Thursday, 11 January 2018

शनि देव

Phonetic Go  देवनागरी खोज शनि देव   शनि एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- शनि (बहुविकल्पी) शनि देव शनि देव हिन्दू धर्म में पूजे जाने वाले प्रमुख देवताओं में से एक हैं। यह माना जाता है कि शनि देव मनुष्य को उसके पाप और बुरे कार्यों आदि का दण्ड प्रदान करते हैं। इनकी शरीर-कान्ति इन्द्रलीलमणि के समान है। सिर पर स्वर्ण मुकुट, गले में माला तथा शरीर पर नीले रंग के वस्त्र सुशोभित हैं। शनि देव गिद्ध पर सवार रहते हैं। हाथों में क्रमश: धनुष, बाण, त्रिशूल और वरमुद्रा धारण करते हैं। परिचय शनिदेव का जन्म ज्येष्ठ माह की कृष्ण अमावस्या के दिन हुआ था। सूर्य के अन्य पुत्रों की अपेक्षा शनि शुरू से ही विपरीत स्वभाव के थे। शनि भगवान सूर्य तथा छाया (संवर्णा) के पुत्र हैं। ये क्रूर ग्रह माने जाते हैं। इनकी दृष्टि में जो क्रूरता है, वह इनकी पत्नी के शाप के कारण है। 'शनिधाम' कोकिलावन के महंत प्रेमदास महाराज के अनुसार जब शनि देव का जन्म हुआ तो उनकी दृष्टि पिता पर पड़ते ही सूर्य को कुष्ठ रोग हो गया। धीरे-धीरे शनि देव का पिता से मतभेद होने लगा। सूर्य चाहते थे कि शनि अच्छा कार्य करें, मगर उन्हें हमेशा निराश होना पड़ा। संतानों के योग्य होने पर सूर्य ने प्रत्येक संतान के लिए अलग-अलग लोक की व्यवस्था की, मगर शनि देव अपने लोक से संतुष्ट नहीं हुए। उसी समय शनि ने समस्त लोकों पर आक्रमण की योजना बना डाली। ब्रह्म पुराण में शनि कथा ब्रह्म पुराण में शनि की कथा इस प्रकार आयी है- बचपन से ही शनि भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त थे। वे श्रीकृष्ण के अनुराग में निमग्न रहा करते थे। वयस्क होने पर इनके पिता ने चित्ररथ की कन्या से इनका विवाह कर दिया था। इनकी पत्नी सती, साध्वी और परम तेजस्विनी थी। एक रात वह ऋतु स्नान करके पुत्र प्राप्ति की इच्छा से शनि के पास पहुँची, पर यह श्रीकृष्ण के ध्यान में निमग्न थे। इन्हें बाह्य संसार की सुध ही नहीं थी। पत्नी प्रतीक्षा करके थक गयी। उसका ऋतुकाल निष्फल हो गया। इसलिये उसने क्रुद्ध होकर शनि देव को शाप दे दिया कि आज से जिसे तुम देख लोगे, वह नष्ट हो जायगा। ध्यान टूटने पर शनि देव ने अपनी पत्नी को मनाया। पत्नी को भी अपनी भूल पर पश्चात्ताप हुआ, किन्तु शाप के प्रतिकार की शक्ति उसमें न थी, तभी से शनि देवता अपना सिर नीचा करके रहने लगे। क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि इनके द्वारा किसी का अनिष्ट हो। शनि के अधिदेवता शनि के अधिदेवता प्रजापति ब्रह्मा और प्रत्यधिदेवता यम हैं। इनका वर्ण कृष्ण, वाहन गिद्ध तथा रथ लोहे का बना हुआ है। यह एक-एक राशि में तीस-तीस महीने तक रहते हैं। यह मकर और कुम्भ राशि के स्वामी हैं तथा इनकी महादशा 19 वर्ष की होती है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शनि ग्रह यदि कहीं रोहिणी-शकट भेदन कर दे तो पृथ्वी पर बारह वर्ष घोर दुर्भिक्ष पड़ जाये और प्राणियों का बचना ही कठिन हो जाय। शनि ग्रह जब आने वाला था, तब ज्योतिषियों ने महाराज दशरथ से बताया कि यदि शनि का योग आ जायगा तो प्रजा अन्न-जल के बिना तड़प-तड़प कर मर जाएगी। प्रजा को इस कष्ट से बचाने के लिये महाराज दशरथ अपने रथ पर सवार होकर नक्षत्र मण्डल में पहुँचे। पहले तो महाराज दशरथ ने शनि देवता को नित्य की भाँति प्रणाम किया और बाद में क्षत्रिय-धर्म के अनुसार उनसे युद्ध करते हुए उन पर संहारास्त्र का संधान किया। शनि देवता महाराज की कर्तव्यनिष्ठा से परम प्रसन्न हुए और उनसे वर माँगने के लिये कहा। महाराज दशरथ ने वर माँगा कि जब तक सूर्य, नक्षत्र आदि विद्यमान हैं, तब तक आप शकट भेदन न करें। शनिदेव ने उन्हें वर देकर संतुष्ट कर दिया। दंडाधिकारी सूर्य देव के कहने पर भगवान शिव ने शनि को बहुत समझाया, मगर वह नहीं माने। उनकी मनमानी पर भगवान शिव ने शनि को दंडित करने का निश्चय किया और दोनों में घनघोर युद्ध हुआ। भगवान शिव के प्रहार से शनिदेव अचेत हो गए, तब सूर्य का पुत्र मोह जगा और उन्होंने शिव से पुत्र के जीवन की प्रार्थना की। तत्पश्चात् शिव ने शनि को दंडाधिकारी बना