Friday 31 March 2017

पंच कर्म

Press question mark to see available shortcut keys 2   Santosh Kumar HINDUTV Dec 24, 2015  पंच कर्म पंच कर्म की उपयोगिता प्रत्येक मनुष्य-साधक की लिए है। इसमें धर्म, जाती, बिरादरी, वर्ण बीच में नहीं आते। इनकी विशद विवेचना धर्मसूत्रों तथा स्मृतिग्रंथों में उपलब्ध है। (1). संध्योपासन :- यद्यपि संध्या वंदन-मुख्य संधि पांच वक्त की होती है जिनमें प्रात: और संध्या की संधि का महत्व ज्यादा है। संध्या वंदन प्रार्थना और ध्यान के माध्यम से किया जा सकता है। यह सकारात्मकता प्रदान करतीं हैं, जीवन में उमंग, ऊर्जा पैदा करतीं हैं। (2). उत्सव :- हर्ष, उल्लास, शादी-विवाह, जन्मोत्सव, तीज-त्यौहार, अनुष्ठान यह अवसर प्रदान करते हैं। ये परस्पर मधुर सम्बन्ध , सम्पर्क स्थापित करने में सहायक हैं। इनसे संस्कार, एकता और उत्साह का विकास होता है। पारिवारिक और सामाजिक एकता के लिए उत्सव जरूरी है। पवित्र दिन और उत्सवों में बच्चों के शामिल होने से उनमें संस्कार का निर्माण होता है वहीं उनके जीवन में उत्साह बढ़ता है। (3). तीर्थ यात्रा :- यह मनुष्य को पुण्य प्रदान करती है। पापों का नाश करती है। सामाजिकता का विकास करती है। (4). संस्कार :- संस्कार मनुष्य को सभ्य-सामाजिक बनाते हैं। इनसे जीवन में पवित्रता, सुख, शांति और समृद्धि का विकास होता है। सोलह संस्कार जीवन के कर्म से जुड़े हैं और आवश्यकता के अनुरूप हैं। ये हैं :--गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, मुंडन, कर्णवेधन, विद्यारंभ, उपनयन, वेदारंभ, केशांत, सम्वर्तन, विवाह और अंत्येष्टि। (5). धर्म :- धर्म का अर्थ है अपने वर्णाश्रम कर्तव्यों का पूरी निष्ठा-ईमानदारी से पालन। धर्म की गति बड़ी सूक्ष्म है। सेवा भावना, दया, दान आदि कर्तव्यों का पालन भी नियमित रूप से करते रहना चाहिए। (1). व्रत, (2).सेवा, (3).दान, (4).यज्ञ और (5). कर्तव्य का पालन। यज्ञ के अंतर्गत वेदाध्ययन भी आता है जिसके अंतर्गत छह शिक्षा (-वेदांग, सांख्य, योग, निरुक्त, व्याकरण और छंद) और छह दर्शन (-न्याय, वैशेषिक, मीमांसा, सांख्य, वेदांत और योग) शामिल हैं। व्रत से मन और मस्तिष्क सुदृढ़ बनता है वहीं शरीर स्वस्थ और बनवान बना रहता है। दान से पुण्य मिलता है और व्यर्थ की आसक्ति हटती है जिससे मृत्युकाल में लाभ मिलता है। सेवा से मन को शांति मिलती है और धर्म की सेवा भी होती है। सेवा का कार्य ही धर्म है।-इन सभी से ऋषि ऋण, ‍‍देव ऋण, पितृ ऋण, धर्म ऋण, प्रकृति ऋण और मातृ ऋण से उपरति होती है। Translate  पंच कर्म santoshsuvichar.blogspot.com no plus ones no shares Shared publicly

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