Friday, 1 September 2017

"सनातन" को जाने, तभी "धारण" करें...

"सनातन" को जाने, तभी "धारण" करें...

क्या आप ने कभी सोचा है की "सनातन धर्म" क्या है?
तथा सनातन धर्म में "सनातन" क्या है?

सनातनमेनमहुरुताद्या स्यात पुनण्रव् ( अधर्ववेद 10/8/23)

अर्थात – सनातन उसे कहते हैं जो , जो आज भी नवीकृत है ।
   सनातन शब्द की व्युत्पत्ति- तन (काल संबंध-वाचक) 

सदा (सना) : सनातन ; पुरा  : पुरातन

‘सनातन’ का अर्थ है – शाश्वत या ‘हमेशा बना रहने वाला’, अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त।
यह पथ सनातन है। समस्त देवता और मनुष्य इसी मार्ग से पैदा हुए हैं तथा प्रगति की है। हे मनुष्यों आप अपने उत्पन्न होने की आधाररूपा अपनी माता को विनष्ट न करें।—ऋग्वेद-3-18-1

गीता अध्याय-2 श्लोक-24 अनुसार
सनातन आत्मा है, प्रमाण:-
अच्छेद्योऽयमदाह्रोऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च ।
नित्य: सर्वगत स्थाणुरचलोऽयं सनातन: ।।24।।

क्योंकि यह आत्माअच्छेद्य है, यह आत्मा अदाह्रा, अक्लेद्य और नि:सन्देह अशोष्य है तथा यह आत्मा नित्य, सर्वव्यापी, अचल, स्थिर रहने वाला और सनातन है ।।24।।

For this soul is incapable of being cut; it is proof against fire, impervious to water and undriable as well. This soul is eternal, omnipresent, immovable, constant and everlasting.(24)

अयम् = यह आत्मा ; अच्छेद्य: = अच्छेद्य है ; अयम् = यह आत्मा ; अदाह्रा: = अदाह्रा ; अक्लेद्य: = अक्लेद्य ; च = और ; अशोष्य: = अशोष्य है (तथा) ; अयम् = यह आत्मा ; एव = नि:सन्देह ; नित्य: = नित्य ; सर्वगत: = सर्वव्यापक ; अचल: = अचल ; स्थाणु: = स्थिर रहनेवाला (और) ; सनातन: = सनातन है ;

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