Thursday 31 August 2017

देवता

देवता
'देव' शब्द में 'तल्' प्रत्यय लगाकर 'देवता' शब्द की व्युत्पत्ति होती है। अत: दोनों में अर्थ-साम्य है। निरूक्तकार ने इसकी व्याख्या करते हुए कहा, 'जो कुछ देता है वही देवता है अर्थात देव स्वयं द्युतिमान हैं- शक्तिसंपन्न हैं- किंतु अपने गुण वे स्वयं अपने में समाहित किये रहते हैं जबकि देवता अपनी शक्ति, द्युति आदि संपर्क में आये व्यक्तियों को भी प्रदान करते हैं। देवता देवों से अधिक विराट हैं क्योंकि उनकी प्रवृत्ति अपनी शक्ति, द्युति, गुण आदि का वितरण करने की होती है। जब कोई देव दूसरे को अपना सहभागी बना लेता है, वह देवता कहलाने लगता है।


पाणिनि दोनों शब्दों को पर्यायवाची मानते हैं:  देवो दानाद्वा दीपनाद्वा द्योतनाद्वा द्युस्थानो भवतीति वा। यो देव: सा देवता इति। जब देव वेद-मन्त्र का विषय बन जाता है, तब वह देवता कहलाने लगता है जिससे किसी शक्ति अथवा पदार्थ को प्राप्त करने की प्रार्थना की जाय और वह जी खोलकर देना आंरभ करे, तब वह देवता कहलाता है। वेदमन्त्र विशेष में, जिसके प्रति याचना है, उस मन्त्र का वही देवता माना जाता है


देवताओं के नाम


अमरकोश के अनुसार देवताओं के 26 नाम हैं- अमर निर्जर देव त्रिदश विबुध सुर सुपर्वन सुमनस त्रिदिवेश दिवौकस आदितेय दिविषद लेख
अदितिनन्दन आदित्य ॠभु अस्वप्न अमर्त्य अमृतान्धस बर्हिर्मुख क्रतुभुज गीर्वाण दानवारि वृन्दारक दैवत देवता।


मुख्य देवता

यजुर्वेद के अनुसार मुख्य देवताओं की संख्या बारह हैं-

अग्निदेवता वातो देवता सूर्यो देवता चन्द्रमा देवतावसवो देवता, रुद्रा देवता, आदित्या देवता मरुतो देवता।विश्वेदेवा देवता बृहस्पतिर्दैवतेन्द्रो देवता वारुणों  देवता।


अग्नि- स्वयं अग्रसर होता है, दूसरों को भी करता है।

सूर्य- उत्पादन करने वाला तथा उत्पादन हेतु सबको प्रेरित करने वाला।

चंद्र- आह्लादमय- दूसरों में आह्लाद का वितरण करने वाला।

वात- गतिमय- दूसरों को गति प्रदान करने वाला।

वसव- स्वयं स्थिरता से रहता है- दूसरी को आवास प्रदान करता है।

रुद्र- उपदेश, सुख, कर्मानुसार दंड देकर रूला देता है, स्वयं वैसी ही परिस्थिति में विचलित नहीं होता।

आदित्य- प्राकृतिक अवयवों को ग्रहण तथा वितरण करने में समर्थ।

मरूत- प्रिय के निमित्त आत्मोत्सर्ग के लिए तत्पर तथा वैसे ही मित्रों से घिरा हुआ।

विश्वदेव- दानशील तथा प्रकाशित करने वाला।

इन्द्र- ऐश्वर्यशाली देवताओं का अधिपति।

बृहस्पति- विराट विचारों का अधिपति तथा वितरक।

वरुण- शुभ तथा सत्य को ग्रहण कर असत्य अशुभ को त्याग करने वाला तथा दूसरे लोगों से भी वैसा ही व्यवहार करवाने वाला।

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