Friday, 31 March 2017

यज्ञ

  प्रारम्भ में साहित्य हमारे प्रयास मल्टीमीडिया प्रारम्भ में > साहित्य > आर्श वाङ्मय (समग्र साहित्य) > यज्ञ का ज्ञान विज्ञान > यज्ञों का वैज्ञानिक आधार यज्ञ भारतीय दर्शन का ईष्ट आराध्य अध्यात्म विज्ञान के तत्व दर्शन एवं क्रिया प्रयोजन के दोनों ही पक्ष यज्ञ विधा से सम्बन्धित हैं । कठोपनिषद् में यम नचिकेता सम्वाद में जिन पंच प्राणाग्नियों का विवेचन हुआ है वे अग्निहोत्र में सर्वथा भिन्न प्राण परिष्कार की चिन्तनपरक दिशा धाराएँ हैं । मीमांसा, सूत्र-गंथ ब्राह्मण एवं आरण्यकों में 'यज्ञ' शब्द यजन कृत्य के साथ सम्बद्ध है । जीवन यज्ञ का तात्पर्य है चिन्तन और चरित्र को पवित्र एवं प्रखर बनाना । अग्निहोत्रों का तात्पर्य ऐसी ऊर्जा उत्पन्न करना है जो न केवल शरीर को ओजस्, मन को तेजस, आत्मा को वर्चस् दे सके वरन् इस प्रकृति ब्रह्माण्ड में भी अनुकूलताओं का अनुपात बढ़ा सके । यज्ञ में अग्नि का प्रयोग होता है इस परम्परा में शास्त्रकारों ने यह स्पष्ट किया है कि इस ब्रह्माण्ड में अग्नि के अनेक स्वरूप है । वे सभी अपने-अपने प्रयोजन के लिए समर्थ शक्तिवान हैं । किन्तु 'यज्ञाग्नि' उनमें विशिष्ट है । वह ज्वलनशील होते हुए भी आध्यात्मिक विशेषताओं से सम्पन्न होती है और देव संज्ञा में गिनी जाती हैं । यजन पूजन उसी का होता है और वही याजक की पवित्रता प्रखरता का सम्वर्धन करती हुई अभीष्ट सत्परिणाम प्रदान करती है । अग्नि देव का भारतीय देव मण्डल के प्राचीनतम सदस्य के रूप में वैदिक संहिताओं और ब्राह्मण ग्रंथों से महत्त्वपूर्ण स्थान है । ऋग्वेद का प्रथम मंत्र एवं शब्द अग्निदेव की स्तुति से ही आरंभ होता है । यह अग्नि ही यज्ञ का मुख्य अग्रणी, पुरोहित एवं संचालक है । क्योंकि उसी से विश्व ब्रह्माण्ड में रूप हैं, दर्शन है और प्रकाश है । उसी के आलोक से समस्त विश्व आलोकित है । उसी ज्ञान स्वरूप प्रकाशक, चेतना शक्ति की शासिका एवं अधिष्ठात्री अग्नि की अभ्यर्थना, उपासना से जीवन बनता, आत्मोन्नति होती और अमृतत्व की प्राप्ति होती है । देवताओं में सर्व प्रथम एवं सर्व समर्थ अग्निदेव की उत्पत्ति हुई । इसके गीता से वेद-पुराणों तक में कितने ही प्रमाण मिलते हैं ।महाभारत अश्वमेधिक पर्व, 92 वें अध्याय में उल्लेख है- ब्रह्मात्वेनासृजं लोकानहमादौ महाद्युते । सृष्टाऽग्र्नमुखततः पूर्व लोकानां हितकाम्यया॥ अर्थात् श्री भगवान ने कहा-महातेजस्वी राजन्! मैंने सबसे पहले ब्रह्मस्वरूप से लोकों को बनाया । लोगों की भलाई के लिए मुख से सबसे पहले अग्नि को प्रकट किया । इसी अध्याय के वैष्णव पर्व में कहा गया है-सभी भूतो से पहले अग्नि तत्व मेरे द्वारा पैदा किया गया, पुराण ज्ञाता मनीषी उसे 'अग्नि' कहते हैं । अग्नि के तीन स्थान और तीन मुख्य रूप जाने जाते हैं- (1)व्योम में सूर्य (2)अन्तरिक्ष (मध्याकाश) में विद्युत (3)पृथ्वी पर साधारण अग्नि रूप । ऋग्वेद में सबसे अधिक सूक्त अग्नि की स्तुति में ही अर्पित् किये गये हैं । अग्नि के आदिम रूप संसार के प्रायः सभी धर्मों में पाए जाते हैं । वह 'गृहपति' हैं और परिवार के सभी सदस्यों से उसका स्नेहपूर्ण घनिष्ठ सम्बंध है (ऋ. 2.1.9.7.15.12. और 1.1.9.4.1.9.) वह अन्धकार निशाचन, जादू-टोना, राक्षस और रोगों को दूर करने वाला है ऋ. 3.5.11149.5.8.43.32. 