Friday, 31 March 2017
त्रिकाल संध्या


त्रिकाल संध्या और उसकी महिमा
By: Navneet Gupta
त्रिकाल संध्या
प्रातः सूर्योदय के 10 मिनट पहले से 10 मिनट बाद तक, दोपहर के 12 बजे से 10 मिनट पहले से 10 मिनट बाद तक एवं शाम को सूर्यास्त के 10 मिनट पहले से 10 मिनट बाद तक का समय संधिकाल कहलाता है। इड़ा और पिंगला नाड़ी के बीच में जो सुषुम्ना नाड़ी है, उसे अध्यात्म की नाड़ी भी कहा जाता है। उसका मुख संधिकाल में उर्ध्वगामी होने से इस समय प्राणायाम, जप, ध्यान करने से सहज में ज़्यादा लाभ होता है।
अतः सुबह, दोपहर एवं सांय- इन तीनों समय संध्या करनी चाहिए। त्रिकाल संध्या करने वालों को अमिट पुण्यपुंज प्राप्त होता है। त्रिकाल संध्या में प्राणायाम, जप, ध्यान का समावेश होता है। इस समय महापुरूषों के सत्संग की कैसेट भी सुन सकते हैं। आध्यात्मिक उन्नति के लिए त्रिकाल संध्या का नियम बहुत उपयोगी है। त्रिकाल संध्या करने वाले को कभी रोज़ी-रोटी की चिंता नहीं करनी पड़ती। त्रिकाल संध्या करने से असाध्य रोग भी मिट जाते हैं। ओज़, तेज, बुद्धि एवं जीवनशक्ति का विकास होता है। हमारे ऋषि-मुनि एवं श्रीराम तथा श्रीकृष्ण आदि भी त्रिकाल संध्या करते थे। इसलिए हमें भी त्रिकाल संध्या करने का नियम लेना चाहिए।
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