Friday, 1 September 2017

‘अन्’ धातु (प्राणने) जीवनी शक्ति-चेतना वाचक हैं। इस प्रकार प्राण शब्द का अर्थ चेतना शक्ति होता है।

awgp.org Books पंचकोशी साधना प्राण शक्ति का...  Allow hindi Typing 🔍 INDEX पंचकोशी साधना प्राण शक्ति का स्वरूप और अभिवर्धन प्राण साधना योगशास्त्र की सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। इसके लाभों का विस्तार, अणमादि अगणित ऋद्धि-सिद्धियों के रूप में किया गया है और ब्रह्मतेजस् के रूप में उसकी आध्यात्मिक उपलब्धियों की चर्चा की गई है। प्राणायाम इस दिशा में प्रथम सोपान है। दुर्बल विकृत प्राण को बहिष्कृत कर उसके स्थान पर महाप्राण की स्थापना करना इस साधना का लथ्य है। संध्या-वंदना जैसे नित्यकर्मो का उसे अनिवार्य आधार इसलिए बनाया गया है कि इस प्रकार प्रारम्भिक परिचय तथा अभ्यास करते हुए क्रमशः आगे बढ़ा जाये और प्राणवान् बनते हुए जीवन लक्ष्य को पूर्ण करने की दिशा में अनवरत रूप से गतिशील रहा जाए। प्राणतत्व समस्त भौतिक और आत्मिक सम्पदाओं का उद्गम केन्द्र है। वह सर्वत्र सव्याप्त है। उसमें से जो जितनी अञ्जलि भरने और उसे पीने में समर्थ होता है वह उसी स्तर का महामानव बनता चला जाता है। प्राण शक्ति का पर्यायवाची है। उसकी परिधि में भौतिक सम्पदाएँ और आत्मिक विभूतियाँ दोनों ही आती हैं। शारीरिक परिपुष्टि के रूप में ओजस्वी, मनोबल, सम्पन्नता के रूप में मनस्वी, सामाजिक सहयोग सम्मान के रूप में यशस्वी और आत्मिक उत्कृष्टता रूप में तेजस्वी बन जाता है। यह चतुर्विधि क्षमताएँ जिस मूल स्रोत में उत्पन्न होती हैं उसे प्राण शक्ति कहते हैं। प्राण साधना इन्हीं सिद्धियों का प्राप्त कर सकना सम्भव बनाती हैं। अँग्रेजी में श्वास के अर्थ में प्राण का प्रयोग होता है। यह भ्रम शायद इसलिए पैदा हुआ कि प्राणायाम में श्वास प्रश्वास क्रिया ही प्रधान होती है। रेचक, पूरक, कुम्भक के माध्यम से प्राणायाम किया जाता है। उसमें सांस को अमुक क्रम से छोड़ने, खींचने की विधि की प्रमुखता से प्राण को उसी रूप में समझ लिया गया है। स्वामी विवेकानन्द ने प्राण की विवेचना ‘साइकिक फोर्स’ के रूप में की है। इसका मोटा अर्थ ‘मानसिक शक्ति’ हुआ। मोटे रूप से तो यह कोई मस्तिष्कीय हलचल हुई। पर प्राण तो विश्व-व्यापी है। यदि समष्टि को मन की शक्ति कहें या सर्वव्यापी चेतना शक्ति का नाम दें तो ही यह अर्थ ठीक बैठ सकता है। व्यक्तिगत मस्तिष्कों की प्रथम मानसिक शक्ति की क्षमता प्राण के रूप में नही हो सकती। सम्भवतः स्वामी जीं का संकेत समष्टि मन की सर्वव्यापी क्षमता की ओर ही रहा होगा। मानसिक एवं शारीरिक क्षमताओं के रूप में प्राण शक्ति के प्रकट होने का, प्रखर होने का परिचय प्राप्त किया जा सकता है, पर वह मूलतः इन सब जाने हुए विवरणों से कहीं अधिक सूक्ष्म। वैदिक साहित्य में प्राण के साथ वायु विशेषण भी लगा है और उसे ‘प्राण वायु’ कहा गया है। उनका तात्पर्य ऑक्सीजन, नाइट्रोजन आदि वायु विकारों से नही वरन् उस प्रवाह से है जिसकी गतिशील विद्युत तरंगों के रूप में भौतिक विज्ञानी चर्चा करते हैं। अणु विकरण, ताप, प्रकाश आदि को शक्ति धाराओं के मूल में संव्याप्त सत्ता से कहा जा सकता है। यदि अध्यात्म स्वरूप का विवेचन किया जाए तो अँग्रेजी का ‘लेटन्ट लाइट’ शब्द इसके लिए लगभग अधिक उपयुक्त बैठता है। प्रश्नोपनिषद् में प्राण का उद्गम केन्द्र सूर्य को माना गया है- स एष वैश्वानरो विश्व रूपः प्राणोऽग्निरुद यते। -प्रश्न० १-७ यह भौतिक व्याख्या है। सभी जानते हैं कि पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति का श्रेय सूर्य किरणों को है। स्थूल जगत की जीवनी शक्ति का केन्द्र सूर्य है। उसके पाँच प्राण पाँच तत्व हैं। आदित्यो हवै वाह्यः प्राण उदयत्येष ह्येन चाक्षुषं प्राण। मनु नृहणान्ः पृथिव्यां या देवता सैषा पुरुषस्यापान। मवस्टभ्यान्तरा