Sunday, 17 September 2017

‘युज’ धातु का अर्थ है- समाधि

 International Journal of Hindi Research  Search SearchISSN: 2455-2232 HOME EDITORIAL BOARD ARCHIVES INSTRUCTIONS INDEXING CONTACT US IMPACT FACTOR RJIF 5.22MAIN MENUHomeEditorial BoardArchivesInstructionsIndexingContact UsPeer Review and Publication PolicyPublication Ethics CERTIFICATE  Volume 2, Issue 6 (2016) योग: पुरूष का प्रकृति से वियोग Author(s): शशिकान्त मणि त्रिपाठी, डाॅ0 उपेन्द्र बाबू खत्री, डाॅ0 अखिलेश कुमार सिंहAbstract: ‘योग’ शब्द संस्कृत भाषा के ‘युज्’ धातु से बना है, जिसका अर्थ है ‘जोड़ना’ अर्थात् अपने को किसी से जोड़ना। पाणिनिगण पाठ मे तीन युज धातु है। दिवादिगणीय ‘युज’ धातु का अर्थ है- समाधि। रूंधादिगणीय ‘युज्’ धातु का अर्थ है- युजिर योगे अर्थात् जोड़ना और चुरादिगणीय ‘युज्’ का अर्थ वषीकृतस्य मनसः अर्थात् मन को वष में करना ही मन का संयमन है। युज् धातु से योग शब्द की उत्पत्ति के आधार पर योग का अर्थ जोड़ना, समाधि और मन का संयमन है। यह सारा जगत जड़ और चेतन का योग है। प्रकृति और पुरूष के संयोग से सृष्टि होती है। प्रकृति के तीन गुण सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण तथा गुणातीत पुरूष का जब योग होता है तब सृष्टि का आरम्भ होता है। यह जगत दो विजातीय तत्वों का योग है। त्रिगुणात्मक प्रकृति और गुणातीत पुरूष का संयोग ही सृष्टि का कारण बनता है। प्रकृति परिवर्तनषील है और पुरूष अपरिवर्तनषील। प्रकृति जड़ है और पुरूष चेतन। यह सृष्टि जड़ और चेतन का योग है। यही माया है, जो नही है, परन्तु होने जैसा लगता है। जिसका योग नही हो सकता परन्तु योगाभास हो रहा है।Pages: 24-25 | 362 Views 129 DownloadsDownload PDF HomeEditorial BoardArchivesInstructionsIndexingContact Us Copyright © 2015 - 2017. All Rights Reserved. Education Journal English Research Journals List Research Journals

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