Friday, 31 March 2017
संध्या मंत्र
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संध्या – प्रातःकाल की
॥ श्री गणेशाय नमः ॥
प्रातःकाल की संध्या तारे छिपने के बाद तथा सूर्योदय पूर्व करनी चाहिए।
शौच एवं स्नान के बाद शुद्ध वस्त्र पहन कर, पूजा के कमरे या मन्दिर में प्रवेश से पहले द्वार पर इन तीनों मंत्रों से तीन बार अपने कान स्पर्श करे –
ॐ केशवाय नमः, ॐ नारायणाय नमः, ॐ माधवाय नमः।
फिर बायें हाथ पर दायें हाथ से ताली बजा कर नम्रता से प्रवेश करे।
साधक एक जोड़ा शुद्ध यज्ञोपवीत*१* धारण किये हुए हो। बायें कंधे पर एक गमछा या उसके आभाव में एक और जनेऊ अर्थात् कुल तीन यज्ञोपवीत हों। पूर्व, उत्तर या पूर्वोत्तर दिशा की ओर मुख कर के आसन पर बैठ कर मार्जन करे मार्जन के विनियोग का मन्त्र पढ़कर जल छोड़े (विनियोग का जल छोटी-चम्मच से छोड़े जिसे आचमनी कहते हैं) –
ॐ अपवित्रः पवित्रो वेत्यस्य वामदेव ऋषिः, विष्णुर्देवता, गायत्रीच्छन्दः, हृदि पवित्रकरणे विनियोगः।
मार्जन का मन्त्र पढ़कर अपने शरीर एवं सामग्री पर जल छिड़के (तीन कुश या तीन अँगुलियों से) –
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥
आसन पवित्र करने के मंत्र का विनियोग पढ़कर जल गिराए –
ॐ पृथ्वीति मन्त्रस्य मेरुपृष्ठ ऋषिः, सुतलं छन्दः, कूर्मो देवता, आसन पवित्रकरणे विनियोगः।
अब आसन पर जल छिड़क कर दायें हाथ से उसका स्पर्श करते हुए आसन पवित्र करने का मंत्र पढ़े –
ॐ पृथ्वि! त्वया धृता लोका देवि! त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवि! पवित्रं कुरु चासनम्॥
अब अपनी सम्प्रदाय की मर्यादा के अनुसार साधक तिलक करे, अन्यथा
“त्र्युषं जमदग्नेः”
कह कर ललाट में तिलक करे (कश्यपस्य त्र्यायुषम् इस मंत्र से गले में, यद्देवेषु त्र्यायुषम् इस मंत्र से दोनों भुजाओं के मूल में और तन्नोऽस्तु त्र्यायुषम् इस मंत्र से हृदय में भस्म लगाए)।
आचमन –
ॐ केशवाय नमः, ॐ नारायणाय नमः, ॐ माधवाय नमः – इन तीनों मंत्रो को पढ़कर प्रत्येक मंत्र से एक बार, कुल तीन बार जल से आचमन करे*२*।
ॐ गोविन्दाय नमः बोलते हुए हाथ धो ले।
ॐ हृषीकेशाय नमः बोल कर दायें हाथ के अँगूठे से मूल भाग से दो बार ओठ पोंछ ले। तत्पश्चात् भीगी हुई अंगुलियों से मुख आदि का स्पर्श करे। मध्यमा-अनामिका से मुख, तर्जनी-अंगुष्ठ से नासिका, मध्यमा-अंगुष्ठ से नेत्र, अनामिका-अंगुष्ठ से कान, कनिष्ठका-अंगुष्ठ से नाभि, दाहिने हाथ से हृदय, पाँचों अंगुलियों से सिर, पाँचों अंगुलियों से दाहिनी बाँह और बायीं बाँह का स्पर्श करे।
दोनों हाथों में कुशों की पवित्री या सोने या चाँदी या ताम्बे की अँगूठी पहने। अँगूठी यदि पहले से पहनी हुई हो तो उसका स्पर्श करते हुए इस मंत्र को पढ़े –
ॐ पवित्रे स्थो वैष्णव्यौ सवितुर्वः प्रसव उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः।
तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुने तच्छकेयम्॥
अब ॐ के साथ गायत्री मंत्र या इस –
चिद्’रूपिणि महामाये! दिव्यतेजःसमन्विते।
तिष्ठ देवि! शिखामध्ये तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे॥
मंत्र से शिखा बाँध ले, यदि शिखा पहले से बँधी हो तो उसका स्पर्श कर ले। ईशान दिशा की ओर मुख करके आचमन करे।
नीचे लिखा संकल्प पढ़कर दल भूमि पर गिरा दे –
हरिः ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्यब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तैकदेशान्तर्गते पुण्यक्षेत्रे कलियुगे कलिप्रथमचरणे अमुकसंवत्सरे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरे अमुकगोत्रोत्पन्नः अमुक शर्मा(ब्राह्मण)/वर्मा(क्षत्रिय)/गुप्ता(वैश्य) अहं ममोपात्तदुरितक्षयपूर्वकं श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थं प्रातः संध्योपासनं करिष्ये।
नीचे लिखा विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े –
ऋतं चेति त्र्यृचस्य माधुच्छन्दसोऽघर्षण ऋषिः अनुष्टुप् छन्दो भाववृत्तं दैवतमपामुपस्पर्शने विनियोगः॥
नीचे लिखा मंत्र पढ़कर आचमन करे –
ॐ ऋतं च सत्यं चाभीद्धात्तपसोऽध्यजायत। ततो रात्र्यजायत। ततः समुद्रो अर्णवः। समुद्रादर्णवादधिसंवत्सरो अजायत। अहोरात्रणि विदधद् विश्वस्य मिषतो वशी। सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वकल्पयत्। दिवं च पृथिवीं चान्तरिक्षमथो स्वः॥
अब ॐ के साथ गायत्री मन्त्र पढ़कर रक्षा के लिए अपने चारों ओर जल छिड़के।
नीचे लिखा विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े –
ॐकारस्य ब्रह्मा ऋषिः गायत्री छन्दोऽग्निर्देवता शुक्लो वर्णः सर्वकर्मारम्भे विनियोगः॥
नीचे लिखा विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े –
सप्तव्याहृतीनां विश्वामित्रजमदग्निभरद्वाजगौतमात्रिवसिष्ठकश्यपाऋषयो गायत्र्युष्णिगनुष्टुब्बृहती-पङ्क्तित्रिष्टुब्जगत्यश्छन्दांस्यग्निवाय्वादित्य-बृहस्पतिवरुणेन्द्रविश्वेदेवा देवता अनादिष्टप्रायश्चित्ते प्राणायामे विनियोगः॥
नीचे लिखा विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े –
गायत्र्या विश्वामित्र ऋषिः गायत्री छन्दः सविता देवता अग्निर्मुखमुपनयने प्राणायामे विनियोगः॥
नीचे लिखा विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े –
शिरसः प्रजापतिः ऋषिस्त्रिपदा गायत्री छन्दो ब्रह्माग्निवायुसूर्या देवता यजुः प्राणायामेविनियोगः॥
अब नीचे लिखे मंत्र से तीन बार प्राणायाम करे। पूरक में नीलवर्ण विष्णु का ध्यान (नाभी देश में) करे। कुम्भक में रक्तवर्ण ब्रह्मा (हृदय में) का ध्यान करे। रेचक में श्वेतवर्ण शंकर का (ललाट में) ध्यान करे। प्रत्येक भगवान् के लिए तीन या एक बार प्राणायाम मंत्र पढ़े।
प्राणायाम मंत्र –
ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम् ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्। ॐ आपो ज्योती रसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वरोम्॥
प्रातःकाल का विनियोग और मंत्र –
नीचे लिखा विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े –
सूर्यश्च मेति ब्रह्मा ऋषिः प्रकृतिश्छन्दः सूर्यो देवता अपामुपस्पर्शने विनियोगः॥
नीचे लिखा मंत्र पढ़कर आचमन करे –
ॐ सूर्यश्च मा मन्युश्च मन्युपतयश्च मन्युकृतेभ्यः पापेभ्यो रक्षन्ताम्। यद्रात्र्या पापमकार्षं मनसा वाचा हस्ताभ्यां पद्भ्यामुदरेण शिश्ना रात्रिस्तदवलुम्पतु। यत्किञ्च दुरितं मयि इदमहं माममृतयोनौ सूर्ये ज्योतिषि जुहोमि स्वाहा॥
नीचे लिखा विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े –
आपो हि ष्ठेत्यादित्र्यृचस्य सिन्धुद्वीप ऋषिर्गायत्री छन्द आपो देवता मार्जने विनियोगः॥
अब नीचे लिखे ९ मंत्रों से मार्जन करे। ७ पदों से सिर पर जल छोड़े, ८वें से भूमि पर और ९वें पद से फिर सिर पर तीन कुशों अथवा तीन अंगुलियों से मार्जन करे –
ॐ आपो हि ष्ठा मयो भुवः।
ॐ ता न ऊर्जे दधातन।
ॐ महे रणाय चक्षसे।
ॐ यो वः शिवतमो रसः।
ॐ तस्य भाजयतेह नः।
ॐ उशतीरिव मातरः।
ॐ तस्मा अरं गमाम वः।
ॐ यस्य क्षयाय जिन्वथ।
ॐ आपो जनयथा च नः॥
नीचे लिखा विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े –
द्रुपदादिवेत्यस्य कोकिलो राजपुत्र ऋषिः अनुष्टुप् छन्द आपो देवता सौत्रामण्यवभृथे विनियोगः॥
अब बायें हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ से उसे ढक कर, नीचे लिखे मन्त्र को तीन बार पढ़े, फिर उस जल को सिर पर छिड़क ले –
ॐ द्रुपदादिव मुमुचानः स्विन्नः स्नातो मलदिव। पूतं पवित्रेणेवाज्यमापः शुन्धन्तु मैनसः॥
नीचे लिखा विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े –
ऋतञ्चेति त्र्यृचस्य माधुच्छन्दसोऽघमर्षण ऋषिः अनुष्टुप् छन्दो भाववृत्तं दैवतमघमर्षणे विनियोगः॥
अब दाहिने हाथ में जल लेकर नाक से लगाकर, नीचे लिखे मन्त्र को तीन या एक बार पढ़े, फिर अपनी बाईं ओर जल पृथ्वी पर छोड़ दे। (मन में यह भावना करे कि यह जल नासिका के बायें छिद्र से भीतर घुसकर अन्तःकरण के पापको दायें छिद्र से निकाल रहा है, फिर उस जल की ओर दृष्टि न डालकर अपनी बायीं ओर शिला की भावना करके उस पर पाप को पटक कर नष्ट कर देने की भावना से जल उस पर फेंक दे।)
ॐ ऋतं च सत्यं चाभीद्धात्तसोऽध्यजायत। ततो रात्र्यजायत। ततः समुद्रो अर्णवः। समुद्रादर्णवादधिसंवत्सरो अजायत। अहोरात्राणि विदधद्विश्वस्य मिषतो वशी। सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत्। दिवं च पृथिवीं चान्तरिक्षमथो स्वः॥
नीचे लिखा विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े –
अन्तश्चरसीति तिरश्चिन ऋषिः अनुष्टुप् छन्द आपो देवता अपामुपस्पर्शने विनियोगः॥
नीचे लिखा मंत्र पढ़कर एक बार आचमन करे –
ॐ अन्तश्चरसि भूतेषु गुहायां विश्वतोमुखः।
त्वं यज्ञस्त्वं वषट्कार आपो ज्योती रसोऽमृतम्॥
नीचे लिखा विनियोग केवल पढ़े जल न छोड़े –
ॐकारस्य ब्रह्म ऋषिः देवी गायत्री छन्दः परमात्मा देवता, तिसृणां महाव्याहृतीनां प्रजापतिर्ऋषिः गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छन्दांस्यग्निवायुसूर्या देवताः, तत्सवितुरिति विश्वामित्र ऋषिर्गायत्री छन्दः सविता देवता सूर्यार्घ्यदाने विनियोगः॥
अब प्रातःकाल की संध्या में सूर्य के सामने खड़ा हो जाए। एक पैर की एड़ी उठाकर तीन बार गायत्री मंत्र का जप करके पुष्प मिले हुए जल से सूर्य को तीन अंजलि जल दे। प्रातःकाल का अर्घ्य जल में देना चाहिए यदि जल न हो तो स्थल को अच्छी तरह जल से धो कर उस पर अर्घ्य का जल गिराए।
गायत्री मन्त्र –
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्।
इस मंत्र को पढ़कर ब्रह्मस्वरूपिणे सूर्यनारायणाय इदमर्घ्यं दत्तं न मम कह कर प्रातःकाल अर्घ्य समर्पण करे।
अब नीचे लिखा विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े –
उद्वयमित्यस्य प्रस्कण्व ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः सूर्यो देवता सूर्योपस्थाने विनियोगः॥
नीचे लिखा विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े –
उदुत्यमिति प्रस्कण्व ऋषिर्निचृद्गायत्री छन्दः सूर्यो देवता सूर्योपस्थाने विनियोगः॥
नीचे लिखा विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े –
चित्रमिति कुत्साङ्गिरस ऋषिस्त्रिष्टुप् छन्दः सूर्यो देवता सूर्योपस्थाने विनियोगः॥
नीचे लिखा विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े।
