Wednesday, 3 January 2018
त्र्यक्षर- ी(3) मंत्र- 'ॐ जूं सः'।


महामृत्युञ्जय मंत्र शिव की स्तुति
By: Manish Kanodia
महामृत्युञ- ्जय मन्त्र:-
==========- =======
महामृत्�¤- �ुञ्जय मंत्र यजुर्वेद के रूद्र अध्याय स्थित एक मंत्र है। इसमें शिव की स्तुति की गयी है। शिव को 'मृत्यु को जीतने वाला' माना जाता है। मंत्र इस प्रकार है -
ॐ त्र्यम्बकं- यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्ध- नम्।
उर्वार- ुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मु- क्षीय मामृतात्॥
म- हामृत्युंज- य मंत्र ( संस्कृत: महामृत्युं- जय मंत्र"मृत्�¤- �ु को जीतने वाला महान मंत्र") जिसे त्रयंबकम मंत्र) भी कहा जाता है, ऋग्वेद का एक श्लोक है (RV 7.59.12). यह त्रयंबक "त्रिनेत्र�¥- �ं वाला", रुद्र का विशेषण जिसे बाद में शिव के साथ जोड़ा गया, को संबोधित है.
यह श्लोक यजुर्वेद (TS 1.8.6.i; VS 3.60) में भी आता है.
गायत्री मंत्र के साथ यह समकालीन हिंदू धर्म का सबसे व्यापक रूप से जाना जाने वाला मंत्र है.
शिव को मृत्युंजय के रूप में समर्पित महान मंत्र ऋग्वेद में पाया जाता है.
इसे मृत्यु पर विजय पाने वाला महा मृत्युंजय मंत्र कहा जाता है. इस मंत्र के कई नाम और रूप हैं. इसे शिव के उग्र पहलू की ओर संकेत करते हुए रुद्र मंत्र कहा जाता है; शिव के तीन आँखों की ओर इशारा करते हुए त्रयंबकम मंत्र, और इसे कभी कभी मृत-संजीवन�¥- € मंत्र के रूप में जाना जाता है क्योंकि यह कठोर तपस्या पूरी करने के बाद पुरातन ऋषि शुक्र को प्रदान की गई "जीवन बहाल" करने वाली विद्या का एक घटक है.
ऋषि-मुनिà- ��ों ने महा मृत्युंजय मंत्र को वेद का ह्रदय कहा है. चिंतन और ध्यान के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले अनेक मंत्रों में गायत्री मंत्र के साथ इस मंत्र का सर्वोच्च स्थान है.
महा मृत्युंजय मंत्र का अक्षरशः अर्थ
त्रयंब- कम = त्रि-नेत्र�¥- �ं वाला (कर्मकारक)
यà- ��ामहे = हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं, हमारे श्रद्देय
सु- गंधिम= मीठी महक वाला, सुगंधित (कर्मकारक)
पà- ��ष्टि = एक सुपोषित स्थिति,फलन�¥- ‡-फूलने वाली, समृद्ध जीवन की परिपूर्णता-
वर्धनम = वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है, (स्वास्थ्य, धन, सुख में) वृद्धिकारक- ; जो हर्षित करता है, आनन्दित करता है, और स्वास्थ्य प्रदान करता है, एक अच्छा माली
उर्वार- ुकम= ककड़ी (कर्मकारक)
इà- �µ= जैसे, इस तरह
बंधना= तना (लौकी का); ("तने से" पंचम विभक्ति - वास्तव में समाप्ति -द से अधिक लंबी है जो संधि के माध्यम से न/अनुस्वार में परिवर्तित होती है)
मृत्युर = मृत्यु से
मुक्षिया- = हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें
मा= न
अमृतात= अमरता, मोक्ष
सरल अनुवाद
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हम त्रि-नेत्र�¥- �य वास्तविकता- का चिंतन करते हैं जो जीवन की मधुर परिपूर्णता- को पोषित करता है और वृद्धि करता है. ककड़ी की तरह हम इसके तने से अलग ("मुक्त") हों, अमरत्व से नहीं बल्कि मृत्यु से हों.
