Friday, 31 March 2017

विप्र के नियम

Skip to main content Vipra Varta विप्र वार्ता सामाजिक नेटवर्क Main menu About Us Contact Us Home मुफ्त प्रतिदिन विप्रवार्ता इमेल प्राप्ति साधन गजा मूंग छत्तीसगढ़ की आत्मीय रिश्ता  Submitted by Ajay Tripathi on Tue, 01/03/2012 - 01:26 भगवान जगन्नाथ का स्वरूप एक गूढ़ रहस्य का प्रतीक है । यह भगवान नारायण, जगदीश्वर का पुरूषोत्तम स्वरूप है । इस काष्ठमय रूप में भगवान विष्णु यहां विराजमान है । यह पुरूषोत्तम क्षेत्र कहा जाता है जो उड़ीसा में है इसका दस योजन का विस्तार है । इसका प्रादुर्भाव तीर्थराज समुद्र के जल से हुआ है सभी ओर बालुकामय है। मध्य भाग में नीलगिरि इसकी शोभा बढ़ाता है । उत्कल (उड़ीसा) एक पावन प्रदेश है । यहां बहुत से तीर्थ और मंदिर देव स्थान है । यहा दक्षिण समुद्र तट पर बसा हुआ है । दक्षिण समुद्र में मिलने वाली ॠषि कुल्दा नदी पहुंच कर स्वर्णरेखा और महानदी के बीच में प्रविष्ठित है यही उड़ीसा का क्षेत्र है ।भगवान की द्वादश यात्राएं मानी जाती है, जिनमें यह गुण्डिचा यात्रा मुख्य है । गुण्डिचा मंदिर में ही भगवान कृष्ण, बलभद्र एवं सुभद्रा और सुदर्शन चक्र की मूर्ति दारू की लकड़ी से बनाई गई थी । गुण्डिचा मंदिर को ब्रम्हलोक या जनकपुर भी कहा जाता है । चारो धाम की यात्रा की तरह जगन्नाथधाम की यात्रा का भी उतना ही महत्व माना जाता है । तिथि - ज्येष्ठमास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के ज्येष्ठ नक्षत्र के एकही अश में चन्द्रमा एवं वृहस्पति का दिन हो , वृस्पति हो, शुभ दिन माना जाता है । रथ तैयार करने की विधि - वैशाख शुक्ल पक्ष की पापनाशिनी तीज के रोहणी नक्षत्र का योग होने पर पवित्र भाव से पंडित का वरण करें एक या तीन बढ़ई से श्रीकृण, बलभद्र एवं सुभद्रा की मूर्ति प्रतिष्ठा के लिए रथ का निर्माण करे । कलात्मक ढंग से रंग रोगन, सजावट करे सुन्दर आसन बिछाये, शास्त्रोक विधि से फूलों वस्त्रों गुल्म लताओं, चवरों से मण्डल बनवाये । यात्रा के लिए बाजे ढोल मंजीरे झांझ आदि की व्यवस्था करें सड़कों की सफाई समतलीकरण धव्ज, तोरन आदि लगवाये, सड़कों में आसपास चन्दन धूप आदि से सुवासित करें । पूजन विधि - आषाढ़ शुक्ल द्वितिया तिथि आने पर सूर्योदय के साथ भगवान जगन्नाथ , बलभद्र, सुभद्रा सुदर्शन की पूजा अर्चना करें । ब्राह्मणों, भक्तजनों , गृहस्थों के साथ भजन कीर्तन करें । राजा इन्द्रद्युमन्न ने प्रार्थना की थी उसका उच्चारण करें । हे भगवान जगन्नाथ पुरूषोत्तम आप गुण्डिचा मंडप या विजय यात्रा हेतु तैयार होइये । आपकी कृपा दृष्टि से दशों दिशायें पवित्र हो । चर अचर प्राणियों का कल्याण हो । दूसरों पर दया करने के लिए अपने काष्टमय विग्रह स्वरूप से सबका कल्याण कीजिए । जिवं ते पुण्डरीकाक्षं मंत्र का जाप करते हुए भगवान के पवित्र यश का गान करे मंजीरे, ढोलक, झांझ आदि वाद्यों का स्वर संकीर्तन के साथ गुंजायमान करें । रथयात्रा दर्शन के लाभ -(1) जगन्नाथ की रथयात्रा दर्शन से भगवान के धाम में निवास(2) नाम संकीर्त' से सौ जन्मों का पाप नष्ट(3) तीनों भगवान कृष्ण, बलभद्र, सुभद्रा के दर्शन से करोड़ो जन्मों का पाप नष्ट(4) यात्रा के समय कृष्ण कहन ेमात्र से माता के गर्भ में दोबारा आने से मुक्ति ।