Friday, 8 September 2017

आत्म ज्ञानं परम ज्ञानं न विद्यत

 Search... + Home + Pujya Bapuji + Teachings + Ashram + Sadhana + Videos + Audio + Press + Community  Admin / Monday, August 5, 2013 / Categories: PA-000526-Live Recorded आत्म ज्ञानं परम ज्ञानं न विद्यते | - Sant Shri Asaram Bapu ji (आसाराम बापू जी) आत्म ज्ञानं परम ज्ञानं न विद्यते | P.P.Sant Shri Asharamji Bapu – Niwai (Ekant) – 25 July 2013 Part –II हरि सम जग कछु वस्तु नहीं | समुद्र के आगे सेवाल क्या होती है | ऐसे ही आत्मा-परमात्मा है समुद्र और ये प्रकृतियां है सेवाल | आप है समुद्र और शरीर है सेवाल | आप इतने ही नहीं है, आप अनंत ब्रम्हांड में व्यापक है | ये तो सेवाल का थोडा हिस्सा है | जैसे समुद्र के आगे २ किमी हो, १० किमी, १०० किमी हो तो क्या है समुद्र के आगे तो ऐसे ही अपना आपा इतना व्यापक है कि इसके पाँच भुत, प्रकृति, आकाशगंगा ये सब छोटी-सी है | हरि ॐ... हरि... सच्चिन्दानंद हरि... परमात्म हरि ... गोविन्द हरि.... हरि समजग कछु वस्तु नहीं प्रेम पंथ सम पंथ|| सदगुरु सम सज्जन नहीं गीता सम नहीं ग्रन्थ | गीता की बड़ी भारी महिमा है | किसी आदमी को कामधंधा, रोजी-रोटी, चुनाव... कोई भी तकलीफ हो - तो घर से निकलते समय २१ बार गीता के आखरी श्लोक का, आखरी अध्याय का आखरी श्लोक २१ बार जप करके निकले | कामधंधे, आदि में छक्का लग जायेगा उसका | खाली २१ बार उस श्लोक का उच्चारण करके घर से बाहर निकले तो समस्या भाग जायेगी | वो श्लोक है - यत्र योगेश्वरः कृष्ण यत्र पार्थो धनुर्धरः तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम।। जहाँ योगेश्वर कृष्ण है और पार्थ धनुर्धर है | वहाँ 'श्री' माना संपदा, वैभव | जैसे पानी श्री है, संपदा है लेकिन अंगूर का रस भगवान का वैभव है | भोजन संपदा है, लेकिन उसमें से खून बनाना अपना आत्मा का वैभव है | बुद्धि बनाना आत्मा का वैभव है | तो जहाँ भगवान और पुरुषार्थ करने वाला जीव है, वहाँ श्री, वैभव, विजय अपने आप आता है | तो वो श्लोक पढ़ के जावे | कोई बढे पोस्टिंग में जाना हो, कोई बड़ा काम करना हो, ये श्लोक २१ बार पढ़ के फिर जाना | यत्र योगेश्वरः कृष्ण यत्र पार्थो धनुर्धरः तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम।। ये तो कंठस्थ हो जायेगा सरल है | गीता के आखरी श्लोक है, आखरी अध्याय १८ वाँ का आखरी श्लोक है | तो याद भी रहेगा | तो भगवान के आश्रय से जो सुख मिलता है | तो आदमी को नम्र बनाता है, परोपकारी बनाता है और यहाँ भी सुखी और संतुष्ट कराता है और मरने के बाद भी भगवान का धाम देता है | अब जो अहंकार के आश्रय से सुखी होना चाहता है वो निराश हो के मरता है | झुंझता हुआ जीता है, विघ्न बाधाऔ में और हताश और निराश हो के मरता है और नीच योनि में जाता है | जैसे राजा मृग था तो बड़ा प्रभावशाली था | तो दुश्मन भी उतने थे | मरने के बाद वो राजा मृग किरकिट बन गया सूखे कुएं में | राजा अज मरने के बाद सांप बन गया, अजगर बन गया | मुसोलीन इटाली का राजा था | १९४२ में कमुनिस्ट में भागा दौड़ा मुसोलीन हरा, जान बचाके कही छुप गया | जा रहा था स्विझरलैंड अपने प्रियशी को लेके | स्विझरलैंड की कोई सुंदरी थी | वास्तव में कमीनिस्टों के सिपाही थे