Thursday, 11 January 2018

 ध्यान का दार्शनिक पक्ष (

 All World Gayatri Pariwar 🔵 हम बदलेंगे - युग बदलेगा, हम सुधरेंगे - युग सुधरेगा Amrut Vani ( अमृतवाणी ) Aaj Ka Sadchintan (आज का सद्चिंतन)Prernadayak Prasang (प्रेरणादायक प्रसंग)Kahaniyan (कहानियां)Aadhyatam (अध्यात्म)Jivan Jine Ki Kla (जीवन जीने की कला)विचार क्रांतिAatmchintan Ke Kshan (आत्मचिंतन के क्षण)हमारी वसीयत और विरासतसुनसान के सहचरNari Jagran ( नारी जागरण )सतयुग की वापसी गायत्री और यज्ञ गायत्री विषयक शंका समाधानहमारी युग निर्माण योजना संस्मरण जो भुलाए न जा सकेंगेअन्य बुधवार, 10 जनवरी 2018 👉 ध्यान का दार्शनिक पक्ष (भाग 5)  🔶 दूसरा वाला प्रकाश का ध्यान करने के लिए जो मैंने बताया था और यह कहा था कि आप अपने मस्तिष्क में प्रकाश का ध्यान किया कीजिए। आपके मस्तिष्क में-मन में जब प्रकाश आए, तब आपको ज्ञानयोगी होना चाहिए। कर्मयोगी शरीर से, ज्ञानयोगी मस्तिष्क से। आपके मस्तिष्क के भीतर जो भी विचार आएँ निषेधात्मक नहीं, विधेयात्मक विचार आने चाहिए। अभी तो आप लोगों के मस्तिष्क में विचारों को कितनी भीड़, कितने मक्खी मच्छर, कितनी वे चीजें जो आपके किसी काम की नहीं हैं, कितने विचार, कितनी कल्पनाएँ आती रहती हैं। उनका यदि आप विश्लेषण करें तो देखेंगे कि मस्तिष्क में जाने कितने मक्खी-मच्छरों जैसे विचार भरे पड़े हैं। अभी उनमें से एक तो गुस्से का भरा था, एक कामवासना का विचार करता रहा, एक सिनेमा का विचार करता रहा। 🔷 एक यह विचार करता रहा कि मैंने लॉटरी के तीन टिकट खरीदे हैं, उसमें से तीन-तीन लाख रुपए तो मिल ही जाएँगे। उन रुपयों से क्या-क्या करूँगा? अमुक काम करूँगा, अमुक बच्चे को, अमुक को दूँगा। आदि बेसिर-पैर की सारी को सारी बातें सारे के सारे ताने-बाने बुन रहा है। इससे आपकी सारी शक्तियाँ निरर्थक होती जा रही हैं। यह सब बेकार की कल्पनाएँ हैं जिनके पीछे न कोई तारतम्य है, न वास्तविकता है और न इनसे आपको कुछ लेना-देना है। इस प्रकार की कल्पनाएँ निरर्थक और अनर्थमूलक ही होती हैं। सार्थक कल्पनाएँ अगर आपके मस्तिष्क में आई होती, क्रमबद्ध रूप से आपने विचार किया होता तो आपमें से अधिकांश व्यक्ति वाल्टेयर हो गए होते, रवीन्द्रनाथ टैगोर हो गए होते अगर आपने अपनी कल्पनाओं को क्रमबद्ध बनाया होता, दिशाबद्ध बनाया होता, उत्कृष्ट और सक्षम बनाया होता। 🔶 हमारी एक ही विशेषता है कि हम विद्वान हैं। इसलिए विद्वान हैं कि हमने अपने चिंतन की धाराओं को सीमाबद्ध-दिशाबद्ध करके रखा है। हमारा चिंतन अनावश्यक बातों में कभी भी नहीं जाता। जब कभी जाएगा, क्रमबद्ध बातों में जाएगा, दिशाबद्ध बातों में जाएगा, आदर्श बातों में जाएगा और जो संभव है उनमें जाएगा। हमारा मस्तिष्क इतना ताना-बाना बुनता है कि वह एक वास्तविकता और व्यावहारिकता पर टिका रहता है। जो अवास्तविक है, अव्यावहारिक है और जो अनावश्यक है, ऐसे सारे के सारे विचारों को हम बाहर से ही मना कर देते हैं कि-'नो एडमीशन' यहाँ नहीं आ सकते, बाहर जाइए। आपको दाखिला हमारे मस्तिष्क में नहीं मिल सकता। .... क्रमशः जारी ✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य (अमृत वाणी) Posted by Shantikunj Haridwar at जनवरी 10, 2018 Reactions:   इसे ईमेल करें इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें Facebook पर साझा करें Pinterest पर साझा करें  Labels: युग ऋषि की अमृतवाणी  नई पोस्ट पुरानी पोस्ट मुख्यपृष्ठ सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें (Atom) 👉 स्वामी विवेकानन्द जैसा पुत्र 🔶 एक बार जब स्वामी विवेकानंद अमेरिका गए थे, एक महिला ने उनसे शादी करने की इच्छा जताई. जब स्वामी विवेकानंद ने उस महिला से ये पुछा कि आप ...  मेरे बारे में  Shantikunj Haridwar  गायत्री परिवार ब्लोग जीवन जीने कि कला के, संस्कृति के आदर्श सिद्धांतों के आधार पर परिवार, समाज, राष्ट्र युग निर्माण करने वाले व्यक्तियों का संघ है। इसमे आप आध्यत्मिक और व्यवहारिक कहानिया , आलेख और युग ऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा लिखित मुख्य किताबो के अंशो से प्रेरणा पा सकते है। युग निर्माण योजना का प्रधान उद्देश्य है - विचार क्रान्ति। मूढ़ता और रूढ़ियों से ग्रस्त अनुपयोगी विचारों का ही आज सर्वत्र प्राधान्य है। आवश्यकता इस बात की है कि (१) सत्य (२) प्रेम (३) न्याय पर आधारित विवेक और तर्क से प्रभावित हमारी विचार पद्धति हो। आदर्शों को प्रधानता दी जाए और उत्कृष्ट जीवन जीने की, समाज को अधिक सुखी बनाने के लिए अधिक त्याग, बलिदान करने की स्वस्थ प्रतियोगिता एवं प्रतिस्पर्धा चल पड़े। वैयक्तिक जीवन में शुचिता-पवित्रता, सच्चरित्रता, ममता, उदारता, सहकारिता आए। सामाजिक जीवन में एकता और समता की स्थापना हो। इस संसार में एक राष्ट्र, एक धर्म, एक भाषा, एक आचार रहे; जाति और लिंग के आधार पर मनुष्य-मनुष्य के बीच कोई भेदभाव न रहे। हर व्यक्ति को योग्यता के अनुसार काम करना पड़े; आवश्यकतानुसार गुजारा मिले। धनी और निर्धन के बीच की खाई पूरी तरह पट जाए। न केवल मनुष्य मात्र को वरन् अन्य प्राणियों को भी न्याय का संरक्षण मिले। दूसरे के अधिकारों को तथा अपने कर्तव्यों को प्राथमिकता देने की प्रवृत्ति हर किसी में उगती रहे; सज्जनता और सहृदयता का वातावरण विकसित होता चला जाए, ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करने में युग निर्माण योजना प्राणपण से प्रयत्नशील है। मेरा पूरा प्रोफ़ाइल देखें कुल पेज दृश्य  21,050,661 लेबल अदभुत आश्चर्यजनक किन्तु सत्य (87) अध्यात्म (187) अन्य (62) आज का सद्चिंतन (495) आत्मचिंतन के क्षण (446) ऋषि चिंतन के सान्निध्य में (54) कहानियां (451) गायत्री और यज्ञ (29) जीवन जीने की कला (333) नवरात्रि (7) नारी जागरण (33) प्रेरणादायक प्रसंग (477) युग ऋषि की अमृतवाणी (210) युगऋषि के सन्देश (41) विचार क्रांति (182) सुख-शांति की साधना (32) हारिय न हिम्मत (29) Book शिष्य संजीवनी (66) Book हमारी युग निर्माण योजना (103) Book गहना कर्मणोगति: (30) Book गायत्री विषयक शंका समाधान (44) Book गुरुगीता (14) Book गृहस्थ योग (47) Book जीवन पथ के प्रदीप (80) Book पराक्रम और पुरुषार्थ (30) Book मैं क्या हूँ? 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