Friday, 1 September 2017
भगवद्गीता के १८ वें अध्याय के इस श्लोक में जो शब्द कर्मचोदना
ये शब्द चर्चा से उठा कर यहाँ प्रकाशित करने का उद्देश्य है कि वे जड़बुद्धि समझ सकें कि गाली क्या है क्यों है उसकी उत्पत्ति क्या है। हमारी सभ्यता और भाषा-लिपि के गहराई से टटोलने पर ये सब समझ में आएगा। विचार विमर्श रोक देना समझदारी नहीं मूर्खता होती है। पढ़िये कि अश्लीलता के संदर्भ में प्रयुक्त शब्द की व्युत्पत्ति क्या और क्यों है........................
सत्य प्रकाश जी ने कहा:-
श्रीमद भगवदगीता के १८ वाँ अध्याय के एक श्लोक से लिए एक शब्द पर
चर्चा
ज्ञानं ज्ञेयं परिज्ञाता त्रिविधा कर्मचोदना | करणं कर्म कर्तेति
त्रिविध :कर्मसंग्रह:||१८ ||
अर्थ - कार्य का ज्ञान ,ज्ञान का विषय (ज्ञेय) और ज्ञाता --- ये तीन
कर्म की प्रेरणा हैं तथा करण अथार्त इन्द्रियाँ ,क्रिया और कर्ता अथार्त
प्रक्रति के तीनो गुण ---ये तीन कर्म के अंग हैं .
श्रीमद भगवद्गीता के १८ वें अध्याय के इस श्लोक में जो शब्द कर्मचोदना
आया है वो कर्म और चोदना से मिलकर बना है .चोदना शब्द संस्कृत के शब्कोष
में देखा तो पता चला की 'चुद' इसका मूल धातु है . इस शब्द का सही अर्थ है
अभिप्रेरणा .मेरे मन में एक जिज्ञासा आई कि आज के समाज में ' चोदना' शब्द
का जो अर्थ है वो कहाँ से आया ? और गीता में इस शब्द के आगे कर्म लगा है
जिसका अर्थ है कर्म की अभिप्रेरणा .
अभय तिवारी जी ने लिखा :-
बिलकुल सही है। चोदने का अर्थ प्रेरणा है.. गायत्री मंत्र में भी इसी अर्थ में आता है..
लेकिन चुद् धातु के और भी अर्थ हैं- निर्देश देना, आगे फेंकना, हाँकना, धकेलना, ठेलना, स्फूर्ति देना, उकसाना, मार्ग प्रदर्शित करना, शीघ्रता करना, इसके अलावा पूछना और प्रस्तुत करना भी इसके अर्थ के रूप में आप्टे जी ने दिया है। गालियों में आने से पहले इसे प्रजनन के अर्थ में देखिये.. गर्भ धारण के लिए प्रेरित करना या बीज को आगे फेंकना, या धकेलना।
गुप्त गतिविधियों के साथ हमेशा ऐसा हे होता है, एक पीढ़ी उसके लिए एक शालीन शब्द लेकर आती है ताकि कोई 'गन्दा' भाव मन में आने पाए लेकिन अगली पीढ़ी तक आते-आते वही शब्द गन्दगी का प्रतीक बन जाता है। 'चोदना' एक ऐसा शब्द है ही जो कभी ऐसा शास्त्रीय शब्द होता था कि जिसे गीता और गायत्री मंत्र में प्रयोग किया गया और दूसरा ऐसा शब्द 'टट्टी'.. जिसका मूल अर्थ बाँस की खपच्ची है। इन्ही खपच्चियों को, टट्टियों को अंग्रेज़ लोग गाँव-क़स्बों आदि में, जहाँ उनके लिए बनाए गए स्थायी शौचालय उपलब्ध नहीं थे, अपने मलत्याग करने हेतु बनाए गए अस्थायी कमोड के चारो ओर लगवाया करते थे। आज भी टट्टी का दूसरा अर्थ शेष है खस की टट्टी आदि जैसे प्रयोगों में। उसी टट्टी की आड़ मलत्याग के उस पूरे कर्म की आड़ बन कर विकसित हुई लेकिन अब एक गन्दा शब्द बन चुकी है।
रंगनाथ सिंह ने लिखा :-
एक ताजा उदाहरण बाथरूम का भी लिया जा सकता है। जिसका अर्थ आज उत्तर भारत
में पेशाब करना हो चुका है।
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