Wednesday, 13 September 2017

भीखा बात अगम की । कहन सुनन की नाए। कहे सो जाने ना। जाने सो कहे ना

ⓘ Optimized just nowView original https://santmatgyan.blogspot.com/2015/10/sant-bhikha-sahib-ji-santmat-gyan.html?m=1 Menu  Home / भीखा सहिब जी / साखी / संत भीखा साहिब जी संत भीखा साहिब जी भीखा सहिब जी, साखी भीखा साहब बड़े सिद्ध और अनुभवी संत थे। चमत्कारों और दिखावे में विश्वास नहीं करते थे। वह तो इतना जानते थे कि जो राम का भजन नहीं करता है, उसे कालरूप समझना चाहिए भीखा साहब का जन्म आजमगढ़ ज़िला, उत्तर प्रदेश के खानपुर बोहना नामक ग्राम में हुआ था। उनको बचपन से ही गांव में आने वाले साधु-संत आकर्षित किया करते थे। धीरे-धीरे उनके मन में वैराग्य बढ़ने लगा। मात्र बारह साल की अवस्था में ही उनके विवाह की तैयारी की जाने लगी थी। विवाह के रंग- बिरंगे कपड़े पहनकर भीखा समझ गए कि उनके पैरों में गृहस्थ-धर्म की बेड़ियां डाली जा रही हैं। बस फिर क्या था, एक दिन वह चुपचाप घर से निकल भागे। भीखा गुरु की खोज में घूमता रहा काशी में और खाली हाथ लौटना पडा उसे। काशी और काबा, गिरनार और शिखर जी,सब खाली पड़े है। हां, कभी सदियों पूर्व कोई दीये वहां जले थे। उन दीयों के कारण तीर्थ बन गये थे। लेकिन दीये तो कब के बुझ गये। बुझ ही नहीं गये, दीयों का तो नाम-निशान न रहा। खोजते खोजें एक छोटे से गांव में, जिसका नाम भी तुमने न सुना होगा। नाम था गांव का ‘’भुरकुड़ा’’ एक छोटा सा गांव,होगा कोई दस- बीस घरों का। नाम ही बता रहा है। भुरकुड़ा। वहां गुलाल मिले। और गुलाल को देखा, कि न भीखा ने ही केवल पहचाना,गुलाल ने भी पहचाना।  इस बारह वर्ष के बच्चे को एकदम उठाकर अपने पास बिठा लिया अपनी गद्दी पर। पुराने शिष्यों में तो ईर्ष्या फैल गयी। लोग तो चौकन्ने हो गये कि बात क्या है। किसी को कभी अपने पास गद्दी पर नहीं बिठाया। बड़ी आवभगत की—बारह वर्ष के बच्चे की। क्योंकि एक और दुनिया है जहां, इस उम्र से कुछ भी नहीं नाप जाता। जहां ह्रदय तोले जाते है; जहां आत्माएं परखी जाती है। इसकी ऐसा सम्मान दिया जैसे कोई सम्राट हो। भीखा गुलाल के हो गये। गुलाल भीखा का हो गया। फिर भीखा न छोड़ा ही नहीं। भुरकुटा गांव, वहीं पर अंत समय तक रहे, और वहीं गुरु चरणों में मरे। वहीं जीवन भर भुरकुटा और गुलाल के हो कर रह गये। एक पल एक दिन के लिए भी नहीं छोड़ा गुलाल का साथ। रात दिन वहीं चरण मंदिर बन गये, वही तीर्थ हो गया, भीखा का। और फिर ऐसी आग जली…वह जो राम की प्रीति लगी तो ऐसी आग जली। कि लगा बारह साल में ही चारों पन बीत गये। जैसे में बूढ़ा हो गया। जैसे बीत गयीं चारों अवस्थाएं—चारों आश्रम, एक साथ बारह साल में। निपट लागी चटपटी और ऐसी लगी आग और ऐसी जली अभीप्सा, मानों चरिउ पन गये बीती। मैं अचानक बारह वर्ष में वृद्ध हो गया: देख लिया देखने योग्य। सब आसार था। मौत सामने खड़ी हो गयी। बारह वर्ष की उम्र में। मौत सामने खड़ी हो गयी। जब कि लोग सपने सँजोता है, जो टूटे गे आज नहीं कल। जब कि लोग बड़ी योजनाएं और कल्पनाएं बनाते है। जो कि सब धूल-धूसरित हो जाएंगा। जागों, और जानने का एक ही उपाय है। गुरु परताप साध की संगति, भीखा के ये बचन सीधे-सादे,सुगम,पर चिनगारी की भांति है। और एक चिनगारी सारे जंगल में आग लगा दे —एक चिनगारी का इतना बल है। ह्रदय को खोलों, इस चिनगारी को अपने भीतर ले लो। शिष्य वही है जो चिनगारी को फूल की तरह अपने भीतर ले ले। चिनगारी जलाएगी वह सब जो गलत है। वह सब जो व्यर्थ है, वह सब जो कूड़ा करकट हे, चिनगारी जलाएगी, भभकाएगी, वह जो नहीं होना चाहिए। और उस सबको निखारती है जो होना चाहिए। जो इस अग्नि से गुजरता है, एक दिन कुंदन होकर प्रकट होकर होता है, शुद्ध होकर प्रकट होता है।  "भीखा भूखा को नहीं ,सबकी गठरी लाल, गिरह खोल न जानसी ताते भये कंगाल" भीखा साहब जी कहते हैं कि सबके पल्ले में ‘नाम’ रुपी लाल बंधा पड़ा है पर उसमे जड़ -चेतन की ग्रंथि (गाँठ) बंधी पड़ी है । जब तक यह गाँठ न खुले , अर्थात पिंड से ऊपर आकर नाम का अनुभव न मिले , हम भूखे के भूखे रह जाते हैं । दौलत के होते हुए भी हम भूखे हैं परन्तु ‘नाम’ को पाकर हम सुखी हो जाते हैं । ‘नाम’ सब में परिपूर्ण है , फिर भी हम दुखी हैं ? वे कहते हैं कि हमने उसे प्रकट नहीं किया है । भीखा बात अगम की । कहन सुनन की नाए। कहे सो जाने ना। जाने सो कहे ना। ~PSD~ शेयर करें Whatsapp  खास बात सच्ची पूजा कैसे होती है?  बाबा सावन सिंह जी संत की सुगंधि जलालुद्दीन रूमी अनंत को पाने के लिए अनंत धैर्य चाहिए अगला लेख सिमरन जरुरी है पिछला लेख सो आंखियां धोये-धोये पीवा।जिन देखा सद्गुरु कबीर POST COMMENT FACEBOOK फ़ेसबुक पर लाइक करें Santmat Gyan Share लोकप्रिय लेख सो आंखियां धोये-धोये पीवा।जिन देखा सद्गुरु कबीर संत दादू दयाल जी कबीर साहिब के बहुत बाद मे हुए थे। एक दिन वो अपने शिष्यो मे सतसंग कर रहे थे तब उन्होंने पूछा की आपमे से कोई है जिसने सतगुरु ... रज्जब का गजब संत रज्जब मुसलमान थे। पठान थे। किसी युवती के प्रेम में थे। विवाह का दिन आ गया। बारात सजी। बारात चली। रज्जब घोड़े पर सवार। मौर बाँधा हुआ सिर ... संतो की रहमत एक मुस्लिम लड़की थी जो ब्यास जाना चाहती थी, पर उसके घरवाले उसे ब्यास नहीं भेजते थे. एक दिन वो घर से बिना किसी को बताए अकेली ही ब्यास के ल... मस्ताना जी के आखिरी वचन शहनशाह मस्ताना बिलोचास्तानी जी के वचन जो उन्होंने तारीख 16-04-1960 को फरमाये :- "प्रेम रूप में गुलबहार, जुगों जुग से दोनों जहान का स... नाम की महिमा - कबीर साहिब कबीर साहिब जी फरमाते है..... ऐ सत्संगी जब तुमको नाम नहीं मिला था तो तू अज्ञान मैं था और तेरा दोष भी नहीं था. अब तो संतों ने रहमत की खजाने की... दया और प्रेम अपने शत्रु को दया और प्यार की भावना से देखो। जब तुम किसी से दयापूरुण व्यवहार करते हो, तो चाहे वह शत्रु भी हो, उसे अच्छा लगता है। जब वह तुमसे... संत भीखा साहिब जी भीखा साहब बड़े सिद्ध और अनुभवी संत थे। चमत्कारों और दिखावे में विश्वास नहीं करते थे। वह तो इतना जानते थे कि जो राम का भजन नहीं करता है, उसे ... सतगुरु से बेनती हे सतगुरु मैं लँगड़ा हूँ और थका हुआ हूँ।मैं तेरे फज़ल और रहमत भरी दरिया से अभी तक अपनी प्यासी आत्मा की दिलभर कर प्यास नहीं बुझा सका। तू मेर... पारस से पारस गुरु रामदास जी की समझाते हैं कि परमात्मा और जो उस एक परमात्मा के भक्त हैं, प्यारे हैं। दोनों ही पारस हैं। और जो लोग भी इनकी संगत में आ जाते ... सिमरन जरुरी है एक बार बाबा सावन सिंह जी महाराज से एक सत्संगी ने पूछा कि हुज़ूर! आप अपने सत्संग में भजन सिमरन पर ही इतना जोर क्यों देते हैं? जबकि आप अच्छी त... नए लेख  सच्ची पूजा कैसे होती है? AnonymousSept 13, 2017  संत कर्म-बंधन कैसे काटते है? Santmat GyanSept 11, 2017  संत की सुगंधि AnonymousAug 23, 2017  बोओगे सो काटोगे Santmat GyanAug 22, 2017  सफल जीवन का राज - प्रेम Santmat GyanAug 20, 2017 ईमेल से जुड़े Submit  Email address... Subscribe to our mailing list to get the new updates! Created By ThemeXpose  facebooktwittergplusrss कबीर साहिबबाबा शेख फरीदबाबा सावन सिंह जीशम्स तब्रीज़ीमहात्मा बुद्धगुरु नानक साहिबगुरु अर्जुन देवगुरु गोविन्द सिंह जी

No comments:

Post a Comment