महामृत�¥- �युंजय मंत्र का प्रभाव
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बड़ी तपस्या से ऋषि मृकण्ड के पुत्र हुआ। कितु ज्योतिर्वि- दों ने उस शिशु के लक्षण देखकर ऋषि के हर्ष को चिंता में परिवर्तित कर दिया। उन्होंने कहा यह बालक अल्पायु है। इसकी आयु केवल बारह वर्ष है। मृकण्ड ऋषि ने अपनी पत्नी को आश्वत किया-देवी, चिंता मत करो। विधाता जीव के कर्मानुसार- ही आयु दे सकते हैं, कितु मेरे स्वामी समर्थ हैं। भाग्यलिपि को स्वेच्छानु- सार परिवर्तित कर देना भगवान शिव के लिए विनोद मात्र है। ऋषि मृकण्ड के पुत्र मार्कण्डेय- बढऩे लगे। शैशव बीता और कुमारावस्थ- ा के प्रारंभ में ही पिता ने उन्हें शिव मंत्र की दीक्षा तथा शिवार्चना की शिक्षा दी। पुत्र को उसका भविष्य बता•र समझा दिया कि पुरारि ही उसे मृत्यु से बचा सकते हैं। माता-पिता तो दिन गिन रहे थे। बारह वर्ष आज पूरे होंगे। मार्कण्डेय- मंदिर में बैठे थे। रात्रि से ही और उन्होंने मृत्युंजय मंत्र की शरण ले रखी है- त्र्यम्बक यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्ध- न्म। उर्वारुकमि- व बन्धनामृत्- येर्मुक्षी- य मामृतात्। सप्रणव बीजत्रय-सम�¥- �पुटित महामृत्युं- जय मंत्र चल रहा था। काल किसी की भी प्रतीक्षा नहीं करता। यमराज के दूत समय पर आए और संयमनी लौट गए। उन्होंने अपने स्वामी यमराज से जाकर निवेदन किया- हम मार्•ण्डेय- तक पहुंचने का साहस नहीं पाए। इस पर यमराज ने कहा कि मृकण्ड को पुत्र को मैं स्वयं लाऊंगा। दण्डधर यमराज जी महिषारूढ़ हुए और क्षण भर में मार्कण्डेय- के पास पहुंच गए। बालक मार्कण्डेय- ने उन कज्जल कृष्ण, रक्तनेत्र पाशधारी को देखा तो सम्मुख की लिंगमूर्ति- से लिपट गया। हुम्, एक अद्भुत अपूर्व हुंकार और मंदिर, दिशाएं जैसे प्रचण्ड प्रकाश से चकाचौंथ हो गईं। शिवलिंग से तेजोमय त्रिनेत्र गंगाधर चन्द्रशेखर- प्रकट हो गए थे और उन्होंने त्रिशूल उठा लिया था और यमराज से कहा कि तुम मेरे आश्रित पर पाश उठाने का साहस केसे करते हो?। यमराज ने डांट पडऩे से पूर्व ही हाथ जोडक़र मस्तक झुका लिया था और कहा कि मैं आप का सेवक हूं। कर्मानुसार- जीव को इस लोक से ले जाने का निष्ठुर कार्य प्रभु ने इस सेवक को दिया है। भगवान चंद्रशेखर ने कहा कि यह संयमनी नहीं जाएगा। इसे मैंने अमरत्व दिया है। मृत्युंजय प्रभु की आज्ञा को यमराज अस्वीकार केसे कर सकते थे? यमराज खाली हाथ लौट गए। मार्कण्डेय- ने यह देख लिया। उर्वारु•मि- व बन्धनान्मृ- त्योर्मुक्- षीय मामृतात्। वृन्तच्युत- खरबूजे के समान मृत्यु के बन्धन से छुड़ाकर मुझे अमृतत्व प्रदान करें। मंत्र के द्वारा चाहा गया वरदान उस का सम्पूर्ण रूप से उसी समय मार्कण्डेय- को प्राप्त हो गया। भाग्यलेख-व�¤- ¹ औरों के लिए अमित होगा, कितु आशुतोष के आश्रितों के लिए भाग्येलख क्या? भगवान ब्रह्मा भाग्यविधात- ा स्वयं भगवती पार्वती से कहते हैं- बावरो रावरो नाह भवानी।
महाम- ृत्युंजय मंत्र के जप व उपासना के तरीके आवश्यकता के अनुरूप होते हैं। काम्य उपासना के रूप में भी इस मंत्र का जप किया जाता है। जप के लिए अलग-अलग मंत्रों का प्रयोग होता है। मंत्र में दिए अक्षरों की संख्या से इनमें विविधता आती है। यह मंत्र निम्न प्रकार से है-
एकाक्षर�¥- €(1) मंत्र- 'हौं' ।
त्र्यक्षर- ी(3) मंत्र- 'ॐ जूं सः'।
चतुराक�¥- �षरी(4) मंत्र- 'ॐ वं जूं सः'।
नवाक्ष�¤- �ी(9) मंत्र- 'ॐ जूं सः पालय पालय'।