यदाकाशः स समानो वायु व्यनिः तेजो हवै उदानः -प्रश्नोपनिषद् यह सूर्य ही बाह्य प्राण है। उदय होकर दृश्य जगत की हलचलों को क्रियाशील करता है। इस विश्व रूपी शरीर को यह सूर्य का महाप्राण ही जीवन्त रखता है। पाँच तत्वों में वह पाँच प्राण बनकर संव्याप्त है। प्राण को तत्वदर्शियों ने दो भागों में विभक्त किया है- (१) अणु (२) विभु। अणु वह है जो पदार्थ जगत में सक्रिय बनकर परिलक्षित होता है। विभु वह है जो चेतन जगत में जीवन बनकर लहलहा रहा है। इन दो विभागों को आधिदैविक कास्मिक और आध्यात्मिक माइक्रोकास्मिक अथवा हिरण्य गर्भ कहा जाता है। आधि दैविकेन समष्टि व्यष्टि रूपेण हैरण्य गर्भेण प्राणात्मनेवैतद् विभुत्व माम्नायते नाध्यात्मिकेन। -ब्रह्मसूत्र शंकर भाष्य समष्टि रूप हिरण्य गर्भ विभु है। व्यष्टि रूप आधिदैविक अणु। इस अणु शक्ति को लेकर ही पदार्थ विज्ञान का सारा ढाँचा खड़ा किया गया है। विद्युत ताप, प्रकाश, विकरण आदि की अनेकानेक शक्तियाँ उसी स्रोत में गतिशील रहती हैं। अणु के भीतर जो सक्रियता है वह सूर्य की है। यदि सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक न पहुँचे तो यह सर्वथा नीरव स्तब्धता परिलक्षित होगी। कहीं कुछ भी हलचल दिखाई न पड़ेगी। अणुओं की जो सक्रियता पदार्थो का आविर्भाव, अभिवर्धन एवं परिवर्तन करती है उसका कोई अस्तित्व दिखाई नहीं पड़ेगा। भौतिक विज्ञान से इस सूर्य द्वारा पृथ्वी को प्रदत्त अणु शक्ति के रूप में पहचाना है और उसे विभिन्न प्रकार के आविष्कार करके सुख साधनों का आविर्भाव किया है। शक्ति के कितने ही प्रचण्ड स्रोत करतल गत किये हैं। पर यह नहीं मान बैठना चाहिये। विश्व- व्यापी शक्ति भण्डार मात्र अणु शक्ति की भौतिक सामर्थ्य तक ही सीमाबद्ध है। जड़ जगत में शक्ति तरंगों के रूप में संव्याप्त सक्रियता के रूप में प्राण का परिचय दिया जा सकता है और चेतन जगत में सम्वेदना उसे कहा जा सकता है। इच्छा, ज्ञान और क्रिया इसी सम्वेदना के तीन रूप में है। जीवन्त प्राणी इसी के आधार पर जीवित रहते हैं। उसी के सहारे चाहतें, सोचते और प्रयत्नशील होते हैं। इस जीवन शक्ति की जितनी मात्रा जिसे मिल जाती है वह उतना ही अधिक प्राणवान् कहा जाता है। आत्मा को महात्मा, देवात्मा और परमात्मा बनने का अवसर इस प्राण शक्ति की अधिक मात्रा उपलब्ध करने पर ही सम्भव होता है। चेतना की विभु सत्ता जो समस्त विश्व ब्रह्माण्ड में संव्याप्त है चेतन प्राण कहलाती है। उसी का अमुक अंश प्रयत्न पूर्वक अपने में धारण करने वाला प्राणी-प्राणवान् एवं महाप्राण बनता है। वह प्राण हमारे अनुभव में जड़ पदार्थो की सक्रियता के रूप में और चेतन प्राणियों की सजगता के रूप में दिखाई पड़ता है। इससे प्रतीत होता है कि वस्तुओं एवं प्राणियों के उत्पन्न होने के उपरान्त ही इस शक्ति का उद्भव हुआ होगा पर बात ऐसी नहीं है। वह सृष्टि से पहले ही मौजूद तो था। उसी सूक्ष्म प्राण शक्ति ने समयानुसार परा और अपरा प्रकृति का रूप धारण करके इस दृश्य जगत का सृजन किया है। शास्त्र में इसका वर्णन इस प्रकार आता है- असद्वा इदमग्न आसात् तदाहुः कि तदसदासीदित्युषयो वा व। तेऽग्नेऽसदासीत् तदाहुः के ते ऋषभ इति प्राणा वा ऋषय। -शतपथ सृष्टि से पहले ‘असत्’ था। यह असत् क्या ? उत्तर में कहा गया वे ऋषि थे। ये ऋषि क्या थे ? तब उत्तर में कहा गया-वे प्राण थे। प्राण ही ऋषि है। यहाँ असत् शब्द अभाव के अर्थ में नहीं-अव्यक्त के रूप में प्रयुक्त हुआ है। प्राण से पूर्व भी विद्यमान था। जब दृश्य पदार्थ विनिर्मित हुए तो उनमें प्राण को हलचल करता हुआ देखा गया। यह देखना ही ‘व्यक्त’ है। प्राणको ज्येष्ठ और श्रेष्ठ कहा गया है- प्राणो या व ज्येष्ठश्च श्रेष्ठश्च। -छांदोग्य ५, १, १ सृष्टि से पूर्व उसकी सत्ता विद्यमान होने से वह ज्येष्ठ है। श्रेष्ठ इसलिए कि समस्त पदार्थो और शरीरों में, उसी की