Search the site  Search Menu HomeAbout UsDisclaimerHindi StoriesPrivacy PolicyContact Us How To/featured/प्रमुख 12 हिन्दू देवियों के रहस्य – Hindu Goddesses Mystery in Hindi FEATURED, GENERAL प्रमुख 12 हिन्दू देवियों के रहस्य – Hindu Goddesses Mystery in Hindiby ivan 8009 Share this: FacebookTwitterGoogle+PinterestWhatsAppShare7   दोस्तों, ‘देवता’ – यह शब्द सभी धर्मों का आधार है। अंग्रेजी का शब्द डाईटी (deity) भी इसी देव और दैत्य से बना है। देवताओं को सुर और दैत्यों को असुर कहा गया है। कुछ धर्मों में यह सुर और असुर प्रचलन में रहा। हिन्दू धर्म के ये सभी देवी और देवता अन्य धर्मों में अन्य रूप और रंग में चित्रित किए गए हैं। वरुण और शिव नाम के देवता सुर और असुर दोनों के ही बीच सर्वमान्य माने गए हैं। सत्य पर यदि विरोधाभास का आवरण चढ़ा है तो वह असत्य माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि हिन्दू देवी-देवताओं की संख्या 33 या 36 करोड़ है, लेकिन ये सच नहीं है। वेदों में देवताओं की संख्या 33 कोटि बताई गई है। ‘कोटि’ का अर्थ प्रकार होता है जिसे लोगों ने या बताने वाले पंडित ने 33 करोड़ कर दिया। यह विरोधाभास और भ्रम आज तक जारी है। इस विषय पर ज्यादा जानकारी के लिए यहां क्लिक करें। इसी तरह हिन्दू धर्म में किसी देवी या देवता की कहानी एक पुराण में अलग है, तो दूसरे में अलग। ये पुराण कुछ गुप्तकाल में और कुछ मध्यकाल में संशोधित किए गए हैं। पुराणों से अलग वेद और स्मृतियों को जानना चाहिए। प्रमुख 12 हिन्दू देवियों के रहस्य – Hindu Goddesses Mystery : देवी, अप्सरा, यक्षिणी, डाकिनी, शाकिनी और पिशाचिनी आदि में सबसे सात्विक और धर्म का मार्ग है ‘देवी’ की पूजा, साधना, आराधना और प्रार्थना करना। देवी को छोड़कर अन्य किसी की पूजा या प्रार्थना मान्य नहीं। दक्ष की पुत्रियां भी हैं देवियां : भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक प्रजापति दक्ष का पहला विवाह स्वायंभुव मनु की तृतीय पुत्री प्रसूति से हुआ। प्रसूति से दक्ष की 24 कन्याएं थीं। दक्ष की दूसरी पत्नी का नाम विरणी था जिससे दक्ष को 60 कन्याएं मिलीं। इस तरह दक्ष की 84 पुत्रियां थीं। समस्त दैत्य, गंधर्व, अप्सराएं, पक्षी, पशु सब सृष्टि इन्हीं कन्याओं से उत्पन्न हुए। दक्ष की ये सभी कन्याएं देवी, यक्षिणी, पिशाचिनी आदि कहलाईं। उक्त कन्याओं और इनकी पुत्रियों को ही किसी न किसी रूप में पूजा जाता है। सभी की अलग-अलग कहानियां हैं। देवी या देवताओं के सेवकों को ‘गण’ कहते हैं। देवी और देवताओं के हजारों गण हैं जिनके माध्यम से देवी या देवता संसारभर की खबर रखते रहते हैं और कार्य करते रहते हैं, जैसे माता दुर्गा के सेवकों में हनुमान और भैरव का स्थान सर्वोच्च है। आइये जानते हैं हिन्दू धर्म की प्रमुख 12 देवियों के बारे में, जो आप शायद ही जानते होंगे। 1. माता दुर्गा – Devi Durga  ब्रह्मा, विष्णु और महेश के संबंध में हिन्दू मानस पटल पर भ्रम की स्थिति है। वे उनको ही सर्वोत्तम और स्वयंभू मानते हैं, लेकिन क्या यह सच है? क्या ब्रह्मा, विष्णु और महेश का कोई पिता नहीं है? वेदों में लिखा है कि जो जन्मा या प्रकट है वह ईश्वर नहीं हो सकता। ईश्वर अजन्मा, अप्रकट और निराकार है। कालांतर में माता दुर्गा को माता पार्वती से जोड़कर 9 रूपों में पूजा जाने लगा। उक्त 9 रूपों के नाम हैं- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति.चतुर्थकम्।। पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रीति.महागौरीति चाष्टमम्।। नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:। उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।। शिवपुराण के अनुसार उस अविनाशी परब्रह्म (काल) ने कुछ काल के बाद द्वितीय की इच्छा प्रकट की। उसके भीतर एक से अनेक होने का संकल्प उदित हुआ। तब उस निराकार परमात्मा ने अपनी लीला शक्ति से आकार की कल्पना की, जो मूर्तिरहित परम ब्रह्म है। परम ब्रह्म अर्थात एकाक्षर ब्रह्म। परम अक्षर ब्रह्म। वह परम ब्रह्म भगवान सदाशिव है। एकांकी रहकर स्वेच्छा से सभी ओर विहार करने वाले उस सदाशिव ने अपने विग्रह (शरीर) से शक्ति की सृष्टि की, जो उनके अपने श्रीअंग से कभी अलग होने वाली नहीं थी। सदाशिव की उस पराशक्ति को प्रधान प्रकृति, गुणवती माया, बुद्धि तत्व की जननी तथा विकाररहित बताया गया है। वह शक्ति अम्बिका (पार्वती या सती नहीं) कही गई है। उसको प्रकृति, सर्वेश्वरी, त्रिदेव जननी (ब्रह्मा, विष्णु और महेश की माता), नित्या और मूल कारण भी कहते हैं। सदाशिव द्वारा प्रकट की गई उस शक्ति की 8 भुजाएं हैं। पराशक्ति जगतजननी वह देवी नाना प्रकार की गतियों से संपन्न है और अनेक प्रकार के अस्त्र शक्ति धारण करती है। एकाकिनी होने पर भी वह माया शक्ति संयोगवशात अनेक हो जाती है। उस कालरूप सदाशिव की अर्द्धांगिनी हैं दुर्गा। 2. सती और पार्वती – Devi Sati and Maata Parvati  हिन्दू धर्म की प्रमुख त्रिदेवियों में से एक माता पार्वती को शक्ति और साहस की देवी माना गया है। पार्वती माता अपने पिछले जन्म में सती थीं। सती ही शक्ति है। माता सती के ही रूप हैं- काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुरभैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला। पुराणों अनुसार भगवान शिव की चार पत्नियां थीं। पहली सती जिसने यज्ञ में कूद कर अपनी जान दे दी थी। यही सती दूसरे जन्म में पार्वती बनकर आई, जिनके पुत्र गणेश और कार्तिकेय हैं। फिर शिव की एक तीसरी पत्नी थीं जिन्हें उमा कहा जाता था। देवी उमा को भूमि की देवी भी कहा गया है। भगवान शिव की चौथी पत्नी मां महाकाली (काली नहीं) है। उन्होंने इस पृथ्वी पर भयानक दानवों का संहार किया था। प्रजापति दक्ष की पुत्री सती को शैलपुत्री भी कहा जाता था और उसे आर्यों की रानी भी कहा जाता था। दक्ष का राज्य हिमालय के कश्मीर इलाके में था। यह देवी ऋषि कश्यप के साथ मिलकर असुरों का संहार करती थी। अपने पति शिव का अपमान होने के कारण सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में कूदकर अपनी देहलीला समाप्त कर ली थी। माता सती की लाश को लेकर ही शिव जगह-जगह घूमते रहे। जहां-जहां देवी सती के अंग और आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ निर्मित होते गए। इसके बाद माता सती ने पार्वती के रूप में हिमालयराज के यहां जन्म लेकर भगवान शिव की घोर तपस्या की और फिर से शिव को प्राप्त कर पार्वती के रूप में जगत में विख्यात हुईं। इनके गणेश और कार्तिकेय दो प्रमुख पुत्र हैं। इनका विशेष दिन शुक्रवार को माना गया है। 3. अदिति – Aditi  प्राचीन भारत में अदिति की पूजा का प्रचलन था, लेकिन अब नहीं है। देवताओं की माता का नाम अदिति है। अदिति के पुत्रों को आदित्य कहा गया है। 33 देवताओं में अदिति के 12 पुत्र शामिल हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं- विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन)। 12 आदित्यों के अलावा 8 वसु, 11 रुद्र और 2 अश्विनकुमार मिलाकर 33 देवताओं का एक वर्ग है। समस्त देव कुलों को जन्म देने वाली अदिति देवियों की भी माता है। अदिति को लोकमाता भी कहा गया है। अदिति के पति ऋषि कश्यप ब्रह्माजी के मानस पुत्र मरीची के विद्वान पुत्र थे। मान्यता के अनुसार इन्हें अनिष्टनेमी के नाम से भी जाना जाता है। इनकी माता ‘कला’ कर्दम ऋषि की पुत्री और कपिल देव की बहन थी। अदिति के पुत्र विवस्वान् से मनु का जन्म हुआ। महाराज मनु को इक्ष्वाकु, नृग, धृष्ट, शर्याति, नरिष्यन्त, प्रान्शु, नाभाग, दिष्ट, करुष और पृषध्र नामक 10 श्रेष्ठ पुत्रों की प्राप्ति हुई। उल्लेखनीय है कि विवस्वान को ही सूर्य कहा गया है जिनकी आकाश में स्थित सूर्य ग्रह से तुलना की गई। 4. माता सरस्वती – Maata Saraswati  भारत में एक सारस्वत समाज है। संभवत: सरस्वती नदी के किनारे रहने के कारण यह नाम पड़ा हो, जैसे कि सरयूपारीय ब्राह्मण अर्थात सरयू नदी के आसपास रहने वाले ब्राह्मण। Devi Sarasvati हिन्दू धर्म की प्रमुख त्रिदेवियों में से एक माता सरस्वती को ज्ञान की देवी माना गया है। हंस पर विराजमान मां सरस्वती ने धवल वस्त्र धारण किए हैं। सरस्वती के हाथ वीणा के वरदंड से शोभित हैं। संगीत, कला, शिक्षा और ज्ञान की देवी हैं सरस्वती। सरस्वती के नाम पर ही एक नदी का नाम सरस्वती था, जो प्राचीनकाल में शिवालिक की पहाड़ियों से निकलकर हरियाणा और राजस्थान में बहती थी और सिंधु खाड़ी (अरब की खाड़ी) में समाहित हो जाती थी। 5. माता लक्ष्मी – Maata Lakshmi  भगवान विष्णु की पत्नी और ऋषि भृगु की पुत्री देवी लक्ष्मी त्रिदेवियों में से एक हैं, जो धन और समृद्धि को देने वाली मानी गई हैं। लक्ष्मी माता का वाहन उल्लू है और वह लक्ष्मी क्षीरसागर में भगवान विष्णु के साथ कमल पर वास करती हैं। आनन्द: कर्दम: श्रीदश्चिक्लीत इति विश्रुत:। ऋषय श्रिय: पुत्राश्च मयि श्रीर्देवी देवता।। -(ऋग्वेद 4/5/6) लक्ष्मीजी को 2 रूपों में पूजा जाता है- श्रीरूप और लक्ष्मी रूप। इनका विशेष दिन शुक्रवार को माना गया है। भगवती लक्ष्मी के 18 पुत्र कहे गए हैं जिसमें प्रमुख हैं- आनंद, कर्दम, श्रीद और चिक्लीत। 6. गायत्री – Devi Gayatri  गायत्री नाम से ऋग्वेद में एक सबसे लंबा छंद है। गायत्री को आद्याशक्ति प्रकृति के 5 स्वरूपों में एक माना गया है। यही वेद माता कहलाती हैं। किसी समय ये सविता देव की पुत्री के रूप में अवतीर्ण हुई थीं इसलिए इनका नाम सावित्री पड़ गया। इनका विग्रह तपाए हुए स्वर्ण के समान है। वेदों में अदिति के अलावा सविता का भी कई जगहों पर उल्लेख मिलता है। पद्म पुराण के अनुसार वज्रनाश नामक राक्षस का वध करने के पश्चात ब्रह्माजी ने संसार की भलाई के लिए पुष्कर में एक यज्ञ करने का फैसला किया। ब्रह्माजी यज्ञ करने हेतु पुष्कर पहुंच गए, लेकिन किसी कारणवश सावित्रीजी समय पर नहीं पहुंच सकीं। यज्ञ को पूर्ण करने के लिए उनके साथ उनकी पत्नी का होना जरूरी था, लेकिन सावित्रीजी के नहीं पहुंचने की वजह से उन्होंने एक कन्या ‘गायत्री’ से विवाह कर यज्ञ शुरू किया। उसी दौरान देवी सावित्री वहां पहुंचीं और ब्रह्मा के बगल में दूसरी कन्या को बैठा देख क्रोधित हो गईं। उन्होंने ब्रह्माजी को शाप दिया कि देवता होने के बावजूद कभी भी उनकी पूजा नहीं होगी, तब सावित्री से सभी देवताओं ने विनती की कि अपना शाप वापस ले लीजिए, लेकिन उन्होंने नहीं लिया। जब गुस्सा ठंडा हुआ तो सावित्री ने कहा कि इस धरती पर सिर्फ पुष्कर में आपकी पूजा होगी। 7. गंगा देवी – Devi Ganga  गंगा पर्वतों के राजा हिमवान और उनकी पत्नी मीना की दूसरी पुत्री थीं। इस प्रकार से वे माता पार्वती की बहन थीं। उनका पालन-पोषण स्वर्ग में ब्रह्माजी के संरक्षण में हुआ था। इसी देवी के नाम पर एक नदी का नाम गंगा रखा गया था। गंगा नदी भी स्वर्ग (हिमालय का एक क्षेत्र) की नदी थी जिसे राजा भगीरथ के अथक प्रयासों से धरती पर लाया गया था। गंगा देवी को मकर नामक वाहन पर बैठकर नदी में विचरण करने वाली देवी माना गया है, जो प्राचीनकाल में गंगा नदी में विचरण करती थी। गंगा एकमात्र ऐसी नदी है, जो तीनों लोकों में बहती है- स्वर्ग, पृथ्वी तथा पाताल इसलिए संस्कृत भाषा में उसे ‘त्रिपथगा’ (तीनों लोकों में बहने वाली) कहा जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार देवी गंगा कार्तिकेय (मुरुगन) की सौतेली माता हैं। कार्तिकेय को शिव और पार्वती का पुत्र माना गया है। एक मान्यता के अनुसार पार्वती ने अपने शारीरिक दोषों से जब गणेश को उत्पन्न किया था तब वे गंगा के पवित्र जल में डुबोने के बाद जीवित हो उठे थे। इसलिए कहा जाता है कि गणेश की दो माताएं हैं- पार्वती और गंगा। यही कारण है कि भगवान गणेश को द्विमातृ तथा गंगेय भी कहा जाता है। उल्लेखनीय है कि भीष्म भी गंगा के पुत्र थे। दरअसल, भीष्म 8 वसुगणों में एक द्यौस थे, जो शाप के चलते मनुष्य योनि में गंगा के गर्भ से जन्मे थे। 8. शतरूपा – Shatrupa  वर्तमान विश्व के प्रथम मानव स्वायंभुव मनु की पत्नी का नाम शतरूपा था। विश्व की प्रथम स्त्री होने के नाते उन्हें जगतजननी भी कहा जाता है। इनका जन्म ब्रह्मा के वामांग से हुआ था। इन्हें प्रियव्रात, उत्तानपाद आदि 7 पुत्र और देवहूति, आकूति तथा प्रसूति नामक 3 कन्याएं हुई थीं। रामचरित मानस के बालकांड में मनु-शतरूपा के तप एवं वरदान का उल्लेख मिलता है। अभगच्छत राजेन्द्र देविकां विश्रुताम्। प्रसूर्तित्र विप्राणां श्रूयते भरतर्षभ।। -महाभारत वितस्ता नदी की शाखा देविका नदी के तट पर मनु और शतरूपा की उत्पत्ति हुई थी। यह नदी वर्तमान में कश्मीर में बहती है। शतरूप के पुत्र उत्तानपाद की सुनीति और सुरुचि नामक दो पत्नियां थीं। राजा उत्तानपाद के सुनीति से ध्रुव तथा सुरुचि से उत्तम नामक पुत्र उत्पन्न हुए। ध्रुव ने बहुत प्रसिद्धि हासिल की थी। स्वायंभुव मनु के दूसरे पुत्र प्रियव्रत ने विश्वकर्मा की पुत्री बहिर्ष्मती से विवाह किया था जिनसे आग्नीध्र, यज्ञबाहु, मेधातिथि आदि 10 पुत्र उत्पन्न हुए। प्रियव्रत की दूसरी पत्नी से उत्तम, तामस और रैवत- ये 3 पुत्र उत्पन्न हुए, जो अपने नाम वाले मन्वंतरों के अधिपति हुए। महाराज प्रियव्रत के 10 पुत्रों में से कवि, महावीर तथा सवन ये 3 नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे और उन्होंने संन्यास धर्म ग्रहण किया था। 9. श्रद्धा – Devi Shraddha  श्रद्धा कर्दम ऋषि एवं देवहूति की तृतीय कन्या थी। श्रद्धा का विवाह अंगिरा ऋषि के साथ हुआ था। अंगिरा और श्रद्धा से सिनीबाला, कुहु, राका एवं अनुमति नामक पुत्रियां तथा तथ्य और बृहस्पति नामक पुत्र हुए। बृहस्पति देवताओं के गुरु हैं। 