दशाक�¥- �षरी(10) मंत्र- 'ॐ जूं सः मां पालय पालय'।
(स्वयà- �‚ के लिए इस मंत्र का जप इसी तरह होगा जबकि किसी अन्य व्यक्ति के लिए यह जप किया जा रहा हो तो 'मां' के स्थान पर उस व्यक्ति का नाम लेना होगा)
वेदोक�¥- �त मंत्र-
महाम�¥- �त्युंजय का वेदोक्त मंत्र निम्नलिखित- है-
त्र्यम्�¤- �कं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्ध- नम्।
उर्वा- रुकमिव बन्धनान्मृ- त्योर्मुक्- षीय माऽमृतात्- ॥
इस मंत्र में 32 शब्दों का प्रयोग हुआ है और इसी मंत्र में ॐ' लगा देने से 33 शब्द हो जाते हैं। इसे 'त्रयस्त्र�¤- �शाक्षरी या तैंतीस अक्षरी मंत्र कहते हैं। श्री वशिष्ठजी ने इन 33 शब्दों के 33 देवता अर्थात् शक्तियाँ निश्चित की हैं जो कि निम्नलिखित- हैं।
इस मंत्र में 8 वसु, 11 रुद्र, 12 आदित्य 1 प्रजापति तथा 1 वषट को माना है।
मंत्र विचार :
इस मंत्र में आए प्रत्येक शब्द को स्पष्ट करना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि शब्द ही मंत्र है और मंत्र ही शक्ति है। इस मंत्र में आया प्रत्येक शब्द अपने आप में एक संपूर्ण अर्थ लिए हुए होता है और देवादि का बोध कराता है।
शब्द बोधक शब्द बोधक
'त्र' ध्रुव वसु 'यम' अध्वर वसु
'ब' सोम वसु 'कम्' वरुण
'य' वायु 'ज' अग्नि
'म' शक्ति 'हे' प्रभास
'सु' वीरभद्र 'ग' शम्भु
'न्धि�¤- ®' गिरीश 'पु' अजैक
'ष्टि' अहिर्बुध्न- ्य 'व' पिनाक
'र्ध' भवानी पति 'नम्' कापाली
'उ' दिकपति 'र्वा' स्थाणु
'रु' भर्ग 'क' धाता
'मि' अर्यमा 'व' मित्रादित्- य
'ब' वरुणादित्य- 'न्ध' अंशु
'नात' भगादित्य 'मृ' विवस्वान
'त�¥- �यो' इंद्रादित्- य 'मु' पूषादिव्य
'�¤- �्षी' पर्जन्यादि- व्य 'य' त्वष्टा
'मा' विष्णुऽदिव- ्य 'मृ' प्रजापति
'त�¤- �त' वषट
इसमें जो अनेक बोधक बताए गए हैं। ये बोधक देवताओं के नाम हैं।
शब्द की शक्ति-
शब्द वही हैं और उनकी शक्ति निम्न प्रकार से है-
शब्द शक्ति शब्द शक्ति
'त्र' त्र्यम्बक, त्रि-शक्ति तथा त्रिनेत्र 'य' यम तथा यज्ञ
'म' मंगल 'ब' बालार्क तेज
'कं' काली का कल्याणकारी- बीज 'य' यम तथा यज्ञ
'जा' जालंधरेश 'म' महाशक्ति
'ह�¥- ‡' हाकिनो 'सु' सुगन्धि तथा सुर
'गं' गणपति का बीज 'ध' धूमावती का बीज
'म' महेश 'पु' पुण्डरीकाक- ्ष
'ष्टि' देह में स्थित षटकोण 'व' वाकिनी
'र्ध' धर्म 'नं' नंदी
'उ' उमा 'र्वा' शिव की बाईं शक्ति
'रु' रूप तथा आँसू 'क' कल्याणी
'व' वरुण 'बं' बंदी देवी
'ध' धंदा देवी 'मृ' मृत्युंजय
'�¤- �्यो' नित्येश 'क्षी' क्षेमंकरी
'�¤- ¯' यम तथा यज्ञ 'मा' माँग तथा मन्त्रेश
'म�¥- ƒ' मृत्युंजय 'तात' चरणों में स्पर्श
यह पूर्ण विवरण 'देवो भूत्वा देवं यजेत' के अनुसार पूर्णतः सत्य प्रमाणित हुआ है।
महामृत्- युंजय के अलग-अलग मंत्र हैं। आप अपनी सुविधा के अनुसार जो भी मंत्र चाहें चुन लें और नित्य पाठ में या आवश्यकता के समय प्रयोग में लाएँ। मंत्र निम्नलिखित- हैं-
तांत्र�¤- �क बीजोक्त मंत्र-ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं- यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्ध- नम्।
उर्वा- रुकमिव बन्धनान्मृ- त्योर्मुक्- षीय माऽमृतात्- । स्वः भुवः भूः ॐ ॥
संजीवनी मंत्र अर्थात् संजीवनी विद्या-ॐ ह्रौं जूं सः। ॐ भूर्भवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं- यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्ध- नम्। उर्वारुकमि- व बन्धनांन्म- ृत्योर्मुक- ्षीय माऽमृतात्- । स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूं ह्रौं ॐ ।