(5) जो चंवर फूल, व्यंजन या वस्त्र से भगवान को हवाकरे वह ब्रह्मलोक प्राप्त करता है ।(6) सहस्त्रनाम पाठ करते हुए रथ की परिक्रम करें उसको विष्णुधाम में निवास का पुण्य ।(7) रथयात्रा के समय जो धूल कीचड़ सिर पर चढ़ाते हैं वे जीवन के आवागमन बे मुक्त हो जाते हैं(8) जो अज्ञानी अविश्वासी है वे भी इस यात्रा के दर्शन से भगवान के कृपा पात्र हो जाते हैं । राजा इन्द्रद्युम्न ने भगवान से वरदान मांगा था कि वे उनके स्थान में निवास करे । भगवान विष्णु ने कहा था कि राजन गुण्डिचा यात्रा के समय मैं तुम्हारे स्थान में सात दिन निवास करूंगा । उस समय मेरे बलभद्र और सुभद्रा के रहने से तुम्हारा यह स्थान तीर्थ बन जावेगा और जो मनुष्य इस समय मेरा दर्शन करेगा वहमेरा सायुज्य प्राप्त करेंगे । नैवेद्य - भगवान जगन्नाथ जी को चना मूंग, मटर आदि रात्रि में भिगोकर रखा जाता है उसे ही मौसमी फलों के साथ नैवेद्य चढ़ाया जाता है । विशेष - छत्तीसगढ़ में यह प्रसाद गजामूंग कहा जाता है । इसी समय यहां को लोग आत्मीय रिश्ता बनाने के लिए एक दूसरे के साथ गजामूंग बधते हैं आत्मीय रिश्ते बनाते हैं, यह रिश्ता केवल छत्तीसगढ़ में ही बनाया जाता है यह संबंध जीवन भर स्थायी रहता ही है एक दूसरे के मृत्यु उपरांत भी परिवार द्वारा इसे निभाया जाता है । रथयात्रा की कथा -सतयुग में इन्द्रद्युम्न प्रसिध्द राजा थे । सूर्यवंशी थे सत्यवादी सदाचारी शुध्द सात्विक पुरूषों में अग्रगण्य थे । वे सभी सत्कर्ण, सत्तीर्थ कर चुके थे पुरोहित से महत्तम तीर्थ के विषय में पूछा। पुरोहित ने तीर्थों का भ्रमण किया लोगों से पूछा, तीर्थ यात्रियों ने पुरूषोत्तम क्षेत्र को सर्वश्रेष्ठ तीर्थ कहा । राजा जब उस तीर्थ में भगवान जगन्नाथ का दर्शन करने गये तो भगवान विलोप हो गये थे । उन्होंने राजा से कहा कि पुरूषोत्तम क्षेत्र ही एक सर्वश्रेष्ठ तीर्थ है । जब मैं तुम्हें अवश्य दर्शन दूंगा । राजा ने अन्न जल त्याग कर मरने का प्रण लिया । तब भगवान ने स्वयं में आकर काष्ठ की चार मूर्ति बनाने और भक्तिपूर्वक पूजा करने कहा । राजा इन्द्रधनुष के पास ब्राह्मण वेश में विश्वकर्मा आये और मूर्ति बनाने की बात कही । ब्राह्मण ने राजा से वचन लिया कि उन्हें एक कमरा दिया जाय जहां वे मूर्ति का निर्माण करेंगे और जब तक वे स्वयं बाहर नहीं निकलेंगे कोई भी दरवाजा नहीं खोलेगा । राजा स्वीकार कर लिये । ब्राह्मण वेशधारी विश्वकर्मा कमरे के भीतर मूर्ति बनाने लग गये । दिन बीतने लगे ब्राह्मण नहीं निकले । पन्द्रह दिन बीत जाने क ेबाद राजा को चिन्ता हुई और वे दरवाजा खुलवा दिये । वे कमरा देखकर स्तंभ रह गये । मूर्तियां अधूरी बनी थी, हाथ पैर नहीं थे और ब्राह्मण गायब हो गये थे । राजा पछताये विलाप किये पुन: आकाशवाणी हुई कि राजन श्रीकृष्ण, बलभद्र, सुभद्रा एवं सुदर्शन चक्र चारो प्रतिमाओं को नीलमेघ, शंख एवं चन्द्रमा के समान सुदर्शन चक्र को लाल और सुभद्रा को अरूण रंग देकर सजाओ । नाना प्रकार के लेप वस्त्र आभूषण से अलंकृत कर इसे प्रतिष्ठापित कराओ इस युग में मेरा यही रूप रहेगा । आकाशवाणी के अनुसार मूर्तियों को अलंकृत कर प्रतिष्ठापित किया गया । इसके बाद राजा