Thursday, 30 March 2017

शांतिकून्ज द्वारा संस्कार

  प्रारम्भ में साहित्य हमारे प्रयास मल्टीमीडिया प्रारम्भ में > हमसे जुडें > परिवार निर्माण संस्कार परम्परा पुंसवन संस्कार नामकरण संस्कार चूड़ाकर्म संस्कार (मुण्डन, शिखा स्थापना) अन्नप्राशसन संस्कार विद्यारंभ संस्कार यज्ञोपवीत संस्कार विवाह संस्कार वानप्रस्थ संस्कार अन्येष्टि संस्कार मरणोत्तर (श्राद्ध संस्कार) जन्मदिवस संस्कार विवाहदिवस संस्कार हमारी महान् आध्यात्मिक विरासत सफल और सार्थक यात्रा के लिए जहाँ यात्रा के काम आने वाले उपकरण- अटैची, बिस्तर, पानी पीने के बर्तन आदि आवश्यक होते हैं, वही यह जानना भी, कि यात्रा किस उद्देश्य से की जा रही है? रास्ता क्या है? मार्ग में कहाँ- किस तरह की भौगोलिक समस्याएँ आयेंगी तथा किन लोगों को मार्गदर्शन उपयोग रहेगा? इन जानकारियों के अभाव में सुविधा- सम्पन्न यात्रा तो दूर अनेक अवरोध और संकट उठ खड़े हो सकते हैं ।। मनुष्य का जीवन भी विराट यात्रा का एक महत्त्वपूर्ण अध्याय है ।। उसमें मात्र सुख- सुविधा संवर्धन तक ही सीमित रह जाने वाले मार्ग में भटकते दुःख भोगते और पश्चात्ताप की आग में जलते हुए संसार से विदा होते हैं ।। हमारे पूर्वजों ने इस आध्यात्मिक सत्य को बहुत गहराई तक पहचाना, और जीवन की गहन समीक्षा की ।। उन्होंने पाया कि माँ के पेट में आने से लेकर चिता में समर्पण होने तक, उसके भी बाद मरणोत्तर विराम तक अनेक महत्त्वपूर्ण मोड़ आते है, यदि उनमें जीवात्मा को सम्हाला और सँवारा न जाये, तो मनुष्य अपनी अस्मिता का अर्थ समझना तो दूर, पीड़ा और पतन की ओर निरंतर अग्रसर होता हुआ नरकीटक, नर−वानर, बनता चला जाता है ।। इन महत्त्वपूर्ण मोड़ों पर सजग- सावधान करने और उँगली पकड़कर सही रास्ता दिखाने के लिए हमारे तत्त्ववेत्ता, मनीषियों ने षोडश संस्कारों का प्रचलन किया था ।। चिन्ह- पूजा के रूप में प्रचलन तो उनका अभी भी है पर वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक बोध और प्रशिक्षण के अभाव वे मात्र कर्मकाण्ड और फिजूलखर्ची बनकर रह गये हैं ।। कुछ संस्कार तो रस के कुपित हो जाने पर उसके विष बन जाने की तरह उलटी कुत्सा भड़काने का माध्यम बन गये हैं ।। विशेष रूप स विवाहों में तो आज यही हो रहा है ।। यों मनुष्य माटी का खिलौना है ।। पाश्चात्य सभ्यता तो उसे 'सोशल एनिमल' अर्थात् 'सामाजिक पशु' तक स्वीकार करने में संकोच नहीं करती, पर जिस जीवन को जीन्स और क्रोमोज़ोम समुच्चय के रूप में वैज्ञानिकों ने भी अजर- अमर और विराट् यात्रा के रूप में स्वीकार कर लिया हो, उसे उपेक्षा और उपहास में टालना किसी भी तरह की समझदारी नहीं है ।। कम से कम जीवन ऐसा तो हो, जिसे गरिमापूर्ण कहा जा सके ।। जिससे लोग प्रसन्न हों, जिसे लोग याद करें, जिससे आने वाली पीढ़ियाँ प्रेरणा लें, ऐसे व्यक्तित्व जो जन्म- जात संस्कार और प्रतिभा- सम्पन्न हों, उँगलियों में गिनने लायक होते हैं ।। अधिकांश तो अपने जन्मदाताओं पर वे अच्छे या बुरे जैसे भी हों, उन पर निर्भर करते हैं, वे चाहे उन्हें शिक्षा दें, संस्कार दें, मार्गदर्शन दें, या फिर उपेक्षा के गर्त में झोंक दें, पीड़ा और पतन में कराहने दें ।। प्राचीनकाल में यह महान दायित्व कुटुम्बियों के साथ- साथ संत, पुरोहित और परिव्राजकों को सौंपा गया था ।। वे आने वाली पीढ़ियों को सोलह- सोलह अग्नि पुटों से गुजार कर खरे सोने जैसे व्यक्तित्व में ढालते थे ।। इस परम्परा का नाम ही संस्कार परम्परा है ।। जिस तरह अभ्रक, लोहा, सोना, पारस जैसी सर्वथा विषैली धातुएँ शोधने के बाद अमृत तुल्य औषधियाँ बन जाती हैं, उसी तरह किसी समय इस देश में मानवेत्तर योनियों में से घूमकर आई हेय स्तर की आत्माओं को भी संस्कारों की भट्ठी में तपाकर प्रतिभा- सम्पन्न व्यक्तित्व के रूप में ढाल दिया जाता था ।। यह क्रम लाखों वर्ष चलता रहा उसी के फलस्वरूप यह देश 'स्वर्गादपि गरीयसी' बना रहा, आज संस्कारों को प्रचलन समाप्त हो गया, तो पथ भूले बनजारे की तरह हमारी पीढ़ियाँ कितना भटक गयीं