणी सरस और भावुक है। ये प्रेमी भक्त थे।
स्वामी हरिदास
अकबर की उपस्थिति में तानसेन को संगीत सिखाते हुए स्वामी हरिदास
जन्म १४८०/ १५१२
हरिदासपुर, अलीगढ, उत्तर प्रदेश
मृत्यु १५७५/१६०७
निधिवन, वृंदावन
गुरु/शिक्षक भाई मरदाना
दर्शन निम्संबार्प्रक दाय
खिताब/सम्मान नवरत्न
धर्म हिन्दू
दर्शन निम्संबार्प्रक दाय
ये महात्मा वृंदावन में निंबार्क सखी संप्रदाय के संस्थापक थे और अकबर के समय में एक सिद्ध भक्त और संगीत-कला-कोविद माने जाते थे। कविताकाल सन् 1543 से 1560 ई. ठहरता है। प्रसिद्ध गायनाचार्य तानसेन इनका गुरूवत् सम्मान करते थे। यह प्रसिद्ध है कि अकबर बादशाह साधु के वेश में तानसेन के साथ इनका गाना सुनने के लिए गया था। कहते हैं कि तानसेन इनके सामने गाने लगे और उन्होंने जानबूझकर गाने में कुछ भूल कर दी। इसपर स्वामी हरिदास ने उसी गाना को शुद्ध करके गाया। इस युक्ति से अकबर को इनका गाना सुनने का सौभाग्य प्राप्त हो गया। पीछे अकबर ने बहुत कुछ पूजा चढ़ानी चाही पर इन्होंने स्वीकार नहीं की।
स्वामी हरिदास का एक पद
तिनका बयारि के बस।
ज्यौं भावै त्यौं उडाइ लै जाइ आपने रस॥
ब्रह्मलोक सिवलोक और लोक अस।
कह 'हरिदास बिचारि देख्यो, बिना बिहारी नहीं जस॥
कृतियाँ संपादित करें
सिद्धांत (अठारह पद )
केलिमाल (माधुर्य भक्ति का महत्वपूर्ण ग्रन्थ )[1]
माधुर्य भक्ति का वर्णन संपादित करें
स्वामी हरिदास के उपास्य युगल राधा-कृष्ण ,नित्य-किशोर ,अनादि एकरस और एक वयस हैं। यद्यपि ये स्वयं प्रेम-रूप हैं तथापि भक्त को को प्रेम का आस्वादन कराने के लिए ये नाना प्रकार की लीलाओं का विधान करते हैं। इन लीलाओं का दर्शन एवं भावन करके जीव अखण्ड प्रेम का आस्वादन करता है।
कुञ्ज बिहारी बिहारिनि जू को पवित्र रस
कहकर स्वामी जी स्पस्ट सूचित किया है कि राधा-कृष्ण का विहार अत्यधिक पवित्र है। उस विहार में प्रेम की लहरें उठती रहती हैं,जिनमें मज्जित होकर जीव आनन्द में विभोर हो जाता है। इस प्रेम की प्राप्ति उपासक विरक्त भाव से वृन्दावन-वास करते हुए भजन करने से हो सकती है। स्वामी हरिदास जी का जीवन इस साधना का मूर्त रूप कहा जा सकता है।
राधा -कृष्ण की इस अद्भुत मधुर-लीला का वर्णन स्वामी हरिदास ने वन -विहार ,झूलन ,नृत्य आदि विभिन्न रूपों में किया है। इस लीला का महत्व संगीत की दृष्टि से अधिक है। नृत्य का निम्न वर्णन दृष्टव्य है :
अद्भुत गति उपजत अति नाचत,
दोउ मंडल कुँवर किशोरी।
सकल सुधंग अंग अंग भरि भोरी,
पिय नृत्यत मुसकनि मुखमोरि परिरंभन रस रोरी।।[1]
रसिक भक्त होने के कारण राधा-कृष्ण की लीलाओं को ही वह अपना सर्वस्व समझते हैं और सदा यही अभिलाषा करते हैं ~~
ऐसे ही देखत रहौं जनम सुफल करि मानों।
प्यारे की भाँवती भाँवती के प्यारे जुगल किशोरै जानौं।।
छिन न टरौं पल होहुँ न इत उत रहौं एक तानों।
श्री हरिदास के स्वामी स्यामा 'कुंज बिहारी 'मन रानौं।।[1]
बाहरी कड़ियाँ संपादित करें
भक्तिमार्ग के रसिक संतः स्वामी हरिदास (प्रभासाक्षी)
स्वामी हरिदास की प्रतिनिधि रचनाएँ (कविता कोष)
ब्रजवासी
निकुंज की कुंजी रखें स्वामी हरिदास
बांके बिहारी मंदिर, वृंदावन
बांके बिहारी मंदिर का जालघर
स्वामी हरिदास पर डाकटिकट
सन्दर्भ संपादित करें
↑ अ आ इ http://hindisahityainfo.blogspot.in/2017/05/blog-post_24.html
संवाद
Last edited 2 months ago by चक्रबोट
RELATED PAGES
निधिवन
विट्ठलविपुल देव
बिहारिनदेव
सामग्री CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उल्लेख ना किया गया हो।
गोपनीयताडेस्कटॉप
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment