Friday, 31 March 2017
ब्राह्मण धर्म
हिन्दू धर्म (सनातन धर्म)
जब-जब धर्म की हानि होती है तब-तब धर्म के उत्थान और अधर्म के नाश के लिए में आता हूँ.
Menu Skip to content
Search for:
हिंदू वर्ण व्यवस्था
भारतवर्ष में प्राचीन हिंदू में लोगों को उनके द्वारा किये जाने वाले कार्य के अनुसार अलग-अलग वर्गों में रखा गया था। विभिन्न प्रकार के कार्यों के अनुसार बने ऐसे समुदायों को जाति या वर्ण कहा जाता था ।
प्राचीन भारतीय समाज ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र वर्णों में विभाजित था ।
ब्राह्मणों का कार्य शास्त्र अध्ययन-अध्यापन , वेदपाठ तथा यज्ञ कराना होता था जबकि क्षत्रिय युद्ध तथा राज्य के कार्यों के उत्तरदायी थे । वैश्यों का काम व्यापार तथा शूद्रों का काम सेवा प्रदान करना होता था ।
प्राचीन काल में यह सब संतुलित था तथा सामाजिक संगठन की दक्षता बढ़ानो के काम आता था। पर कालान्तर में ऊँच-नीच के भेदभाव तथा आर्थिक स्थिति बदलने के कारण इससे विभिन्न वर्णों के बीच दूरिया बढ़ीं । यह ध्यान रखने योग्य है कि वैदिक काल में वर्ण-व्यवस्था जन्म-आधारित न होकर कर्म आधारित थी| वैदिक काल में जाति वंशानुगत नहीं होता था लेकिन गुप्तकाल के आते-आते आनुवंसिक आधार पर लोगों के वर्ण तय होने लगे। परस्पर श्रेष्ठता के भाव के चलते नई-नई जातियों की रचना होने लगी। यहाँ तक कि श्रेष्ठ समझे जाने वाले ब्राह्मणों ने भी अपने अंदर दर्जनों वर्गीकरण कर डाला। अन्य वर्ण के लोगों ने इसका अनुसरण किया और जातियों की संख्या हजारों में पहुँच गयी।इस प्रकार इस वर्ण व्यवस्था ने एक इंसान को दूसरे इंसान से बिल्कुल अलग कर दिया।
हिन्दू समाज को किसने खण्डित किया ?
ब्राह्मणों ने अपने को श्रेष्ठ साबित करने के किये वेदों का गलत वर्णन किया | ब्राह्मणों ने ही हिन्दू धर्मं के स्वरूप को बिगारा और मनमाना धर्मं ग्रन्थ बनाकर अपने को उच्च साबित करते गए | ग्रंथो को (ब्राह्मणों ने) केवल अपने मतलब के लिए लिखा | उन ग्रंथो को में हर तरह से ब्राह्मण-पुरोहितों का महत्व बताया गया है। ब्राह्मण-पुरोहितों का शूद्रादि-अतिशूद्रों के दिलो-दिमाग पर हमेशा-हमेशा के लिए वर्चस्व बना रहे इसलिए उन्हें ईश्वर से भी श्रेष्ठ समझा गया। उन ग्रंथो द्वारा ब्राह्मण-पुरोहितों ने ईश्वर के वैभव को कितनी निम्न स्थिति में ला रखा है, यह सही में बड़ा शोचनीय है। जिस ईश्वर ने शूद्रादि-अतिशूद्रों को और अन्य लोगों को अपने द्वारा निर्मित इस सृष्टि की सभी वस्तुओं को समान रूप से उपभोग करने की पूरी आजादी दी है, उस ईश्वर के नाम पर ब्राह्मण-पंडा-पुरोहितों एकदम झूठ-मूठ ग्रंथो की रचना करके, उन ग्रंथो में सभी के (मानवी) हक को नकारते हुए स्वयं मालिक हो गए। उन्होंने समाज में प्रेम के बजाय जहर के बीज बोए।
आम नागरिक भोला होता है, ब्राह्मणों का कपट, ब्राह्मणों की चालाकी उसको समझाने पर भी समझ नहीं आती। सच तो ये है ब्राह्मणों का लूटने का, लोगों को मूर्ख बनाने पुराना धंदा है | शुद्र जाति के,पिछड़े जाति के लोग इसके सबसे ज्यादा शिकार है। जब तक वो अपना दिमाग नहीं लगाते तब तक ब्राह्मण अपने ब्राह्मणवाद के जरिये लूटता ही रहेगा।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के अधिकतर मुसलमानों के पूर्वज अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्ग के हिंदू थे, जिन्होंने कालांतर में इस्लाम धर्म अपना लिया और मुसलमान बन गए। आंध्र प्रदेश के मुस्लिम समुदाय में ‘सामाजिक और शैक्षणिक वर्ग की पहचान’ पर तैयार की गई रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि देश के 85 फीसदी मुसलमानों के पूर्वज हिंदू थे जो अनुसूचित जातियों या पिछड़े तबकों से संबंध रखते थे। इन लोगों ने विभिन्न समयों पर इस्लाम ग्रहण कर लिया।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सलाहकार पी.एस. कृष्णन द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट में मुसलमानों और देश में उनकी सामाजिक, आर्थिक स्थिति की तस्वीर पेश की गई है। उन्होंने कहा कि हिंदुओं का मुसलमान बनना समय समय पर चलता रहा… खासकर मध्यकाल में इसने और अधिक गति पकड़ ली। कृष्णन की रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंदुओं में जातिवाद की कठिन व्यवस्था ने इन लोगों के मुसलमान बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इन लोगों ने छुआछूत और भेदभाव से बचने के लिए इस्लाम को अपनाया। उनके लिए इस्लाम कबूल करना एक राहत की बात थी। दक्षिण भारत में कुछ समुदायों के लोगों ने ईसाई धर्म ग्रहण कर लिया। आंध्र प्रदेश में 98 प्रतिशत ईसाई हिंदू अनुसूचित जाति मूल के हैं। पंजाब में इन लोगों ने सिख धर्म अपनाया।
Share this:
TwitterFacebook34Google
Loading...
One thought on “हिंदू वर्ण व्यवस्था”
Mithlesh Kumar das August 19, 2016 at 5:43 am
Ab samay aa gaya hai ki sanatan dharm ki sahi uddeshy Samaj ke samne rakha jay aur aane wali piri ko sanatan dharm ki mhanta ke bare me bataya jay taki hindu hone ka garv kar sabhi.
Like
Reply
Leave a Reply
Your email address will not be published. Required fields are marked *
Comment
Name *
Email *
Website
Post Comment
 Notify me of new comments via email.
Follow Blog via Email
Enter your email address to follow this blog and receive notifications of new posts by email.
Join 22 other followers

Enter your email address
Follow
Create a free website or blog at WordPress.com.
Follow

Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment