Friday 31 March 2017

सफलता का मूल ब्रह्मचर्य

  स्वामी विवेकानन्द: ब्रह्मचर्य सब सफलताओं का मूल ! By: Navneet Gupta ब्रह्मचर्य की समझ जब स्वामी विवेकानन्द जी विदेश में थे, तब ब्रह्मचर्य की चर्चा छिड़ने पर उन्होंने कहाः "कुछ दिन पहले एक भारतीय युवक मुझसे मिलने आया था। वह करीब दो वर्ष से अमेरिका में ही रहता है। वह युवक ब्रह्मचर्य का पालन बड़ी चुस्ततापूर्वक करता है। एक बार वह बीमार हो गया तो वहाँ के डॉ. को बताया। तुम जानते हो डॉक्टर ने उस युवक को क्या सलाह दी ? कहाः 'ब्रह्मचर्य प्रकृति के नियम के विरुद्ध है अतः ब्रह्मचर्य का पालन करना उसके स्वास्थ्य के लिए हितकर नहीं है।' उस युवक को बचपन से ही ब्रह्मचर्य-पालन के संस्कार मिले थे। डॉक्टर की ऐसी सलाह से वह उलझन में पड़ गया। वह मुझसे मिलने आया एवं सारी बातें बतायीं। मैंने उस युवक को समझायाः 'तुम जिस देश के वासी हो वह भारत आज भी अध्यात्म के क्षेत्र में विश्वगुरु के पद पर आसीन है। अपने देश के ऋषि-मुनियों के उपदेश पर तुम्हें ज्यादा विश्वास है कि ब्रह्मचर्य को जरा भी न समझने वाले पाश्चात्य जगत के डॉक्टर पर ? हमारे ऋषि-मुनि ब्रह्मचर्य-रक्षा से ही परम पद की यात्रा करने में समर्थ बने हैं। ब्रह्मचर्य को प्रकृति के नियम के विरुद्ध कहने वालों को ब्रह्मचर्य शब्द के अर्थ का भी पता नहीं है। ब्रह्मचर्य के विषय में ऐसे गलत ख्याल रखने वालों के प्रति एक ही प्रश्न है कि 'आप में और पशुओं में क्या अन्तर है ?' युवको ! हजारों वर्ष तक तपस्या करके, सात्त्विक आहार करके, गिरि-कंदराओं में साधना करके प्रकृति के सूक्ष्मातिसूक्ष्म रहस्यों की खोज करने वाले हमारे ऋषियों की समझ ठोस है, सत्य की नींव पर आधारित है। उसमें विश्वास रखो, श्रद्धा रखो। देखो, मन को प्रबल बनाना हो तो पहले पवित्रता क्या चीज है ? इसे खूब सूक्ष्मता से समझना होगा। मन को पवित्र विचारों से सराबोर रखने से मनोबल बढ़ता है। मन जितना विकारी विचारों से घिरा रहता है उतना वह निर्बल होता जाता है। इसलिए जीवन में ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है। ब्रह्मचर्य विकारी वासनाओं का नाश कर देता है। ब्रह्मचर्य का पालन व्यक्ति को उन्नत विचारों के उत्तुंग शिखरों पर प्रस्थापित कर देता है। कइयों को ब्रह्मचर्य का पालन कठिन लगता है। उनके लिए मेरी सलाह है कि विकारी विचारों को शुद्ध एवं पवित्र विचारों से काटने के अभ्यास से उसमें बहुत सफलता मिलती है। स्त्री मात्र को माता, पुत्री अथवा बहन के रूप में देखने की आदत बना लेने से कामवासना के विचार शांत हो जाते हैं। भारतीय संस्कृति में माता, पुत्री एवं बहन के संबंधों को अत्यन्त पवित्र माना जाता है। जब मन में ऐसी पवित्र भावना रखकर स्त्री की तरफ नजर डालोगे तो विकार तुम्हें कभी नही सतायेंगे। ब्रह्मचर्य सभी अवस्थाओं में विद्यार्थी, गृहस्थी अथवा साधु-संन्यासी के लिए अत्यंत आवश्यक है। सदाचारी एवं संयमी व्यक्ति ही जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है।" इस प्रकार स्वामी जी जब अमेरिका के साधकों को ब्रह्मचर्य, सदाचार एवं संयम की महिमा समझा रहे थे, तब पाश्चात्य जगत के डॉक्टरों की समझ कितनी गलत थी – उन्होंने यह भी बता दिया। Share Recommended section आपके बारे में क्या कहते हैं नाखून पर बने सफेद निशान राशि के अनुसार जानिए किनसे रिश्ते बिगाड़ना भारी पड़ सकता है आपको इन 15 महान फरिश्तों की जानकारी हैरान कर देगी आपको जानिए आपके बारे में क्या कहती है आपकी लिखाई (हैंड राइटिंग) ऐसे माता-पिता हैं शत्रु के समान जो..... Popular section Is Lord Hanumana still alive? What does your mole say about you? Learn these 4 secrets of Chanakya for a happier life! Samudrika Shastra: Blindly marry a man who has even 12 of these 20 characteristics (Lakshana)! According to the Shashtras, these habits don't let you become rich Go to hindi.speakingtree.in

No comments:

Post a Comment