Thursday 31 August 2017

खोज... प्रश्नोत्तरी

ⓘ Optimized 1 hour agoView original http://susanskrit.org/cultural-gk.html SuSanskritMenu Search  खोज... प्रश्नोत्तरी प्र. गुरुपूर्णिमा किस चरित्र से जुडी हुई है ? उ. महर्षि वेद व्यास के चरित्र से । गुरुपूर्णिमा (अाषाढी पूर्णिमा) वस्तुतः 'व्यास पूर्णिमा' कहलाती है । महर्षि व्यास का चरित्र इतना शुभ्र और लोकोत्तर है, जीवन उन्नत और लोकसंग्रहार्थ है, कि वह गुरु शिरोमणि माने गये । उनकी जन्मतिथी 'गुरुपूर्णिमा' कहलायी ताकि सभी गुरुओं के वह अादर्श बनें । उन्हों ने रचा हुअा बहुमुखी वाङमय (पुराणों से लेकर ब्रह्मसू्त्र तक) सदीयों से हर प्रकार के मानव को मार्गदर्शन और चेतना प्रदान करता रहा है । यही वजह है कि उन्हें "भगवान" की संज्ञा देते हुए कहा गया; अचतुर्वदनो ब्रह्मा द्विबाहुरपरो हरिः । अभाललोचनः शम्भुर्भगवान् बादरायणः ॥ उनके चार मुख नहीं, फिर भी जो ब्रह्मा है; दो बाहु है, फिर भी हरि (विष्णु) है; मस्तिष्क पर तीसरा नेत्र नहीं, फिर भी शम्भु है; ऐसे भगवान श्री बादरायण (बद्री वृक्ष के तले जन्मे हुए याने व्यास मुनि) है । जीवन में सुयोग्य गुरु मिला हो या न हो, गुरुपूर्णिमा के दिन महर्षि वेद व्यास का स्मरण कर उन्हें कृतज्ञ बुद्धि से नमस्कार करना चाहिए । Write comment (0 Comments) हिंदु प्र. "हिंदु" शब्द का अर्थ क्या है ? उ. "सिंधु" नदी के दक्षिण-पूर्व में बसनेवाले लोग । यह जानकर अाश्चर्य होगा कि "हिंदु" यह कोई पारिभाषिक या संस्कृत संज्ञा नहीं है । तिबेट से लेकर पाकिस्तान तक बहनेवाली सिंधु (Sindhu) नदी को ग्रीक में Indus और पर्शियन में हिंदु संज्ञा से पुकारा जाता था । इस वजह से सिंधु नदी के दक्षिण-पूर्व तट पर बसनेवाली जाति को अरबीयों ने हिंदु, और युरोपीयनों ने Indian कहकर पहचाना । इतना ही नहीं, बल्कि यहाँ के धर्म को भी उन्हों ने "हिंदु" नाम दिया । मध्यकालीन युग के अाक्रमणकारीयों ने दी हुई "हिंदु" संज्ञा हम अाज तक बिना सोचे ही इस्तेमाल करते रहे हैं । भारतीय वाङमय में इस धर्म की संज्ञा "वैदिक अथवा सनातन धर्म" ऐसे की गयी है । सिंधु नदी का उल्लेख ऋग्वेद में अनेक दफे किया गया है । Write comment (0 Comments) महाभारत का लेखन प्र. महाभारत का लेखन कार्य किसने किया था ? उ. गणेशजी ने । ऐसी पौराणिक कथा है कि महाभारत जैसे विराट ग्रंथ का लेखन कार्य महर्षि व्यास ने गणेश जी को सौंपा । गणेशजी ने इस भगीरथ कार्य का स्वीकार किया, पर वे लेखन में बहुत तेज थे । शेखी में ही उन्होंने शर्त रखी कि महर्षि व्यास सतत बोलते रहेंगे, रुकेंगे नहीं - वर्ना वे लेखन कार्य बीच में ही छोड देंगे । महर्षि व्यास तो ऋषि शिरोमणि थे ! उन्हों ने गणेशजी का प्रस्ताव मान्य किया, पर सामने शर्त रखी कि - गणेशजी समजे बगैर एक भी श्लोक लिखेंगे नहीं । अर्थात् बीच बीच में नयी रचना सोचने का समय महर्षि को सहज ही मिल गया ! वाह ! एक बुद्धि की देवता, तो एक बुद्धि के विजेता ! Write comment (0 Comments) भगवान का प्रश्न प्र. गीता में भगवान ने अर्जुन से कोई प्रश्न पूछा है ? कौन सा ? उ. हाँ । वैसे तो गीता में अर्जुन ने ही अनेकों प्रश्न पूछे हैं, ऐसी सामान्य समज है । किंतु, उसमें भगवान का भी अर्जुन से एक प्रश्न है, जो कि अठारवें अध्याय में अा जाता है । भगवान पूछते हैं; कच्चिदेतच्छ्ृतं पार्थ त्वयैकाग्रेण चेतसा । कच्चिदज्ञानसम्मोहः प्रनष्टस्ते धनञ्य ॥ ७२ ॥ हे पार्थ ! क्या इस (गीताशास्त्र) - को तूने एकाग्रचित्तसे सुना ? और हे धनंजय ! क्या तेरा अज्ञानजनित मोह नष्ट हो गया ? अर्जुन ध्यानपूर्वक गीता सुने ऐसी भगवान की इच्छा, इस प्रश्न द्वारा प्रकट होती है । श्रौतीय श्रवण चित्तपूर्वक, नहीं कि यांत्रिकता से होना चाहिए - ऐसी भी भगवान की अपेक्षा है । ऐसा श्रवण केवल विद्वत्तार्थ नहीं, बल्कि विकासार्थ होना चाहिए - यह दूसरे प्रश्न में विदित है । Write comment (0 Comments) प्रचलित संवाद प्र. अादि शंकराचार्य और मंडनमिश्र के संवाद में निर्णायक कौन था ? उ. उभय भारती (मंडनमिश्र के पत्नी) । मंडनमिश्र, कुमारिल भट्ट के शिष्य और तत्कालीन भारत के प्रचलित पूर्वमीमांसक थे; और अादि शंकराचार्य प्रचलित उत्तर-मीमांसक । इन दोनों विद्वानों के संवाद में मध्यस्थी कौन कर सकता था ! पर मंडनमिश्र की पत्नी इतनी विदुषी थी कि उनका इस काम के लिए वरण किया गया । अपने पति मंडनमिश्र की हार और संन्यासग्रहण के निर्णय में भी अटल रह पायी, इतनी वह सत्याश्रयी थी । Write comment (0 Comments) "वैष्णव" संप्रदाय प्र. सांप्रत काल के "वैष्णव" संप्रदायों का पुरातन नाम क्या है ? उ. भागवत धर्म । संसार और अध्यात्म दो भिन्न प्रवाह नहीं हो सकते; बल्कि भक्ति के माध्यम से इन दोनों के बीच सुंदर सेतु बनाया जा सकता है, यह समज प्रस्थापित करनेवाला भागवत धर्म था । अध्यात्म केवल ब्राह्मणों अथवा संन्यासीयों का क्षेत्र नहीं, बल्कि हर एक वर्ण का समान अधिकार क्षेत्र है, जो स्वकर्म करते हुए प्राप्त हो सकता है - ऐसी भागवत धर्म की मान्यता थी । इस लिए परम भागवतों की नामावलि में जनक, अंबरीश और भीष्म जैसे क्षत्रियों को भी नमस्कार किया जाता है । "संत" परंपरा भी भागवत धर्म-दर्शन की ही देन है । Write comment (0 Comments) महर्षि नारद प्र. महर्षि नारद के भक्तिशास्त्र के सिद्धांत कौन से ग्रंथ में संग्रहित हैं ? उ. "नारद भक्तिसूत्र" में । महर्षि नारद का केवल नटखट चित्रण करना - यह पौराणिकता है । वास्तवतः महर्षि नारद को, भगवान श्रीकृष्ण देवर्षियों में अपनी विभूति बतलाते हैं (....