उन्होंने देखा की ये भाग के जा रहा है | धाड़ - धाड़ दो -चार बम छोड़े तो वो मर गया | बड़ी ट्रक थी, सुन्दरी थी, हीरे थे, जवाहरात थे हजार - हजार डॉलर के नोटों के बण्डल थे | और जिन सिपाहियों ने मारा.. उसकी तो लाश मिली लेकिन वो सामान कहाँ गया | जांच कमीशन रखी... कमीशन एक वरिष्ठ अधिकारी, एक हायकोर्ट का जज होता है बाकी साहेब, ऐसी १७ जांच कमीशन रखी | लेकिन मुसोलीन का धन कहाँ गया अभी तक कोई पता नहीं चला | कभी-कभी मुसोलीन दिखता था | I lost my body but I have my desire. इच्छा मजबूत है तभी तो छुपा के रखा और अभी तक १७ जांच कमीशन रखी लेकिन कोई पता नहीं चला | किसी जज को आत्महत्या करा देता, किसी को पागल बना देता, कोई जहाज छोड़ने को तत्पर हो जाता तो कोई रिझाइन कर देता | १७ जांच कमीशन रखी इतना पावरफुल था मुसोलीन | लेकिन अभी भी दुर्गति हुई.. भटक रहा है | इब्राहीम लिंकन प्रेसिडेंट ऑफ़ अमेरिका | मैं अमेरिका गया तो कई उसकी यश गाथा वाली संस्था में मेरे को ले visit करने को वहां के लोग | तो इब्राहीम लिंकन प्रेसिडेंट ऑफ़ अमेरिका था लेकिन अभी बिचारा प्रेत होकर व्हाईट हाउस में भटक रहा है | तो वो ईश्वर का आश्रय छोड़कर बड़ी सत्ता, बड़ा धन, बड़े पद तक भी पहुँच जाते | तो देर सबेर उनकी गति-दुर्गति हो जाती है | और शबरी भिलन है, मतंग गुरु का आश्रय लिया और मतंग गुरु ने आत्म-परमात्मा का आश्रय दिला दिया | रावण को तो सोने की लंका थी तो भी इतनी शांति, इतना सुख नहीं था | जो अनपढ शबरी को था | जो मीरा को रईदास चमार की कृपा से मिला | आत्म लाभात परमं लाभं न विद्यते | आत्मलाभ से बढकर कोई लाभ नहीं | आत्म सुखात परमं सुखं न विद्यते | आत्म सुख से बड़ा कोई सुख नहीं है | आत्म ज्ञानं परम ज्ञानं न विद्यते | आत्म ज्ञान से कोई बड़ा ज्ञान नहीं | तो भगवान ने अर्जुन को वो आत्मज्ञान दिया और भगवान राम ने हनुमान को वो आत्मज्ञान दिया | हनुमानजी कोई साधारण व्यक्ति नहीं थे | अष्टसिद्धि, नवनिधि के धनी थे | फिर भी आत्मज्ञान के प्राप्ति के लिए भगवान की शरण, बिनशर्ति शरणागति ली | छू-मन्त्र की विद्या नहीं है | रंग लगते लगते लगता है | अपनी ख्वायिश के नुसार गुरु कर दे तो संभव नहीं है कि अपनी ख्वायिश मिट जाय | दादू दीनदयाल - दादू दीनदयाल बहुत ऊँची कोटि के संत थे | अकबर ने उनको बुलावा भेजा | बोले- हमको नहीं आना है तुम्हारे राजदरबार में | मुझे आपसे कुछ प्रश्नोत्तर करने है, सत्संग सुनना है, तो तुमको सुनना है तो तुम... मैं काय को आऊ | गुरु के पास जान चाहिये कि गुरु को अपना गुलाम बनाना चाहिये | फतेहपुरसिकरी में अकबर दादू दीनदयालजी के चरणों में | प्रश्नोत्तर, सत्संग होते होते एक दिन अकबर पूछ बैठा कि, "अल्ला ताला ने पहले धरती बनाई कि जल बनाया | अग्नि बनाई कि वायु बनाया कि आकाश बनाया | पहले कौनसी चीज बनाई ?" हाय, दादू दीनदयालजी जरा चिढ़ गये |" तू अल्ला ताला को क्या समझता है ? भगवान को क्या समझता है ? ये कोई साधारण बंधे है कि भाई ये काम करने के बाद ये करेंगे, ये काम करने के बाद ये करेंगे | तुम रात को स्वप्ने में क्या ये धरती बनाते हो, या फिर जल बनाते हो ? जब तुम जीव हो तो तुम्हारे संकल्प से ही सब बन जाता है और आगे - पीछे की गुलामी नहीं करनी पड़ती | तो ईश्वर ने पहले ये