Wednesday, 3 January 2018

 श्री नीलकंठ गिरी जी

  श्री ज्योतिर्मणि पीठ ! मणिकूट - नीलकण्ठ पोस्ट :- नीलकण्ठ महादेव, जिला- पौड़ी गढ़वाल उत्तराखण्ड, 249304 (भारत) Email:- info@shripeeth.in                            मुखपृष्ठ श्री पीठ संपर्क करें जानकारी साधनायें साधना शिविर पूजा विधियां देवभूमि उत्तराखण्ड विचित्र बाजार विविध Join Us  श्रीविद्या के बारे में श्रीविद्या की अधिष्ठात्री देवी गुप्तगायत्री श्रीविद्या की उत्पत्ति व विस्तार श्रीविद्या के सम्प्रदाय व कुल श्रीविद्या साधना के भेद श्रीविद्या पूर्णाभिषेक दीक्षा श्रीविद्या क्रमदीक्षा क्या है ? श्रीविद्या या महाविद्या साधना ? श्रीविद्या साधना शाम्भवी साधना श्रीविद्या हृदयस्थ साधना श्री विद्या से मोक्ष का परमसत्य श्रीविद्या के नाम पर मोक्ष का भ्रम दीक्षा क्या होती है ? साधक के लक्षण व योग्यताएं मन की शक्ति व पूर्वाभास साधना हमारा उद्देश्य चलचित्र संग्रह Join Us         श्री ज्योतिर्मणि महायोगमुद्रा पीठ ! या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः । माँ भगवती आप सब के जीवन को अनन्त खुशियों से परिपूर्ण करें । श्री ज्योतिर्मणि महायोगमुद्रा पीठ मंदिर उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में ऋषिकेश के राम झूला से आगे श्री नीलकंठ महादेव मंदिर से 4 किलोमीटर दूर 5500 मीटर की ऊंचाई पर मणिकूट पर्वत के उत्तुंग शिखर पर स्थित है । मणिकूट पर्वत के शिखर पर मात्र 40×60 फिट क्षेत्र के चबूतरे पर स्थित यह स्थान धर्म, आध्यात्म, साधना व प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण होने के साथ-साथ अनेकों रहस्यों व उपलब्धियों को अपने आप में समेटे हुए है । श्री ज्योतिर्मणि महायोगमुद्रा पीठ का पुराणों में सिद्ध कोट, सिद्धों का कोट, व सिद्धकूट के नाम से वर्णन किया गया है तथा स्थानीय भाषा में “मणिकूट कोठामा” के नाम से जाना जाता है, जो कि सप्तऋषियों के तपस्थल के रूप में सात शिलाओं, माता सती अनुसूया की भक्ति के रूप में गंगोदक तीर्थ कुंड, चौरासी सिद्धों के तपस्थल के रूप में अमृतोदक कुंड, देवताओं के तेज से उत्पन्न अजन्मी माँ दुर्गा के रूप में अदृश्य किन्तु शुक्ष्मता से अनुभव हो जाने वाले उर्जा के प्रवाह, व आदिदेव महादेव भगवान शिव के रूप में श्री ज्योतिर्मणि महादेव नामक शिवलिंग को प्रत्यक्ष में धारण किये हुए है । श्री ज्योतिर्मणि महायोगमुद्रा पीठ के पुनर्स्थापक ओर श्री ज्योतिर्मणि पीठ के संस्थापक श्री नीलकंठ गिरी जी महाराज का साधना व तपस्थल भी यही है । पुराणोक्त कथा के अनुसार ‘कालकूट’ नामक विष को भगवान शिव अपने कंठ में धारण कर नीलकंठ कहलाये और उस विष के प्रभाव को शांत करने के निमित्त मणिकूट पर्वत की घाटी में मणिभद्रा व चन्द्रभद्रा नदी के संगम पर स्थित बरगद की छांव तले पुर्णतः एकांत समाधिस्थ हो गए थे . तदुपरांत वहां पर साठ हजार वर्ष पर्यन्त समाधिस्थ रहने के बाद कंठस्थ विष का प्रभाव शांत होने पर भगवान शिव कैलाश प्रस्थान करने से पूर्व मणिकूट पर्वत के उत्तुंग शिखर पर आये थे जहाँ पर सभी देवी देवताओं ने समस्त जीवात्माओं के रक्षक भगवान शिव की अनेक प्रकार पूजा अर्चना व अनेकों अलंकारों से सुशोभित कर प्रार्थना की थी, तब भगवान शिव इस स्थान पर अनेकों अलंकारों से युक्त “श्री ज्योतिर्मणि” नामक स्वयंभूः शिवलिंग के रूप में विराजमान हो गए थे, इस शिवलिंग पर प्राकृतिक रूप से निर्मित यज्ञोपवीत सहित अनेकों अलंकारों को स्पष्ट अनुभव किया जा सकता है ।       Copyright © सर्वाधिकार सुरक्षित . श्री ज्योतिर्मणि पीठ !                              Terms & Conditions  |  Privacy Policy  |  Refund Policy  |  Donate Us

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