Friday, 31 March 2017

भगवान शब्द की व्याख्या

सामग्री पर जाएं क्योकीमेनू भगवान शब्द का अर्थ भगवान शब्द की परिभाषा क्या है ? इसे जानने के लिए हमें उस शब्द पर विचार करना है । उसमें प्रकृति और प्रत्यय रूप २ शब्द हैं–भग + वान् . वान के अर्थ हुये वाला. तथा भग का अर्थ विष्णु पुराण ,६/५/७४ में बताया गया हैं: “ऐश्वर्यस्य समग्रस्य वीर्यस्य यशसः श्रियः । ज्ञानवैराग्ययोश्चैव षण्णां भग इतीरणा ।।” अर्थात सम्पूर्ण ऐश्वर्य , वीर्य ( जगत् को धारण करने की शक्तिविशेष ) , यश ,श्री ,समस्त ज्ञान , और परिपूर्ण वैराग्य के समुच्चय को भग कहते हैं। इस प्रकार भगवन शब्द से तात्पर्य हुआ उक्त छह गुणवाला, दुसरे शब्दों में ये छहों गुण जिसमे नित्य रहते हैं, उन्हें भगवान कहते हैं। भगोस्ति अस्मिन् इति भगवान्, यहाँ भग शब्द से मतुप् प्रत्यय नित्य सम्बन्ध बतलाने के लिए हुआ है । अर्थात् पूर्वोक्त छहों गुण जिनमे हमेशा रहते हैं, उन्हें भगवान् कहा जाता है | मतुप् प्रत्यय नित्य योग (सम्बन्ध) बतलाने के लिए होता है – यह तथ्य वैयाकरण भलीभांति जानते है— यदि भगवान शब्द को अक्षरश: सन्धि विच्छेद करे तो: भ्+अ+ग्+अ+व्+आ+न्+अ भ धोतक हैं भूमि तत्व का, अ से अग्नि तत्व सिद्द होता है. ग से गगन का भाव मानना चाहिये. वायू तत्व का उद्घोषक है वा (व्+आ) तथा न से नीर तत्व की सिद्दी माननी चाहिये. ऐसे पंचभूत सिद्द होते है. अर्थात यह पंच महाभोतिक शक्तिया ही भगवान है. (जो चेतना (शिव) से संयुक्त होने पर दृश्मान होती हैं.) भगवान शब्द की अन्यत्र भी व्यांख्याये प्राप्त होती है जो सन्दर्भार्थ उल्लेखनीय हैं: “भूमनिन्दाप्रशन्सासु नित्ययोगेतिशायने |संसर्गेस्ति विवक्षायां भवन्ति मतुबादयः ||” -सिद्धान्तकौमुदी , पा.सू .५/२/९४ पर वार्तिक, और यही भगवान् उपनिषदों में ब्रह्म शब्द से अभिहित किये गए हैं और यही सभी कारणों के कारण होते है। किन्तु इनका कारण कोई नही। ये सम्पूर्ण जगत या अनंतानंत ब्रह्माण्ड के कारण परब्रह्म कहे जाते है । इन्ही के लिये वस्तुतः भगवान् शब्द का प्रयोग होता है— “शुद्धे महाविभूत्याख्ये परे ब्रह्मणि शब्द्यते । मैत्रेय भगवच्छब्दः सर्वकारणकारणे ।।” – विष्णुपुराण ६/५/७२ यह भगवान् जैसा महान शब्द केवल परब्रह्म परमात्मा के लिए ही प्रयुक्त होता है ,अन्य के लिए नही “एवमेष महाशब्दो मैत्रेय भगवानिति । परमब्रह्मभूतस्य वासुदेवस्य नान्यगः ।।” –विष्णु पुराण,६/५/७६ , इन परब्रह्म में ही यह भगवान् शब्द अपनी परिभाषा के अनुसार उनकी सर्वश्रेष्ठता और छहों गुणों को व्यक्त करता हुआ अभिधा शक्त्या प्रयुक्त होता है,लक्षणया नहीं । और अन्यत्र जैसे–भगवान् पाणिनि , भगवान् भाष्यकार आदि । इसी तथ्य का उद्घाटन विष्णु पुराण में किया गया है— “तत्र पूज्यपदार्थोक्तिपरिभाषासमन्वितः । शब्दोयं नोपचारेण त्वन्यत्र ह्युपचारतः ।।”–६/५/७७, ओर ये भगवान् अनेक गुण वाले हैं –ऐसा वर्णन भगवती श्रुति भी डिमडिम घोष से कर रही हैं– “परास्य शक्तिर्विविधैव श्रूयते स्वाभाविकी ज्ञानबलाक्रिया च”—श्वेताश्वतरोपनिषद , ६/८, इन्हें जहाँ निर्गुण कहा गया है –निर्गुणं , निरञ्जनम् आदि, उसका तात्पर्य इतना ही है कि भगवान् में प्रकृति के कोई गुण नहीं हैं । अन्यथा सगुण श्रुतियों का विरोध होगा । अत एव छान्दोग्योपनिषद् में भगवान् के सत्यसंकल्पादि गुण बतलाये गए– “एष आत्मापहतपाप्मा –सत्यकामः सत्यसङ्कल्पः” |–८/१/५, यः सर्वज्ञः सर्ववित्—मुण्डकोपनिषद् १/१/९ , जो सर्वज्ञ –सभी वस्तुओं का ज्ञाता, तथा सर्वविद् – सर्ववस्तुनिष्ठसर्वप्रकारकज्ञानवान –सभी वस्तुओं के आतंरिक रहस्यों का वेत्ता है । इसलिए वे प्रकृति –माया के गुणों से रहित होने के कारण निर्गुण और स्वाभाविक ज्ञान ,बल , क्रिया ,वात्सल्य ,कृपा ,करुणा आदि अनंत गुणों के आश्रय होने से सगुण भी हैं । ऐसे भगवान् को ही परमात्मा परब्रह्म ,श्रीराम ,कृष्ण, नारायण,शि ,दुर्गा, सरस्वती आदि भिन्न भिन्न नामों से पुकारा जाता है । इसीलिये वेद वाक्य है कि ” एक सत्य तत्त्व भगवान् को विद्वान अनेक प्रकार से कहते हैं– “एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति .” ऐसे भगवान् की भक्ति करने वाले को भक्त कहा जाता है । जैसे भक्त भगवान के दर्शन के लिए लालायित रहता है और उनका दर्शन करने जाता है । वैसे ही भगवान् भी भक्त के दर्शन हेतु जाते हैं | भगवान ध्रुव जी के दर्शन की इच्छा से मधुवन गए थे – “मधोर्वनं भृत्यदिदृक्षया गतः “–भागवत पुराण ,४/९/१ जैसे भक्त भगवान की भक्ति करता है वैसे ही भगवान् भी भक्तों की भक्ति करते हैं । इसीलिये उन्हे भक्तों की भक्ति करने वाला कहा गया है— “भगवान् भक्तभक्तिमान्”–भागवत पुराण–१० / ८६/५९  भगवान का अर्थ  माँ पार्वती, माँ लक्ष्मी एवं माँ सरस्वती की त्रिगुणात्मक मूर्ती  माँ शक्ती के रूप  पंच महाभूतो की त्रिगुणात्मक प्रतिमा लेखक स्वामीप्रकाशित जून 10, 2016श्रेणिया हिन्दूटैग्स भगवान, भगवान का अर्थ, भगवान का परिचय, भगवान कौन है?, भगवान शब्द की व्यांख्या प्रातिक्रिया दे आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं * टिप्पणी  नाम *  ईमेल *  वेबसाईट  टिप्पणी करे पोस्ट नेविगेशन पिछला पिछला पोस्ट:हुनमान जी किनके पुत्र थे? अगला अगला पोस्ट:मूर्ति पूजा का रहस्य सम्प्रति क्या गौतम बुद्ध वस्तुत: बुद्ध पुरुष थे? हिन्दू वर्ण व्यवस्था मूर्ति पूजा का रहस्य भगवान शब्द का अर्थ हुनमान जी किनके पुत्र थे? विचार धारा मार्च 2017 अगस्त 2016 जून 2016 विचार विषय रामायण हिन्दू विचार कणिकाये क्या हनुमान जी वानर थे क्या हनुमान जी वायु पुत्र थे गौतम बुद्ध गौतम बुद्ध का जीवन गौतम बुद्ध का परिचय गौतम बुद्ध की भारत को देन गौतम बुद्ध की शिक्षाये गौतम बुद्ध कौन थे बोद्ध धर्म्म बौध धम्म बौध धम्म का परिचय भगवान भगवान का अर्थ भगवान का परिचय भगवान कौन है? भगवान शब्द की व्यांख्या मूर्ति उपासना मूर्ति पूजा मूर्ति पूजा उद्देश्य मूर्ति पूजा का औचित्य मूर्ति पूजा का रहस्य मूर्ति पूजा का सच मूर्ति पूजा की अवधारणा मूर्ति पूजा की उत्पत्ती मूर्ति पूजा की वजह मूर्ति पूजा की सार्थकता मूर्ति पूजा क्यों रामायण हनुमान हनुमान के माता पिता हनुमान कौन थे? हनुमान जी का परिचय हनुमान जी कोन थे हनुमान जी को शंकर सुवन क्यों कहते है हनुमान जी से जुड़ी भ्रान्तिया हिन्दू जाति हिन्दू जाति व्यवस्था हिन्दू मूर्ति पूजा क्यों करते हैं? हिन्दू वर्ण व्यवस्था का आधार हिन्दू वर्ण व्यवस्था का उदय हिन्दू वर्ण व्यवस्था की कहानी हिन्दू समाज के आधार हिन्दू समाजिक व्यवस्था हुनमान जी का वास्तविक परिचय हुनमान जी किनके पुत्र थे हिन्दू योग रामायण महाभारत समयिकी अन्य प्रशनोत्तरी क्योकी गर्व से WordPress द्वारा संचालित

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