Thursday, 4 January 2018

संप्रदायों के प्रवर्तक

बूंद-बूंद इतिहास बूंद-बूंद इतिहास में आपका हार्दिक स्वागत है। इस ब्लॉग में आप पाएंगे हिंदी साहित्य के इतिहास की रूपरेखा और एक ही स्थान पर हिंदी की रचनाओं,लेखकों और उसकी विभिन्न धाराओं की प्रवृत्तियों का सारगर्भित निचोड़ । कृष्ण भक्ति साहित्य पर विभिन्न संप्रदायों का प्रभाव जनवरी 28, 2010 भक्ति काल की चौथी काव्य-धारा का नाम है : कृष्णभक्ति काव्य धारा । इस भक्ति धारा पर विभिन्न संप्रदायों का प्रभाव है; ये संप्रदाय इस प्रकार हैं :- विष्णु संप्रदाय : इस संप्रदाय के प्रवर्तक विष्णु गोस्वामी हैं । इसे रुद्र संप्रदाय भी कहा जाता है । यह शुद्धाद्वैतवादी है । निम्बार्क संप्रदाय : इस संप्रदाय के प्रवर्तक निम्बक आचार्य हैं । इसका प्रमुख ग्रंथ "वेदांत पारिजात सौरभ" है । यह दश श्लोकी द्वैताद्वैतवादी है । इस संप्रदाय में कृष्ण के वामांग में सुशोभित राधा के साथ कृष्ण की उपासना का विधान है । माध्व-संप्रदाय : इसके प्रवर्तक माध्वाचार्य है । इसने द्वैतवाद को प्रश्रय दिया । श्री संप्रदाय : इसके प्रवर्तक रामानुजाचार्य हैं । इनके ग्रंथ हैं : वेदांत संग्रह, श्री भाष्य, गीता भाष्य । विशिष्टाद्वैत की स्थापना इनके द्वारा हुई । रामानंदी संप्रदाय : इस संप्रदाय के संस्थापक रामानंद हैं । इन्होंने विशिष्टाद्वैतवाद को मान्यता दी । वल्लभ संप्रदाय : इसके प्रवर्तक वल्भाचार्य हैं । इन्होंने शुद्ध अद्वैतवाद को मान्यता दी । इन्होंने श्रीमद्भागवत की तत्त्वबोधिनी टीका लिखी । वल्लभ संप्रदाय में कृष्ण के बाल रूप की उपासना मिलती है । चैतन्य संप्रदाय : इसके प्रवर्तक चैतन्य महाप्रभु हैं । इसे गौड़ीया संप्रदाय भी कहा जाता है । द्वैताद्वैतवाद में आस्था । इसमें ब्रह्म की शक्ति राधा की उपासना का विधान है और ब्रह्म के रूप में कृष्ण की शक्ति का विधान है । राधा-वल्लभी संप्रदाय : इसके प्रवर्तक हितहरिवंश हैं । इनके ग्रंथ हैं : राधासुधानिधि, हितचौरासी पद ।इस संप्रदाय में राधा ही प्रमुख है । हरिदासी या सखी संप्रदाय : इसके प्रवर्तक तानसेन के गुरु हरिदास हैं । इनके ग्रंथ हैं : ललित प्रकाश, केलिमाल, सिद्धांत के पद । इसमें निकुंज बिहारी कृष्ण सर्वोपरि हैं । सहज शृंगार रस में लीन होकर निकुंज लीला परायण कृष्ण की उपासना और नित्य बिहार दर्शन ही सखी का काम्य है । इस प्रकार हिंदी कृष्ण काव्य ने धार्मिक क्षेत्र में सुदृढ़, आकर्षक और व्यापक धार्मिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि प्रस्तुत की है । कृष्णभक्ति साहित्य पर विभिन्न धार्मिक संप्रदायों का प्रभाव टिप्पणियाँ मनोज कुमार28 जनवरी 2010 को 9:25 pm बहुत अच्छी जानकारी। धन्यवाद। उत्तर दें एक टिप्पणी भेजें आपकी टिप्पणी का इंतजार है। इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट आदिकाल के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ अक्तूबर 02, 2009 आज हम आदिकालीन कवियों की प्रमुख कृतियों का विवरण प्रस्तुत कर रहें हैं : अब्दुर्रहमान : संदेश रासकनरपति नाल्ह : बीसलदेव रासो (अपभ्रंश हिंदी)चंदबरदायी : पृथ्वीराज रासो (डिंगल-पिंगल हिंदी)दलपति विजय : खुमान रासो (राजस्थानी हिंदी)जगनिक : परमाल रासोशार्गंधर : हम्मीर रासोनल्ह सिंह : विजयपाल रासोजल्ह कवि : बुद्धि रासोमाधवदास चारण : राम