Thursday 11 January 2018

महाविद्या

मुख्य मेनू खोलें खोजें 3 संपादित करेंध्यानसूची से हटाएँ। किसी अन्य भाषा में पढ़ें महाविद्या दस महाविद्याएँ दशमहाविद्या अर्थात महान विद्या रूपी देवी। महाविद्या, देवी दुर्गा के दस रूप हैं, जो अधिकांश तान्त्रिक साधकों द्वारा पूजे जाते हैं, परन्तु साधारण भक्तों को भी अचूक सिद्धि प्रदान करने वाली है। इन्हें दस महाविद्या के नाम से भी जाना जाता है। इस संदूक को: देखें • संवाद • संपादन हिन्दू धर्म पर एक श्रेणी का भाग इतिहास · देवता सम्प्रदाय · आगम विश्वास और दर्शनशास्त्र पुनर्जन्म · मोक्ष कर्म · पूजा · माया दर्शन · धर्म वेदान्त ·योग शाकाहार  · आयुर्वेद युग · संस्कार भक्ति {{हिन्दू दर्शन}} ग्रन्थ वेदसंहिता · वेदांग ब्राह्मणग्रन्थ · आरण्यक उपनिषद् · श्रीमद्भगवद्गीता रामायण · महाभारत सूत्र · पुराण शिक्षापत्री · वचनामृत सम्बन्धित विषय दैवी धर्म · विश्व में हिन्दू धर्म गुरु · मन्दिर देवस्थान यज्ञ · मन्त्र शब्दकोष · हिन्दू पर्व विग्रह प्रवेशद्वार: हिन्दू धर्म हिन्दू मापन प्रणाली महाविद्या विचार का विकास शक्तिवाद के इतिहास में एक नया अध्याय बना जिसने इस विश्वास को पोषित किया कि सर्व शक्तिमान् एक नारी है। शाब्दिक अर्थ संपादित करें महाविद्या शब्द संस्कृत भाषा के शब्दों "महा" तथा "विद्या" से बना है- "महा" अर्थात महान्, विशाल, विराट ; तथा "विद्या" अर्थात ज्ञान। दस महाविद्याएँ संपादित करें शाक्त भक्तों के अनुसार "दस रूपों में समाहित एक सत्य की व्याख्या है - महाविद्या" जिससे जगदम्बा के दस लौकिक व्यक्तित्वों की व्याख्या होती है। महाविद्याएँ तान्त्रिक प्रकृति की मानी जाती हैं जो निम्न हैं- काली तारा छिन्नमस्ता षोडशी भुवनेश्वरी त्रिपुरभैरवी धूमावती बगलामुखी मातंगी कमला शाक्त दर्शन, दस महाविद्याओं को भगवान विष्णु के दस अवतारों से सम्बद्ध करता है और यह व्याख्या करता है कि महाविद्याएँ वे स्रोत हैं जिनसे भगवान विष्णु के दस अवतार उत्पन्न हुए थे। महाविद्याओं के ये दसों रूप चाहे वे भयानक हों अथवा सौम्य, जगज्जननी के रूप में पूजे जाते हैं। पौराणिक कथा संपादित करें श्री देवीभागवत पुराण के अनुसार महाविद्याओं की उत्पत्ति भगवान शिव और उनकी पत्नी सती, जो कि पार्वती का पूर्वजन्म थीं, के बीच एक विवाद के कारण हुई। जब शिव और सती का विवाह हुआ तो सती के पिता दक्ष प्रजापति दोनों के विवाह से खुश नहीं थे। उन्होंने शिव का अपमान करने के उद्देश्य से एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने सभी देवी-देवताओं को आमन्त्रित किया लेकिन द्वेषवश उन्होंने अपने जामाता भगवान शंकर और अपनी पुत्री सती को निमन्त्रित नहीं किया। सती, पिता के द्वारा आयोजित यज्ञ में जाने की जिद करने लगीं जिसे शिव ने अनसुना कर दिया, इस पर सती ने स्वयं को एक भयानक रूप में परिवर्तित (महाकाली का अवतार) कर लिया। जिसे देख भगवान शिव भागने को उद्यत हुए। अपने पति को डरा हुआ जानकर माता सती उन्हें रोकने लगीं तो शिव जिस दिशा में गये उस दिशा में माँ का एक अन्य विग्रह प्रकट होकर उन्हें रोकता है। इस प्रकार दसों दिशाओं में माँ ने वे दस रूप लिए थे वे ही दस महाविद्याएँ कहलाईं। इस प्रकार देवी दस रूपों में विभाजित हो गयीं जिनसे वह शिव के विरोध को हराकर यज्ञ में भाग लेने गयीं। वहाँ पहुँचने के बाद माता सती एवं उनके पिता के बीच विवाद हुआ। दक्ष प्रजापति ने शिव की निंदा की और सती ने यज्ञ कुंड में प्राणों की आहुति दे दी। सन्दर्भ संपादित करें दसमहाविद्या उपासना ट्रस्ट इन्हें भी देखें संपादित करें त्रिपुरसुन्दरी तारा संवाद Last edited 6 months ago by हिमांशु करगेती RELATED PAGES सती शक्ति पीठ नैना देवी मंदिर, नैनीताल भारत का गाँव सामग्री CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उल्लेख ना किया गया हो। गोपनीयताडेस्कटॉप

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