विभिन्न हलचलें दृष्टिगोचर हो रही हैं। वस्तुतः जीवन के अर्थ में ही प्राण का प्रयोग होता रहा है। यस्मात्कस्माच्चांगात्प्राण उत्क्रामति तदेव तच्छुष्यति। -वृहदारण्यक जिस किसी अंग से प्राण निकल जाता है, वह सूख जाता है। संस्कृत में प्राण शब्द की व्युत्पत्ति ‘प्र’ उपसर्ग पूर्वक ‘अन्’ धातु से होती है। ‘अन्’ धातु (प्राणने) जीवनी शक्ति-चेतना वाचक हैं। इस प्रकार प्राण शब्द का अर्थ चेतना शक्ति होता है। जीवधारियों को प्राणी कहते हैं। प्राण और जीवन दोनों एक् ही अर्थ में प्रयुक्त होते हैं। प्राण आत्मा का गुण है। वह परम आत्मा से(परब्रह्म से) निसृत होता है। आत्मा भी परमात्मा का एक अविच्छिन्न घटक है। उसके अंश रूप होते हुए भी मूल सत्ताधीश के सारे गुण विद्यमान हैं। व्यक्तिगत प्राण धारण करने वाला प्राणी जब सुविकसित होता है तो वह बूँद के समुद्र में पड़ने पर सुविस्तृत होने की तरह व्यापक बन जाता है। व्यापक महाप्राण का अंश प्राणी है अथवा प्राणधारियों की समष्टि चेतना महाप्राण है, इसमें तात्विक कोई अन्तर नहीं यह शब्दों की ही हेरा-फेरी है। प्राण के स्वरूप को समझाते हुए शास्त्रकारों ने उसका परिचय कई प्रकार दिया है। उसे सृष्टि का सूत्र संचालक और परब्रह्म से निसृत जीवन सत्ता के रूप में समझाने के लिए ही यह कई प्रकार के प्रतिपादन प्रस्तुत किये हैं- यथा- स प्राणमसृजत प्राणाच्छद्धां खं वायुर्ज्योति रूपः पृथिविन्द्रिय मनोऽन्नम्। -प्रश्न ६-४ उसने प्राण उत्पन्न किया। प्राण से श्रद्धा, बुद्धि, आकाश, वायु, तेज, जल, पृथ्वी इन्द्रिय, मन और अन्न आदि बने। जड़ से चेतन उत्पन्न होने की बात भौतिक विज्ञानी कहते हैं। आत्म विज्ञान का मत इससे भिन्न है। वह कहता है चेतना से जड़ की उत्पत्ति हुई है। जड़ में न कुछ सोचने की शक्ति है न करने की। चह निर्जीव होने के कारण अवतरण, अभिवर्धन एवं परिवर्तन की कोई क्रिया नहीं कर सकता, उसकी हलचलें चेतना की ही देन है। चेतना की इच्छा एवं आवश्यकता के अनुसार प्राणियों के शरीर बनते और बदलते रहे हैं। इस तथ्य को तो भौतिक विज्ञानी भी मानते हैं। ऐसी दशा में चेतन प्राणी को ही प्रथम मानना पड़ेगा। सृष्टि से पूर्व निस्सन्देह उसकी सत्ता सूक्ष्म चेतना के रूप में रही है और महाप्राण इस विश्व के सूत्र संचालक परब्रह्म का-परमात्मा अथवा आत्मा का ही ब्रह्म तेजस् रहा है। वह कोई भौतिक शक्ति नहीं है। आत्मन एषः प्राणो जायते। -प्रश्न ३-३ इस प्राण की उत्पत्ति आत्मा से होती है यदिदं किंच जगत्सर्वं प्राण एजति निःसृतम्। -कठ० ६-३ यह समस्त जगत प्राण के स्पन्दन से निःसृत होता है। यथाग्ने क्षुद्रा विस्कुलिंगा व्युच्चरन्त्येव मेवास्मादात्मनः सर्वे प्राणः। -वृहदारण्यक जैसे अग्नि से छोटी-छोटी चिनगारियाँ निकलती हैं वैसे ही आत्मा से सब प्राण निकलते हैं। इस प्राण सत्ता का जब जिस प्रयोजन के लिए प्रयोग होता है तब उसके नाम उसी क्रिया आधार को ध्यान में रखते हुए रख दिये जाते हैं। एक व्यक्ति दुकानदारी, रसोइया, चोरी आदि कई काम करता है। जिस समय उसे जो काम करते देखा जाता है तब उसे उसी आधार पर दुकानदार, रसोइया चोर आदि कहा जाता है। ताँगे वाला उसे सवारी, व्यापारी उसे ग्राहक, डाक्टर उसे रोगी, अध्यापक उसे विद्यार्थी के नाम से पुकारता है। इतने पर भी वह एक ही व्यक्ति होता है। इसी प्रकार प्राण की जहाँ जो गतिविधियाँ होती हैं उसी प्रकार उसे नाम दिया जाता है। साधारणतया पाँच, दस या ग्यारह प्रकार से उसके वर्गीकरण होते रहे हैं- यः प्राणः ए वायुः स एष वायुः पंचविधिः। प्राणोऽपानोव्यान उदानः समानः। -शतपथ यह प्राण वायु पाँच प्रकार का हैं-प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान। दशये पुरुषे प्राणा आत्मैकादश। -वृहदारण्यक मनुष्य में रहने वाली दस इन्द्रियाँ और ग्याहरवाँ मन यह सब प्राण हैं। इतने पर भी उसे वायुः इन्द्रियाँ या मन नहीं