Thursday, 11 January 2018
शाडिल्य ऋषि की तपोभूमि पर स्थित शीतला मां करतीं मनोकामना पूरी Wed Apr 13 01:01:10 IST 2016  12 एचआरडी 023 व 024 संडीला संवाद सहयोगी : शांडिल्य ऋषि की तपोभूमि संडीला में स्थित शाीतला मां के मंदिर में श्रद्धा व भक्ति भाव से मत्था टेकने वालों की हर मनोकामना पूरी होती है। मंदिर के चारो ओर अन्य देवी-देवताओं के मंदिर व यात्रियों के रुकने के लिए कमरे हैं। यहां श्री रामजानकी , राधा कृष्ण मंदिर व प्राचीन शिवाला है। मुख्य मंदिर के दायीं ओर एक विशाल जलाशय है। जिसमें मछलियां पलीं हैं। इतिहास :शांडिल्य ऋषि की तपोभूमि संडीला को नैमिष तीर्थ का ही हिस्सा माना जाता है। इसी मंदिर में शाडिल्य ऋषि ने तपस्या की थी। कस्बे के पश्चिमी छोर पर एक विशाल सरोबर के किनारे लगभग एक हजार वर्ष पूर्व पुराना मां शीतला देवी का मंदिर है। ऐतिहासिकता बारे में कहा जाता है शाडिल्य ऋषि के समय में ही यहां मां का वास है। ब्रिटिश शासन काल में एक बार एक अंग्रेज गवर्नर यहां शिकार खेलने आया। उसने जंगल के बीच एक छोटी सी मढिया में देवी की मूर्ति देखी। जिस पर फूल व पूजन सामग्री चढ़े थे। यह मूर्ति गर्दभ सवार मां की थी। जो आज भी मौजूद है। यह मूर्ति कहां से आई इसकी जानकारी नहीं है। मढिया के निकट छोटा तालाब था। जो आज सरोबर का रूप ले चुका है। विशेषता : नवरात्र के अलावा इस मंदिर में प्रत्येक अमावस्या को मेला लगता है। श्रद्धालु पहले सरोबर में स्नान करते हैं तथा फिर मां की पूजा अर्चना कर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा यहां पर मांगलिक कार्य, मुंडन, यज्ञ, रामकथा आदि के आयोजन होते रहते हैं। नवरात्र के अवसर पर निकलने वाली प्रभात फेरियां मंदिर तक गाजे-बाजे के साथ जाती हैं। वहां पर आरती के बाद मां की पूजा अर्चना करती हैं। पुजारी राजबहादुर दीक्षित का कहना है कि बिट्रिश हुकुमत के समय एक छोटे मठ में मां का वास था बाद में गवर्नर ने मंदिर के आसपास की बगिया लालता शाहू के नाम कर दी। उन्होंने इस मंदिर को भव्य रूप प्रदान किया। इसके अलावा छोटे तालाब को भव्य सरोवर का रूप 1935 में दिया गया। तालाब के किनारे स्नानघर व बारादरी का निर्माण कराया गया। कुछ वर्षों पहले तालाब के बीचोबीच भगवान शिव की मूर्ति स्थापित ा गया। इनका कहनाह ै मंदिर मे आने वाले हर श्रद्धाुलु की मनोकामना पूरी होती है।
Jagran

शाडिल्य ऋषि की तपोभूमि पर स्थित शीतला मां करतीं मनोकामना पूरी
Wed Apr 13 01:01:10 IST 2016


12 एचआरडी 023 व 024
संडीला संवाद सहयोगी : शांडिल्य ऋषि की तपोभूमि संडीला में स्थित शाीतला मां के मंदिर में श्रद्धा व भक्ति भाव से मत्था टेकने वालों की हर मनोकामना पूरी होती है। मंदिर के चारो ओर अन्य देवी-देवताओं के मंदिर व यात्रियों के रुकने के लिए कमरे हैं। यहां श्री रामजानकी , राधा कृष्ण मंदिर व प्राचीन शिवाला है। मुख्य मंदिर के दायीं ओर एक विशाल जलाशय है। जिसमें मछलियां पलीं हैं।

इतिहास :शांडिल्य ऋषि की तपोभूमि संडीला को नैमिष तीर्थ का ही हिस्सा माना जाता है। इसी मंदिर में शाडिल्य ऋषि ने तपस्या की थी। कस्बे के पश्चिमी छोर पर एक विशाल सरोबर के किनारे लगभग एक हजार वर्ष पूर्व पुराना मां शीतला देवी का मंदिर है। ऐतिहासिकता बारे में कहा जाता है शाडिल्य ऋषि के समय में ही यहां मां का वास है। ब्रिटिश शासन काल में एक बार एक अंग्रेज गवर्नर यहां शिकार खेलने आया। उसने जंगल के बीच एक छोटी सी मढिया में देवी की मूर्ति देखी। जिस पर फूल व पूजन सामग्री चढ़े थे। यह मूर्ति गर्दभ सवार मां की थी। जो आज भी मौजूद है। यह मूर्ति कहां से आई इसकी जानकारी नहीं है। मढिया के निकट छोटा तालाब था। जो आज सरोबर का रूप ले चुका है।
विशेषता : नवरात्र के अलावा इस मंदिर में प्रत्येक अमावस्या को मेला लगता है। श्रद्धालु पहले सरोबर में स्नान करते हैं तथा फिर मां की पूजा अर्चना कर मनौती मांगते हैं। इसके अलावा यहां पर मांगलिक कार्य, मुंडन, यज्ञ, रामकथा आदि के आयोजन होते रहते हैं। नवरात्र के अवसर पर निकलने वाली प्रभात फेरियां मंदिर तक गाजे-बाजे के साथ जाती हैं। वहां पर आरती के बाद मां की पूजा अर्चना करती हैं।
पुजारी राजबहादुर दीक्षित का कहना है कि बिट्रिश हुकुमत के समय एक छोटे मठ में मां का वास था बाद में गवर्नर ने मंदिर के आसपास की बगिया लालता शाहू के नाम कर दी। उन्होंने इस मंदिर को भव्य रूप प्रदान किया। इसके अलावा छोटे तालाब को भव्य सरोवर का रूप 1935 में दिया गया। तालाब के किनारे स्नानघर व बारादरी का निर्माण कराया गया। कुछ वर्षों पहले तालाब के बीचोबीच भगवान शिव की मूर्ति स्थापित ा गया। इनका कहनाह ै मंदिर मे आने वाले हर श्रद्धाुलु की मनोकामना पूरी होती है।
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