Wednesday, 24 January 2018
- ब्रह्मास्त्र मंत्र माला -
सिद्धनाथ औघड़
( परिचय - intro mantra - tantra and occultism world ) मेरे तंत्र मंत्र जगत के साधक मित्रो,आप सब के जानकारी हेतु मै एक स्वयं तंत्र मंत्र उद्भट्ट विद्वानों के सानिध्य के माध्यम से आप के कष्ट निवारण हेतु एवं समाज कल्याण हेतु इस माध्यम का निर्माण कर , साधक मित्रो में एक विलक्षण मंत्र जगाने हेतु प्रयास के चलते अपने हिन्दू धर्म के मंत्रो एवं तंत्रों का खुलासा समय- समय पर जिज्ञासा हेतु किया जायेगा ..!
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- ब्रह्मास्त्र मंत्र माला -
जय महाकाल -
Bramha Astra Mantra
https://mantraparalaukik.blogspot.in/
मित्रो जिस तरह इस मंत्र की पहचान एक ब्रम्हास्त्र हैं ठीक उसी प्रकार इसका कार्य भी अस्त्र की तरह ही हैं इस
जब यह अस्त्र शुरू होता हैं तो , इस को रोकना भी नामुमकिन हो जाता हैं अगर कोई इसे रोकने की कोशिश करता हैं , तो वोह उसका भी विनाश कर देता हैं। . तो मित्रो इस मंत्र माला का प्रयोग करने से पहले एक बार अवश्य सोच लीजियेगा। .. किसी का अहित सोचना अथवा अहित करना महापाप का भागीदार बनने जैसा हैं। ..
- ब्रह्मास्त्र मंत्र माला -
ॐ नमो भगवति चामुण्डे नरकंकगृधोलूक परिवार सहिते श्मशानप्रिये नररूधिर मांस चरू भोजन प्रिये सिद्ध विद्याधर वृन्द वन्दित चरणे ब्रह्मेश विष्णु वरूण कुबेर भैरवी भैरवप्रिये इन्द्रक्रोध विनिर्गत शरीरे द्वादशादित्य चण्डप्रभे अस्थि मुण्ड कपाल मालाभरणे शीघ्रं दक्षिण दिशि आगच्छागच्छ मानय-मानय नुद-नुद अमुकं (अपने शत्रु का नाम लें ) मारय-मारय, चूर्णय-चूर्णय, आवेशयावेशय त्रुट-त्रुट, त्रोटय-त्रोटय स्फुट-स्फुट स्फोटय-स्फोटय महाभूतान जृम्भय-जृम्भय ब्रह्मराक्षसान-उच्चाटयोच्चाटय भूत प्रेत पिशाचान् मूर्च्छय-मूर्च्छय मम शत्रून् उच्चाटयोच्चाटय शत्रून् चूर्णय-चूर्णय सत्यं कथय-कथय वृक्षेभ्यः सन्नाशय-सन्नाशय अर्कं स्तम्भय-स्तम्भय गरूड़ पक्षपातेन विषं निर्विषं कुरू-कुरू लीलांगालय वृक्षेभ्यः परिपातय-परिपातय शैलकाननमहीं मर्दय-मर्दय मुखं उत्पाटयोत्पाटय पात्रं पूरय-पूरय भूत भविष्यं तय्सर्वं कथय-कथय कृन्त-कृन्त दह-दह पच-पच मथ-मथ प्रमथ-प्रमथ घर्घर-घर्घर ग्रासय-ग्रासय विद्रावय – विद्रावय उच्चाटयोच्चाटय विष्णु चक्रेण वरूण पाशेन इन्द्रवज्रेण ज्वरं नाशय नाशय प्रविदं स्फोटय-स्फोटय सर्व शत्रुन् मम वशं कुरू-कुरू पातालं पृत्यंतरिक्षं आकाशग्रहं आनयानय करालि विकरालि महाकालि रूद्रशक्ते पूर्व दिशं निरोधय-निरोधय पश्चिम दिशं स्तम्भय-स्तम्भय दक्षिण दिशं निधय-निधय उत्तर दिशं बन्धय-बन्धय ह्रां ह्रीं ॐ बंधय-बंधय ज्वालामालिनी स्तम्भिनी मोहिनी मुकुट विचित्र कुण्डल नागादि वासुकी कृतहार भूषणे मेखला चन्द्रार्कहास प्रभंजने विद्युत्स्फुरित सकाश साट्टहासे निलय-निलय हुं फट्-फट् विजृम्भित शरीरे सप्तद्वीपकृते ब्रह्माण्ड विस्तारित स्तनयुगले असिमुसल परशुतोमरक्षुरिपाशहलेषु वीरान शमय-शमय सहस्रबाहु परापरादि शक्ति विष्णु शरीरे शंकर हृदयेश्वरी बगलामुखी सर्व दुष्टान् विनाशय-विनाशय हुं फट् स्वाहा। ॐ ह्ल्रीं बगलामुखि ये केचनापकारिणः सन्ति तेषां वाचं मुखं पदं स्तम्भय-स्तम्भय जिह्वां कीलय – कीलय बुद्धिं विनाशय-विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा । ॐ ह्रीं ह्रीं हिली-हिली अमुकस्य (शत्रु का नाम लें) वाचं मुखं पदं स्तम्भय शत्रुं जिह्वां कीलय शत्रुणां दृष्टि मुष्टि गति मति दंत तालु जिह्वां बंधय-बंधय मारय-मारय शोषय-शोषय हुं फट् स्वाहा।।
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ईमेल - gurushiromani23@gmail.com
संपर्क - 09207 283 275 / 098464 18100
guru dasshiromani
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