10.88.22. । अग्नि का यज्ञीय स्वरूप मानव सभ्यता के विकास का लम्बा चरण है । परिपाक और शक्ति- निर्माण की कल्पना इसमें निहित है । यज्ञीय अग्नि वेदिका में निवास करती है(ऋ. 11. 140. 1) वह समिधा, सोम और घृत से शक्तिमान होता है । (ऋ. 3. 55.10. 1. 94. 14), वह मानवों और देवों की बीच मध्यस्थ और सन्देश वाहक है । (ऋ. 1. 26. 9. 943.1.593, 1.59.1,7.2.1,1.58.1,7.2.5,1.27.4.3.1.17.10.2.1.1.14.आदि) । अग्नि की दिव्य उत्पत्ति का वर्णन भी वेदों में विस्तार से पाया जाता है । (ऋ. 3. 9.5.6.8.4.) । वह देवताओं का पौराहित्य करता है । वह यज्ञों का राजा है राजा त्वमध्यवराणाम् ऋ.वे . 3. 11. 18.7.11.4.2.8.43.24.आदि ।  gurukulamFacebookTwitterGoogle+TelegramWhatsApp   यज्ञ भारतीय दर्शन का ईष्ट आराध्य यज्ञ से संपूर्ण जगत का पालन कैसे? सकाम यज्ञों का रहस्य मय विज्ञान यज्ञ क्यों करें? समग्र साहित्य हिन्दी व अंग्रेजी की पुस्तकें व्यक्तित्व विकास ,योग,स्वास्थ्य, आध्यात्मिक विकास आदि विषय मे युगदृष्टा, वेदमुर्ति,तपोनिष्ठ पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने ३००० से भी अधिक सृजन किया, वेदों का भाष्य किया। अधिक जानकारी अखण्डज्योति पत्रिका १९४० - २०११ अखण्डज्योति हिन्दी, अंग्रेजी ,मरठी भाषा में, युगशक्ति गुजराती में उपलब्ध है अधिक जानकारी AWGP-स्टोर :- आनलाइन सेवा साहित्य, पत्रिकायें, आडियो-विडियो प्रवचन, गीत प्राप्त करें आनलाईन प्राप्त करें  वैज्ञानिक अध्यात्मवाद विज्ञान और अध्यात्म ज्ञान की दो धारायें हैं जिनका समन्वय आवश्यक हो गया है। विज्ञान और अध्यात्म का समन्वय हि सच्चे अर्थों मे विकास कहा जा सकता है और इसी को वैज्ञानिक अध्यात्मवाद कहा जा सकता है.. अधिक पढें भारतीय संस्कृति आध्यात्मिक जीवन शैली पर आधारित, मानवता के उत्थान के लिये वैज्ञानिक दर्शन और उच्च आदर्शों के आधार पर पल्लवित भारतिय संस्कृति और उसकी विभिन्न धाराओं (शास्त्र,योग,आयुर्वेद,दर्शन) का अध्ययन करें.. अधिक पढें प्रज्ञा आभियान पाक्षिक समाज निर्माण एवम सांस्कृतिक पुनरूत्थान के लिये समर्पित - हिन्दी, गुजराती, मराठी एवम शिक्क्षा परिशिष्ट. पढे एवम डाऊनलोड करे           अंग्रेजी संस्करण प्रज्ञाअभियान पाक्षिक देव संस्कृति विश्वविद्यालय अखण्ड ज्योति पत्रिका ई-स्टोर दिया ग्रुप समग्र साहित्य - आनलाइन पढें आज का सद्चिन्तन वेब स्वाध्याय भारतिय संस्कृति ज्ञान परिक्षा अखिल विश्व गायत्री परिवार शान्तिकुञ्ज, हरिद्वार (भारत) shantikunj@awgp.org +91-1334-260602 अन्तिम परिवर्तन : १५-०२-२०१३ Visitor No 25425 सर्वाधिकार सुरक्षित Download Webdoc(316)

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