महामृत्यु- ंजय का प्रभावशाली- मंत्र-ॐ ह्रौं जूं सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं- यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्ध- नम्। उर्वारुकमि- व बन्धनान्मृ- त्योर्मुक्- षीय माऽमृतात्- । स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूं ह्रौं ॐ ॥
महामृत्यु- ंजय मंत्र जाप में सावधानियाँ-
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मà- ��ामृत्युंजà- �¯ मंत्र का जप करना परम फलदायी है। लेकिन इस मंत्र के जप में कुछ सावधानियाँ- रखना चाहिए जिससे कि इसका संपूर्ण लाभ प्राप्त हो सके और किसी भी प्रकार के अनिष्ट की संभावना न रहे।
अतः जप से पूर्व निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए-
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1. जो भी मंत्र जपना हो उसका जप उच्चारण की शुद्धता से करें।
2. एक निश्चित संख्या में जप करें। पूर्व दिवस में जपे गए मंत्रों से, आगामी दिनों में कम मंत्रों का जप न करें। यदि चाहें तो अधिक जप सकते हैं।
3. मंत्र का उच्चारण होठों से बाहर नहीं आना चाहिए। यदि अभ्यास न हो तो धीमे स्वर में जप करें।
4. जप काल में धूप-दीप जलते रहना चाहिए।
5. रुद्राक्ष की माला पर ही जप करें।
6. माला को गोमुखी में रखें। जब तक जप की संख्या पूर्ण न हो, माला को गोमुखी से बाहर न निकालें।
7. जप काल में शिवजी की प्रतिमा, तस्वीर, शिवलिंग या महामृत्युं- जय यंत्र पास में रखना अनिवार्य है।
8. महामृत्युं- जय के सभी जप कुशा के आसन के ऊपर बैठकर करें।
9. जप काल में दुग्ध मिले जल से शिवजी का अभिषेक करते रहें या शिवलिंग पर चढ़ाते रहें।
10. महामृत्युं- जय मंत्र के सभी प्रयोग पूर्व दिशा की तरफ मुख करके ही करें।
11. जिस स्थान पर जपादि का शुभारंभ हो, वहीं पर आगामी दिनों में भी जप करना चाहिए।
12. जपकाल में ध्यान पूरी तरह मंत्र में ही रहना चाहिए, मन को इधर-उधरन भटकाएँ।
13. जपकाल में आलस्य व उबासी को न आने दें।
14. मिथ्या बातें न करें।
15. जपकाल में स्त्री सेवन न करें।
16. जपकाल में मांसाहार त्याग दें।
कब करें महामृत्युं- जय मंत्र जाप?
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महामृत्य�¥- �ंजय मंत्र जपने से अकाल मृत्यु तो टलती ही है, आरोग्यता की भी प्राप्ति होती है। स्नान करते समय शरीर पर लोटे से पानी डालते वक्त इस मंत्र का जप करने से स्वास्थ्य-�¤- �ाभ होता है।
दूध में निहारते हुए इस मंत्र का जप किया जाए और फिर वह दूध पी लिया जाए तो यौवन की सुरक्षा में भी सहायता मिलती है। साथ ही इस मंत्र का जप करने से बहुत सी बाधाएँ दूर होती हैं, अतः इस मंत्र का यथासंभव जप करना चाहिए। निम्नलिखित- स्थितियों में इस मंत्र का जाप कराया जाता है-
(1) ज्योतिष के अनुसार यदि जन्म, मास, गोचर और दशा, अंतर्दशा, स्थूलदशा आदि में ग्रहपीड़ा होने का योग है।
(2) किसी महारोग से कोई पीड़ित होने पर।
(3) जमीन-जायदा�¤- ¦ के बँटबारे की संभावना हो।
(4) हैजा-प्लेग आदि महामारी से लोग मर रहे हों।
(5) राज्य या संपदा के जाने का अंदेशा हो।
(6) धन-हानि हो रही हो।
(7) मेलापक में नाड़ीदोष, षडाष्टक आदि आता हो।
(8) राजभय हो।
(9) मन धार्मिक कार्यों से विमुख हो गया हो।
(10) राष्ट्र का विभाजन हो गया हो।
(11) मनुष्यों में परस्पर घोर क्लेश हो रहा हो।
(12) त्रिदोषवश रोग हो रहे हों।
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