Friday, 19 January 2018

मन्त्रज्योतिष पद्धति

maakrishnaambara Friday, 20 April 2012 मन्त्रज्योतिष पद्धति से कुंडली दोष का निवारण  इस पद्धति से जातक व जातिकाओं की जन्म कुंडली के विषय में चर्चा करे तो सरल एवं सहजता से कुंडलियो में जो दोष है उसका निदान हो पाना संभव है क्यों की मंत्र निम्न प्रकार के होते हैं !जैसे वैदिक मंत्र,जप मन्त्र,तांत्रिक मंत्र, निर्वाण मंत्र,बीज मंत्र,जाग्रति मंत्र, कुरु कुल्लुका मंत्र , उत्किलक मंत्र,विद्या मंत्र, सेतु मंत्र, पंचदशी मंत्र, शाबर मंत्र तथा खड्ग मालामंत्र अभी तो यही मन्त्रों की जानकारी प्राप्त हुई हैं !  इन सभी मन्त्रों का अपना अपना महत्त्व है इन मंत्रो का उपयोग से देवीय अनुष्ठान से प्राप्त सिद्धि से सभी कार्य होते हैं! पर आपकी कुंडली में कौन सा दोष है उसके लिए कौन से मंत्र की दीक्षा लेनी होगी और उस मंत्र के संस्कार से मंत्र को चेतना मिलती है जिसे जप ने वाला साधक जप मात्र में सुख शांति और उद्देश्य की पूर्ति करने में देर नहीं करता है!          ज्योतिष सिद्धांत से इन सभी मंत्रो को गुप्त रखा गया है मंत्र उजागर न करते हुए आपको कुछ जानकारी मिल सकती है! चारों वर्णों की अलग अलग व्यवस्थाओं के अनुसार से इन मंत्रो का प्रयोग किया जा सकता है! आपको मंत्रो की निम्न जानकारी मिल रही है! गुरु जी से दीक्षा ग्रहण करने के बाद दीक्षित साधक को चाहिए की वह अपने इष्ट देवता के मंत्र की साधना यथा विधि करे मंत्र की साधना करने के पहले उसे मंत्र का संस्कार कर्म करना चाहिए मंत्र के दस संस्कार होते हैं जिनके नाम ये हैं- १ जनन, २ दीपन, ३ बोधन,४ ताडन,५ अभिषेक, ६ विमलीकरण, ७ जीवन, ८ तर्पण,९ गोपल और १० आप्यायन! इन संस्कारों की अलग अलग विधियाँ होती है जो मंत्र को शक्ति प्रदान करते हैं ! वैदिक मंत्र- जब वैदिक परम्परा को आरम्भ करने से पहले ब्राह्मण बालक को यज्ञोंपवित संस्कार किया जाता है इसमें वेदाध्ययन की दीक्षा दी जाती है! यह वैदिक मंत्र ज्ञान कांड ,कर्म कांड और उपासना काण्ड से सम्बन्ध रखता है! इसीलिए इन मंत्र  से ब्राह्मण स्वाध्याय  करके  खुदका और अपने यजमानो का उद्धार करते हैं! जप मंत्र - ये मंत्र इष्ट सिद्धि देने वाले होते हैं ये मंत्र  गुरु द्वारा दीक्षा लेने से  जप मंत्र  दीक्षा पूर्ण होती है ! ये तीन अक्षर से लेकर १०० अक्षर तक के मंत्रो की संख्या वाले मन्त्र को जप मंत्र कहते हैं! इन मंत्रो के अक्षर की जीतनी संख्या होती है उतने लक्ष (लाख) जप करने से इष्ट सिद्धि को प्राप्त करते हैं!  