बनाया, वो बनाया... ये कपोलकत में क्यूँ लगते है ? ऐसे धर्मान्तर वाले बोलते है कि, "god ने पहले पृथ्वी बनाई |" और बाद में तीन दिन के बाद सूरज बनाया और फिर चंदा बनाया | तो उनसे सवाल करों कि god ने पृथ्वी बनाई, तीन दिन के बाद चंदा, सूरज बनाया | जब चंदा, सूरज तीन दिन के बाद बनाया तो तुमने गिनती कैसे किया ? चंदा, सूरज के बिना तीन दिन में कैसे बने ? और पृथ्वी बनाई तो कौनसे रो मटेरियल से बनाई? और पृथ्वी बनाई तो कहाँ बैठ के बनाई ? तो ये सब मानवी कल्पनाओं से भगवान के विषय में उलझाने वाले मजहाबी ग्रन्थ अलग बात है | लेकिन सनातन धर्म हिन्दू का तो एकदम स्पष्ट ज्ञान है वैदिक ज्ञान | ईश्वर कही बैठकर दुनिया बनाता है ये भ्रम छोड़ दो | ईश्वरो सर्व भूताना ह्रदय ते अर्जुन तिष्टति | ईश्वर सबका अंतरात्मा में है | यही बैठ के रोटी में से खून बना रहा है, बाल बना रहा है, मन बना रहा है, बुद्धि बना रहा है | धरती पे इतने मनुष्य नहीं जितने तुम अपने शरीर में बैक्टेरिया बना देते है | तुम्हारा आत्मा तो ईश्वर है | तुम्हारा आत्मा परमात्मा से अविभाज्य अंग है | जैसे घड़े का आकाश महा आकाश से अविभाज्य है | तरंग पानी से अभिन्य है | सोने की गहने की आकृति मिट सकती है लेकिन सोना तत्व ज्यों का त्यों है | तरंग मिट सकते है लेकिन पानीतत्व ज्यों को त्यों है | घड़ा मिट सकते हो लेकिन आकाश तत्व ज्यों का त्यों है | शरीर मिट सकता है लेकिन तुम्हारे को भगवान भी नहीं मिटा सकते | तुम ऐसे आत्मा हो | सच्चे गुरु का ज्ञान मिले तो तुमको मृत्यु का भय नहीं रहेगा | कर्मबंधन नहीं लगेगा | दुखी होकर परेशान नहीं होगे और सुखी होकर अंहकारी नहीं बनोगे | ऐसा सदगुरु का ज्ञान बना देता है | श्रावणी पूनम तो ब्राम्हणों का विशेष त्यौहार माना जाता है | जनेऊ बदलते, दिव्य दान करते है और बहनों से राखी बाँध लेता है | दशहरा क्षेत्रियों के लिए है, दीवाली बनियों के लिए है, होली सभी मनुष्यों के लिए रंग छाटना, केशुडे के रंग छाट के निरोग रहना | लेकिन ये गुरुपुनम तो सभी मनुष्यों के लिए और सभी देवतों के लिए, दैत्यों के लिए और भगवान के लिए भी ये त्यौहार है गुरुपुनम का | भगवान राम भी अपने गुरु का पूजन करते गुरुपूनम के दिन और भगवान कृष्ण भी | और ये गुरुपुनम का अटलांटिक सभ्यता में इसका प्रचार तो साता समय के अनुसार हुआ, थोडा मंद हो गया, भारत में भी है गुरुपुनम का पर्व | तो श्रीकृष्ण अपने गुरु का पूजन करते थे | जिसके जीवन में गुरु का ज्ञान नहीं है, उसका भविष्य उज्ज्वल नहीं है | चाहे कितना भी बड़ा आदमी हो | मुसोलीन कितना बड़ा था, इब्राहीम लिंकन कितना बड़ा था, राजा मृग कितना बड़ा था लेकिन ईश्वर से जोड़ने वाला गुरु का सहयोग नहीं तो आदमी अभागा तो जरुर है | कितना भी धन हो जाय, सोने की लंका मिल जाय लेकिन निगुरे आदमी का... कबीरजी बोलते है – निगुरे का नहीं कोई ठिकाना, चोरासी में आना जाना | यम का बने मेहमान, सुन लो चतुर सुजान || निगुरा नहीं रहना.. निगुरा होता हीय का अँधा खूब करें संसार का धंधा || जो छोड़ के जाना है उन्ही में वो उलझके मर जाता है | जो सदा रहता है उस आत्मा परमात्मा ज्ञान निगुरे आदमी को नसीब नहीं होता | मिल भी जाये तो आदर नहीं होने से रुकता नहीं | गुरु के लिए आदर होगा तो