10. शचि – Shachi  स्कंद पुराण के पुलोमा पुत्री शचि का भी वेदों में उल्लेख मिलता है। स्कंद पुराण के अनुसार सतयुग में दैत्यराज पुलोम की पुत्री शचि ने देवराज इन्द्र को पति रूप में प्राप्त करने के लिए ज्वालपाधाम में हिमालय की अधिष्ठात्री देवी पार्वती की तपस्या की थी। मां पार्वती ने शचि की तपस्या पर प्रसन्न होकर उसे दीप्त ज्वालेश्वरी के रूप में दर्शन दिए और शचि की मनोकामना पूर्ण की। जहां मां ने दर्शन दिए थे वह स्थान उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में है। यहां माता ज्वालादेवी का एक मंदिर है। देवी शचि को इंद्राणी कहा जाता है। इंद्राणी (देवी शचि) ने अपने पति इंद्र के हाथ में ब्राह्मणों द्वारा रक्षासूत्र बंधवाया था। उन्होंने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि उस समय देवासुर संग्राम चल रहा था। रक्षासूत्र बांधकर जब इंद्र ने युद्ध किया तो वे विजयी हुए। कुछ लोगों का मानना है कि तभी से रक्षाबंधन का यह पर्व शुरू हुआ। 11. सावित्री – Savitri  ब्रह्मा जी की पत्नी का नाम सावित्री देवी है। ब्रह्मा जी ने एक और स्त्री से विवाह किया था जिसका नाम गायत्री है। सावित्री की एक पुत्री का नाम सरस्वती है। एक दूसरी सावित्री भी इतिहास में प्रसिद्ध है, जो राजकुमार सत्यवान की पत्नी और मद्रदेश की राजकुमारी थीं। वट सावित्री का व्रत इसी सत्यवान की पत्नी के नाम से होता है। मद्रदेश के राजा को यह पुत्री ब्रह्मा जी की पत्नी सावित्री देवी की आराधना करने के बाद प्राप्त हुई थी इसलिए उन्होंने इसका नाम सावित्री ही रख दिया था। यह वही सावित्री है जिसने यमराज से अपने मृत पति को जिंदा करवा लिया था। 12. उषा – Usha  उषा को सुबह की देवी माना गया है। किसी भी प्रकार की चमक या प्रकाश को उषा कहा जाता है। कई बार चांदनी के विशिष्ट अर्थ में भी इस शब्द का प्रयोग होता है। ऋग्वेद में उषा को द्यौ की पुत्री कहा गया है। ‘द्यौ’ (आकाश) को ऋग्वैदिककालीन देवों में सबसे प्राचीन माना जाता है तत्पश्चात पृथ्वी भी दोनों द्यौवा व पृथ्वी के नाम से जानी जाती थी। आकाश को सर्वश्रेष्ठ देवता तथा सोम को वनस्पति देवता के रूप में माना जाता था। रात्रि, अंधकार, प्रकाश और मृत्यु का उषा से गहरा संबंध है और यह संबंध स्वाभाविक रूप में सविता और सावित्री से भी जुड़ा हुआ है।  See More:  गायत्री-मन्त्र से रोग-ग्रह-शान्ति – Gayatri Mantra Benefits in Hindi  हिन्दू धर्म के 16 संस्कार – 16 Sanskars of Hindu Religion  कहानी हमारे Taxation System और Budget की – Story of Indian Taxation and Budget  गोस्वामी तुलसीदास जी के दोहे – Goswami Tulsidas Ke Dohe  ज्वालादेवी मंदिर का रहस्य – Jwala Devi Temple Story in Hindi  कैसे बना एक तांगेवाला अरबपति – How MDH Become Millionaire Hindi Story  शिवजी और श्रीकृष्ण जी का दूध से अभिषेक – Milk Worship of Shiv Ji & Krishna Ji Hindi  वैष्णव और शैव – Vaishnav and Shaiv Hindi Story  मेरा देश सो रहा है हिंदी कविता – My Country is sleeping Hindi Poem  अध्यात्म और विज्ञान और श्री कृष्ण- Spirituality and Science and Sri Krishna  गलतफहमी – हिन्दू धर्म में 33 करोड़ 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