Friday, 1 September 2017

चोदना' शब्द का अर्थ आचार्य कहते हैं

ⓘ Loading ...View original http://maghaa.com/tag/%E0%A4%B6%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%A6-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97/ मघाMenu 'ख'मध्य का ककहरा TAG ARCHIVES: शब्द प्रयोग कौटलीय अर्थशास्त्रे शब्दप्रयोगाः 1 Reply मम लेखस्य विषयः कौटलीय अर्थशास्त्रे कतिपय राजपदानाम्, कर्तव्यानाम्, वस्तूनाम् चार्थे प्रयुक्ताः विभिन्नाः अप्रसिद्ध शब्दाः। वयं जानीमः शब्दार्थाः परिवर्तनशील सन्ति कालेन सह तेषां अर्थाः परिवर्तयन्ति (अर्थशास्त्रस्य कालखण्ड तृतीय-चतुर्थ शताब्दि ईसा पूर्वं मन्यन्ते) अतः शब्दानाम् अर्थे अधुनातः वैचित्र्यं लभ्यते। कतिचन् शब्दाः मम ध्यानाकर्षण अकुर्वन् अर्थशास्त्रे तेषां प्रयोगात् अधुना वयं अपरिचितः च अस्तु एषः लेखः। प्रथमे अधिकरणे आचार्यः अमात्यनियुक्ति विषये वदति – नैति पिशुनः (०१.८.११), अत्र पिशुन, नारद मुनेः अपरन्नामः। पिशुन शब्दः परस्परभेदशीलः पुरुषः अपि वदति। अन्य एकः नामः नैति कौणपदन्तः (०१.८.१४), अत्र कौणपदन्तः भीष्म पितामहस्य नामः, कौणपः शवभोजी तथाच कौणपदन्तस्य अर्थः “कौणपस्य दन्ताइव दन्ता अस्य:” अस्ति। अग्रे – नैति वातव्याधिः (०१.८.२०) वातेन देहस्थधातुभेदेव जनितो व्याधिः वातव्याधि, परन्तु अत्र वातव्याधिः शब्दः आचार्य उद्धवस्य बोधकः। मन्त्र शब्दः मन्त्रणा संबन्धिने प्रयुक्तास्ति यथा कर्मणां आरम्भ-उपायः पुरुष-द्रव्य-सम्पद्देश-काल-विभागो विनिपात-प्रतीकारः कार्य-सिद्धिरिति पञ्च-अङ्गो मन्त्रः (०१.१५.४२) अर्थात् कश्यचित कर्मस्य आरम्भ उपायः, कश्यचित पुरुषस्य-द्रव्यस्य ज्ञान, देशकाल संबन्धिने बोधः, विघ्न प्रतीकार तथा कार्यासिद्धिः एतानि मन्त्रस्य पञ्च अङ्गानि।अन्य शब्दः सहस्राक्षः, एषः शब्दः इन्द्रस्य अपरनामः, आचार्यः वदति सहस्त्र मन्त्रिपरिषद्रिषिणां इन्द्रस्य सहस्त्र चक्षुः वस्तुतः इन्द्रः द्वयक्षम् – इन्द्रस्य हि मन्त्रिपरिषद्रिषिणां सहस्रम्॥ स तच्चक्षुः॥ तस्मादिमं द्रव्यक्षं सहस्राक्षमाहुः॥ (०१.१५.५५-५७) प्रथम अधिकरणे विन्शतितं अध्यायस्य नामः निशान्तप्रणिधि, निशान्त नामः राज्ञः पुरः राजभवनोऽवा – निशम्यते विश्रम्यतेऽस्मिन्निति निशान्तः। पाकशालायाः अपर नाम माहानसः अस्ति अतः माहानसिकः राज्ञः भोजन निरीक्षकः वा पाकशालायाः मुख्य अधिकारी भवति। यथा उल्लिखिते तस्य कर्तव्यः – गुप्ते देशे माहानसिकः सर्वं आस्वादबाहुल्येन कर्म कारयेत् (०१.२१.