Friday, 31 March 2017

त्रिकाल संध्या

  प्रारम्भ में साहित्य हमारे प्रयास मल्टीमीडिया प्रारम्भ में > साहित्य > आर्श वाङ्मय (समग्र साहित्य) > भारतीय संस्कृति के आधारभूत तत्व > कर्मकाण्ड, परम्पराएँ, पूजा पद्धति त्रिकाल संध्या भारतीय संस्कृति में मंत्र, स्तुति, संध्यावंदन, प्रार्थना आदि का महत्त्व है ।। अधिकांश देवी- देवताओं के लिए हमारे यहाँ निश्चित प्रस्तुतियाँ हैं, भजन हैं, प्रार्थनाएँ हैं, आरतियाँ हैं ।। प्रार्थना मंत्र स्तुति आदि द्वारा देवताओं से भी बल, कीर्ति आदि विभूतियाँ प्राप्त होती हैं ।। ये सब कार्य हमारी अंतः शुद्धि के मनोवैज्ञानिक साधन हैं ।। जैसे भिन्न- भिन्न मनुष्यों की भिन्न- भिन्न रुचियाँ होती हैं, वैसे ही हमारे पृथक−पृथक देवताओं की मन्त्र, आरतियाँ, पूजा प्रार्थना की विधियाँ भी पृथक−पृथक ही हैं ।। ये देवी- देवता हमारे भावों के ही मूर्त रूप हैं ।। जैसे हनुमान हमारी शारीरिक शक्ति के मूर्त स्वरूप हैं, शिव कल्याण के मूर्त रूप हैं, लक्ष्मी आर्थिक बल की मूर्त रूप हैं आदि ।। अपने उद्देश्य के अनुसार जिस देवी- देवता की स्तुति या आरती करते हैं, उसी प्रकार के भावों या विचारों का प्रादुर्भाव निरन्तर हमारे मन में होने लगता है ।। हम जिन शब्दों अथवा विचारों, नाम अथवा गुणों का पुनः- पुनः उच्चारण, ध्यान या निरन्तर चिंतन करते हैं, वे ही हमारी अन्तश्चेतना उच्चारण ही अपनी चेतना में इन्हें धारण करने का साधन है ।। मंत्र, प्रार्थना या वन्दन द्वारा उस दिव्य चेतना का आवाहन करके उसको मन, बुद्धि और शरीर में धारणा करते हैं ।। अतः ये वे उपाय हैं जिनसे सद्गुणों का विकास होता है और चित्त शुद्धि हो जाती है। प्रत्येक देवता की जो स्तुति, मंत्र या प्रार्थना है, वह स्तरीय होकर आस- पास के वातावरण मे कम्पन करती है ।। उस भाव की आकृतियाँ समूचे वातावरण में फैल जाती हैं ।। हमारा मन और आत्मा उससे पूर्णतः सिक्त भी हो जाता है ।। हमारा मन उन कम्पनों से उस उच्च भाव- स्तर में पहुँचता है, जो उस देवता का भाव- स्तर है, जिसका हम मंत्र जपते हैं, या जिसकी अर्चना करते हैं, प्रार्थना द्वारा मन उस देवता के सम्पर्क में आता है ।। उन मंत्रों से जप बाहर- भीतर एक सी स्थिति उत्पन्न हो जाती है ।। इस प्रकार मंत्र, जप, प्रार्थना, प्रस्तुतियाँ कम्पनात्मक शक्ति हैं ।। (भारतीय संस्कृति के आधारभूत तत्व पृ.सं.३.१४२)  gurukulamFacebookTwitterGoogle+TelegramWhatsApp   मूर्तिपूजा बहुदेव वाद व्रत और उपवास श्रेष्ठ परम्पराएँ त्रिकाल संध्या दानशीलता दान में विवेक की आवश्यकता देव पूजा का विधान शिखा का महत्त्व प्रतीक चिन्ह समग्र साहित्य हिन्दी व अंग्रेजी की पुस्तकें व्यक्तित्व विकास ,योग,स्वास्थ्य, आध्यात्मिक विकास आदि विषय मे युगदृष्टा, वेदमुर्ति,तपोनिष्ठ पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने ३००० से भी अधिक सृजन किया, वेदों का भाष्य किया। अधिक जानकारी अखण्डज्योति पत्रिका १९४० - २०११ अखण्डज्योति हिन्दी, अंग्रेजी ,मरठी भाषा में, युगशक्ति गुजराती में उपलब्ध है अधिक जानकारी AWGP-स्टोर :- आनलाइन सेवा साहित्य, पत्रिकायें, आडियो-विडियो प्रवचन, गीत प्राप्त करें आनलाईन प्राप्त करें  वैज्ञानिक अध्यात्मवाद विज्ञान और अध्यात्म ज्ञान की दो धारायें हैं जिनका समन्वय आवश्यक हो गया है। विज्ञान और अध्यात्म का समन्वय हि सच्चे अर्थों मे विकास कहा जा सकता है और इसी को वैज्ञानिक अध्यात्मवाद कहा जा सकता है.. अधिक पढें भारतीय संस्कृति आध्यात्मिक जीवन शैली पर आधारित, मानवता के उत्थान के लिये वैज्ञानिक दर्शन और उच्च आदर्शों के आधार पर पल्लवित भारतिय संस्कृति और उसकी विभिन्न धाराओं (शास्त्र,योग,आयुर्वेद,दर्शन) का अध्ययन करें.. अधिक पढें प्रज्ञा आभियान पाक्षिक समाज निर्माण एवम सांस्कृतिक पुनरूत्थान के लिये समर्पित - हिन्दी, गुजराती, मराठी एवम शिक्क्षा परिशिष्ट. पढे एवम डाऊनलोड करे           अंग्रेजी संस्करण प्रज्ञाअभियान पाक्षिक देव संस्कृति विश्वविद्यालय अखण्ड ज्योति पत्रिका ई-स्टोर दिया ग्रुप समग्र साहित्य - आनलाइन पढें आज का सद्चिन्तन वेब स्वाध्याय भारतिय संस्कृति ज्ञान परिक्षा अखिल विश्व गायत्री परिवार शान्तिकुञ्ज, हरिद्वार (भारत) shantikunj@awgp.org +91-1334-260602 अन्तिम परिवर्तन : १५-०२-२०१३ Visitor No 25425 सर्वाधिकार सुरक्षित Download Webdoc(55)

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