Monday, 8 January 2018
ब्राह्मण ( विप्र, द्विज, द्विजोत्तम, भूसुर )
श्री सर्व ब्राहमीन महासभा , बीकानेर Do not reveal what you have thought upon doing, but by wise counsel keep it secret, being determined to carry it into execution
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NOV
23
ब्राह्मण ( विप्र, द्विज, द्विजोत्तम, भूसुर )
ब्राह्मण ( विप्र, द्विज, द्विजोत्तम, भूसुर ) हिन्दू समाज की एक जाति है | ब्राह्मण को विद्वान, सभ्य और शिष्ट माना जाता है। एतिहासिक रूप से हिन्दू समाज में, व्यवसाय-आधारित चार वर्ण होते हैं। ब्राह्मण ( आध्यात्मिकता के लिए उत्तरदायी ), क्षत्रिय (धर्म रक्षक), वैश्य (व्यापारी व कॄषक वर्ग) तथा शूद्र ( शिल्पी, श्रमिक समाज ) । व्यक्ति की विशेषता, आचरण एवं स्वभाव से उसकी जाति निर्धारित होती थी । विद्वान, शिक्षक, पंडित, बुद्धिजीवी, वैज्ञानिक तथा ज्ञान-अन्वेषी ब्राह्मणों की श्रेणी में आते थे | ब्राह्मण समाज का इतिहास प्राचीन भारत के वैदिक धर्म से आरंभ होता है| "मनु-स्मॄति" के अनुसार आर्यवर्त वैदिक लोगों की भूमि है | ब्राह्मण व्यवहार का मुख्य स्रोत वेद हैं | ब्राह्मणों के सभी सम्प्रदाय वेदों से प्रेरणा लेते हैं | पारंपरिक तौर पर यह विश्वास है कि वेद अपौरुषेय ( किसी मानव/देवता ने नहीं लिखे ) तथा अनादि हैं, बल्कि अनादि सत्य का प्राकट्य है जिनकी वैधता शाश्वत है | वेदों को श्रुति माना जाता है जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् द्विज उच्यते | शापानुग्रहसामर्थ्यं तथा क्रोधः प्रसन्नता | अतः आध्यात्मिक दृष्टि से यज्ञोपवीत के बिना जन्म से ब्राह्मण भी शुद्र, के समान ही होता है | शमोदमस्तपः शौचम् क्षांतिरार्जवमेव च | ज्ञानम् विज्ञानमास्तिक्यम् ब्रह्मकर्म स्वभावजम् || चित्त पर नियन्त्रण, इन्द्रियों पर नियन्त्रण, शुचिता, धैर्य, सरलता, एकाग्रता तथा ज्ञान-विज्ञान में विश्वास | वस्तुतः ब्राह्मण को जन्म से शूद्र कहा है । यहाँ ब्राह्मण को क्रियासे बताया है । ब्रह्म का ज्ञान जरुरी है । केवल ब्राहमण के यहाँ पैदा होने से वह नाममात्र का ब्राहमण होता है व शूद्र के समान ब्राहमणयोग्य कृत्यों से वंचित होता है, उपनयन-संस्कार के बाद ही पूरी तरह ब्राहमण बन कर ब्राहमणयोग्य कृत्यों का अधिकारी होता है। निम्न श्लोकानुसार एक ब्राह्मण के छह कर्त्तव्य इस प्रकार हैं अध्यापनम् अध्ययनम् यज्ञम् यज्ञानम् तथा | , दानम् प्रतिग्रहम् चैव ब्राह्मणानामकल्पयात || शिक्षण, अध्ययन, यज्ञ करना , यज्ञ कराना , दान लेना ब्राह्मण के कर्त्तव्य हैं | ब्राह्मण सर्वेजनासुखिनो भवन्तु ( सभी जन सुखी तथा समॄद्ध हों ) एवम् वसुधैव कुटुम्बकम ( सारी वसुधा एक परिवार है ) में विश्वास रखते हैं ब्राह्मण अपने जीवनकाल में सोलह प्रमुख संस्कार करते हैं | जन्म से पूर्व गर्भधारण , पुन्सवन (गर्भ में नर बालक को ईश्वर को समर्पित करना ) , सिमन्तोणणयन ( गर्भिणी स्ज्ञी का केश-मुण्डन ) | बाल्यकाल में जातकर्म ( जन्मानुष्ठान ) , नामकरण , निष्क्रमण , अन्नप्रासन , चूडकर्ण , कर्णवेध | बालक के शिक्षण-काल में विद्यारम्भ , उपनयन अर्थात यज्ञोपवीत् , वेदारम्भ , केशान्त अथवा गोदान , तथा समवर्तनम् या स्नान ( शिक्षा-काल का अन्त ) | वयस्क होने पर विवाह तथा मृत्यु पश्चात अन्त्येष्टि प्रमुख संस्कार हैं |
Bahgwan shri parshuram द्वारा 23rd November 2013 पोस्ट किया गया
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