०४)। द्वितीयाधिकरणे पञ्चम अध्यायः सन्निधाता कर्मोपरि केन्द्रितः अयं सन्निधाता, भाण्डाराधिपति कोषाध्यक्षोवा भवति। अनन्तरं षष्टः अध्यायः समाहर्ता विषयकः। समाहर्ता राजकरः राजस्व च संग्रहणं करोति, अधुना प्रत्येक जनपदे District Collector इयं व्यवस्था कुर्वन्ति। अयं व्यवस्था आङ्ग्लदैशिका। मूलहरः अपि एक नव्यप्रयोगः दृश्यते, आचार्यः कथयति – यः पितृ-पैतामहं अर्थं अन्यायेन भक्षयति स मूल-हरः (०२.९.२१) अत्र राष्ट्रिय राजधानी क्षेत्रे बहवः मूलहराः दृश्यन्ते। ‘चोदना’ इति शब्दस्य अर्थः आचार्यः कथयति – ‘इदं क्रियताम्’ इति चोदना (०२.१०.३३) अर्थात् उत्तम कार्यस्य करणे प्रेरणा हि चोदना। अर्थशास्त्रः बृहत्ग्रन्थः, बहु विशाला एतस्य विषयसामग्री। अत्र अहं मात्र एक गवाक्षस्य उद्घाटनं अकरवम् तथापि यूयं मनसि एकं जिज्ञासा यदि जाग्रति अर्थशास्त्र विषये तत् मम साफल्यम्। हिन्दी अनुवाद कौटलीय अर्थशास्त्र में कुछ शब्दप्रयोग मेरे लेख का विषय कौटलीय अर्थशास्त्र में कुछ राजपदों के नाम, कर्त्तव्य और वस्तुओं के नाम के लिए प्रयुक्त विभिन्न अप्रसिद्ध शब्द हैं। हम जानते हैं कि शब्दों के अर्थ बदलते रहते हैं, समय के साथ उनके अर्थ बदलते हैं (अर्थशास्त्र का समय लगभग तीसरी-चौथी शताब्दी ईसा पूर्व मानते हैं)। अतः शब्दों के अर्थ में आज से भिन्न विचित्रता मिलती है। कुछ शब्दों ने मेरा ध्यान खींचा जिनके अर्थशास्त्र में हुये प्रयोगों से आजकल हम अपरिचित हैं, उन पर यह लेख है। पहले अधिकरण में आचार्य अमात्य नियुक्त करने के विषय में कहते हैं – नैति पिशुनः (०१.८.११), यहाँ पिशुन, नारद मुनि का दूसरा नाम है। पिशुन शब्द एक-दूसरे के भेद को बताने वाले पुरुष के लिये भी प्रयुक्त होता है। एक और नाम – नैति कौणपदन्तः (०१.८.१४), यहाँ कौणपदन्त भीष्म पितामह का नाम है, कौणप का अर्थ शव खाने वाला होता है और कौणपदन्त का अर्थ, जिसके दांत कौणप (शव खाने वाले) जैसे हों, है। आगे – नैति वातव्याधिः (०१.८.२०), वायु से शरीर की धातुओं में होने वाले रोग वातव्याधि हैं, परन्तु यहाँ वातव्याधि शब्द आचार्य उद्धव का द्योतक है। मन्त्र शब्द मंत्रणा के सम्बन्ध में प्रयुक्त है जैसे – कर्मणां आरम्भ-उपायः पुरुष-द्रव्य-सम्पद्देश-काल-विभागो विनिपात-प्रतीकारः कार्य-सिद्धिरिति पञ्च-अङ्गो मन्त्रः (०१.१५.४२) अर्थात किसी कर्म के आरम्भ करने का उपाय, किसी पुरुष की संपत्ति का ज्ञान, देश-काल सम्बन्धी जानकारी, विघ्नों को हटाना और कार्य की सिद्धि ये मन्त्र के पाँच अङ्ग हैं। एक अन्य शब्द है – सहस्राक्ष, यह शब्द इन्द्र का दूसरा नाम है, आचार्य कहते हैं कि इन्द्र तो दो आँखों वाला है, परन्तु एक हजार ऋषियों के मंत्री परिषद् वाले इन्द्र के इस प्रकार हजार आँखें हैं – इन्द्रस्य हि मन्त्रिपरिषद्रिषिणां सहस्रम्॥ स तच्चक्षुः॥ तस्मादिमं द्रव्यक्षं सहस्राक्षमाहुः॥ (०१.१५.५५-५७) पहले अधिकरण में बींसवें अध्याय का नाम निशान्तप्रणिधि है, निशांत राजा के महल या भवन का नाम होता है – जिसमें निशमन या विश्राम हो वह निशांत है। रसोई का दूसरा नाम माहानस है अतः माहानसिक राजा के भोजन का निरीक्षक या रसोई का मुख्य अधिकारी होता है। जैसे उसके कर्त्तव्य उल्लिखित हैं: गुप्ते देशे माहानसिकः सर्वं आस्वादबाहुल्येन कर्म कारयेत् (०१.२१.०४)। दूसरे अधिकरण में पाँचवाँ अध्याय सन्निधाता के कामों पर केन्द्रित हैं, यह सन्निधाता भण्डार घर का अधिपति या कोषाध्यक्ष होता है। इसके बाद छठा अध्याय समाहर्ता के विषय में है। समाहर्ता राजकर और राजस्व वसूल करता है। आजकल जनपद में District Collector इस की व्यवस्था करते हैं। यह व्यवस्था अंग्रेजों की है। मूलहर भी एक नया प्रयोग दिखता है, आचार्य कहते हैं – यः पितृ-पैतामहं अर्थं अन्यायेन भक्षयति स मूल-हरः (०२.९.२१), अर्थात जो बाप-दादों की संपत्ति को अन्याय पूर्वक खा लेता है वहा मूलहर है। यहाँ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में बहुत मूलहर दीखते हैं। ‘चोदना’ शब्द का अर्थ आचार्य कहते हैं – ‘इदं क्रियताम्’ इति चोदना (०२.१०.३३), अर्थात किसी उत्तम कार्य के करने की प्रेरणा ही चोदना है। अर्थशास्त्र बड़ा ग्रन्थ है, इसकी विषय-सामग्री बहुत विशाल है। यहाँ मैंने केवल एक खिड़की खोली है तब भी यदि आपके मन में अर्थशास्त्र के लिए एक जिज्ञासा जगती है तो वही मेरी सफलता है। मूल संस्कृत ग्रन्थ के सन्दर्भों के लिए यहाँ देखें – https://tinyurl.com/kh4lqhm  लेखक: अलंकार शर्मा शिक्षा: गणित स्नातक, स्नातकोत्तर कंप्यूटर विज्ञान, आचार्य – फलित ज्योतिष संयोजन: पं. बैजनाथ शर्मा प्राच्य विद्या शोध संस्थान का कार्यभार सम्पादक: प्राच्य मञ्जूषा This entry was posted in भारत, भाषा, संस्कृत and tagged 0007, अलंकार शर्मा, कौटलीय अर्थशास्त्र, वैशाख-अमावस्याङ्क-2074-वि.-[वर्ष-2-अङ्क-7]-बुधवार, शब्द प्रयोग on April 26, 2017 by अलङ्कार शर्मा. Search for: Search  लेखक एवं लेख लिङ्क अनुराग शर्मा . त्रिलोचन नाथ तिवारी . यशार्क पांडेय अभिषेक ओझा … देवेन्द्र पाण्डेय …. विवेक रस्तोगी अमित शर्मा …… निसर्ग जोशी ….. . श्रीकृष्ण जुगनू अर्पित सारा …… भूमिका ठाकोर …. शिल्पा मेहता अरुण उपाध्याय .. मघा ……………… सिद्धार्थ जोशी अलंकार शर्मा ….. मृत्युञ्जय ……………. सुभाष काक