और भटकती जा रही हैं, यह सबके सामने है ।। आज के समय में जो व्यावहारिक नहीं है या नहीं जिनकी उपयोगिता नहीं रही, उन्हें छोड़ दें, तो शेष सभी संस्कार अपनी वैज्ञानिक महत्ता से सारे समाज को नई दिशा दे सकते हैं ।। इस दृष्टि से इन्हें क्रान्तिधर्मी अभियान बनाने की आवश्यकता है ।। भारत को पुनः एक महान राष्ट्र बनना है, विश्व गुरु का स्थान प्राप्त करना है ।। उसके लिए जिन श्रेष्ठ व्यक्तियों की आवश्यकता बड़ी संख्या में पड़ती है, उनके विकसित करने के लिए यह संस्कार प्रक्रिया अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकती है ।। ।। प्रत्येक विचारशील एवं भावनाशील को इससे जुड़ना चाहिए ।। शांतिकुंज, गायत्री तपोभूमि मथुरा सहित तमाम गायत्री शक्तिपीठों ,, गायत्री चेतना केन्द्रों, प्रज्ञापीठों, प्रज्ञा केन्द्रों में इसकी व्यवस्था बनाई गई है ।। हर वर्ग में युग पुरोहित विकसित किए जा रहे हैं ।। आशा की जाती है कि विज्ञजन, श्रद्धालु जन इसका लाभ उठाने एवं जन- जन तक पहुँचाने में पूरी तत्परता बरतेंगे ।। युग ऋषि (वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य) ने युग की तमाम समस्याओं का अध्ययन किया और उनके समयोचित समाधान भी निकाले । इसी क्रम में उन्होंने संस्कार प्रक्रिया के पुनर्जीवन का भी अभियान चलाया ।। उन्होंने संस्कारों को विवेक एवं विज्ञान सम्मत स्वरूप दिया, उनके साथ प्रखर लोक शिक्षण जोड़ा, कर्मकाण्डों को सर्व सुलभ, प्रभावी और कम खर्चीला बनाया ।। युग निर्माण के अन्तर्गत उनके सफल प्रयोग बड़े पैमाने पर किए गए ।। इसके लिए उन्होंने प्रचलित संस्कारों में से वर्तमान समय के अनुकूल केवल बारह संस्कार (( पुंसवन ,, नामकरण ,, चूड़ाकर्म (( मुण्डन, शिखास्थापन )- अन्नप्राशन ,, विद्यारम्भ ,, यज्ञोपवीत (( दीक्षा )) ,, विवाह ,, वानप्रस्थ ,, अन्त्येष्टि ,, मरणोत्तर (श्राद्ध संस्कार) ,, जन्मदिवस एवम् विवाहदिवस )) पर्याप्त माने हैं ।। इन संस्कारों को उपयुक्त समय पर उपयुक्त वातावरण में सम्पन्न करने- कराने के असाधारण लाभ लोगों ने पाए हैं ।। उनके विवरण निम्नानुसार हैं  gurukulamFacebookTwitterGoogle+TelegramWhatsApp   नारी जागरण संस्कार परम्परा समग्र साहित्य हिन्दी व अंग्रेजी की पुस्तकें व्यक्तित्व विकास ,योग,स्वास्थ्य, आध्यात्मिक विकास आदि विषय मे युगदृष्टा, वेदमुर्ति,तपोनिष्ठ पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने ३००० से भी अधिक सृजन किया, वेदों का भाष्य किया। अधिक जानकारी अखण्डज्योति पत्रिका १९४० - २०११ अखण्डज्योति हिन्दी, अंग्रेजी ,मरठी भाषा में, युगशक्ति गुजराती में उपलब्ध है अधिक जानकारी AWGP-स्टोर :- आनलाइन सेवा साहित्य, पत्रिकायें, आडियो-विडियो प्रवचन, गीत प्राप्त करें आनलाईन प्राप्त करें  वैज्ञानिक अध्यात्मवाद विज्ञान और अध्यात्म ज्ञान की दो धारायें हैं जिनका समन्वय आवश्यक हो गया है। विज्ञान और अध्यात्म का समन्वय हि सच्चे अर्थों मे विकास कहा जा सकता है और इसी को वैज्ञानिक अध्यात्मवाद कहा जा सकता है.. अधिक पढें भारतीय संस्कृति आध्यात्मिक जीवन शैली पर आधारित, मानवता के उत्थान के लिये वैज्ञानिक दर्शन और उच्च आदर्शों के आधार पर पल्लवित भारतिय संस्कृति और उसकी विभिन्न धाराओं (शास्त्र,योग,आयुर्वेद,दर्शन) का अध्ययन करें.. अधिक पढें प्रज्ञा आभियान पाक्षिक समाज निर्माण एवम सांस्कृतिक पुनरूत्थान के लिये समर्पित - हिन्दी, गुजराती, मराठी एवम शिक्क्षा परिशिष्ट. पढे एवम डाऊनलोड करे           अंग्रेजी संस्करण प्रज्ञाअभियान पाक्षिक देव संस्कृति विश्वविद्यालय अखण्ड ज्योति पत्रिका ई-स्टोर दिया ग्रुप समग्र साहित्य - आनलाइन पढें आज का सद्चिन्तन वेब स्वाध्याय भारतिय संस्कृति ज्ञान परिक्षा अखिल विश्व गायत्री परिवार शान्तिकुञ्ज, हरिद्वार (भारत) shantikunj@awgp.org +91-1334-260602 अन्तिम परिवर्तन : १५-०२-२०१३ Visitor No 25425 सर्वाधिकार सुरक्षित Download Webdoc(391)

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