Thursday 30 March 2017

लंगोट का महत्व

HealthPaper Menu अंत:वस्‍त्र लंगोट द्वारा ऊर्जा संरक्षण    Editor >Categories: यौन स्वास्थ्य Tags: Langot, अंत:वस्‍त्र लंगोट, पौरुष संरक्षण, ब्रह्मचर्य, यौन स्वास्थ्य मानव जीवन में ऊर्जा का बड़ा महत्‍व है। यहाँ तक कि संभोग से लेकर समाधि तक में यह ऊर्जा ही महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाती है। हमारी सारी सांस्‍कृतिक व आध्‍यात्मिक गतिविधियाँ हमारे शरीर के भीतर मौजूद ऊर्जा पर ही निर्भर हैं। ऊर्जा का स्रोत एक ही है जिसे काम केंद्र कहा जाता है। योग की भाषा में शरीर में स्थित सात चक्रों में पहला चक्र मूलाधार इसका स्रोत है, जहाँ हमारी ज्ञानेंद्रियां स्थित होती हैं। आधुनिक युग के चर्चित रहस्‍यदर्शी ओशो के अनुसार शरीर में ऊर्जा एक ही है जब वह मूलाधार से नीचे की तरफ़ सरकती है तो संसार शुरू होता है और जब ऊपर तरफ़ उठती है तो परमात्‍मा शुरू होता है। यही ऊर्जा ऊपर उठते हुए जब सातवें चक्र यानी सहस्रार तक पहुंच जाती है तो आत्‍मा अपने चरम विकास पर पहुंचती है यानि वह परमात्‍मा हो जाती है। अंत:वस्‍त्र लंगोट द्वारा इस ऊर्जा का संरक्षण किस प्रकार कर सकते हैं, आइए इसकी जानकारी करते हैं।  अंत:वस्‍त्र लंगोट का महत्त्व इस ऊर्जा संरक्षण के लिए पुरुषों का अंत:वस्‍त्र लंगोट बड़े काम का है। यह जननांग को केवल ढकता ही नहीं है बल्कि उसे दबाकर रखता है ताकि ऊर्जा नीचे की तरफ़ सरकने के लिए सक्रिय न हो सके। इस शब्‍द में जो अर्थ निहित है – लं और गोट । वह भी इसी तरफ़ इशारा करता है, अर्थात्‌ जो लं और गोट दोनों को संभाल सके वह लंगोट। इसीलिए पहले ऋषि-मुनि जो साधनारत थे, लंगोट के इस्‍तेमाल से ऊर्जा को संरक्षित करने का प्रयास करते थे। धीरे-धीरे यह बल व पौरुष का प्रतीक बन गया। जहां भी पौरुष के संरक्षण की ज़रूरत पड़ी, वहां लंगोट मौजूद हो गया। हनुमानजी के अधिकतर चित्रों में लंगोट पहने ही देखे जाते हैं। पहलवानों का यह बहुत प्रिय वस्‍त्र है। जिस पुरुष को स्त्रियां प्रभावित व आकर्षित न कर सकें, उन्‍हें लंगोट का पक्‍का व्‍यक्ति कहा जाता है। अब ऐसी कच्छियां आ गई हैं जिनमें लंगोट की गरिमा को संरक्षित करने की कूबत है। लंगोट ने अपना स्‍वरूप बदला लेकिन उसके गुण नहीं बदले। आज जो पहलवान अखाड़ों में लड़ते समय कच्छियां पहनते हैं, वे अंत:वस्‍त्र लंगोट का ही काम करती हैं। लंगोट की बनावट अंत:वस्‍त्र लंगोट की सिलाई त्रिभुजाकार होती है। किसी भी रंग के कपड़े का लंगोट बन सकता है और बनता है लेकिन लाल रंग सर्वाधिक लोकप्रिय है। चूंकि हनुमानजी का रंग लाल है, पहलवान अपने को हनुमान जी का भक्‍त मानते हैं, इसलिए वे लाल लंगोट हनुमान जी को भी चढ़ाते हैं और स्‍वयं भी पहनते हैं। लंगोट के लाभ अंत:वस्‍त्र लंगोट काम वासना पर नियंत्रण तो करता ही है, इसे पहनने वाले को कभी हाइड्रोशील की बीमारी नहीं होती और अंडकोश को यह चोट से बचाता है, ख़ासकर साइकिल, मोटरसाइकिल आदि से गिरने पर लगने वाली चोट से। दौड़ने, चलने, योगासान व व्‍यायाम में सुविधाजनक है। मांगलिक कार्यों खासकर रामचरितमानस के अखंड पाठ, किसी भी तरह का यज्ञ, महायज्ञ आदि में जो ध्‍वज लगता है वह लंगोट के आकार का ही होता है जो ब्रह्मचर्य की ओर जाने का इशारा करता है, यानि ऊर्जा संरक्षण का संदेश देता है। कुल मिलाकर यह ऊर्जा संरक्षण का प्रतीक चिह्न है। आज भी यह बाल ब्रह्मचारी हनुमान जी सहित अनेक देवताओं को चढ़ाया जाता है। मन्‍नतें पूरी होने पर अनेक देव स्‍थानों पर लंगोट चढ़ाने की परंपरा आज भी जीवित है।  © HealthPaper.Org, All Rights Reserved. Back to top

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