दिया। शनि न्यायाधीश की भाँति जीवों को दंड देकर भगवान शिव का सहयोग करने लगे। एक बार पिप्पलाद मुनि की बाल्यावस्था में ही उनके पिता का देहावसान हो गया। बड़े होने पर उनको ज्ञात हुआ कि उनकी पिता की मृत्यु का कारण शनि है तो उन्होंने शनि पर ब्रह्मदंड का संधान किया। उनके प्रहार सहने में असमर्थ शनि भागने लगे। विकलांग होकर शनि भगवान शिव से प्रार्थना करने लगे। भगवान शिव ने प्रकट होकर पिप्पलाद मुनि को बोध कराया कि शनि तो केवल सृष्टि नियमों का पालन करते हैं। यह जानकर पिप्पलाद ने शनि को क्षमा कर दिया। महत्त्वपूर्ण तथ्य शनि देव के विषय में यह कहा जाता है कि- शनिदेव के कारण गणेश जी का सिर छेदन हुआ। शनिदेव के कारण राम जी को वनवास हुआ था। रावण का संहार शनिदेव के कारण हुआ था। शनिदेव के कारण पांडवों को राज्य से भटकना पड़ा। शनि के क्रोध के कारण विक्रमादित्य जैसे राजा को कष्ट झेलना पड़ा। शनिदेव के कारण राजा हरिशचंद्र को दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी। राजा नल और उनकी रानी दमयंती को जीवन में कई कष्टों का सामना करना पड़ा था। शान्ति के उपाय इनकी शान्ति के लिये मृत्युंजय जप, नीलम-धारण तथा ब्राह्मण को तिल, उड़द, भैंस, लोहा, तेल, काला वस्त्र, नीलम, काली गौ, जूता, कस्तूरी और सुवर्ण का दान देना चाहिये। जप का वैदिक मन्त्र इनके जप का वैदिक मन्त्र- ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्त्रवन्तु न:॥', पौराणिक मन्त्र पौराणिक मन्त्र- 'नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्। छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामी शनैश्चरम्॥' बीज मन्त्र बीज मन्त्र - 'ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:।' सामान्य मन्त्र सामान्य मन्त्र - 'ॐ शं शनैश्चराय नम:' है। इनमें से किसी एक का श्रद्धानुसार नित्य एक निश्चित संख्या में जप करना चाहिये। जप का समय सन्ध्या काल तथा कुल संख्या 23,000 होनी चाहिये। पन्ने की प्रगति अवस्था आधार प्रारम्भिक माध्यमिक पूर्णता शोध संबंधित लेख [छिपाएँ] देखें • वार्ता • बदलें हिन्दू देवी देवता और अवतार देवी उमा · शैलपुत्री · ब्रह्मचारिणी· चंद्रघंटा· कूष्माण्डा · स्कन्दमाता ·कात्यायनी · कालरात्रि · महागौरी · सिद्धिदात्री · काली· गायत्री · गौरी · दुर्गा · पार्वती · पृथ्वी · लक्ष्मी · सरस्वती · वाग्देवी · अन्नपूर्णा देवी· स्वाहा · तारा · नियति · अम्बिका देवी · चंडी · उग्रतारा · योगमाया · सावित्री · संतोषी · गांधारी · शाकम्भरी · चामुंडा · ऋद्धि सिद्धि · गौरी देवी · राधा देवता अग्निदेव · गणदेवता · अरुण · अश्विनीकुमार · आदित्य · इन्द्र · कामदेव · कार्तिकेय · गणेश · गरुड़ · पंचब्रह्म · चंद्र · विश्वेदेव · आदित्यगण · चित्रगुप्त · त्रित · बलराम · बुध · पंचदेव · ब्रह्मा · भैरव · मंगल · महादेव · महेश · मुरुगन · ग्रामणी · यमराज · सूर्य · शिव · शनि · हनुमान · चीरवासा · विभु · प्रजापति · भैरव · वरुण · वायु · विष्णु · सोम देव अज · प्रभाकर · घृतार्चि · सुषेण अवतार कल्कि · कूर्म · कृष्ण · बुद्ध · नृसिंह · परशुराम · मत्स्य · राम · वराह · वामन · हयग्रीव · जगन्नाथ वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज अ   आ    इ    ई    उ    ऊ    ए    ऐ    ओ   औ    अं    क   ख    ग    घ    ङ    च    छ    ज    झ    ञ    ट    ठ    ड   ढ    ण    त    थ    द    ध    न    प    फ    ब    भ    म    य    र    ल    व    श    ष    स    ह    क्ष    त्र    ज्ञ    ऋ    ॠ    ऑ    श्र   अः श्रेणियाँ: प्रारम्भिक अवस्थाहिन्दू देवी-देवताभारतीय ज्योतिषग्रह-नक्षत्र ज्योतिषपौराणिक कोशप्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश To the top गणराज्य इतिहास पर्यटन साहित्य धर्म संस्कृति दर्शन कला भूगोल विज्ञान खेल सभी विषय भारतकोश सम्पादकीय भारतकोश कॅलण्डर सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी ब्लॉग संपर्क करें योगदान करें भारतकोश के बारे में अस्वीकरण भारतखोज ब्रज डिस्कवरी © 2018 सर्वाधिकार सुरक्षित भारतकोश

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