रासोदेल्हण : गद्य सुकुमाल रासो श्रीधर : रणमल छंद , पीरीछत रायसाजिनधर्मसूरि : स्थूलिभद्र रासगुलाब कवि : करहिया कौ रायसोशालिभद्रसूरि : भरतेश्वर बाहुअलिरासजोइन्दु : परमात्म प्रकाशकेदार : जयचंद प्रकाशमधुकर कवि : जसमयंक चंद्रिकास्वयंभू : पउम चरिउयोगसार :सानयधम्म दोहाहरप्रसाद शास्त्री : बौद्धगान और दोहाधनपाल : भवियत्त कहालक्ष्मीधर : प्राकृत पैंगलमअमीर खुसरो : किस्सा चाहा दरवेश, खालिक बारीविद्यापति : कीर्तिलता, कीर्तिपताका, विद्यापति पदावली (मैथिली) और पढ़ें रीतिकाल की प्रवृत्तियाँ जनवरी 08, 2011 रीतिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं :: -  लक्षण ग्रंथों का निर्माण :: रीतिकाल की सर्वप्रमुख विशेषता लक्षण-ग्रंथों का निर्माण है ।यहाँ काव्य-विवेचना अधिक हुई । कवियों ने संस्कृत के लक्षण ग्रंथकार आचार्यों का अनुकरण करते हुए अपनी रचनाओं को लक्षण-ग्रंथों अथवा रीति ग्रंथों के रूप में प्रस्तुत किया । यद्यपि रीति निरुपण में इन कवियों को विशेष सफलता नहीं मिली । प्राय: इन्होंने संस्कृत-ग्रंथों में दिए गए नियमों और तत्वों का ही हिंदी पद्य में अनुवाद किया है । इनमें मौलिकता और स्पष्टता का अभाव है । श्रृंगार -चित्रण :: रीतिकाल की दूसरी बड़ी विशेषता श्रृंगार रस की प्रधानता है । इस काल की कविता में नारी केवल पुरुष के रतिभाव का आलम्बन बनकर रह गई । राधा कृष्ण के प्रेम के नाम पर नारी के अंग-प्रत्यंग की शोभा,हाव-भाव,विलास चेष्टाएँ आदि में श्रृंगार का सुंदर और सफल चित्रण हुआ है ,किंतु वियोग वर्णन में कवि-कर्म खिलवाड़ बन कर रह गया है । श्रृंगार के आलंबन और उद्दीपन के बड़े ही सरस उदाहरणों का निर्माण हुआ ।वीर और भक्ति काव्य : रीतिकाल में अपनी पूर्ववर्ती काव्य-धाराओं वीर और भक्ति के भी दर्शन होते … और पढ़ें छायावाद की प्रवृत्तियां अक्तूबर 28, 2011 छायावादी काव्य का विश्लेषण करने पर हम उसमें निम्नांकित प्रवृत्तियां पाते हैं :- 1. वैयक्तिकता : छायावादी काव्य में वैयक्तिकता का प्राधान्य है। कविता वैयक्तिक चिंतन और अनुभूति की परिधि में सीमित होने के कारण अंतर्मुखी हो गई, कवि के अहम् भाव में निबद्ध हो गई। कवियों ने काव्य में अपने सुख-दु:ख,उतार-चढ़ाव,आशा-निराशा की अभिव्यक्ति खुल कर की। उसने समग्र वस्तुजगत को अपनी भावनाओं में रंग कर देखा। जयशंकर प्रसाद का'आंसू' तथा सुमित्रा नंदन पंत के 'उच्छवास' और 'आंसू' व्यक्तिवादी अभिव्यक्ति के सुंदर निदर्शन हैं। इसके व्यक्तिवाद के स्व में सर्व सन्निहित है।डॉ. शिवदान सिंह चौहान इस संबंध में अत्यंत मार्मिक शब्दों में लिखते हैं -''कवि का मैं प्रत्येक प्रबुद्ध भारतवासी का मैं था,इस कारण कवि ने विषयगत दृष्टि से अपनी सूक्ष्मातिसूक्ष्म अनुभूतियों को व्यक्त करने के लिए जो लाक्षणिक भाषा और अप्रस्तुत रचना शैली अपनाई,उसके संकेत और प्रतीक हर व्यक्ति के लिए सहज प्रेषणीय बन सके।''छायावादी कवियों की भावनाएं यदि उनके विशिष्ट वैयक्तिक दु:खों के रोने-धोने तक ही सीमित रहती,उनक… और पढ़ें Blogger द्वारा संचालित badins के थीम चित्र मनोज भारती मनोज भारती कुछ है जो निरंतर मेरे साथ है वह नहीं तो मैं नहीं बस एक उसी के सहारे जिंदा हूं ... प्रोफ़ाइल देखें संग्रहित करें लेबल दुर्व्यवहार की रिपोर्ट करें समर्थक

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