Friday 31 March 2017

ब्राह्मण के गुण

       7) ब्राह्मणत्व क्या है? ब्राह्मण के प्रथम छह कर्म- वेद पढ़ना और वेद पढ़ाना यज्ञ करना और यज्ञ करवाना दान लेना और दान देना ब्राह्मण के नौ गुण - सम, दम, तप, शौच, क्षमा, सरलता, ज्ञान, विज्ञान, आस्तिकता ब्राह्मण के सोलह संस्कार : १. ऋतु स्नान, २. गर्भाधान, ३. सुती स्नान, ४. चंद्रबल, ५. स्तन पान, ६. नामकरण, ७. जात कर्म, ८. अन्नप्राशन, ९. तांबूल भक्षणम, १०. कर्ण भेद (कान छेदना), ११. चूड़ाकर्म, १२. मुंडन, १३. अक्षर आरंभ, १४. व्रत बंद (यज्ञोपवीत), १५. विद्यारंभ और १६ विवाह | ब्राह्मण ही ब्रह्म को जानता है? ब्रह्म ज्ञान की उत्पत्ति वैदिक मंत्रों के मंथन से ही होगी अन्यथा पूर्ण सृष्टि में ब्रह्म ज्ञान उत्पन्न करनेवाला कोई यंत्र न बन और न बन पाएगा | इसका उदाहरण हमें लंकाधिपति रावण जी की जीवन शैली को पढ़ा जाए तो ही हमें पूर्ण रूप से ब्राह्मण की व्याख्या के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है | लंकाधिपति रावणजी उस समय सोलह वर्ष की आयु में जो सतयुग का समय था पृथ्वी पर उसी समय से अपनी संगत में परमात्मा शिव के आधीन रहे | उन्होंने परमात्मा की इच्छा अनुसार अपने पूर्ण आयु का संकल्पित जीवन व्यतीत किया | जिसका आभास हमें आज कलयुग में हो रहा है कि पृथ्वी पर से पूर्ण राक्षस अंश की समाप्ति हो गई | उस समय परमात्मा स्थूल शरीर में होने के कारण उन्होंने रावणजी को पूर्ण सृष्टि के क्रूर रहस्य समझाए | उत्तम कुल पुलस्त कर नाती शिवविरंचपूज्यहुजेही भाती ब्राह्मणता के कर्मों की चर्चा करें तो रावणजी के जीवन से इस बात का अनुभव होता भी है कि पूर्ण रूप से उन्होंने अपने ज्ञान द्वारा अनेकानेक शिव साधनों को संपन्न कर मानव कल्याण के लिए अनेक मार्ग प्रशस्त किए हैं | सबसे उत्तम रचना शिव तांडव स्तोत्र की है जिसके उच्चारण करने से पूर्ण शरीर के चक्र अति तीव्र गति पकड़ते हैं | कुंडलिनी चक्रों की जितनी गति तीव्र होगी उतनी ही शरीर में चक्र द्वारा ऊर्जा अंग को प्राप्त होगी | मानव शरीर में उसकी सीधी बुद्धि की सोच ही उसे सुखी कर पाएगी इसलिए इस स्तोत्र के उच्चारण मात्र से ही मानव की बुद्धि का विशेष सुख देनेवाला हिस्सा पूर्ण रूप से सक्रिय हो जाता है | मानव कल्याण हेतु तो उन्होंने अद्भुत रचनाएं की हैं, जिनका आभास हमें रावण संहिता से प्राप्त होता है | आज कलयुग के समय में अगर हम मानव पर दृष्टि डालते हैं तो हमें मानव में अनेक बदलाव नजर आते हैं | सतयुग का समय १. भोजन - कंदमूल (सात्विक) २. कर्म - प्रबल मन की समझ अनुसार ३. गुण - कल्याणकारक गुणो से लैश ४. भाव - देव भावनाएं ५. संस्कार - पूर्ण रूप से वैदिक कलयुग का समय मांस, अनाज (तामसिक, सात्विक), निर्बल मन की समझ अनुसार, विनाश कारक गुणों से लैश, राक्षस भावनाएं, पूर्ण रूप से आधुनिक पूर्ण रूप से आज के कलयुग के समय में मानव यंत्रवादी ही हो चुका है | मानव के मन की समझ अति निर्बल हो चुकी है | मानव अपनी बुद्धि का उलटा भाग अधिक सक्रिय करके बैठा है | पूर्ण रूप से ज्ञान न होने के कारण इस सृष्टि चक्र में फंसा हुआ है | विनाश और कल्याण के अंतर की दूरी को पहचानने में असमर्थ हो चुका है | सृष्टि में परमात्मा के समक्ष विकल्पित जीवन व्यापन कर रहा है | मानव के शरीर में इन सारे लक्षणों की उत्पत्ति केवल वैदिक मंत्रों से दूर हो जाने से हो गई और कुछ खान-पान के बदलाव का भी असर उसके शरीर पर पड़ा है | प्रत्येक मानव को समझने हेतु परमात्मा ने मानव शरीर की व्याख्या इस प्रकार से की है | ब्राह्मणोस्य मुखमासीद्बाहु राजन्न्य ट कृत अ॥ उरू तदस्य यद्वैश्‍व ट पदब्भ्या ए. शूद्रो अजायत॥ अगर हम गहराई से देखें तो परमात्मा ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति मुख से ब्राह्मण, बाहुओं से क्षत्रिय, उरू से वैश्य और पांव से शूद्र है | इस दृष्टिकोण से भी प्रत्येक मानव शरीर को परमात्मा से लिए सृष्टि कल्याण के अपने संकल्प के ज्ञान हेतु शिव संकल्पमस्तु के ही मंत्रों का मंथन करना ही पड़ता है इसलिए वैदिक मंत्रों की स्थापना मानव को अपने मन में करनी परम आवश्यक है | मानव के पास सनातन बोलने हेतु केवल चार वेद ही हैं क्योंकि सनातन वो वस्तु मानी जाती है जो पिता द्वारा दी गई हो | मानव का धर्म तो सनातन धर्म ही होना चाहिए | मानव को बुरे, उलटे और पाप कर्मों से बचना है और अपने जीवन को सुखी और संकल्पित बनाना है तो इन वैदिक मंत्रों का मंथन करना ही पड़ेगा अन्यथा पूर्ण विश्‍व के पास और कोई मार्ग ही नहीं है | वैदिक मंत्रों का उच्चारण केवल किसी ब्राह्मण की आय का साधन कदापि नहीं है | परमात्मा से प्रत्येक मानव जुड़ा होने के कारण और उसका अंश होने के कारण मानव का यह परम कर्तव्य भी बनता है कि परमात्मा द्वारा दिए गए संकल्प को पूर्ण करे | कलयुग के समय में मनव को परम आवश्यकता है कि ऊर्जावान और कंदमूल अधिक ग्रहण करे, क्योंकि मानव शरीर में उचित धातुओं की मात्रा अधिक होनी चाहिए | धातु जितने भी हैं वो सभी हमें कंदमूल द्वारा ही प्राप्त होते हैं | रावणजी के शरीर पर ग्रहों का प्रभाव न होने का एक यह कारण था कि वो रसायन विद्या के परम जानकार थे | महर्षि चरक के शिष्य सुषेन जैसे उनके राज्य वैद्य थे | आज के समय में मानव इस विद्या से कोसों दूर हो गया, जिसका असर उसके जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ गया | आज का मानव मन इस ज्ञान से भी दूर है कि वो मोटरगाड़ी जैसे यंत्रों को चलाकर सृष्टि विनाश का पाप कर्म अपने शरीर से संपन्न करता जा रहा है जिसके परिणामस्रूप जीवात्मा अगर यज्ञ जैसा पवित्र और पुण्य का कर्म संपन्न करता है तो ही वो मोक्ष अथवा अमरत्व ज्योति का अधिकारी बन भी पाता है | आज के कलयुग के समय में पूर्ण सृष्टि को जौ चावल के यज्ञ की आवश्यकता है क्योंकि मानव द्वारा तीन सौ सालों में इस्तेमाल किए गए यंत्रों से पूर्ण पृथ्वी का वायुमंडल गरमा चुका है और पृथ्वी महाविनाश की कगार पर ही खड़ी है | यज्ञ के अलावा मानव के पास और कोई मार्ग ही नहीं है अपने वायु मंडल को ठंडा करने हेतु | मानव अनेक प्रकार से वायुमंडल को गरमा रहा है | मानव अपनी सभी प्रकार की उपयोगी वस्तुओं को ज्वलनशील पदार्थ प्लास्टिक पैकिंग में ही इस्तेमाल कर रहा है, जिसका कूड़ा जलने के पश्‍चात वही काम करता है जो मोटरगाड़ियों का धुआं करता है | सृष्टि के कल्याण हेतु प्रत्येक मानव को यज्ञ करना होगा और विनाशकारी कर्मों से दूर रहना होगा | (Return Main Menu) होम | परिचय | मानव शरीर क्या है? | सुखी एवं संकल्पित जीवन | प्रोडक्टस | गैलरी | डाऊनलोड | आर्डर फार्म | संपर्क Copyright © 2009 Shiva Gyan. 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