Wednesday, 3 January 2018
सत्गुरु या सद्गुरु
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सत्गुरु
सत्गुरु या सद्गुरु का अर्थ है सच्चा गुरु. यह शब्द गुरु के अन्य रूपों जैसे संगीत विद्या के गुरु, पढा़ने वाले गुरु, माता-पिता रूपी गुरु आदि से अलग माना जाता है। सत्गुरु नाम केवल ऐसे ज्ञानप्राप्त ऋषि/ संत को दिया जाता है जिसके जीवन का उद्देश्य आध्यात्मिक मार्ग पर गुरु-शिष्य परंपरा के अनुसार बनाए गए शिष्य को मार्गदर्शन देना है जिसके परिणाम से ईश्वर प्राप्ति हो कर आत्मज्ञान हो जाता है।
प्राचीन और परंपरागत स्रोत संपादित करें
अनुशंसा यह कहती है कि सच्चे गुरु या सत्गुरु का सबसे बड़ा गुण यह है कि वह स्वयं भी सच्चे मालिक ईश्वर को जान चुका हो। [1] कबीर के एक शब्द में सत्गुरु को सच्चा संत कहा गया है।[2] भगवान राम के गुरु वसिष्ठ, त्रेता युग में सत्गुरु थे। स्वामी शंकर पुरुषोत्तम तीर्थ योग वासिष्ठ का संदर्भ देते हैं:-"वास्तविक गुरु वह है जो दृष्टि, स्पर्श, या अनुदेश से शिष्य के शरीर में आनंद संवेदन उत्पन्न कर दे".[3] सत्गुरु का अखंड ब्रह्मचारी होना सभी ने आवश्यक नहीं माना है।[4] उदाहरणत: हिंदु सत्गुरु तुकाराम, एक गृहस्थ थे। मोइनुद्दीनचिश्ती के भी परिवार था। सत्गुरु कबीर के भी दो बच्चे थे कमाल और कमाली जो बहुत भक्त थे। * गुलरपुरा आश्रम वाले सद्गुरुदेव श्री ब्रजमोहन गोतम (गुरुजी) भी एक गृहस्थ सन्त थे, आपन अपने जीवन में कभी स्वय्म के लिये दान, दक्शिना नहीं ली, एकदम सादा जीवन, ओर कइ प्रत्यक्श प्रमाण दिये, जिससे विशाल जन सैलाब आपको भगवान तुल्य पुजते थे, कभी कोइ प्रवचन नहीं किये अपने कर्म से ही वे अपने शिश्यो को शिक्शा दिया करते थे!
अन्य प्रयुक्तियां संपादित करें
सिख धर्म में सत्गुरु एक माध्यम का प्रतीक है जो ईश्वर की ओर ले जाता है।
आत्मज्ञान के मार्ग में सत्गुरु ही अपने अनुयायिओं को मार्ग पर अग्रसर करता है।
संतमत और उसकी अद्वैत मत धारा में जीवित गुरु को ही ईश्वर प्राप्ति का मार्ग माना जाता है।[5].
सहसार्थक अवधारणा संपादित करें
अपनी पुस्तक 'इंडियन विज़डम, मॉडर्न साइकॉलॉजी एंड क्रिश्चिएनिटी' में जैक्स विग्ने ज़ोर दे कर कहते हैं कि 'जॉन द बैप्टिस्ट' को सत्गुरु की भाँति देखा जा सकता है।[6]
इन्हें भी देखें संपादित करें
कबीर
संत मत
नानक
बाबा फकीर चंद
तुकाराम
स्वामी निगमानन्द परमहंस
सन्दर्भ संपादित करें
↑ Adi Granth: 286
↑ LVI I. 68. भाई कोई सत्गुरु संत कहावै.
↑ तीर्थ, स्वामी शंकर पुरुषोत्तम (1992). योग वाणी: इंस्ट्रक्शंस फॉर द अटेनमेंट ऑफ सिद्धयोग. न्यूयॉर्क: सतयुग प्रेस. पृ॰ 27.
↑ गॉड स्पीक्स, मेहेर बाबा, PUB Dodd Meade, 1955, 2nd Ed. pp. 150,158,196, 291
↑ ल्यूइस, जेम्स आर. 'सीकिंग द लाइट', पृ.62. मेंडेविल्ले प्रेस, ISBN 0-914829-42-4
↑ विग्ने, जैक्स (1997). 'इंडियन विज़डम, मॉडर्न साइकॉलॉजी एंड क्रिश्चिएनिटी' अध्याय. 1. बी.आर. पब्लिशिंग कार्पोरेशन. ISBN 81-7018-944-6. विग्ने/इंगलिश/b1p2ch1.html Available online
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