Saturday 13 January 2018

ध्यान का दार्शनिक पक्ष

 All World Gayatri Pariwar 🔵 हम बदलेंगे - युग बदलेगा, हम सुधरेंगे - युग सुधरेगा Amrut Vani ( अमृतवाणी ) Aaj Ka Sadchintan (आज का सद्चिंतन)Prernadayak Prasang (प्रेरणादायक प्रसंग)Kahaniyan (कहानियां)Aadhyatam (अध्यात्म)Jivan Jine Ki Kla (जीवन जीने की कला)विचार क्रांतिAatmchintan Ke Kshan (आत्मचिंतन के क्षण)हमारी वसीयत और विरासतसुनसान के सहचरNari Jagran ( नारी जागरण )सतयुग की वापसी गायत्री और यज्ञ गायत्री विषयक शंका समाधानहमारी युग निर्माण योजना संस्मरण जो भुलाए न जा सकेंगेअन्य शुक्रवार, 12 जनवरी 2018 👉 ध्यान का दार्शनिक पक्ष (भाग 7)  🔶 मित्रो, तीसरा वाला प्रकाश का जो ध्यान हमने बताया है, वह अंतःकरण का प्रकाश है, विश्वासों का प्रकाश है, आस्थाओं का, निष्ठाओं का, करुणा का प्रकाश है। जो चारों और प्रेम के रूप में प्रकाशित होता है। हम प्रेम के रूप में भक्तियोग कहते हैं। भक्तियोग से क्या मतलब होता है? भक्तियोग का मतलब है-मोहब्बत। जिस तरह से हम व्यायामशाला में अभ्यास करते हैं और उससे अपने शरीर और कलाइयों को मजबूत बनाते हैं और फिर उसका हर जगह इस्तेमाल करते हैं। सामान उठाने में, कपड़े धोने में, बिस्तर उठाने में करते हैं। हर जगह काम में लाते हैं-किसको? जो व्यायामशाला में ताकत इकट्ठा की थी उसको। इसी तरीके है हम भगवान के साथ मोहब्बत शुरू करते हैं, प्यार शुरू करते हैं, भक्ति करते हैं। 🔷 भगवान की भक्ति के माध्यम से जो हम ताकत इकट्ठा करते हैं, उस मोहब्बत को हर जगह फैल जाना चाहिए। हम अपने शरीर को मोहब्बत करें ताकि इसको हम अस्त-व्यस्त न होने दें, नष्ट-भ्रष्ट न होने दें। हम अपने शरीर को प्यार करें ताकि वह नीरोग होकर के दीर्घजीवी बन सके। यह हमारा शरीर के प्रति प्यार है। यह भक्ति है शरीर के प्रति भगवान की। मन के प्रति हमारी भक्ति यह है कि हम पागलों के तरीके से अपने मन-मस्तिष्क को खराब न कर दें। यह देवमन्दिर है और इतना सुंदर मन्दिर है कि हमारे विचारों की क्षमता सूर्य की क्षमता के बराबर है। इसको हम असंतुष्टि न होने दें ।। हम अपने आप से प्यार करें। अपनी जीवात्मा से प्यार करें। 🔶 जीवात्मा ! जीवात्मा की तो हमने इतनी उपेक्षा की है कि यह बिचारी कराहती रहती है और यह पूछती रहती है कि दोस्त हमारा क्या होना है? बेटे हमारा क्या होना है? यह पूछते-पूछते वह बूढ़ी हो गई। बुढ़िया पूछती रहती है कि बेटा हमारा भी कुछ होना है क्या? और आप कहते रहते हैं कि अरे बुढ़िया तू तो मरने वाली? तेरा तो यही बद्रीनाथ है तू कहीं मत जा यहीं पड़ी रह। यह बुढ़िया जो है हमारी जीवात्मा है और यह ऐसी ही कसकती-कराहती रहती है। वह अंधी हो गई है, आँखों से दिखाई नहीं पड़ता जीवात्मा को। अपनी जीवात्मा से यदि हमें प्यार रहा होता तो बेटे वह जवान हो गई होती। जीवात्मा से मोहब्बत अगर हमें होती तो वह इतनी प्रचंड और प्रखर हो गई होती कि हम साक्षात भगवान के रूप में काम आते। पर हमारी जीवात्मा मर गई, क्योंकि हम उससे प्यार नहीं करते। .... क्रमशः जारी ✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य (अमृत वाणी) Posted by Shantikunj Haridwar at जनवरी 12, 2018 Reactions:   इसे ईमेल करें इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें Facebook पर साझा करें Pinterest पर साझा करें  Labels: युग ऋषि की अमृतवाणी  नई पोस्ट पुरानी पोस्ट मुख्यपृष्ठ सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें (Atom) 👉 नन्हीं चिड़िया 🔶 बहुत समय पुरानी बात है, एक बहुत घना जंगल हुआ करता था। एक बार किन्हीं कारणों से पूरे जंगल में भीषण आग लग गयी| सभी जानवर देख के डर रहे ...  मेरे बारे में  Shantikunj Haridwar  गायत्री परिवार ब्लोग जीवन जीने कि कला के, संस्कृति के आदर्श सिद्धांतों के आधार पर परिवार, समाज, राष्ट्र युग निर्माण करने वाले व्यक्तियों का संघ है। इसमे आप आध्यत्मिक और व्यवहारिक कहानिया , आलेख और युग ऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा लिखित मुख्य किताबो के अंशो से प्रेरणा पा सकते है। युग निर्माण योजना का प्रधान उद्देश्य है - विचार क्रान्ति। मूढ़ता और रूढ़ियों से ग्रस्त अनुपयोगी विचारों का ही आज सर्वत्र प्राधान्य है। आवश्यकता इस बात की है कि (१) सत्य (२) प्रेम (३) न्याय पर आधारित विवेक और तर्क से प्रभावित हमारी विचार पद्धति हो। आदर्शों को प्रधानता दी जाए और उत्कृष्ट जीवन जीने की, समाज को अधिक सुखी बनाने के लिए अधिक त्याग, बलिदान करने की स्वस्थ प्रतियोगिता एवं प्रतिस्पर्धा चल पड़े। वैयक्तिक जीवन में शुचिता-पवित्रता, सच्चरित्रता, ममता, उदारता, सहकारिता आए। सामाजिक जीवन में एकता और समता की स्थापना हो। इस संसार में एक राष्ट्र, एक धर्म, एक भाषा, एक आचार रहे; जाति और लिंग के आधार पर मनुष्य-मनुष्य के बीच कोई भेदभाव न रहे। हर व्यक्ति को योग्यता के अनुसार काम करना पड़े; आवश्यकतानुसार गुजारा मिले। धनी और निर्धन के बीच की खाई पूरी तरह पट जाए। न केवल मनुष्य मात्र को वरन् अन्य प्राणियों को भी न्याय का संरक्षण मिले। दूसरे के अधिकारों को तथा अपने कर्तव्यों को प्राथमिकता देने की प्रवृत्ति हर किसी में उगती रहे; सज्जनता और सहृदयता का वातावरण विकसित होता चला जाए, ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करने में युग निर्माण योजना प्राणपण से प्रयत्नशील है। मेरा पूरा प्रोफ़ाइल देखें कुल पेज दृश्य  21,077,116 लेबल अदभुत आश्चर्यजनक किन्तु सत्य (87) अध्यात्म (188) अन्य (62) आज का सद्चिंतन (497) आत्मचिंतन के क्षण (447) ऋषि चिंतन के सान्निध्य में (54) कहानियां (454) गायत्री और यज्ञ (29) जीवन जीने की कला (333) नवरात्रि (7) नारी जागरण (33) प्रेरणादायक प्रसंग (479) युग ऋषि की अमृतवाणी (212) युगऋषि के सन्देश (41) विचार क्रांति (183) सुख-शांति की साधना (34) हारिय न हिम्मत (29) Book शिष्य संजीवनी (66) Book हमारी युग निर्माण योजना (103) Book गहना कर्मणोगति: (30) Book गायत्री विषयक शंका समाधान (44) Book गुरुगीता (16) Book गृहस्थ योग (47) Book जीवन पथ के प्रदीप (80) Book पराक्रम और पुरुषार्थ (30) Book मैं क्या हूँ? 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