रुकेगा | वेदव्यासजी - वेदव्यासजी घुमने को जा रहे थे सुबह | तो एक भील अपने कुछ टोने-टोटके की विद्या से खजूर के पेड़ को निचे झुकाया, उसमे से खजूर का रस निकाला - इत त्रय तिष्ट महाभागाय... ' समझ गये कि इसको पेड़ से खुजर का रस लेने वाली विद्या है | व्यासजी उसके पीछे गये तो बुढा भागा, अपने घर के ओर | अपना बेटा था जवान कृपालु सुनो व्यासजी आ रहे हैं तुम उसको कैसे भी समझा बुझाके रवाना कर देना मैं पेड़ के ऊपर चढ़ के छिप जाता हूँ | वो जायेंगे फिर मैं आऊंगा | व्यासजी को रवाना कर दिया उसने | लेकिन व्यासजी भी कच्चे संत नहीं थे | घूमते - घूमते कभी देख लिए उसको, उसका पीछा करें ओर बो बुढा भी नहीं था २५ सो बार बूढ़े ने व्यासजी को चकमा दे दिया | आखिर उस बूढ़े का जवान छोरा था, कृपालु नाम था | बोला,- “आप इतने बड़े संत है, भगवान कृष्ण आदर करते है, ऋषि मुनि आपके चरणों में मत्था टेकते है |” आपने महाभारत रचा ४ लाख श्लोकों वाला, सारा पुराण बनाया | आप हम जैसे भीलों से क्या सीखना चाहते है ? बोले, "तुम्हारे पिता के पास मन्त्र है ?" पेड़ झुकाने वाला, वो हम लेना चाहते है | मैं जानता हूँ वह मंत्र... मैं आपको वह मंत्र डे देता हूँ | व्यासजी ने वो मन्त्र लिया | व्यासजी तो चलते बने | बुढा आया.. अरे! क्या दिया उनको तुमने ? बोले, मैंने तो मन्त्र दे दिया | तो जा परीक्षा लो ? अगर उनमें श्रद्धा होगी तो मन्त्र फलेगा नहीं तो नहीं फलेगा ..| व्यासजी वहाँ तो सत्संग कर रहे है बहुत ऊंचा | आये हुए सुख और दुःख का उपभोग नहीं करना चाहिये, उपयोग करना चाहिये | दुःख आये तो किसी को निमित्त नहीं बोलना चाहिये | दुःख आया तो संसार की आसक्ति और अपनी बेवकूफी, अंहकार छुडाने के लिए दुख आया है और सुख आया तो सेवा करके भविष्य उज्ज्वल करने के लिए आया है | सुखद अवस्था आयी तो उसमें सेवा करके अपना पुण्य बढ़ावो | दुखद अवस्था आयी तो दुःख हरि का सुमरण कर| हरि की सेवा किया कर अपनी भक्ति बढाओ | ऐसा भारी ऊंचा सत्संग सुना है | इतने में देखा भील का छोरा आया है तो उठ के खड़े हो गये | उसका आदर किया, पूजन किया, सत्कार किया | जब दो पैसे का खजूर का रस में से गुड बनाये | चार आने का आटा दाल लाए, दो आने का पौवा पीये.. ऐसे आदमी का इतना आदर सत्कार किया कि जो भगवान का सत्संग सुनाते, भगवान का ध्यान सिखाते | हमारे पाप काट कर देते हमारे जनम-जनम के मुसीबतों से दूर कर देते है | ऐसे गुरु का कितना आदर होना चाहिये | तो फिर श्लोक हुआ नमस्ते व्यास विशाल बुद्धे | फुल्ला रविन्द्रा यत पत्र नेत्र || येन त्वया भारत तैल प्रज्वालित्व भय प्रति | हमारे ह्रदय में ज्ञान का दिया जलाने वाले व्यासजी को नमस्कार !!! ज्ञान होगा तो मरते समय भी लगेगा | मरता है तो शरीर मरता है, मैं उसको जानने वाला हूँ | दुर्गति से रक्षा हो जायेगी | दुःख आता है तो मन को आता है | बिमारी आती है तो शरीर को आती है | मैं आत्मा हूँ ऐसी समझ आ जायेगी तो भगवान के पास पहुंचेगा | नहीं तो सांप बनो, किरकिट बनो, घोडा बनो, गधा बनो, भैंसा बनो | हरि ॐ ॐ ॐ Previous Article Next Article     Share Print 765 Rate this article: No rating Tags: NULL Please login or register to post comments. 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