ने विभिन्न प्रकार से विधि विधान से चारो मूर्तियों की पूजा अर्चना करवाई । यह घटना पुरूषोत्तम क्षेत्र मे घटी। इसे आज हम जगन्नाथपुरी के नाम से जानते हैं । इस क्षेत्र को श्री क्षेत्र, जगन्नाथपुरी एवं पुरूषोत्तम क्षेत्र भी कहा जाता है । यहां भगवान को महाप्रसाद का भोग लगता है जिसे बिना किसी भेदभाव, छूआछूत के सभी जाति के लोग ग्रहण करते हैं । यहां की रथयात्रा विश्व भर में दर्शनीय होती है । लोग देश विदेश से इस रथयात्रा एवं भगवान जगन्नाथ का दर्शन करने के लिए पुण्य लाभ लेने के लिए आते हैं । छत्तीसगढ़ अंचल में भी सभी विष्णु मंदिरों में भगवान जगन्नाथ जी की पूजा अर्चना की जाती है। सभी वैष्णव धर्मावलंबी इस पर्व को श्रध्दा एवं भक्ति के साथ मनाते हैं । छत्तीसगढ़ की राजधानी में भी पुरानी बस्ती टूरी हटरी में सैकड़ों वर्ष पुराना जगन्नाथ जी का मदिर है जहां से प्रति वर्ष रथयात्रा निकाली जाती है। विधि विधान के अनुसार रथ का रंग रोगन कर उसे विशेष रूप से सजाया जाता है। सुन्दर आसन बिछाकर भगवान जगन्नाथ बलभद्र एवं सुभद्रा जी के साथ सुदर्शन चक्र को प्रतिष्ठापित किया जाता है उनकी पूजा अर्च'ा की जाती है । सैकड़ों लोग रथ को खींचने के लिए जनकपुरी यात्रा में निकलते हैं । छत्तीसगढ़ के सभी गांवो शहरों से लोग इस रथयात्रा को देखने केलिए एक दिन दो दिन पहले से आकर समय का इंतजार करते हैं । सदर बाजार के जगन्नाथ मंदिर से भी रथयात्रा निकाली जाती है। रायपुर में वैसे अब कई भगवान जगन्नाथ के मंदिर निर्मित हो चुके हैं उनकी प्राण प्रतिष्ठा भी की जा चुकी है। कुछ अब रथयात्रा भी निकालने लगे हैं । इस प्रकार भगवान जगन्नाथ बलभद्र एवं सुभद्रा जी सुदर्शन चक्र से इस यात्रा के लिए निकलते हैं । जिनमें लाखे नगर, गायत्री नगर बस्ती गुढ़ियारी आदि है। रथयात्रा का समय एवं फल की प्राप्ति - रथयात्रा का पर्व 9 दिन तक मनाया जाता है । सात दिन तक भगवान राजा इन्द्रधनुष को दिये वचन के अनुसार जनकपुर में निवास करते हैं जहां तीर्थ सा उत्सव मनाया जाता है । जो भी मनुष्य इस सात दिनों तक तीनों काल स्नान करे सन्ध्या अर्चना करें गाय के घी एवं तेल का दीपक जलावे, उसकी रक्षा करे रात्रि में जागरण दिन में मौनव्रत करे । आठवें दिन व्रत पूर्ण करके भगवान का मंदिर में प्रवेश करावे उसे धर्म अर्श काम मोक्ष इ' चार पुरूषार्थों का फल प्रापत होता है । आठवें दिन रथ को दक्षिण मुख करे वस्त्र फूल माला चंवर से सजावे । आषाढ़ शुक्ल 9 वीं को भगवान के सभी विग्रहों को विराजित कर पुन: यात्रा से वापस लाकर प्रतिष्ठापित करें । भगवान जगन्नाथ जी का यह रूप स्वयं नारायण, विष्णु, जगदीश्वर का स्वरूप है । जो काष्ठमय विग्रह के रूप में मानव कल्याण हेतु सभी के कष्टों का निवारण करने के लिए धरती पर आये हैं । Tags: तिथिरथ तैयार करने की विधिपूजन विधिरथयात्रा दर्शनरथयात्रा की कथाभगवान जगन्नाथरथयात्रागुण्डिचा महोत्सवउड़ीसाविष्णुधामभगवान विष्णु User login Username *  Password *  Request new password Log in  Who's new munishsharma1996 hitraj29 psvkpatna खांडल ब्राह्मण Banmali Pandit संस्थापक एवं प्रथम प्रधान संपादक - 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