तच्चक्षुरिति दध्यङ्ङाथर्वण ऋषिरेकाधिका ब्राह्मी त्रिष्टुप् छन्दः सूर्यो देवता सूर्योपस्थाने विनियोगः॥
प्रातःकाल की संध्या में अंजलि बाँधकर यदि संभव हो तो सूर्य को खड़े होकर देखते हुए प्रणाम करे –
ॐ उद्वयं तमसस्परि स्वः पश्यन्त उत्तरम्। देवं देवत्रा सूर्यमगन्म ज्योतिरुत्तमम्॥
ॐ उदुत्यं जातवेदसं देवं वहन्ति केतवः। दृशे विश्वाय सूर्यम्॥
ॐ चित्रं देवानामुदगादनीकं चक्षुर्मित्रस्य वरुणस्याग्नेः। आप्रा द्यावापृथिवी अन्तरिक्ष ग्वँग् सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च॥
ॐ तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत्। पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शतं ग्वँग् शृणुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात्॥
अब बैठ कर अंगन्यास करे, दाहिने हाथ की पाँचों अंगुलियों से “हृदय” आदि का स्पर्श करे –
ॐ हृदयाय नमः। (हृदय का स्पर्श)
ॐ भूः शिरसे स्वाहा। (मस्तक का स्पर्श)
ॐ भुवः शिखायै वषट्। (शिखा का स्पर्श)
ॐ स्वः कवचाय हुम्। (दाहिने हाथ की उँगलियों से बायें कंधे का और बायें हाथ की उँगलियों से दायें कंधे एक साथ स्पर्श करे)
ॐ भूर्भुवः नेत्राभ्यां वौषट्। (दोनों नेत्रों और ललाट के मध्य भाग का स्पर्श)
ॐ भूर्भुवः स्वः अस्त्राय फट्। (यह मंत्र पढ़कर दाहिने हाथ को सिर के ऊपर से बायीं ओर से पीछे की ओर ले जाकर दाहिनी ओर से आगे की ओर ले आये और तर्जनी तथा मध्यमा उँगलियों से बायें हाथ की हथेली पर ताली बजाये।)
नीचे लिखा विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े –
ॐकारस्य ब्रह्मा ऋषिः गायत्री छन्दो अग्निर्देवता शुक्लो वर्णो जपे विनियोगः॥
नीचे लिखा विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े –
त्रिव्याहृतीनां प्रजापति ऋषिः गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छन्दांस्यग्निवाय्वादित्या देवता जपे विनियोगः॥
नीचे लिखा विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े –
गायत्र्या विश्वामित्र ऋषिः गायत्री छन्दः सविता देवता जपे विनियोगः॥
नीचे लिखे मंत्र को पढ़कर इसके अनुसार गायत्री देवी का ध्यान करे –
ॐ श्वेतवर्णा समुद्दिष्टा कौशेयवसना तथा।
श्वेतैर्तिलेपनैः पुष्पैरलंकारैश्च भूषिता॥
आदित्यमण्डलस्था च ब्रह्मलोकगताथवा।
अक्षसूत्रधरा देवी पद्मासनगता शुभा॥
नीचे लिखा विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े –
ॐ तेजोऽसीति धामनामासीत्यस्य च परमेष्ठी प्रजापतिर्ऋषिर्यजुस्त्रिष्टुबृगुष्णिहौ छन्दसी सविता देवता गायत्र्यावाहने विनियोगः॥
नीचे लिखे मंत्र से विनयपूर्वक गायत्री देवी का आवाहन करे –
ॐ तेजोऽसि शुक्रमस्यमृतमसि। धामनामासि प्रियं देवानामनाधृष्टं देवयजनमसि॥
नीचे लिखा विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े –
ॐ गायत्र्यसीति विवस्वान् ऋषिः स्वराण्महापङ्क्तिश्छन्दः परमात्मा देवता गायत्र्युपस्थाने विनियोगः॥
अब नीचे लिखे मंत्र से गायत्री देवी को प्रणाम करे –
ॐ गायत्र्यस्येकपदी द्विपदी त्रिपदी चतुष्पद्यपदसि। न हि पद्यसे नमस्ते तुरीयाय दर्शताय पदाय परोरजसेऽसावदो मा प्रापत्॥
नीचे लिखा विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े –
ॐकारस्य ब्रह्म ऋषिः देवी गायत्री छन्दः परमात्मा देवता, तिसृणां महाव्याहृतीनां प्रजापतिर्ऋषिः गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छन्दांस्यग्निवायुसूर्या देवताः, तत्सवितुरिति विश्वामित्र ऋषिर्गायत्री छन्दः सविता देवता जपे विनियोगः॥