तांत्रिक मंत्र - इन मंत्र की साधना में कुछ नियम लागू होते हैं और इनके अनुष्ठान में दिन वार शुभ मुहूर्त में आरम्भ  करने से तंत्र के षडकर्मों की सिद्धि मिलती है ! ये  मंत्र  के देवता  गण,राक्षस,भैरव,रति  और नाग होते हैं यही देवताओं की सहायता से शांति,पुष्टि,आकर्षण,वशीकरण,उच्चाटन,विद्वेषण तथा मारण आदि कर्मों के लिए सिद्धि देने में सहायक होते हैं इनका अनुष्ठान कठिन होता है ये कम से कम ५ से ६ बार अनुष्ठान करने में सफलता मिलती है ये साधना भागवान महादेव शिव द्वारा महापंडित लंकेश्वेर रावण रचित उद्दिश तंत्र से सम्बन्ध रखती है ! मंत्रनिर्वाण:- मंत्रमहार्णव तथा महानिर्वाण ये दो महा संग्रह माता पार्वती द्वारा रचित तंत्र में मन्त्र के संस्कार कर्म यन्त्र निर्माण पद्धति और स्वाध्याय मंत्र दीक्षा और इसके अलावा भी कई जानकारी मिलती है !यहाँ एक बात और स्पष्ट  होती है की ये तंत्र सागर का एक अंग कहा गया है! बीज मंत्र:-  श्रीदुर्गासप्तशती गुप्तटीकाकार  में ७०० श्लोक के बीजाक्षर मंत्र दिए गए हैं ये कुंजिका स्त्रोत का अंग भी कह सकते हैं ये बीजाक्षर वास्तविक नवग्रह के बीज मंत्र तथा मंत्र महोदधि में बीजाक्षर के अन्य प्रयोग से सम्बन्ध रखते हैं! जाग्रति मंत्र:- दशमहाविद्या तंत्र में जागृति मंत्र बहुत उपयोगी मानते हैं ये मंत्र के ज्ञाता स्वयं भगवान वटुक भैरव हैं एक-एक विद्या के जागृति मंत्र का प्रयोग  और भूपुर निर्माण विधि सलग्न हैं ! कुरु कुल्लुका मंत्र:- ये भी दशमहाविद्या तंत्र से सम्बन्ध रखता है ये कुरुकुल्लुका मंत्र जप करने से साधक को मंत्र जाप का शुभ फल मिलता है और शारीरिक दुष्प्रभावों को दूर करता हैं! विद्यामंत्र:- ये मंत्र अग्नि पुराण और तन्त्रसागर में कई प्रकार के इस मन्त्र को जाना जाता हैं जैसे महाविद्या,श्रीविद्या,शाम्भवीविद्या,अपराजिताविद्या,अमृतीकरण,मृतसंजीवनी विद्या,परा-अपराविद्या,गारुडी विद्या ,खेचरिविद्या,मंत्रपरिजातविद्या,ज्वालामुखी,कर्कटी,पंचविंशतीविद्या,महामाया विद्या और मंदार विद्या  आदि इसी प्रकार से कई नामों से जानी जाती है! पंचदशी मंत्र:-ये केवल त्रिपुरा सुन्दरी कल्प का एक अंग है इस मंत्र का प्रयोग पन्द्रह हिया यंत्र निर्माण के करने के काम आता है! उत्किलक मंत्र:-दुर्गाशप्तशती  में उत्कीलन मंत्र का प्रयोग मिलता हैं और इसके आलावा भी दशमहाविद्या के मंत्रो में मिलता है और प्रत्येक विद्या मे इसी मंत्र का प्रयोग किया जाता है! सेतु मंत्र :- केवल एक अक्षर जो ब्रह्म बीज मंत्र ॐ  इसे मंत्र से सेतु कहते हैं !इस मंत्र दूसरा पहलु यह है की जिस विद्या की साधना करते हैं उसके मंत्र का प्रणव बीज का ही प्रयोग मंत्र सेतु कहलाता है ! शाबर मंत्र:-ये मंत्र गुरु गोरक्षनाथ जी द्वारा रचित शाबर मंत्र में कई कामनाओं की सिद्धि प्रदान करता है ! खड्ग मालामंत्र:-ये मालामंत्र दशमहाविद्या और गुरुदात्तात्रेय माला मंत्र हैं जो तंत्र के सम्पूर्ण विधि को एक साथ किया जाता है ! श्रीगौड़ शुक्ल अवंतिका तीर्थ पुरोहित पंडित कृष्णेश शुक्ल at 10:33 Share No comments: Post a Comment ‹ › Home View web version About Me श्रीगौड़ शुक्ल अवंतिका तीर्थ पुरोहित पंडित कृष्णेश शुक्ल View my complete profile Powered by Blogger.

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