अविनाश शर्मा . मधुसूदन उपाध्याय… हिमांशु पांडेय आजाद सिंह …….. Maria Wirth सम्पर्क CONTACT:  मघा लेख फीड ‘मघा’ में प्रकाशित सभी लेखों और उनमें प्रयुक्त मौलिक चित्रादि सामग्री के सर्वाधिकार (Copyright) प्रकाशक के पास सुरक्षित हैं। प्रकाशक से बिना लिखित पूर्वानुमति प्राप्त किये सामग्री कॉपी न करें और न ही कहीं प्रयोग करें। लिङ्क के साथ सन्दर्भ दिये जा सकते हैं [वर्ष 2, अङ्क 15] में ऋतुगीत : झूम उठते प्राण मेरे August 22, 2017 कहानी सी, नमस्ते August 22, 2017 प्रेम-पंथ August 22, 2017 संस्कृत गल्पवार्ता (सम्प्रतिवार्ता न) August 22, 2017 पिहू Pheasant–Tailed Jacana August 22, 2017 शम्भू August 22, 2017 दोहे August 22, 2017 लहरता दिनमान प्रस्थान और विश्राम बीच – ऑक्तावियो पाज़August 22, 2017 सनातन बोध, अनुकृत सिद्धांत – 9 August 22, 2017 प्रेम – एक लघुकथा August 22, 2017 पिघले शरीर … नेह भर पीर पीर। August 22, 2017 राजदरी-देवदरी : कहि न जाय का कहिये August 22, 2017 मघा सहित सूर्य चंद्र August 22, 2017 अरण्यानी देवता – ऋग्वेद Araṇyānī Devatā – Ṛgveda 10.146August 22, 2017 रजत थाल – नथन आल्टरमन August 22, 2017 [वर्ष 1, पिछले अङ्क ] फाल्गुन पूर्णिमाङ्क, 2073 वि., रविवार के आलेख फाल्गुन अमावस्याङ्क, 2073 वि., रविवार के आलेख माघ पूर्णिमाङ्क, 2073 वि., शुक्रवार के आलेख माघ अमावस्याङ्क, 2073 वि., शुक्रवार के आलेख पौष पूर्णिमाङ्क, 2073 वि., बृहस्पतिवार के आलेख सदस्य प्रवेश Username  Password   Remember Me Log In चिह्न मेघ अंग्रेजी (4) अर्थशास्त्र (10) इलेक्ट्रॉनिक्स (3)कामशास्त्र (0) गणित (5) जैव विविधता (18)तकनीकी (6) बौद्ध धम्म (6) भारत (69) भारत विद्या (52) भाषा (11)मनुष्य (4) विमर्श (14) संस्कृत (18)सम्पादकीय (9) साक्षात्कार (1) सौंदर्य (1) हिंदी (25) प्रकाशन दिनाङ्क September 2017 M T W T F S S « Aug 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 पुरालेख पुरालेख  कुछ टिप्पणियाँ Lalit on श्री भगवान सिंह से बातचीत – 1 : ऋग्वेद Ramdas Tiwari on श्री भगवान सिंह से बातचीत – 1 : ऋग्वेद राजीव रंजन on शम्भू चलत मुसाफिर on कहानी सी, नमस्ते अलङ्कार शर्मा on दोहे खिड़की There are no users currently online Proudly powered by WordPress Skip to contentमुखपृष्ठमघा के बारे मेंसम्पादकीयभाषासंस्कृतहिंदीअंग्रेजीतकनीकीऊर्जाभवन निर्माणविद्युतइलेक्ट्रॉनिक्समुक्त संगणनभारत विद्याअर्थशास्त्रबौद्ध धम्मजैव विविधतासंपर्क

No comments:

Post a Comment