देवर्षीणां च नारदः - गीता १०/२६) । भागवत धर्म और दार्शिनक भक्ति को सभी दिशाओं में पहुँचाने का महद् कार्य महर्षि नारद ने किया है । भक्ति बाह्य अाडंबर में नहीं, बल्कि अंतर्गत बदलाव में है, सूक्ष्म है - इत्यादि श्रेष्ठ मीमांसा उन्होंने भक्तिसूत्रों में की है । Write comment (0 Comments) महान संन्यासी प्र. १९ वी सदी में वेदों का जीर्णोद्धार करनेवाले महान संन्यासी कौन थे ? उ. दयानंद सरस्वती । "सत्यार्थ प्रकाश" जैसे निर्भय ग्रंथ की रचना द्वारा, उन्हों ने संकुचित संप्रदायों की संकीर्णता को उखाड फेंकने का प्रयत्न किया । वेद और वेदांगों का हिंदी अनुवाद कर, उन्हें जन सामान्य के लिए प्रवेशनीय बनाया । Write comment (0 Comments) महर्षि वेदव्यास के चार शिष्य प्र. महर्षि वेदव्यास के किन चार शिष्यों ने वेदों को संभाला ? उ. पैल, वैशंपायन, जैमिनि और सुमन्त; महर्षि वेदव्यास ने ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद अनुक्रम से इन चार शिष्यों को सौंपे । Write comment (0 Comments) वैज्ञानिक संशोधन पद्धत प्र. अाधुनिक वैज्ञानिक संशोधन पद्धत के प्रणेता कौन है ? उ. फ्रान्सीस बॅकन (Francis Bacon) । सोलहवीं सदी के यह अंग्रेज चिंतक व्यवसाय से राजपुरुष और न्यायाधीश थे । पाश्चात्य तत्त्वचिंतन को अाधुनिक विज्ञान की ओर मोड देने में उनका बहुत बडा योगदान रहा । नैंसर्गिक घटनाओं की जाँच Deductive नहीं बल्कि Inductive पद्धत से करनी चाहिए; अर्थात् अनुमान (hypothesis), जाँच, माहिती संकलन, निरीक्षण और निष्कष - इस प्रकार करनी चाहिए, ऐसा उन्होंने समजाया । अागे चलकर यही पद्धत विज्ञान के अनेकानेक अाविष्कारों की जननी बनी । इसके पहले Deductive पद्धत अर्थात् पूर्वनियोजित तथ्यों से सत्यशोधन करने की प्रणालि ही युरोप में ज्यादा प्रचलित थी । फ्रान्सीस बॅकन अनुभववाद के प्रणेता माने जाते हैं; और Knowledge is Power यह मुहावरा भी उन्हीं से प्रचलित हुअा । Write comment (0 Comments) << प्रारंभ करना < पीछे 1 2 3 4 5 6 7 अगला > अंत >> पृष्ठ 1 का 7 विशेष यक्ष-युधिष्ठिर संवाद रम्भा-शुक संवाद रघुवंश सामान्य ज्ञान श्रीमद्भगवद्गीता अ१ अर्जुनविषादयोग अ२ सांख्ययोग अ३ कर्मयोग अ४ ज्ञानकर्मसन्यासयोग अ५ कर्मसन्यासयोग अ७ ज्ञानविज्ञानयोग अ८ अक्षरब्रह्मयोग अ९ राजविद्याराजगुह्ययोग अ१० विभूतियोग अ१२ भक्तियोग अ१३ क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग अ१४ गुणत्रयविभागयोग अ१५ पुरुषोत्तमयोग अ१७ श्रद्धात्रयविभागयोग Copyright © 2005 - 2017 SuSanskrit. 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