फिर सूर्य की ओर मुख करके, कम-से-कम १०८ बार गायत्री-मंत्र का जप करे –
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात् ॐ।
नीचे लिखा विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े –
विश्वतश्चक्षुरिति भौवन ऋषिस्त्रिष्टुप् छन्दो विश्वकर्मा देवता सूर्यप्रदक्षिणायां विनियागः।
अब नीचे लिखे मन्त्र से अपने स्थान पर खड़े होकर सूर्य देव की एक प्रदक्षिणा करे –
ॐ विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वतस्पात्।
सम्बाहुभ्यां धमति सम्पतत्रैर्द्यावाभूसी जनयन् देव एकः॥
नीचे लिखा विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े –
ॐ देवा गातुविद इति मनसस्पतिर्ऋषिर्विराडनुष्टुप् छन्दो वातो देवता जपनिवेदन विनियोगः।
अब नमस्कार करे –
ॐ देवा गातुविदो गातुं वित्त्वा गातुमित मनसस्पत इमं देव यज्ञ ग्वँग् स्वाहा व्वाते धाः।
अब नीचे लिखा मंत्र पढ़े –
अनेन यथाशक्तिकृतेन गायत्रीजपाख्येन कर्मणा भगवान् सूर्यनारायणः प्रीयतां न मम।
अब विसर्जन के विनियोग का मंत्र पढ़े –
उत्तमे शिखरे इति वामदेव ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः गायत्री देवता गायत्रीविसर्जने विनियोगः।
विसर्जन मंत्र –
ॐ उत्तमे शिखरे देवी भूम्यां पर्वतमूर्धनि।
ब्रह्मणेभ्योऽभ्यनुज्ञाता गच्छ देवि यथासुखम॥
अब नीचे लिखा वाक्य पढ़कर संध्योपासन कर्म परमेश्वर को समर्पित करे।
अनेन संध्योपासनाख्येन कर्मणा श्रीपरमेश्वरः प्रीयतां न मम। ॐ तत्सत् श्रीब्रह्मार्पणमस्तु।
अब भगवान् का स्मरण करे।
यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रियादिषु।
न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम्॥
ॐ श्रीविष्णवे नमः॥ ॐ श्रीविष्णवे नमः॥ ॐ श्रीविष्णवे नमः॥
॥ श्रीविष्णुस्मरणात् परिपूर्णतास्तु॥
॥इति॥
*१*नवीन यज्ञोपवीत धारण करने के लिए स्नान करके आसन पर बैठ जाएँ फिर आचमन कर के, नौ तन्तुओं में क्रमशः ॐकार, अग्नि, सर्प, सोम, पितर, प्रजापति, वायु, यम और विश्वदेव की तथा तीन ग्रन्थियों में क्रमशः ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र की भावना करके विनियोग मंत्र पढ़े –
ॐ यज्ञोपवीतमिति परमेष्ठी ऋषिः, त्रिष्टुप् छन्दः, लिङ्गोक्ता देवता, श्रोतस्मार्त कर्मानुष्ठानाधिकारसिद्धये यज्ञोपवीतपरिधाने विनियोगः।
यज्ञोपवीत धारण का मंत्र –
ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत् सहजं पुरस्तात्।
आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः॥
ॐ यज्ञोपवीतमसि यज्ञस्य त्वा यज्ञोपवीतेनोपनह्यामि।
इस मंत्र को पढ़कर एक जोड़ा यज्ञोपवीत पहन ले। फिर कम-से-कम बीस बार गायत्री-मंत्र का जप करे। इसके बाद पुराने जनेऊ को ऊतार कर “समुद्रं गच्छ स्वाहा” या (एतावद्दिनपर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया। जीर्णत्वात् त्वत्वपरित्यागो गच्छ सूत्र यथासुखम्॥) – बोल कर जलाशय में फेंक दे।
*२*आचमन के समय हाथ धुटनो के भीतर हों। ब्राह्मण इतना जल पीये कि हृदय तक पहुँच सके, क्षत्रिय इतना जल पीये कि कण्ठ तक पहुँच सके और वैश्य इतना जल पीये कि तालु तक पहुँच सके। आचमन का जल पीते समय ओठ बहुत न खोले। अंगुलियाँ आपस में सटी हुई हों। जल मणिबंध की ओर से पीये। आचमन सदैव बैठ कर ही करना चाहिए, इसलिए द्वार पर आचमन में केवल कान स्पर्श करते हैं, जल नहीं पीते।
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