Wednesday, 29 March 2017
मतगजेद्र
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अयोध्या के कोतवाल हैं मतगजेंद्र
Sun Mar 08 22:03:17 IST 2015

अयोध्या
मोक्षदायिनी पुरियों में अग्रणी नगरी में भगवान राम ही नहीं उनके परिकरों के भी मंदिर हैं। ऐसे मंदिरों में मतगजेंद्र के टीले का महत्वपूर्ण स्थान है।
अयोध्या की पौराणिकता विवेचित करते ग्रंथ स्कंदपुराण के अनुसार मतगजेंद्र विभीषण के पुत्र थे और भगवान राम की लंका विजय के बाद उनके साथ अयोध्या आने वाले समूह में मतगजेंद्र भी थे। लंका विजय के बाद भगवान के साथ अयोध्या आने वालों में विभीषण और उनके परिवार सहित बड़ी संख्या में बंदर-भालू थे। चार महीने तक अयोध्या में चले लंका विजय के जश्न और शांति काल में भगवान राम के साथ समुचित समय व्यतीत करने के बाद वे सभी अपने-अपने घरों को लौट गए पर हनुमान जी के अलावा जो एक और किरदार नहीं लौटा। वह मतगजेंद्र ही थे। विभीषण भगवान राम के प्रति अत्यंत कृतज्ञ थे पर लंका के राज्य संचालन की जिम्मेदारी के चलते उन्हें वापस लौटना था। वापस लौटते हुए वे भगवान राम की सेवा में अपने यशस्वी पुत्र मतगजेंद्र को अयोध्या में ही छोड़ गए।
पुराण कहता है कि मतगजेंद्र भगवान राम के चु¨नदा पार्षदों में से एक थे और 10 हजार वर्ष तक शासन के बाद भगवान राम ने जब साकेत गमन की तैयारी की, तो हनुमान जी को अयोध्या का राज और मतगजेंद्र को अयोध्या की सुरक्षा का दायित्व सौंपा।
मतगजेंद्र मंदिर के मौजूदा संचालक महंत नरहरीदास याद दिलाते हैं कि मतगजेंद्र का यह स्थान उस रामकोट के द्वार पर है, जहां त्रेता में संपूर्ण राज परिकर निवास करता था और सुरक्षा की ही दृष्टि से इसी रामकोट के द्वार पर मतगजेंद्र का स्थान सुनिश्चित किया गया। अयोध्या महात्म्य एवं अयोध्या दर्पण जैसे ग्रंथों में कहा गया है कि मतगजेंद्र के स्थान का दर्शन किए बिना अयोध्या दर्शन का पुण्य फलीभूत नहीं होता। हालांकि यह स्थान लंबे समय तक उपेक्षित रहा और राम जन्म भूमि पर स्थित मंदिर तोड़े जाने के साथ नगरी के जिन कुछ अन्य स्थलों का विध्वंस किया गया, उनमें मतगजेंद्र का भी स्थान था। राम जन्म भूमि का विषय केंद्र में था, तो उसकी ¨चता भी लंबे अर्से से अभिव्यक्त रही पर मतगजेंद्र का स्थान विध्वंस के बाद उपेक्षित होकर रह गया। करीब छह-सात दशक पूर्व हनुमानगढ़ी से जुड़े संत वासुदेवदास ने इस स्थान को फिर से प्रतिष्ठित किया। मंदिर के वर्तमान संचालक नरहरीदास के प्रयास से सन् 2004 में टीले की शक्ल वाले स्थान को परिपूर्ण मंदिर का स्वरूप दिया गया।
प्रत्येक वर्ष होली के बाद पड़ने वाले प्रथम मंगलवार को यहां वार्षिकोत्सव मनाया जाता है। मतगजेंद्र के विग्रह का विधि-विधान से पूजन किया जाता है एवं श्रद्धालुओं का सैलाब आस्था अर्पित करने के लिए उमड़ता है। मंदिर प्रांगण में मेला भी लगता है, दुकानें सजती हैं और विशेष रूप से बच्चे मेले का लुत्फ उठाते हैं। शास्त्रज्ञ पं. राधेश्याम शास्त्री के अनुसार उत्तर मध्यकाल में उपेक्षा के बावजूद मतगजेंद्र की महिमा और पौराणिकता असंदिग्ध है।
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