Wednesday, 3 January 2018

संतमत क्या है

मुख्य मेन्यू मुखपृष्ठ आश्रम के बारे में सन्तमत दीक्षा के लिए संपर्क करें विज्ञान संतमत संतमत क्या है तस्वीर गैलरी आश्रम वीडियो आश्रम घटनाएँ सम्पर्क आश्रम मठ गड़वाघाट आश्रम गुरु-शिष्य कथा सेवाएं अस्पताल स्कूल न्यास डाउनलोड पुस्तकें आश्रम से संपर्क करें आश्रम नवीनतम समाचार प्रतिक्रिया लेख आश्रम घटनाक्रम कैलेंडर « < January 2018 > » S M T W T F S 31 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 1 2 3 Visitor Counter अंतर्वस्तु दृश्य मार : 224929 मुखपृष्ठआश्रम के बारे में सन्तमत तस्वीर गैलरीआश्रम वीडियोआश्रम घटनाएँसम्पर्क आश्रममठ गड़वाघाट आश्रमगुरु-शिष्य कथा मुखपृष्ठ सन्तमत संतमत क्या है गुरु-पूर्णिमा के सुअवसर पर सभी को हार्दिक शुभकामनायें   संतमत क्या है ? (मेरे सत‌‌‌गुरू श्रीमत परमहन्स सरनानन्द जी द्वारा समझया गया)      ब्रम्हान्ड दो शक्तियों द्वारा निर्मित है। धनात्मक शक्ति या दैवीय शक्ति एवं ॠणात्मक शक्ति या आसुरीय शक्ति। धनात्मक शक्ति  सभी सद्‌गुणों जैसे कि प्रेम, दया, सत्यता, करूणा आदि से मिलकर बनी है। ॠणात्मक शक्ति सभी दुर्गुणों जैसे घॄणा, दुष्टता, दरिद्रता आदि का संग्रह हैं। संपर्क में आने पर दोनो शक्तियां अपनें-अपनें प्रभाव डालती हैं , एवं अपनें चक्र में फँसानें का प्रयत्न करती हैं। हम सभी धनात्मक शक्ति के अंश है जिसे हम ईश्वर, ब्रम्ह या चित शक्ति आदि नामों से जनते हैं। लेकिन भ्रमित करने वाली ॠणात्मक शक्तियों के वातावरण में रहनें के कारण हम सभी खुद को भूल चुकें हैं। हम सभी ईश्वर की संतान हैं। और यह हमारे पालक (ईश्वर, सदगुरु) का कर्तव्य है कि वे हमें हमारे खुशियों और आनंदमय  परमधाम को ले चलें। पर इस हेतु हमारी परमधाम जानें की पूर्ण इच्छा अति आवश्यक हैं। हम सभी ईश्वरीय परिवार के अंश है। ईश्वर अपनें परमधाम एवं परिवार में शांति, खुशी, एवं आनंद का वातावरण रखनें हेतु निरन्तर परिशोधन अभियान में लिप्त रहते हैं। इस अविरत परिशोधन अभियान के तहत ही ईश्वर अपने सभी गुणों के साथ मानव भेष में अवतरित होते हैं। ईश्वर यह जानते हैं कि भ्रमित मानव जीव (ॠणात्मक शक्ति से प्रभावित जीव) को उनके परमधाम में ले जाने के लिए सजीव सद्‌गुरू परमावश्यक हैं। जीवों से वे खुद का ही अनुसरण करवाते हुए, खुद में ही विलीन कर परमात्मा बनाते हैं, अर्थात्‌ जीवों को उनके घर तक पँहुचाते है। जीवों को परमात्मा( सद्‌गुरू) बनाने का यह संपूर्ण पथ ही सन्तमत है।            सन्तमत अपने भीतर अवस्थित उस परमात्मा की सत्ता को पहिचानने का अति प्राचीन आध्यत्मिक मार्ग है। सन्तमत में छुपे इस ज्ञान को पराविद्या, हंसविद्या, एवं महाविद्या आदि नामों से भी जाना जाता है । सन्तमत क शाब्दिक अर्थ " पवित्र-मार्ग" है । यह एक भयरहित,संशयरहित, सरलतम,सुरक्षित एवं ईश्वरीय साक्षात्‌कार का निश्चित मार्ग है। इस मार्ग में सद्‌गुरू, शिष्यों में छिपी हुयी दैवीय शक्ति (धनात्मक शक्ति ) को जाग्रत करते है एवं शिष्यों को परमात्मा से एकीकॄत करते है। इस मार्ग में मंजिल (परमत्मा में विलीनता) अतितीव्र गति से मिलती है  अतः  इसे विहंगम मार्ग अर्थात पक्षियों का उडा़न मार्ग भी कहते है। सन्तमत में अपने अदंर अवस्थित परमात्मा का साक्षात्‌कार बहुत ही सहजता से होता अतः इसे सहजमार्ग भी कहते हैं।            ॠणात्मक शक्ति (माया) से मुक्ति हेतू सजीव सद्‌गुरू का आश्रय अति आवश्यक है। सद्‌गुरू मानव भेष में पूर्ण परमात्मा ही है। दुख व कष्टों में ग्रसित अपनें अंश को परमधाम ले जाने हेतु परमात्मा मानव रूप धारण करते है।  सद्‌गुरु के पास जीवों की दरिद्रता, कष्ट, आदि का अंत कर उनके जीवन में सुख शांति भरने की अनंत शक्ति होती है। लेकिन परम सद्‌गुरु के इस अभियान में जीवों का गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण अति आवश्यक है। वर्तमान सद्‌गुरु परमहंस स्वामी श्री सरनानंद जी महाराज से एक बार गुरुदीक्षा लेकर उनके बताये हुए अभ्यास योग को करने से  मुक्ति सुनिश्चित है। यह मार्ग सभी जिज्ञासुओं के लिये खुला है।   Copyright © 2018. गुरुसन्त्मत.ओर्ग.

No comments:

Post a Comment