कहा जा सकता। वस्तुतः वह इस सबके भीतर काम करने वाली जीवनी शक्ति है। न वायु क्रिये पृथगुपदेशात। -ब्रह्मसूत्र २-४ यह प्राण वायु या इन्द्रियाँ नहीं हैं। शास्त्रों में उसका उपदेश भिन्न रूप से किया गया है। प्रश्नोपनिषद् में यह तथ्य और भी अधिक स्पष्ट कर दिया गया है- तान्वरिष्ठः प्राण उवाच मा मोहमा पद्य था अहमेवैतत्पंचधात्मानं प्रविभज्यैत द्वाणमवष्टथ्य विधार यामि। -प्रश्न० २-३ उस वरिष्ठ प्राण ने मन और इन्द्रियों से कहा- तुम मोह में मत पड़ो। मैं ही पाँच रूप बनाकर इस शरीर को धारण किये हुए हूँ। न वायु प्राणो नापि करण व्यापारः। -ब्रह्म सूत्र २-४-९ यह प्राण, वायु नहीं है और न वह इन्द्रियों का व्यापार ही है। एत समाञ्जायते प्राणो मनः सर्वेन्द्रियाणि च। -मुण्डक २, १, ३ यह प्राण मन और इन्द्रियों से भिन्न है। प्राणायाम को गहरी साँस लेने का-फेफड़े पुष्ट करने वाला व्यायाम नहीं माना जाना चाहिये। वस्तुतः वह निखिल ब्रह्माण्ड में संव्याप्त चेतना कें समुद्र से बड़ी मात्रा में जीवनी शक्ति अपने भीतर धारण करके सामान्य लोगों की तुलना में अत्यधिक सामर्थ्यवान बनने का परिष्कृत विज्ञान सम्मत सुनिश्चित प्रयास है। इसे यदि विधिपूर्वक जाना और अपनाया जाए तो उसमें हमारे महत्वपूर्ण अभावों की पूर्ति हो सकती है। Versions 21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth Book  The Absolute Law of Karma Book  Message of Vedas Part 2 Book  gayatree yajn vidhan Book  svachchhata manushyata ka gaurav Book  navayug ka matsyavatar Book  ikkeesaveen sadee ka gangavataran Book  prajnavatar kee vistar prakriya Book  Donation of Time The Supreme Charity Book  Deep Yagya Book  mana: sthiti badale to paristhiti badale Book  srashta ka param prasad-prakhar prajna Book  pravachan poojya gurudev - Amritwani Book  A Glimpse of 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Book jindagee jeene kee kala Book aastikata manav jeevan kee anivary aavashyakata Book vicharon kee apar aur adbhut shakti Book balakon ka bhavanatmak nirman Book daivee shakti ke anudan aur varadan Book Gayatri Chalis Book Lose Not Your Heart Book Folly of the wise Book Prepare Yourself to Excel Book The Legend of ine Campaign Book Awake O Talented and Come Forward Book Change of thoughts changes the Er Book Health Wealth and Spirituality Book Listen to Mahakals call Book Mental Balance Book Par Normal Achievements Through Self cipline Book Pause and Think Book The Demand of the Times Book Why Suicides ? Book Religion and Science Book Applied Science of Yagy for Health and Environment Book aadhee jan shakti apang n rahe Book manushy chalata firata peda nahee hai Book vijnan evan adhyatm ka samanvit svaroop Book gayatree kee uchchastareey panch sadhanaen Book dhvans aur srijan kee suspasht sanbhavana Book gayatree ka har akshar shakti srot Book kranti kee rooparekha Book samagr kranti hetu yuvaon kee taiyaree Book manushy kee durbuddhi aur bhavee vinash Book vatavaran ke parivartan ka aadhyatmik prayog Book naree kee garima girane men ghata hee ghata Book bachchon ka nirman parivar kee prayogashala men Book parivar ko suvyavasthit kaise banaen Book upasana aur sadhana ka samanvay Book yam niyam Book anta:shakti ke ubhar evan chamatkar Book sarthak evan samagr shiksha ka svaroop Book gayatree prarthana Book brahmachary jeevan kee anivary aavashyakata Book veshabhoosha shaleen hee rakhie Book safalata ke sat sootr sadhan Book safalata ke teen sadhan Book manav jeevan : ek bahumulya upahar Book dhanavan banane ke gupt rahasy Book parishkrit vyaktitv-ek siddhi, ek upalabdhi Book jeevan lakshy aur usakee prapti Book siddhidatree vaak sadhana Book  madirapan ke abhishap Book Gayatri Mantra - The Genesis of Divine Culture Book Gayatri Sadhan the truth and distortions Book Gayatri the omnipotent primordial power Book Revered Gurudev Book The Grandeur and Glory of Guru Tatv Book The Miracles of Charismatic Prayer Book The only solutionto our all problems Book The Summum Bonum of Human Life Book man ke hare har hai man ke jeete jeet Book karmayog aur karm kaushal Book  vyaktitv nirman yuva shivir Book aatmashakti se yugashakti ka udbhav Book pitaron ko shraddha den, ve shakti denge Book mare to sahee, par buddhimatta ke sath Book bachche badhaakar apane pairon kulhadee n maren Book manaveey mastishk vilakshan kanpyutar Book mastishk pratyaksh kalpavriksh Book drishy jagat kee adrishy paheliyan Book drishy jagat ke adrishy sanchalan sootr Book panch pran-panch dev Book svarg narak kee svachalit prakriya Book chetana kee prachand kshamat-ek darshan Book vijnan ko shaitan banane se roken Book brahmavarchas shodh sansthan-prayojan aur prayas Book chetana sahaj svabhav sneh-sahayog Book kya dharm afeem kee golee hai Book sansar chakr kee gati pragati Book kya manushy sachamuch sarvashreshth pranee hai ? Book  gayatree ke panch mukh panch divy kosh Book kaya men samaya pranagni ka jakheera Book antariksh vijnan evan paroksh ka anusandhan Book asamany evan vilakshan kintu sanbhav aur sulabh Book ateendriy samarthy sanyog naheen tathy Book tilasmon se bharee srishti evan usake avijnat rahasy ! Book pratyaksh se bhee ati samarth paroksh Book adrishy jagat ka paryavekshan sapanon kee khidakee se ! Book pitar hamare adrishy sahayak Book parakaya pravesh Book niyamak satta evan usakee vidhi vyavastha Book aastikavad : tathy evan saty Book srashta ka astitv srashti ke kan-kan se pramanit Book svadhyay, satsang aur chintan-manan Book premayog Book parishkrit adhyatm hamare jeevan men utare Book jnanayajn ka mahatv aur yojanaen Book jeevan kee sarvopari aavashyakata aatm-jnan Book aastik kaun ? nastik kaun ? Book ham sukh-shanti se vanchit kyon hai ? Book grihasth men pravesh se poorv usakee jimmedaree samajhen Book safal dampaty jeevan ke maulik siddhant Book ghar ke vatavaran men svarg ka avataran Book bachchon kee shiksha hee naheen deeksha bhee aavashyak Book parivar ko susanskrit kaise banaen Book sadbhav aur sahakar par hee parivar sanstha nirbhar Book parivarik jeevan kee samasyayen Book ghar parivar bhee ek shareer hai Book budhape se takkar leejie Book susanskrit parivar kee prishthabhoomi Book upasana jeevan kee anivary aavashyakata Book aantarik kayakalp ka saral kint sunishchir vidhan Book chandrayan kalp sadhana Book mahaprajna kee sadhana evan brahmavarchas kee siddhi Book sadhana se siddhi ke aadharabhoot siddhant Book siddhidayak sadhanaon ke pareekshit prayog Book do ghinaune muftakhor, kamachor Book samaj kee abhinav rachana Book anachar se kaise nipate? Book samagr pragati sahakarita par nirbhar Book mritak bhoj kee kya aavashyakata ? Book yog ke nam par mayachar Book ikkeesaveen sadee ka sanvidhan Book dahej danav se samajik ladaaee ladaee jay Book ek anurodh matadataon se Book jeevan ka uttarardh lok seva men lagaen Book pashubal-hindoo dharm evan vishv manavata par ek kalank Book gayatree shaktipeetha:gurudev kee drishti, hamare dayitv Book lok-manas ka parishkrit margadarshan Book rashtreey pragati ke kuchh anivary mapadand Book samaj nirman ke kuchh shashvat siddhant Book andhavishvas se labh kuchh naheen hani apar hain Book aadarsh vivahon ka prachalan kaise ho ? Book harijan utkarsh ke lie badae kadam uthe Book avanchhaneey prachalanon ko ulatane kee aavashyakata Book vaibhav naheen mahanata ka varan karen Book naya sansar basaenge, naya insan banaenge Book moodha manyataon kee bhoolabhulaiyon men bhataken naheen Book vyaktivad naheen samoohavad Book yah kureetiyan mit rahee hain, mitengee Book  apana sudhar sansar kee sabase badaee seva Book adhyatm vidya ka pravesh dvar Book aadhyatmik drishtikon aur anant aatmabal Book aatmeeyata ka madhury aur aanand Book aastikata kee upayogita aur aavashyakata Book gayatree kee shakti aur siddhi Book devataon, avataron aur rishiyon kee upasy gayatree Book  gayatree kee 24 shakti dharaen Book gayatree ke 14 ratn Book gayatree dvara bhautik safalataen Book yugashakti gayatree ka abhinav avataran Book yajn pita gayatree mata Book gayatree kee 24 shikshaen Book gayatree kee dainik sadhana evan yajn paddhati Book gayatree evan yajn ka vaijnanik rahasy Book gayatree ke jagamagate heere Book gayatree se sankat nivaran Book anadi gurumantr gayatree Book eekkeesavee sadee ke lie hamen kya karana hoga ? Book prajnavatar ka svaroop aur kriy-kalap Book yug parivartan kyon ? kisalie ? Book yug nirman kya sanbhav hai ? Book svadhyay mandalon kee sthapana kalpavriksh ka aaropan Book yug nirman men yuva shakti ka suniyojan Book gayatree parivar ka lakshy Book vivah aur dampaty jeevan ka nirvah Book gayatree aur savitre-ek hee mahashakti ke do roop Book savitree ka shakti strot-savita devata Book  sooryopasana ka jnan-vijnan Book kundalini mahashakti aur usakee sansiddhi Book  shatchakron ka svaroop aur rahasy Book kundalinee jagaran kee dhyan sadhanaen Book savitree vijnan aur tantr sadhana Book  prajnavatar ka kathamrit Book susantat-nirman ka shubharambh kahan se aur kaise ho ? 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Pratyksh Book  Sanskar paramparanu punarjiv Book Yagay Nu Mahatv Temj Book Yagy ane Bhartiy Sanskriti Book Apane Rajnitim Bhag Kem Let Book ej Ek Kurivaj Book  ej samajnu gandapan Book  acharnu nimurlan kevi rite karavu Book Gauraksh Ane her Ek Rasht Book Jadugari Ke Chhetarpindi Book Lagann khot kharch bandh Book Matdataone Ek Agrah Book Shu tame zer to nathi khatane Book Tamaku ek duvyarsan Book Vahel maravani utaval karash Book Vidhav Jivan Samasyao Ane Book Vidhyarthionu Nirman Shikshak Book Vruddhavasth gauravavint ban Book Vyasan vinashnu sopan Book Yog n Name Mayajal Book  Swantantra Sangram Senani Book Ath Gayatri Sahastrnam Stotr Book h nivaran karnar gayatri Book Gayatri ar Yog Sadhan Book Gayatri ar Manushiy Jivan Book Gayatri ni Vishesh Sadhan Book Gayatri no Vainanik adhar Book Gayatri sadhan sh mate Book Pap nashak Gayatri Book Siddhidatri gayatri Book Vedshastrano Nichod Gayari Book Aantarik jivanm bhagavanano Book  Mahakalnu aahavan Book Pratibhasali Agal Ave Book Rushiyugmnu aavahan Book Sanjivani Vidhyanu Rahasy Book Sanskrutik Punrutthan Yojan Book Sarjan sainiko sarjan shilpio Book  आत्मिक उन्नति के चार चरण- साधना, स्वाध्याय, संयम, सेवा Book  विचार-क्रांति ही एकमात्र उपचार Book  HINDI अपने ब्राह्मण एवं सन्त को जिन्दा कीजिए Book  भाव-संवेदना का विकास करना ही साधुता है Book  अध्यात्म के सही मर्म को समझें Book  त्याग-बलिदान की संस्कृति - देवसंस्कृति Book  हमारा कुटुम्ब, तब और अब Book  स्वयं को ऊँचा उठायें - व्यक्तित्ववान बनें Book  जीवंत विभूतियों से भावभरी अपेक्षाएँ Book  धर्मग्रंथ हमें क्या शिक्षण देते हैं, यह जानें Book  फिजाँ बदल देती है-अवतार की आँधी Book  नया व्यक्ति बनेगा, नया युग आएगा Book  उपासना, साधना व आराधना Book  महाकाल के सहभागी बनें Book  युगसंधि महापुरश्चरण और संकट निवारण Book  जीवन को धन्य बनाने का महानतम अवसर Book  आत्मिक प्रगति का ककहरा Book  विवेक की साधना और सिद्धि Book  भक्ति का वास्तविक तात्पर्य समझें Book  कैसे करें कायाकल्प? Book  संकल्पशक्ति की महिमा एवं गरिमा Book  विशिष्ठ वेला में विशिष्ट साधना Book  गुरु दक्षिणा चुकाएँ-समयदान करें Book  कालनेमि की माया से बचें Book  विशिष्ट समय को समझें, अपनी रीति-नीति बदलें Book  परिष्कृत मनःस्थिति ही स्वर्ग है Book  ब्रह्मवर्चस् अर्जन की साधना व उसका मर्म Book  प्रज्ञावतार की सत्ता का आश्वासन Book  अध्यात्म का मर्म समझने हेतु बालिग बनिए-४ Book  जीवन साधना बनाम दिव्यता की खेती Book  आप अपने आपको पहचान लीजिये .... Book  नया समय, नया काम और नई जिम्मेदारियाँ Book  श्रावणी पर्व पर प्रज्ञा परिजनों के नाम संदेश Book  मनुज देवता बने, बने यह धरती स्वर्ग समान Book  आध्यात्मिक शिक्षण क्या है? Book  बिना शर्त अनुदान नहीं Book  युग परिवर्तन और ज्ञानयज्ञ Book  मनुज देवता बने Book  मनुष्य एक भटका हुआ देवता Book  विश्ववारा देव संस्कृति Book  देवपूजन का मर्म समझें Book  अध्यात्म के सही स्वरूप का पुनर्जागरण Book  आज के प्रज्ञावतार की, युग- देवता की अपील Book  दृष्टिकोण में बसते हैं स्वर्ग नरक Book  जीवन साधना का मर्म है भक्ति Book  धर्मतंत्र की गरिमा एवं महत्ता Book  प्रतीक पूजा के पीछे छिपे संकेत और शिक्षाएँ Book  गर पूछे कोई मुझसे तो मैं कहूँ कि स्वर्ग बस यहीं है Book  क्षुद्र हम, क्षुद्रतम हमारी इच्छाएँ Book  समझें देववाद का मर्म एवं लें उनसे शिक्षण Book  महाकाल का शंख बज गया, समय बदलने वाला है Book  अध्यात्म एक नगद धर्म Book  प्रज्ञायोग की सुगम साधना Book  ध्यान का दार्शनिक पक्ष Book  आध्यात्मिक कायाकल्प का विधि- विधान १ Book  आध्यात्मिक कायाकल्प का विधि- विधान-२ Book  भगवान की पूँजी में हिस्सेदार बनें Book  भगवान शंकर क्या हैं ? Book  भक्ति- एक दर्शन, एक विज्ञान Book  बोया- काटा का अकाट्य सिद्धान्त Book  देवात्मा हिमालय एवं ऋषि परंपरा Book  देवपूजन का मर्म समझें Book  भगवान के अनुदान किन शर्तों पर Book  देवताओं के वरदान- सत्प्रवृत्तियाँ Book  आपत्तिकाल का अध्यात्म Book  आस्तिकता का प्राण हैं- श्रद्धा Book  आत्मविकास के चार चरण Book  अध्यात्म एक प्रकार का समर Book  अध्यात्म का मर्म समझें Book  अध्यात्म को जीवंत बनाएँ Book  हर घर बने देव मंदिर और ज्ञान मंदिर Book  भगवान का काम, घाटे का सौदा नहीं Book  भगवान का काम करने का यही समय Book  भगवान को मत बहकाइए Book  भज सेवायाम् ही है भक्ति Book  भारतीय संस्कृति का मूल- गायत्री महामंत्र Book  प्रतीक पूजा का वैज्ञानिक आधार Book  धर्म मंच से लोकशिक्षण Book  खिलौनों ने अध्यात्म का सत्यानाश कर दिया Book  क्षुद्रता छोड़ें महानता के पथ पर चलें Book  मनुष्य में देवत्व का उदय व धरती पर स्वर्ग अवतरण Book  गायत्री साधना की उपलब्धियाँ Book  गायत्री उपासना की सफलता की तीन शर्तें Book  गुणों का परिष्कार ही सच्ची भक्ति Book  हमारी अंतश्चेतना ही वास्तविक गायत्री Book  हम ईमान सिखाते हैं Book  जीवन साधना करें, देवता बनें Book  कर्मकाण्ड की प्रेरणाओं में छिपा अध्यात्म Book  हर सुबह नया जन्म हर रात नई मौत Book  कर्मकांड में छिपा व्यक्तित्व निर्माण का शिक्षण Book  कर्मकाण्ड नहीं, भावना प्रधान Book  कैसे होगा समन्वय विज्ञान और अध्यात्म का Book  गायत्री और यज्ञ का दर्शन मानव मात्र के लिए Book  गायत्री महाविद्या की उच्चस्तरीय साधना Book  चिंतन-चरित्र को ऊँचा बनाएँ Book  जीवन देवता की अनिवार्य साधना Book  तप और योग के मार्मिक पक्ष Book  तप से मिलती हैं सिद्धियाँ Book  तीन शक्तियाँ-तीन सिद्धियाँ Book  दुर्गति और सदगति का कारण हम स्वयं Book  देव शक्तियों का पूजन कैसे करें Book  देव संस्कृति का बीजमंत्र गायत्री महामंत्र Book  धर्मतंत्र का दुरुपयोग रूके Book  धर्मतंत्र द्वारा लोकशिक्षण Book  देवता हमें क्या दे सकते हैं Book  शक्ति के भंडार से स्वयं को जोड़े Book  शिक्षा व्यवस्था कैसी हो Book  संभवामि युगे-युगे Book  संस्कृति का वैभव पुन:लौटेगा Book  संस्कृति की अवज्ञा महँगी पड़ेगी Book  संस्कृति की सीता को वापस लाएँ Book  सच्चा अध्यात्म आखिर है क्या Book  साकार और निराकार ध्यान Book  साधना में वातावरण और श्रद्धा की महत्ता Book  सेवा साधना Book  पाँच प्राण-पाँच कोश-पाँच देवता Book  पाठ-पूजा का दर्शन भी समझें Book  पात्रता विकसित करें, भगवान को प्राप्त करें Book  पाना है तो देना सीखो Book  प्यार और सहकार भरे परिवार बसें Book  नये युग का मंत्र-गायत्री महामंत्र Book  मनुष्य के मूल्यांकन का आधार-आध्यात्मिकता Book  यज्ञ का ज्ञान और विज्ञान Book  यज्ञाग्नि हमारी पुरोहित Book  युग के देवता की अपील अनसुनी न करें Book  युग परिवर्तन में समर्थ दीपयज्ञ Book  राम का चरित्र हमारा प्रेरणा स्रोत Book  राम का नाम ही नही, काम भी Book  लोकसेवा की प्रवृत्तियों के केन्द्र हों मंदिर Book  विचार-क्रांति ही एकमात्र उपचार Book  मन को भगवान के साथ जोड़िए Book  बच्चों के व्यक्तित्व का विकास कैसे करें Book  भावना की प्रबल शक्ति Book  भावी महाभारत इस तरह लड़ा जाएगा Book  मंत्र बनाम उच्चारण Book  prerna_prad_prasang Book  व्यक्तित्व निर्माण युवा शिविर Book  आपका विवाह हम भगवान् से कराना चाहते हैं Book  युग गायन पद्धति Book  Rog shok ka moolbhoot karan chintan Book  Sarjan_shilpi Book 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It's a modern adoption of the age old wisdom of Vedic Rishis, who practiced and propagated the philosophy of Vasudhaiva Kutumbakam. Founded by saint, reformer, writer, philosopher, spiritual guide and visionary Yug Rishi Pandit Shriram Sharma Acharya this mission has emerged as a mass movement for Transformation of Era. Contact Us Address: All World Gayatri Pariwar Shantikunj, Haridwar India Centres Contacts Abroad Contacts Phone: +91-1334-260602 Email: shantikunj@awgp.org Subscribe for Daily Messages Fatal error: Call to a member function isOutdated() on a non-object in /home/shravan/www/literature.awgp.org.v3/vidhata/theams/gayatri/text_article_mobile.php on line 345 All WorldGayatri Pariwar Books Magazine Language English Hindi Gujrati Kannada Malayalam Marathi Telugu Tamil Stories Collections Articles Open Pages (Folders) Kavita Quotations Visheshank

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