महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास के बारे में 12 तथ्य जिनसे आप अन्जान हैं Santosh Mishra 2 years ago   2.8k SHARES Share On Facbook Share on Twitter महर्षि वेदव्यास न केवल महाभारत के रचयिता हैं, बल्कि वह उन घटनाओ के भी साक्षी रहे हैं जो क्रमानुशार घटित हुई हैं। असल में इस महान धार्मिक ग्रंथ में व्यासजी की भी एक अदद भूमिका है। वेदव्यास उन मुनियों में से एक हैं, जिन्होंने अपने साहित्य और लेखन के माध्यम से सम्पूर्ण मानवता को यथार्थ और ज्ञान का खजाना दिया है। महर्षि व्यास ने न केवल अपने आसपास हो रही घटनाओं को लिपिबद्ध किया, बल्कि वह उन घटनाओं पर बराबर परामर्श भी देते थे। 1. महर्षि वेदव्यास ने समस्त विवरणों के साथ महाभारत ग्रन्थ की रचना कुछ इस तरह की थी कि यह एक महान इतिहास बन गया। हिन्दू धर्म में मान्यता है कि महाभारत में उल्लिखित घटनाएं सत्य और प्रमाणिक वृत्तांत है। Bhavanajagat 2. भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र भगवान गणेश ने वेदव्यास के मुख से निकली वाणी और वैदिक ज्ञान को लिपिबद्ध करने का काम किया था। आम जनों को समझने में आसानी हो, इसलिए महर्षि व्यास ने अपने वैदिक ज्ञान को चार हिस्सों में विभाजित कर दिया। वेदों को आसान बनाने के लिए समय-समय पर इसमें संशोधन किए जाते रहे हैं। कहा जाता है कि महर्षि वेदव्यास ने इसे 28 बार संशोधित किया था। Chroniclebooks 3. महर्षि व्यास का जन्म त्रेता युग के अन्त में हुआ था। वह पूरे द्वापर युग तक जीवित रहे। कहा जाता है कि महर्षि व्यास ने कलियुग के शुरू होने पर यहां से प्रयाण किया। Srivyuha 4. महर्षि व्यास को भगवान विष्णु का 18वां अवतार माना जाता है। भगवान राम विष्णु के 17वें अवतार थे। बलराम और कृष्ण 19वें और 20वें। इसके बारे में श्रीमद् भागवतम् में विस्तार से लिखा गया है, जिसकी रचना मुनि व्यास ने द्वापर युग के अन्त में किया था। श्रीमद् भागवतम् की रचना महाभारत की रचना के बाद की गई थी।  Mghariharan 5. महर्षि व्यास का जन्म नेपाल में स्थित तानहु जिले के दमौली में हुआ था। महर्षि व्यास ने जिस गुफा में बैठक महाभारत की रचना की थी, वह नेपाल में अब भी मौजूद है। इस मानचित्र के माध्यम से आप नेपाल में तानहू के बारे में जान सकते हैं। Wikipedia यही वह गुफा है, जहां बैठकर व्यास ने महाभारत की रचना की थी।  Blogspot 6. महर्षि वेदव्यास के पिता ऋषि पराशर थे। उनकी माता का नाम सत्यवती था। पराशर यायावर ऋषि थे। एक नदी को पार करने के दौरान उन्हें नाव खेने वाली सुन्दर कन्या सत्यवती से प्रेम हो गया। उन्होंने सत्यवती से शारीरिक संबंध स्थापित करने अभिलाषा जताई। इसके बदले में सत्यवती ने उनसे वरदान मांगा कि उसका कन्याभाव कभी नष्ट न हो। यौवन जीवन पर्यन्त बरकार रहे और शरीर से मत्स्य गंध दूर हो जाए। ऋषि पराशर ने सत्यवती को यह वरदान दिया और उनके साथ शारीरिक संबंध स्थापित किया। बाद में सत्यवती ने ऋषि व्यास को जन्म दिया।  7. महर्षि व्यास पितमाह भीष्म के सौतेले भाई थे। बाद में सत्यवती ने हस्तिनापुर के राजा शान्तनु से विवाह कर लिया। शान्तनु भीष्ण के पिता थे। इस विवाह के लिए सत्यवती के पिता ने राजा शान्तनु के समक्ष यह शर्त रखी थी कि सत्यवती के गर्भ से जन्म लेने वाला बालक ही हस्तिनापुर का उत्तराधिकारी होगा। हालांकि इससे पहले ही शान्तनु ने अपने पुत्र देवव्रत को हस्तिनापुर का युवराज घोषित कर दिया था। अपने पिता को दुःखी देख, देवव्रत ने प्रण लिया कि वह कभी भी हस्तिनापुर की राजगद्दी पर नहीं बैठेंगे और न ही विवाह करेंगे। इसी प्रतिज्ञा की वजह से उनका नाम भीष्म पडा। बाद में उनके पिता शान्तनु ने उन्हें ईच्छा-मृत्यु का वरदान दिया।  8. महर्षि वेदव्यास धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर के जैवीय या आध्यात्मिक पिता थे। अपने कनिष्ठ पुत्र विचित्रवीर्य के निधन के बाद सत्यवती ने महर्षि व्यास से आग्रह किया वह उनकी विधवा पुत्रवधुओं अम्बिका और अम्बालिका को नियोग के माध्यम से सन्तान दें, ताकि हस्तिनापुर को इसका वारिस मिल सके। प्राचीन काल में नियोग एक ऐसी परम्परा रही थी, जिसका उपयोग संतान उत्पत्ति के लिए किया जाता रहा था। मान्यताओं के मुताबिक पति के निधन या संतान उत्पन्न करने में अक्षम रहने की स्थित में महिलाएं नियोग की पद्धति को अपना सकतीं थीं। नियोग किसी विशेष स्थिति में पर-पुरुष से गर्भाधान की प्रक्रिया को कहा जाता था।  Blogspot 9. महर्षि वेदव्यास के जन्मदिन के अवसर पर गुरू पुर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। व्यासजी के बारे में कहा जाता है कि द्वापर युग के दौरान उन्होंने पुराण, उपनिषद, महाभारत सहित वैदिक ज्ञान के तमाम ग्रन्थों की रचना की थी। गुरू पुर्णिमा के दिन शिष्य अपने गुरुओं की प्रार्थना करते हैं और उनसे आशीर्वाद लेते हैं।  Gurpurnimasms 10. महर्षि व्यास ने वेदों का अलग-अलग खंड में विभाजन किया था। 4Krsna 11. वेदव्यास के बारे में कहा जाता है कि वह सात चिरंजिवियों में से एक हैं। कलियुग के शुरू होने के बाद वेदव्यास के बारे में कोई ठोस जानकारी या दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं। माना जाता है कि वह तप और ध्यान के लिए पर्वत श्रृंखलाओं में लौट गए थे। Sharathkomarraju 12. दो बौद्ध जातक कथाओं ‘कान्हा दीपायना’ और ‘घाटा’ में महर्षि वेदव्यास का जिक्र किया गया है। प्रथम जातक कथा में उन्हें बोधिसत्व कहा गया है। हालांकि इसमें उनके वैदिक ज्ञान की चर्चा नहीं की गई है। दूसरी जातक कथा में उन्हें महाभारत का रचयिता और इससे जुड़ा हुआ व्यक्ति बताया गया है। Tamilandvedas   About Privacy Policy Contact Us
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